क्या राज्यसभा टीवी सफेद हाथी में तब्दील होता जा है? देश के टैक्स जमा करनेवाले नागरिकों के फंड से चल रहे इस चैनल की कार्यप्रणाली पर कई तरह के सवाल इन दिनों उठाए जा रहे हैं. इसकी नियुक्ति को लेकर सबसे ज्यादा सवाल उठ रहे हैं. जब तमाम न्यूज चैनल मंदी के दौर से गुजर रहे है तब चैनल के सीईओ की नियुक्ति भी सवालों के घेरे में है.
राज्यसभा टीवी चैनल उच्च सदन की आवाज माना जाता है. इससे इसी तरह की परिपक्वता की भी उम्मीद की जाती है. हालांकि हकीकत में ऐसा कुछ होता नजर नहीं आ रहा. चार साल पहले जब इस चैनल को लॉन्च किया गया था तब एक बड़ी आबादी की उम्मीदें इसके प्रति जगी थीं. मगर हुआ इसके ठीक उलट, उम्मीदें गलत साबित हुईं. एक विशेषाधिकार प्राप्त चैनल में पेशेवर दक्षता को परे रखकर ‘बड़े घरों’ या फिर राजनीतिज्ञों से निकटतावाले लोगों की भर्ती की जा रही है. चैनल की ओर से अपनाई जा रही नियुक्ति प्रक्रिया पर दुख जताते हुए एक वरिष्ठ पेशेवर ने बताया, ‘यह एक ऐसी जगह बनती जा रही है जहां पत्रकारिता के ज्ञान को परे रख दिया जाता है, अगर आप ‘बड़े’ परिवार या किसी बड़े राजनीतिज्ञ की सिफारिश के साथ आए हैं.’ राजस्व पाने के लिए बिना कोई व्यापार मॉडल अपनाए राज्यसभा टीवी चैनल को 28.94 करोड़ रुपये के कम बजट के साथ 26 अगस्त 2011 को लॉन्च किया गया था. हालांकि इस पर 1700 करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च आया. चैनल को राज्यसभा वित्तीय मदद देती है इसलिए यह आसानी से समझा जा सकता है कि इसे चलाने के लिए किसके खून-पसीने की कमाई लगाई जा रही है.
गौर करनेवाली बात ये है कि ये सब अच्छी परिस्थितियों में नहीं हो रहा. ये तब हो रहा है जब भारत में टीवी चैनल खराब दौर से गुजर रहे हैं. पिछले एक साल में कई निजी न्यूज चैनल- पी-7, भास्कर न्यूज, जिया न्यूज आदि बंद हो चुके हैं, वहीं कुछ दूसरे चैनल अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. धन और संसाधनों की कमी इसके प्रमुख कारण हैं. दरअसल ये चैनल विज्ञापनों से राजस्व पाने में पूरी तरह से असफल साबित हुए हैं. हालांकि अगर राज्यसभा टीवी की बात करें तो इसे धन की कमी कभी नहीं हुई. इन स्थितियों में भी यह चैनल ऐसा राजस्व पैदा करने में असफल रहा जो इसके लिए उपयोगी रहा हो. ‘तहलका’ को मिली जानकारी के अनुसार, राज्यसभा टीवी के सालाना बजट की तुलना लोकसभा टीवी से की जाए तो यह 2014-15 में 69.28 करोड़ रुपये है. यह राशि लोकसभा टीवी के बजट से पांच गुनी ज्यादा है. वहीं दूरदर्शन के दूसरे चैनलों की बात करें तो इसके 19 चैनलों का सालाना बजट औसतन 20 करोड़ रुपये है. यह भी गौर किया जाना चाहिए कि जब उच्च सदन ने अपना चैनल शुरू करने का निर्णय लिया था तब लोकसभा टीवी चैनल शुरू होने के साथ लोकसभा की कार्यवाहियों का सीधा प्रसारण भी करने रहा था.
एक रिपोर्ट में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने स्पष्ट रूप से बताया था कि राज्यसभा टीवी के पास कोई रूपरेखा नहीं है. कैग ने राज्यसभा टीवी के औचित्य पर सवाल उठाते हुए इस बात पर ध्यान खींचा था कि राज्यसभा टीवी प्रबंधन पुरानी एचडी (हाई डेफिनिशन) तकनीक को वरीयता देता है, जबकि नवीनतम एचडी तकनीक की जरूरत है. कैग ने यह भी सुझाया था कि दो स्टूडियो की बजाय इस चैनल के लिए एक स्टूडियो होना चाहिए. अभी एक स्टूडियो का इस्तेमाल समाचार और दूसरे का प्रोग्रामिंग के लिए होता है. 2013-14 की कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा टीवी सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के विज्ञापन और जागरूकता के जरिए 13.98 करोड़ रुपये का राजस्व पैदा करता है. वहीं राज्यसभा टीवी चैनल के पास गिनाने को कुछ भी नहीं है. कैग की रिपोर्ट यह भी खुलासा करती है कि चैनल के पूरी तरह से कार्यात्मक होने के दौरान फरवरी 2012 तक इसके कार्यकारी निदेशक और कार्यकारी संपादकों ने टैक्सी से आने जाने पर 60 लाख रुपये खर्च किए थे.
