वीरप्पन से कथित संबंधों को लेकर कई लोग आपको खलनायक बता चुके हैं. क्या आप दस्यु सरगना वीरप्पन के साथ अपने संबंधों पर कुछ प्रकाश डालेंगे?
हम दोनों में समानता बस मूंछों तक ही सीमित है (हंसते हुए). खोजी पत्रकारिता करने के लिए हम लोगों ने 1988 में ‘नक्कीरण’ पत्रिका शुरू की. अगले ही साल डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (डीएफओ) पी. श्रीनिवास की निर्मम हत्या के बाद तमिलनाडु में खौफ पसर गया. अखबारों ने खबर छापी कि इस जघन्य हत्याकांड के लिए चंदन तस्कर वीरप्पन जिम्मेदार है. उसने कथित तौर पर डीएफओ का सिर धड़ से अलग कर दिया था.
तब वीरप्पन के ठिकाने के बारे में किसी को जानकारी नहीं थी. इसलिए मैं उसकी खोज में निकल पड़ा. एक बार किसी ने मुझे मूछों वाले एक दुबले-पतले आदमी की तस्वीर दिखाई. शुरू में तो मुझे भी विश्वास नहीं हुआ कि इन अमानवीय हरकतों के पीछे ये दुबला-पतला आदमी था.
इसके बाद 1990 में कर्नाटक कैडर के पुलिस अधीक्षक हरिकृष्णा वीरप्पन को पकड़ने के लिए पुलिस बटालियन लेकर जंगल के अंदर गए. जंगल में जो मुठभेड़ हुई, उसमें एसपी हरिकृष्णा, एक इंस्पेक्टर और छह पुलिसवाले मारे गए. उसके बाद मैंने अपने सभी संवाददाताओं, फोटोग्राफर्स को इस चंदन तस्कर के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाने और उसकी फोटो भी हासिल करने को कहा.
हमारे ही एक संवाददाता सिवा सुब्रह्मणयम को उसकी तस्वीर हासिल करने में सफलता मिली लेकिन उसने फोटो देने वाले सूत्र का खुलासा नहीं किया. इसके फौरन बाद हमने अपनी पत्रिका में वीरप्पन के बारे में एक लेख प्रकाशित किया. उस लेख और तस्वीर ने स्पेशल टास्क फोर्स की काफी मदद की. उस समय के एसटीएफ चीफ वाल्टर देवराम ने ‘आउटलुक’ मैगजीन को दिए एक साक्षात्कार में माना कि उस लेख और फोटो से उन्हें पता चला कि जंगल में वीरप्पन नाम का कोई जंगली डाकू है. तब तक तो ये एक कोरी अफवाह की तरह था. इस तरह वीरप्पन के साथ हमारे संबंधों की शुरुआत हुई.
वीरप्पन ने जब कन्नड़ सुपरस्टार राजकुमार का अपहरण किया तब आपने एक दूत की भूमिका निभाई थी. ऐसी अफवाह थी कि वीरप्पन अभिनेता राजकुमार की रिहाई के लिए होने वाली बातचीत में तमिल सुपरस्टार रजनीकांत व स्व. सिवाजी गणेसन को शामिल कराना चाहता था. सच्चाई क्या है?
शुरुआत में जब वीरप्पन ने कुछ वन अधिकारियों का फिरौती के लिए अपहरण किया तब मुझे एक दूत बनाकर भेजा गया. उस मुलाकात के दौरान वीरप्पन ने मांग रखी कि बातचीत में रजनीकांत और सिवाजी गणेसन को भी शामिल किया जाए क्योंकि वह उन दोनों का प्रशंसक था. हालांकि उन बंधकों को छुड़ाने में मैं सफल हुआ लेकिन वीरप्पन की कई शर्तों को कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों ही राज्य सरकारों ने स्वीकार नहीं किया. इसलिए जब राजकुमार का अपहरण हुआ तब मैंने दूत बनने से इंकार कर दिया.
हालांकि उस वक्त डीएमके सुप्रीमो करुणानिधि और कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा का मुझ पर काफी दबाव था. मेरे पास रजनीकांत और सिवाजी गणेसन की तरफ से भी कई बार फोन आए. कर्नाटक में रहने वाले तमिलों पर भी दबाव बढ़ रहा था. राजकुमार के अपहरण के कारण कर्नाटक में रहने वाले लाखों तमिलों पर भी हिंसा का खतरा बढ़ रहा था क्योंकि राज्य के लोग अभिनेता राजकुमार को भगवान की तरह पूजते थे.
उस वक्त कर्नाटक में रहने वाले तमिलों की संख्या करीब 65 लाख थी. इसलिए मैंने कर्नाटक में रह रहे लाखों तमिलों की जान बचाने की खातिर फिर से दूत बनना स्वीकार किया. मैं जंगल में गया लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश की वजह से वीरप्पन के साथ बातचीत सफल नहीं हो पाई. फिर करुणानिधि ने मुझे बंगलुुरु जाकर कर्नाटक सरकार को ताजा हालात से अवगत कराने को कहा.
दो कारणों के चलते करुणानिधि ने रजनीकांत से भी मेरे साथ जाने का अनुरोध किया. पहला, रजनीकांत न सिर्फ तमिलनाडु के सुपरस्टार हैं बल्कि पूरे दक्षिण भारत में उनकी शख्सियत का बोलबाला है. दूसरा, वे कन्नड़ बोलना जानते हैं. इस तरह हम दोनों एक चार्टर्ड फ्लाइट से कर्नाटक में एक जगह पहुंचे, जहां पुलिस की गाड़ियों के विशाल काफिले ने हमारा स्वागत किया. जब हमें बुलेटप्रूफ गाड़ी में बिठाया गया तब मैं हक्का-बक्का रह गया. इस बारे में जब मैंने रजनी सर से पूछा कि ये सुरक्षा बंदोबस्त आपके लिए किया गया है तब उन्होंने जवाब दिया कि मेरी जिंदगी को भी खतरा है. इस तरह वीरप्पन के चंगुल से राजकुमार को निकालने में रजनी सर ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. सिवाजी गणेसन ने शायद तमिलनाडु सरकार से इस बारे में चर्चा की होगी.
वीरप्पन की भविष्य की योजना क्या थी? वह जिंदगी भर फरार रहना चाहता था या फिर आत्मसमर्पण करना चाहता था? क्या उसने इस बारे में आपको कुछ बताया?
वीरप्पन बातचीत के लिए रजनीकांत और सिवाजी गणेसन को शामिल करने का दबाव इस वजह से डाल रहा था ताकि पुलिस के सामने आत्मसमर्पण के वक्त उसकी जान की सुरक्षा हो सके. शायद उसका मानना था कि अपहृत अभिनेता राजकुमार समेत प्रभावशाली अभिनेताओं की मौजूदगी तमिलनाडु और कर्नाटक की सरकार को उसके जघन्य अपराधों के लिए माफ करने के लिए मजबूर कर सकती है. वह अपने परिवार के साथ तमिलनाडु में बसना चाहता था. वह हथियार त्यागने के लिए भी तैयार था. हालांकि मौजूदा कानून उस जैसे खूंखार भगोड़े के लिए किसी भी तरह उपयुक्त नहीं थे कि उसे पूरी तरह क्षमादान मिल सके.
क्या ये सच है कि लोग और पुलिस जंगल में अभी भी उसकी दौलत की खोजबीन में लगे हैं? आपको क्या लगता है वीरप्पन की मौत के बाद उसकी दौलत का क्या हुआ होगा?
हां, ये मैंने सुना है कि स्थानीय लोग अभी भी उसके पैसों को जंगल में ढूंढ़ रहे हैं. वे इसके लिए काफी मेहनत भी कर रहे हैं. हालांकि मेरा मानना है कि वीरप्पन अपने पीछे कोई संपदा छोड़कर नहीं गया. पैसे को संभालने में वीरप्पन कमजोर था. जो भी उसे मिला उसने स्थानीय समुदाय के खाने-पीने और अन्य जरूरतों को पूरा करने में खर्च कर दिया.
एसटीएफ ने उसे जिंदा पकड़ने की बजाय गोली क्यों मारी? इस तरह की अफवाह है कि कुछ वीवीआईपी लोगों को बचाने के लिए उसे खत्म कर दिया गया जिनके उसके साथ संबंध थे. क्या ये सच है?
ये सच है कि उसे जिंदा पकड़ा गया था और मारने से पहले दो दिनों तक यातनाएं दी गई थीं. मारे गए इस डाकू की बिना मूछों वाली तस्वीर इस बात की तस्दीक करने के लिए काफी है. उसे अपनी मूंछों पर बहुत गर्व था. काटने की तो छोड़ो, वह अपनी मूंछों को किसी को छूने भी नहीं देता. मैं ये भी मानता हूं कि वह कई वीवीआईपी लोगों के करीब था जिनके राजनीतिक संपर्क थे. अगर उसे जिंदा पकड़ा जाता तो कई सफेदपोश लोग बेनकाब हो सकते थे इसी वजह से उसकी हत्या कर दी गई. यही नहीं, एसटीएफ भी वीरप्पन को कुचलने की कुंठा से भरी हुई थी.
‘ये बहुत मुश्किल है कि वीरप्पन जैसा कोई दोबारा पैदा हो. वह दिल से अच्छा इंसान था. पुलिस के अत्याचारों ने ही उसे क्रूरता के दलदल में धकेला’
दो दशकों से भी ज्यादा समय तक वीरप्पन को किसने पनाह दी? तमिलनाडु और कर्नाटक की सरकारों को उसे पकड़ने में इतना वक्त क्यों लग गया?
राज्य सरकारों की राजनीतिक रस्साकशी और दोनों राज्यों की एसटीएफ के बीच तनातनी के कारण ही उसे पकड़ने में ज्यादा वक्त लगा. वीरप्पन जंगल के चप्पे-चप्पे से अच्छी तरह वाकिफ था और आसानी व बहुत तेजी के साथ जंगल के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंच सकता था. वह पलक झपकते ही गायब हो जाने में माहिर था. बंदूकें और अन्य हथियार होने के बावजूद जंगल में पुलिस असहाय थी. यही नहीं, उसे जंगल में रहने वाले स्थानीय लोगों का भी समर्थन प्राप्त था जो पुलिस और एसटीएफ के निरंकुश व्यवहार से चिढ़ते थे. वीरप्पन गांव वालों पर होने वाले अत्याचारों से कठोरता से निपटता था इसलिए गांव वाले भी उसकी रक्षा के लिए अपनी जान देने के लिए तैयार रहते थे.
क्या वीरप्पन का कोई उत्तराधिकारी बचा है?
नहीं. जहां तक मेरा मानना है उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं है. ये बहुत मुश्किल है कि वीरप्पन जैसा कोई दोबारा पैदा हो. वह दिल से अच्छा इंसान था. पुलिस के अत्याचारों ने ही उसे क्रूरता के दलदल में धकेला. उसने पहले डीएफओ पी. श्रीनिवास की हत्या की जिसने उसकी बहन के साथ बलात्कार किया था. इस वजह से उसकी बहन ने आत्महत्या कर ली थी.
आप वीरप्पन का आकलन किस तरह करेंगे?
वीरप्पन एक हत्यारा था, जो खुद को सुधारना चाहता था.