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नृत्य गोपाल दास राम मंदिर ट्रस्ट, नृपेंद्र मिश्र निर्माण समिति के अध्यक्ष नियुक्त

नृत्य गोपाल दास अयोध्या राम मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष बनाये गए हैं। उनके अलावा विश्व हिन्दू परिषद् (विहिप) के चंपत राय को महासचिव जबकि गोविंद गिरी को कोषाध्यक्ष बनाया गया है। प्रधानमंत्री मोदी के पूर्व प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र को निर्माण समिति का अध्यक्ष बनाया गया है।

ट्रस्ट की आज पहली बैठक हुई जिसमें यह फैसला किया गया। केंद्र सरकार ने कुछ समय पहले ही मंदिर ट्रस्ट का ऐलान किया था। महंत नृत्य गोपाल दास अयोध्या आंदोलन से जुड़े रहे हैं जबकि विहिप नेता चंपत राय भी राम मंदिर आंदोलन में अहम किरदार निभाने वाले माने जाते हैं। ट्रस्ट की घोषणा करते समय इन दोनों के ही नाम  ट्रस्टियों की सूची में नहीं थे। दोनों ने पूरे राम मंदिर आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी।

नृत्यगोपाल दास लगातार मंदिर निर्माण के लिए होने वाले कार्यों में अगुवा की भूमिका निभाते रहे हैं। उनके ही नेतृत्व में राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा एकत्र किया जाता रहा है। उनपर बाबरी विध्वंस में शामिल रहने का आरोप भी रहा है और इसे लेकर उनपर लखनऊ की सीबीआई कोर्ट में मुकदमा चल रहा है।

विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय भी राम मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे हैं। राय अयोध्या में ही रह रहे हैं और विहिप के कार्य को विस्तार दे रहे हैं।  इसी का नतीजा है कि उन्हें राम मंदिर ट्रस्ट में शामिल करने का फैसला किया गया। विश्व हिंदू परिषद ने ही राम मंदिर निर्माण के आंदोलन को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई थी।

सीएए के खिलाफ चेन्नई में बड़ा प्रदर्शन

दिल्ली के शाहीनबाद में जहां नागरिकता संशोधन आंदोलन को लेकर आंदोलन जबरदस्त तरीके से जारी है, वहीं तमिलनाड की राजधानी चेन्नई में सीएए, एनआरसी और एनपीआर को लेकर बड़ा विरोध प्रदर्शन हो रहा है। प्रदर्शनकारी चेपक स्टेडियम से सचिवालय की ओर मार्च कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने हाथों में तिरंगा थाम रखा था।

रिपोर्ट्स के मुताबिक इस प्रदर्शन की अपील इस्लामिक संगठनों ने की थी जिसमें हजारों की संख्या में महिलाओं और पुरुषों ने शिरकत की। उन्होंने तमिलनाडु विधानसभा का घेराव करने के लिए कलाइवनार आरंगम से मार्च निकाला। प्रदर्शनकारियों ने हाथों में तिरंगा थाम रखा था। इस मार्च के दौरान आंदोलनकारी हाथों में पोस्टर लिए हुए थे। प्रदर्शनकारी सरकार से मांग कर रहे हैं कि राज्य सरकार विधानसभा में सीएए को लागू नहीं करने को लेकर प्रस्ताव पारित करे।

दिलचस्प यह भी है कि मद्रास हाईकोर्ट की तरफ से इस प्रदर्शन की अनुमति नहीं मिली थी। इसके बाद बुधवार को बड़ी तादाद में रैली निकाली गई। विधानसभा और रैली मार्ग के नजदीक सुरक्षा का तगड़ा इंतजाम किया गया है। राज्य के अन्य हिस्सों से भी सीएए विरोधी कई रैलियां आयोजित करने की सूचना है।