सीईओ गुरदीप सिंह सप्पल ही नहीं राज्यसभा टीवी में 103 दूसरे पेशेवरों की नियुक्ति भी उचित मानदंडों को परे रख मोटी तनख्वाह पर की गई है
इसके अलावा राज्यसभा टीवी को एक सरकारी सहायता प्राप्त चैनल में पहले गैर नौकरशाह सीईओ की नियुक्ति करने का भी ‘गौरव’ प्राप्त है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस चैनल से जुड़ने से पहले वर्तमान सीईओ गुरदीप सिंह सप्पल का पत्रकारिता में अनुभव पांच साल से ज्यादा नहीं था. बीआईटीवी में उन्होंने दो साल तक काम किया. इसके अलावा एक साल वीडियो एडिटर के रूप में और एक साल एसोसिएट प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया था. सप्पल ने दूरदर्शन के मार्केटिंग विभाग में भी चार महीने तक काम किया है. राज्यसभा सचिवालय की ओर से 10 अप्रैल 2012 को जारी एक ज्ञापन में बताया गया था कि सप्पल को तीन साल के अनुबंध पर 1,75,000 रुपये की तनख्वाह पर नियुक्ति किया गया है. मजे की बात ये है कि लोकसभा टीवी के प्रमुख की तनख्वाह 1.5 लाख रुपये ही है. सप्पल को जिस राशि पर अनुबंधित किया गया था सामान्य तौर पर किसी संयुक्त सचिव को इतना दिया जाता है. इतना ही नहीं सप्पल की तनख्वाह समय-समय पर संशोधित भी की जाती रही. ‘तहलका’ को मिली उनकी सैलरी स््लिप की एक कॉपी के अनुसार नवंबर 2014 के लिए सप्पल को तनख्वाह के रूप में 2,22,250 रुपये मिले. इतना ही नहीं इस राशि पर सप्पल तीन अलग-अलग सरकारी भूमिकाओं को कार्यान्वित करते हैं. न तो वह भारतीय प्रशासनिक सेवा और न ही भारतीय सूचना सेवा से हैं. इसके बावजूद संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी होने के साथ वह राज्यसभा सभापति और उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी के विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी- ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) हैं. आरटीआई के जरिये मांगी गई सूचना के अनुसार राज्यसभा टीवी चैनल के सीईओ पद की नौकरी के लिए कभी विज्ञापन नहीं जारी किया गया. इसके विपरीत लोकसभा टीवी के सीईओ की नौकरी के लिए प्रमुखता से विज्ञापन जारी हुए थे. कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं से निकटता का सप्पल ने खूब फायदा काटा.
सीईओ गुरदीप सिंह सप्पल दिल्ली पर्यटन और परिवहन विकास निगम के अध्यक्ष मनीष चतरथ को रिपोर्ट करते थे. कांग्रेस का वार रूम जब ‘15, रकाबगंज रोड’ पर हुआ करता था तब चतरथ दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के करीबी सहयोगी माने जाते थे. यह वही समय था जब सप्पल ने कांग्रेसी नेताओं से नजदीकी बढ़ानी शुरू की थी. यह नजदीकी उन्हें यह पद दिलाने में मददगार साबित हुई. सप्पल का नाम तब सामने आया था जब राज्यसभा सचिवालय में संयुक्त सचिव स्तर और इसके ऊपर के अधिकारियों की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी. यह याचिका प्रख्यात अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दाखिल की थी. इसमें राज्यसभा सचिवालय के परिच्छेद 6 अ (नियुक्ति के तरीकों और योग्यता) की वैधता को चुनौती दी गई थी. उन्होंने 2008 से राज्यसभा सचिवालय में हुई सभी नियुक्तियों की जांच करने की आज्ञा देने की मांग की थी.
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार केवल सप्पल ही नहीं राज्यसभा टीवी में 103 पेशेवरों की नियुक्ति भी उचित मानदंडों को परे रख मोटी तनख्वाह पर की गई है. उदाहरण के तौर पर देखें तो सीईओ के सहायक निदेशक चेतन संजन दत्ता एक बैंक क्लर्क हैं और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया से प्रतिनियुक्ति पर आए हैं. दत्ता को सप्पल का दायां हाथ माना जाता है. सभी फाइलें उनकी टेबल से होकर ही गुजरती हैं. लाभ पानेवाले दूसरे अधिकारी अनिल जी. नायर हैं, जो चैनल के कार्यकारी संपादक (न्यू मीडिया) हैं. वह सप्पल के नजदीकी दोस्त के रूप में जाने जाते हैं. एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता से नजदीकी की वजह से चर्चा में रहीं अमृता राय की एंकर के रूप में नियुक्ति भी पद के लिए जरूरी अनुभव के बिना की गई थी.
इसी तरह से चैनल के कार्यकारी संपादक राजेश बादल की नियुक्ति भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल की सिफारिश के बाद हुई. राज्यसभा सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी की बेटी निधि चतुर्वेदी की नियुक्ति को लेकर भी नाराजगी है. 80 हजार रुपये की तनख्वाह पर निधि को सलाहकार बनाया गया है. सूत्रों ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के रिश्तेदार विनीत के. दीक्षित भी सलाहकार पद पर कार्यरत हैं. सप्पल के करीबी दोस्त गिरीश निकम की पक्षपातपूर्ण नियुक्ति भी सवालों के घेरे में है. निकम उन विशेषाधिकार प्राप्त सलाहकारों में से हैं, जिनकी ऑफिस में उपस्थिति जरूरी नहीं. यह रिपोर्ट प्रकाशित होने से पहले ‘तहलका’ राज्यसभा टीवी के सीईओ गुरदीप सिंह सप्पल से उनका पक्ष जानने की कोशिश कई बार की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका.