पहले गणतंत्र दिवस के भव्य आयोजन की तैयारी की गई, फिर इश्तहार निकाला गया. लेकिन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के इश्तहार में संविधान के प्रस्तावना की जो कॉपी लगाई गई, उससे ‘सोशलिस्ट और सेक्युलर’ शब्द गायब थे. कांग्रेस के विरोध के बाद जब विवाद ने तूल पकड़ा, तो राज्य मंत्री ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि इस ‘बात पर बेवजह सियासत की जा रही है. संविधान को लागू करते वक्त जिस प्रस्तावना का इस्तेमाल हुआ था, उसी की कॉपी छापी गई.’ लेकिन कांग्रेस प्रस्तावना की कॉपी पर नहीं, बल्कि भाजपा की मंशा पर सवाल उठाए हैं. अहम बात यह है कि इसी कॉपी का इस्तेमाल पिछली कांग्रेस सरकार ने भी किया था.
लेकिन सूचना एवं प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद ने शिवसेना सांसद संजय राउत की ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को संविधान से हटाने की मांग को जायज ठहरा कर आग में घी डालने का काम कर दिया है. प्रसाद ने इशारा करते हुए कहा कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता, ये दोनों शब्द 1976 के आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में जोड़े गए थे. ‘इन दोनों शब्दों पर बहस करने में क्या दिक्कत है. बहस से देशवासियों को तय करने देना चाहिए कि वे क्या चाहते हैं.’ कांग्रेस पर निशाना साधते हुए प्रसाद ने कहा, ‘धर्मनिरपेक्ष शब्द को संविधान निर्माताओं ने प्रस्तावना में शामिल नहीं किया. क्या पंडित नेहरू की धर्मनिरपेक्षता की समझदारी मौजूदा कांग्रेसी नेताओं से कम थी.’
वहीं इस बयान से शह पाकर राउत ने एक और दांव फेंकते हुए कह दिया ‘शिवसेना प्रमुख बाला साहेब और उनसे पहले सावरकर हमेशा से कहते आए हैं कि देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था. पाकिस्तान मुसलमानों के लिए विभाजित किया गया था, जो बच गया वह हिन्दू राष्ट्र है.’
विकास के मुद्दे पर जनादेश प्राप्त करने वाली भाजपा के कई सांसद अटपटे बयान दे चुके हैं. साध्वी निरंजन ज्योति से लेकर उन्नाव के सांसद साक्षी महाराज अपने बयानों से सरकार की छवि को पहले ही ठेस पहुंचा चुके हैं. ऐसे में प्रसाद के इस बयान ने नया विवाद खड़ा कर दिया है. काफी संभव है कि जिस दलील के तहत प्रसाद और राउत ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द पर बहस या उसे हटाने की मांग कर रहे हैं, उसी का इस्तेमाल कर ‘समाजवाद’ को हटाने की मांग भी की जा सकती है.