सचिवालय से पहले ही प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए भारी तादाद में पुलिस की तैनाती की गई। चेन्नई के ही वाशरमेनपेट में भी हज़ारों मुस्लिम महिलाओं का धरना बुधवार को छठे दिन भी जारी रहा। प्रदर्शन के पत्राती संकल्प को देखते हुए चेन्नई के वाशरमेनपेट को ”चेन्नई का शाहीन बाग़” कहा जा रहा है।

यूपी में भाजपा विधायक पर रेप का मामला दर्ज

उत्तर प्रदेश एक भाजपा विधायक पर रेप का मामला दर्ज किया गया है। यह भाजपा विधायक यूपी के भदोही के रविंद्रनाथ त्रिपाठी हैं। एक महिला की शिकायत के बाद जांच के आधार पर त्रिपाठी के साथ उनके तीन बेटों और तीन भतीजों पर नामजद मुकदमा दर्ज किया गया है।

पीएम मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी भदोही की एक विधवा महिला ने १० फरवरी को त्रिपाठी पर रेप का आरोप लगाया था। उनका आरोप था कि चुनाव के दौरान उन्हें एक होटल में बुलाकर विधायक ने दुष्कर्म किया था। शहर कोतवाल ने भाजपा एमएलए रविंद्रनाथ त्रिपाठी, उनके तीन बेटों नीलेश, प्रकाश, दीपक और भतीजों सचिन, चंद्रभूषण और संदीप तिवारी पर भादंसं की धारा ३७६डी, ३१३, ५०४, और ५०६ के तहत मामला दर्ज किया गया है।

पहले भी यूपी में भाजपा के विधायकों/नेताओं के खिलाफ रेप के आरोप लगे हैं जिससे उसकी मुश्किलें बढ़ती दिखती हैं। इन आरोपण के बाद भाजपा को अपने नेताओं को पार्टी से निकालना पड़ा है।

अब त्रिपाठी के खिलाफ शहर कोतवाली में गैंगरेप सहित अन्य धाराओं में मामला  दर्ज किया गया है। महिला के आरोप के बाद एसपी ने जांच टीम गठित की थी। उनके खिलाफ महिला के यह आरोप तब सामने आये थे जब वो एसपी से मिली थीं। उनके मुताबिक विधायक रविन्द्र त्रिपाठी के भतीजे संदीप तिवारी से उनकी मुलाकात मुंबई जाते समय ट्रेन में हुई थी। इसके बाद फोन से दोनों में बातचीत शुरु हुई।

महिला के आरोप के मुताबिक कुछ दिन बाद संदीप ने शादी का वादा करके वाराणसी के एक होटल में शारीरिक संबंध बनाया। साल २०१७ के विधानसभा चुनाव के दौरान मुंबई से बुलाकर भदोही के स्टेशन रोड स्थित एक होटल में एक महीने तक उसे अलग-अलग कमरों में रखा गया। आरोप के मुताबिक इस दौरान रविंद्रनाथ त्रिपाठी और उनके बेटों और भतीजों ने भी कथित तौर पर रेप किया। गर्भ में पल रहे दो माह के बच्चे को भी जबरदस्ती कथित रूप से गिरवा दिया। महिला के आरोप के मुताबिक शादी के लिए कहने पर उन्हें जान से मारने की धमकी दी जाने लगी

तहलका विश्वविद्यालय-कॉलेज रैंकिंग 2020

देशभर के शैक्षणिक संस्थानों की प्रवष्टियाँ आमंत्रित

तहलका विश्वविद्यालय-कॉलेज रैंकिंग 2020

संस्थान अपना नाम, पता, अपना इतिहास, पढ़ाये जाने वाले विषय, शिक्षा का स्तर, विद्यार्थियों की संख्या, अध्यापकों की संख्या, परीक्षा परिणामों का प्रतिशत। 

रैंकिंग के वर्ग : इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट, आर्ट्स और अन्य

जानकारी यहाँ भेजे- zakia.khan@tehelka.com

अंतिम तिथि 29 फरवरी, 2020 है।

 

