2006 में पूरी दुनिया को हिलाकर रख देने वाले निठारी हत्याकांड के अभियुक्त सुरेंद्र कोली को फांसी होने वाली है. चार सितंबर 2014 को उसे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद स्थित डासना जेल से मेरठ जिला जेल ट्रांसफर कर दिया गया जहां उसे फांसी दी जाएगी. इससे एक दिन पहले ही गाजियाबाद स्थित सीबीआई अदालत ने कोली को डासना से मेरठ जेल भेजने और उसे फांसी पर लटकाने का आदेश दिया था.
उत्तराखंड के एक छोटे से गांव मंगरूखाल का रहने वाला सुरेंद्र कोली दिसंबर 2006 में दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गया जब नोएडा के एक कारोबारी मोनिंदर सिंह पंढेर के मकान से खुदाई के दौरान बड़ी संख्या में बच्चों के कंकाल मिले. कोली पंढेर के घर में काम करता था. इस मामले में कोली और पंढेर, दोनों को आरोपी बनाया गया और दोनों ही तब से गाजियाबाद की डासना जेल में बंद हैं. बाद में मामला सीबीआई को सौंपा गया जिसने अपनी जांच के दौरान कोली को 16 मामलों में दोषी बताते हुए उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की. इन 16 में से पांच मामलों में उसे गाजियाबाद की सीबीआई अदालत से फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है. कोली को इनमें से सबसे पहले मामले में अभियुक्त साबित होने के बाद फांसी पर लटकाया जाएगा जिसका फैसला फरवरी 2009 में आया था. यह मामला 14 साल की रिम्पा हलदर की नृशंस हत्या का है. इस मामले में उसकी दया याचिका राष्ट्रपति पिछले दिनों खारिज कर चुके हैं. चार अन्य मामलों में फांसी को लेकर कोली की याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित है.
चार सितंबर को सीबीआई के विशेष जज ने कोली का डेथ वारंट गाजियाबाद जेल प्रशासन को भिजवाया. इसमें कहा गया है कि अदालत गाजियाबाद के जेल सुपरिटेंडेंट को मौत की सजा पाए सुरेंद्र कोली को जिला जेल मेरठ भेजने और वहां उसे फांसी देने की इजाजत देती है. हालांकि दो पेज के इस आदेश में सुरेंद्र कोली को फांसी पर लटकाने की कोई तिथि या दिन निश्चित नहीं है, लेकिन आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि आदेश के सात से 10 दिन के भीतर उसे फांसी दे दी जाने की संभावना है.
सूत्रों का कहना है कि सुरेंद्र कोली को फांसी देने के लिये मेरठ जेल भेजने की प्रक्रिया में अदालत, राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच काफी लंबी प्रक्रिया चली. ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि फांसी की सजा पाए किसी कैदी की राष्ट्रपति द्वारा खारिज की गई दया याचिका अदालत द्वारा मंगवाई गई हो. केंद्रीय गृह मंत्रालय से सीलबंद लिफाफे में आई खारिज दया याचिका देखने के बाद ही अदालत ने उसे मेरठ जेल भेजने का आदेश दिया.
फांसी के बारे में सुनने के बाद भी सुरेंद्र कोली की मनोदशा और हाव-भाव में कोई परिवर्तन देखने को नहीं मिला. डासना जेल अधीक्षक एसपी यादव ने तहलका को बताया कि उसका व्यवहार रोजमर्रा जैसा ही रहा. उनका यह भी कहना था कि कोली अपनी हाई सिक्योरिटी बैरक में अपने खिलाफ चल रहे मामलों को लेकर तैयारी करता रहता है या फिर आरटीआई से सूचना मांगने के काम में लगा रहता है. इसके अलावा उसने हाल ही में अपनी फांसी की सजा को लेकर उत्तराखंड सरकार को भी एक चिट्ठी लिखी है जिसमें उसने सरकार से अपने लिये सहायता मांगी है.
मेरठ के जेल अधीक्षक एसएमएच रिजवी ने तहलका को बताया कि सुरेंद्र कोली को गाजियाबाद जेल की तरह मेरठ में भी हाई सिक्योरिटी बैरक में रखा जाएगा. उनका कहना था, ‘कोली को फांसी देने के लिये हमारे पास पवन नाम का जल्लाद है जिसे सरकार की तरफ से 3000 रुपए प्रतिमाह तनख्वाह दी जाती है.’ उन्होंने यह भी बताया कि कोली को फांसी देने से पहले उसके परिवार को जेल प्रशासन की तरफ से सूचना भिजवाई जाएगी.
