नेपाल में जो हुआ है वो हाल के दिनों की एक बड़ी त्रासदी है. यह ऐसी त्रासदी है जिसे हम रोक नहीं सकते थे. पृथ्वी ग्रह पर हम एक किरायेदार की तरह हैं लेकिन हमने खुद को मालिक समझ लिया है. हमने बहुत समय से किराया देना बंद कर दिया है. उलटे हम पृथ्वी से किराया वसूलने की कोशिश करने में लगे हुए हैं. दूसरी बात, धरती पर हमने हर जगह अपनी आबादी फैला ली है. हमने अपने लिए घर बना लिए हैं और इस मुगालते में हैं कि इन घरों में हम सुरक्षित हैं लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं. धरती की सतह के नीचे और आसमान में बहुत-सी हलचलें हो रही हैं और इस वजह से कई प्राकृतिक विपदाएं आने को तैयार खड़ी हैं.
आज से 20 लाख साल पहले धरती हमें मिली थी तब यह एक सुंदर बगीचे सा था, हरा-भरा… लेकिन जैसे-जैसे हमारी सभ्यता का विकास होता गया. जैसे-जैसे हमारी संख्या बढ़ती गई हम इस सुंदर और ‘स्वर्गीय’ बगीचे को नरक बनाते चले गए. कुछ लोगों का मानना है कि इसके लिए विज्ञान और तकनीक जिम्मेदार हैं लेकिन मैं मानता हूं कि इसके लिए सिर्फ और सिर्फ इंसानी लालच जिम्मेदार है. सुख-सुविधाओं की बढ़ती भूख ने आज इस ग्रह (पृथ्वी) को बर्बादी की उस कगार तक पहुंचा दिया है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है.
70 हजार साल पहले की त्रासदी में हम दस फीसदी तक बच गए थे लेकिन अब तो इतनी आबादी का बचना भी मुश्किल लगता है
अब यहां दो बातें साफ करना चाहूंगा. पहली बात कि भूकंप हमें नहीं मारते हैं. ये जो तबाही हम आज देख रहे हैं वो केवल भूकंप की वजह से नहीं है. हमें मारते हैं हमारे वो घर जिन्हें हमने अपने लिए बनाया है और जिसमें बैठकर हम अपने-आप को सुरक्षित महसूस करते हैं.
दूसरी बात आज, हालांकि इस बारे में अभी वैज्ञानिकों में एक राय नहीं है लेकिन ऐसी आशंका है कि हम जो बड़े-बड़े बांध बना रहे हैं, कहीं उसकी वजह से तो भूकंप की भीषणता नहीं बढ़ रही है. जब पहाड़ी इलाकों में बड़े-बड़े बांध बनते हैं तो बड़े पैमाने पर पहाड़ों के साथ तोड़फोड़ की जाती है. जब बांध बन जाते हैं तो इससे पानी रिसता है और ये पानी सतह की दरारों से होता हुआ नीचे पहुंचता है. इस वजह से सतह के नीचे की चट्टानें कमजोर होती हैं. कहने का अर्थ यह कि इससे बिल्कुल इनकार नहीं किया जा सकता कि मानवीय मौजूदगी की वजह से भूकंप का प्रकोप बढ़ रहा है. धरती पर रहने के दूसरे कई और भी खतरे हैं.
अभी हाल ही में चिली में ज्वालामुखी विस्फोट हुआ है. वैज्ञानिकों को इस बात की आशंका है कि भविष्य में एक बड़ा ज्वालामुखी विस्फोट हमारे इंतजार में है. अगर ऐसा हुआ तो यह मानव जीवन की एक बड़ी त्रासदी साबित होगी. आज से 70 हजार साल पहले जावा के माउंट टोबा में एक ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था. तब इसकी वजह से पूरे एशिया महाद्वीप के ऊपर तीन से चार फीट मोटी राख की परत जमा हो गई थी.
तब पृथ्वी पर मनुष्य जाति के अस्तित्व तक पर संकट के बादल मंडराने लगे थे. उस समय तक अफ्रीका से इंसान पलायन करके हिन्दुस्तान में आ चुके थे. इस विस्फोट में मनुष्य जाति की आबादी का मात्र दस से बीस फीसदी हिस्सा ही बच पाया था. वैज्ञानिकों को आशंका है कि भविष्य में जो ज्वालामुखी विस्फोट होगा वो ऐसी ही ताकतवाला होगा. इस तरह के एक विस्फोट का होना तय है लेकिन ये कहां होगा. कब होगा इसके बारे में आज हम कुछ भी जान पाने में असमर्थ हैं.
अब सवाल ये उठता है कि अब जब आबादी इतनी बढ़ चुकी है तो इस विस्फोट की वजह से कितना नुकसान होगा हम उसके बारे में आज कोई अंदाजा नहीं लगा सकते हैं. 70 हजार साल पहले की त्रासदी में कम से कम दस फीसदी तो बच गए थे लेकिन अब तो इतनी आबादी का बचना भी मुश्किल लगता है. आज हम अपनी आदतों और तकनीक पर अपनी निर्भरता की वजह से बहुत ‘नाजुक’ हो चुके हैं.
बहरहाल ये बातें हुईं जमीनी खतरों की. आसमान में भी हर वक्त कुछ न कुछ चलता रहता है. जब हम अपने अंतरीक्ष में देखते हैं तो वहां पृथ्वी के आसपास कई सारे खतरे मंडराते नजर आते हैं. अंतरीक्ष में कई ऐसे लघु ग्रह हैं जो पहले भी पृथ्वी से टकराते रहे हैं और आगे भी ऐसी टक्कर दे सकते हैं. इन लघु ग्रहों में से कुछ के आकार तो हिमालय पहाड़ जितने हैं. हालांकि इस क्षेत्र में विज्ञान ने अच्छा काम किया है और आज हम यह खोज पाने में सक्षम हैं कि कौन-सा उपग्रह या पिंड कब पृथ्वी से टकराने वाला है. फिर हम इस बात में भी सक्षम हैं कि भविष्य में होने वाली ऐसी टक्करों से अपनी धरती मईया को बचा सकें. कहने का तात्पर्य को धरती पर रहने के कई खतरे हैं. सो हमारी भलाई इसी में है कि हम धरती पर एक ईमानदार किरायेदार की तरह रहें न कि इसे अपनी जागीर समझकर नोचें-खसोटें.
(विकास कुमार से बातचीत पर आधारित)