नायाब पत्थर का फैलता उजास

अपनी नीमख्वाब तन्हाइयों से ऊबकर सुरूर-ओ-खुमार में डूबे किसी शख्स के होशोहवास पर पेरहन डाल देने वाले किसी खास मुजस्सिम को देखने की तलब जागती हो, तो वो ताजमहल से दीगर कोई और इमारत हो ही नहीं सकती। संगमरमर की शफ्फाक दीवारों पर खुदी हुई मोहब्बत की सुर्ख इबारत तारीख की हज़ारों परतें पलट देती है। ताजमहल मुहब्बत की ठाठें मारता ऐसा समंदर है, जिसके तट पर जाये बिना आशिकी का कोई मोल नहीं। ताजमहल को देखकर ऐसा लगता है, जैसे इस बेमिसाल इमारत को संगमरमर के कपड़े पहना दिये गये हों। संगमरमर की निस्बत ग्रीक शब्द ‘मारमारोन’ से मानी जाती है। संगमरमर को सर्वाधिक रूप से भवन निर्माण और प्रतिमाओं को गढऩे में उपयुक्त माना गया है। भारत में राष्ट्रपति भवन, संसद भवन तथा सुप्रीम कोर्ट की इमारतों में भी संगमरमर का उपयोग हुआ है। आज तो संगमरमर अपनी विभिन्न िकस्मों के साथ होटलों और आवास निर्माण में भी काम आने लगा है। लेकिन कभी इसे ‘शाही पत्थर’ के नाम से पुकारा जाता था।

प्रकार और प्रजातियाँ

राजस्थान के उदयपुर के पास स्थित राजनगर को विश्व का सबसे बड़ा संगमरमर उत्पादक क्षेत्र माना जाता है। इस शहर में करीब दो हज़ार इकाइयाँ हैं, जो मशीनरी के द्वारा संगमरमर की शिलाओं को व्यावसायिक बिक्री के लिए आकार प्रदान करती है। इन्हें विभिन्न िकस्मों में तराशने का काम होता है। यद्यपि मूल रूप से संगमरमर का रंग सफेद ही होता है। किन्तु व्यावसायिक दृष्टि से नयनाभिराम बनाने के लिए एक अलग प्रक्रिया अपनायी जाती है। ऐसा ही एक इलाका है आँधी। जयपुर के निकटवर्ती इस क्षेत्र में संगमरमर की शिलाओं को रंग परिवर्तन की तकनीकी प्रक्रिया से गुज़ारा जाता है। इंडो इटालियन ऐसी ही प्रक्रिया से तैयार की गयी विशिष्ट िकस्म है। इसका रंग पिस्तई (पिस्ता मेवे जैसा) होता है। हालाँकि यह प्रक्रिया पर्यावरण को प्रदूषित भी करती है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सरिस्का टाइगर अभयारण्य से सटी हुई अनेक इकाइयों को बन्द कर दिया गया है। इसी परम्परा में संलूबर में मार्बल को थोड़ा गहरा और गुलाबी रंग देकर तैयार किया जाता है। पाकिस्तान के ऑनिक्स मार्बल से समानता के कारण इसे ऑनिक्स संगमरमर के नाम से भी जाना जाता है। इसका अर्थ है- ऐसा बेशकीमती पत्थर जिसकी तुलना नायाब ‘गोमेद रत्न’ से की जाती हो। सलूंबर मार्बल भी इसी श्रेणी का संगमरमर है। यह हरी और गुलाबी आभा लिये मोटी परत वाला पत्थर होता है। पीले रंग के मार्बल को व्यावसायिक क्षेत्रों में जैसलमेरी संगमरमर कहा जाता है। आबू में पाया जाने वाला मार्बल मूल रूप से साज-सज्जा में उपयेाग होता है। सुरमई आभा वाला यह पत्थर अधिकांश रूप से मंदिरों को गढऩे और मूर्ति शिल्प में काम आता है। ग्रीन मार्बल के रूप में चर्चित पत्थर उदयपुर के निकट केसरियाजी क्षेत्र की खदानों में मिलता है। हालाँकि मारवाड़ में किशनगढ़ तो मार्बल मंडी के नाम से ही प्रख्यात है।