मेरठ जेल में 39 साल बाद किसी को फांसी दी जाएगी. इससे पहले 1975 में यहां एक कैदी को फांसी पर लटकाया गया था. कोली को फांसी देने के लिये प्रदेश की तीन जेलों का नाम दिया गया था-मेरठ, बरेली और इलाहाबाद. कोली को चार अन्य मामलों में भी गाजियाबाद की विशेष सीबीआई अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है. ये सभी मामले अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चल रहे हैं. इसके अलावा कोली पर लंबित 12 अन्य विचाराधीन मामलों का निस्तारण गाजियाबाद की विशेष सीबीआई अदालत में हो रहा है.
गाजियाबाद की जेल से मेरठ जेल ले जाए जाते समय ‘वज्र’ वाहन में बैठे और चेहरे से भावशून्य लग रहे सुरेंद्र कोली से निशांत गोयल ने बात की. इस दौरान वह बार-बार यही कहता रहा कि कि उसे फांसी नहीं हो रही है बल्कि सरकार उसकी हत्या करवा रही है.
पता है तुम्हें कहां और क्यों ले जाया जा रहा है?
हां मुझे पता है मुझे मेरठ जेल ले जाया जा रहा है और मुझे यह भी पता है कि मुझे जल्द ही मार दिया जाएगा.
अब जब तुम्हें पता है कि तुम्हें कहां और क्यों ले जाया जा रहा है तो तुम्हें आखिरी बार कुछ कहना है?
मुझे बिना किसी गुनाह के फांसी की सजा दी रही है. यह सजा नहीं है बल्कि सरकार मेरी हत्या कर रही है. मैं बिल्कुल बेकसूर हूं. मैंने अदालत और सरकार को अपनी पूरी बात बताई. मैंने लगातार अपनी बेकसूरी साबित करने की कोशिश की लेकिन मेरी बात किसी ने नहीं सुनी. मैं गरीब हूं इसलिये मेरी हत्या की जा रही है. मेरी हत्या कानून का मजाक है.
तुम आखिरी बार अपने परिवार से मिलना चाहते हो?
मैं पिछले कई महीनों से अपने परिवार और बच्चों से मिलने की गुहार लगा रहा हूं, लेकिन कोई मेरी बात सुनने को तैयार ही नहीं है. मैंने कई बार अदालत में भी यह बात कही, एप्लीकेशन भी लगाई, लेकिन कुछ नहीं हुआ. अब जब मैं मरने ही वाला हूं तो अब मुझे अपने परिवार और बच्चों से मिलने की कोई उम्मीद नहीं है. अगर मेरे मरने से पहले मेरे परिवार को मुझसे मिलवाने के लिये लाया जाता है तो उन्हें मुझसे मिलवाने के बाद सकुशल मंगरूखाल भिजवा दिया जाए.
और कोई बात जो तुम कहना चाहते हो.
निठारी के बच्चों की हत्या से मेरा कोई लेना-देना नहीं है. मैंने एक भी बच्चे की हत्या नहीं की और न ही किसी के साथ बलात्कार किया. इसके अलावा न ही मैंने किसी को पका कर खाया जैसा कि मेरे बारे में अखबारों ने और टीवी ने दिखाया है. सीबीआई ने इस मामले की ठीक तरीके से तफ्तीश नहीं की. सीबीआई ने हमारी पड़ोस वाली कोठी डी-6 के मालिक डाक्टर अग्रवाल से कोई पूछताछ नहीं की. डाक्टर अग्रवाल बच्चों को मारकर उनकी किडनी और दूसरे अंग बेचने का कारोबार करता था. इस सबके अलावा मेरा मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर कोठी में अय्याशी करता था और कई बड़े-बड़े नेता और अधिकारी उसके यहां लगातार आते रहते थे. सीबीआई ने इन सबको बचाने के लिए मुझे फंसाया है.
लेकिन तुमने अपने बयान में पंढेर या डाक्टर के बारे में कुछ नहीं बताया.
साहब जिस आदमी के सिर पर सीबीआई के दस-दस अधिकारी खड़े हों वह और क्या करेगा. मैंने अपने बयान में वही कहा जो मुझे सीबीआई वालों ने कहने के लिये कहा था. मुझे प्रेशर में लेकर यह सब मुझसे कहलवाया गया.