सेंड स्टोन

मार्बल उद्योग में सेंड स्टोन का भी काफी महत्त्व है। विभिन्न आकार-प्रकारों में उपलब्ध होने वाला सेंड स्टोन अधिकांश रूप से पारदर्शिता लिये हुए होता है। धातुकणों के मिश्रण के अतिरिक्त यह खंडित अथवा टुकड़़ों के रूप में भी होता है। सेंड स्टोन भूरे, हरे, गुलाबी सफेद तथा काले और सफेद रंग में भी मिल जाता है । कुछेक विशिष्ट रंगों के सेंड स्टोन खास क्षेत्रों में ही उपलब्ध हैं।

हालाँकि इन्हें जल अथवा अन्य रसायनों के मिश्रण से भी बनाया जाता है। इनमें जल सोखने की अपार क्षमता होती है। इनका सर्वाधिक उपयोग दरारों को भरने अथवा पाटने के लिए किया जाता है। सेंड स्टोन मूल रूप से गहरी चमक लिए होते हैं। इनका रूप-स्वरूप चाक और कोयले की तरह भी होता है। इसका अधिकतम उपयोग निर्माण के दौरान फ्रेम वर्क में होता है। हस्तशिल्प उद्योग के लिए तो सेंड स्टोन रीढ़ की तरह है। इन दिनों मकराना में ऐसे दर्जनों कारखाने खुल गये हैं, जो मार्बल शिल्प से जुड़ गये हैं।

सेंड स्टोन की खदानें 

हालाँकि बिहार, गुजरात और असम, आंध्र प्रदेश में भी सेंड स्टोन की खदानें हैं, लेकिन 90 फीसदी सेंड स्टोन राजस्थान के बूँदी, चित्तौड़, कोटा, धौलपुर, जोधपुर और सवाई माधोपुर की खदानों से निकाला जाता है। निर्यात होने वाला सेंड स्टोन ज़्यादातर इन्हीं इलाकों से निकाला जाता है। वास्तुकला के जानकारों का कहना है कि इन क्षेत्रों में पाया जाने वाला विभिन्न रंगों का सेंड स्टोन अंदरूनी और बाहरी साज-सज्जा की दृष्टि से श्रेष्ठ माना जाता है। इसके आकर्षक आभा वाले रंगों के चयन की बात करें, तो आगरा रेड, जोधपुर रेड, ललितपुर पिंक, रेनबो सैंडस्टोन और राज ग्रीन ज़्यादा पसंदीदा गिने जाते हैं। वास्तुकला विशेषज्ञों का कहना है कि बाहरी साज-सज्जा की दृष्टि से जोधपुर पिंक को सबसे बेहतरीन माना जाता है। राजस्थान में सेंड करीब दो सौ आकर्षक रंग छटा वाला ग्रेनाइट भी पाया जाता है। भारत से निर्यात किये जाने वाले उत्पादों में ग्रेनाइट पाँचवें नम्बर पर है। लेकिन पत्थर व्यवसाइयों का एक धड़ा असंतोष जताते हुए काफी कुछ देता है कि सब कुछ है; लेकिन सवाल है कि इन नायाब उत्पादों को सरकारी संरक्षण कितना है?

बढ़ता बाज़ार

वास्तुकला के विशेषज्ञों ने मार्बल के उपयेाग की नित नयी विधियों और शिल्प की ईज़ाद की हैं। इसकी खपत का बाज़ार भी उसी रफ्तार से आगे बढ़ा है। हैरत की बात यह है कि इसके बावजूद कीमतों में उछाल के बजाय दाम आज भी स्थिर हैं। इसकी माँग जिस तेज़ी से बढ़ी है अत्याधुनिक वास्तु शिल्प में इसका उपयोग भी उसी तेज़ी से बढ़ा है। नतीजतन राजस्थान संगमरमर उत्पादक क्षेत्र में नयी ऊँचाइयाँ तय कर रहा है। एक व्यावसायिक आकलन के अनुसार देश के मार्बल बाज़ार में राजस्थान की उत्पादकता का हिस्सा 90 फीसदी है।

इस साल राजस्थान में 10 लाख टन उत्पादन की सम्भावना है। एक व्यावसायिक अध्ययन की मानें, तो अब तो मध्य वर्ग भी खरीदार के रूप में बाज़ार में कूद पड़ा है। सम्भवत: इसकी बड़ी वजह सीमेंट की बढ़ती िकल्लत और छलाँग लगाते आसमानी दाम हैं। एक मार्बल संघारण इकाई की मालिक गोरी शंकर धूत का कहना है कि आजकल मार्बल की टुकडिय़ों और व्हाइट सीमेंट के मिश्रण का उपयोग छत बनाने में किया जा रहा है। इन्हें मोसाइक टाइल्स कहा जाता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह मिश्रण सीमेंट की अपेक्षा सस्ता पड़ता है। इसमें स्वदेशी और विदेशी दोनों का बघार लगा हुआ है। संघारण इकाइयाँ अब इनके छोटे-छोटे ब्लॉक बनाने की कोशिश भी कर रहा है। राजस्थान औद्योगिक विकास एवं निवेश निगम के सूत्रों की मानें, तो पिछले कुछ वर्षों में अत्याधुनिकता की ओर अग्रसर होने की दिशा में एक जागृति-सी आयी है। नतीजतन मार्बल एक नया बाज़ार तलाश रहा है। मासाइक टाइल्स बनाने की दिशा में अब इकाइयाँ तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं। हालाँकि इस दिशा में सबसे महत्त्वपूर्ण तकनीकी उपलब्धि तो ब्लॉक की अपेक्षा ‘शिला फलक’ बनाने को लेकर कही जाएगी। मकराना के एक मार्बल व्यवसायी दीपक बंसल कहते हैं कि पुराने इस्पाती कटर अधिक समय लेते थे और उनकी एक निर्धारित सीमा थी। लेकिन नयी और अत्याधुनिक मशीनों ने इस काम को ज़्यादा सहज और बेहतर बना दिया है। वे कहते हैं कि नगीने तराशने की मशीनों की शक्ति और सीमा पत्थरों को तराशने में उतनी कामयाब नहीं हो सकती।

बंसल कहते हैं कि सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह स्वदेशी तकनीक है और इसकी कीमत भी 10 लाख से ज़्यादा नहीं है। हालाँकि इस तरीके के कुछ नुक्स भी हैं। यह एक तरह से बेहद थकाऊ काम है। खनन का परम्परागत प्रचलित तरीका ही इसमें सबसे बड़ा बाधक है। कई बार ऐसा होता है कि माइन्स फ्रीज हो जाती है और उन्हें फिर से यथस्थिति में लाना सम्भव नहीं होता। तब कैसी भी कोई तकनीक का क्या मतलब रह जाता है? सबसे बड़ी बात तो यह है कि खनन में ज़्यादातर काम में मानव शक्ति का उपयोग होता है। हालाँकि किसी स्थिति तक पेट्रोल चालित क्रेनों का उपयोग भी होता है; लेकिन नहीं के बराबर। खानों की गहराई, इनकी खुदाई में सबसे बड़ी बाधक होती है। ऐसे में सम्भावित दुर्घटनाजनित स्थितियाँ क्या गुल खिला सकती हैं? यह कहने की ज़रूरत नहीं।

बढ़ी हैं मुश्किलें

कुछ अर्सा पहले विदेशी मुद्रा विनियमन की वजह से खुली लाइसेंस प्रक्रिया पर लगी पाबंदी ने इस व्यवसाय में लगे लोगों को बुरी तरह सकपका दिया था। इसके अलावा बजट का वो प्रावधान भी व्यवसायियों को कम भारी नहीं पड़ा, जब टैक्स स्लैब पर प्रति वर्ग मीटर की एक्साइज ड्यूटी थोप दी गयी। इसके लेकर आन्दोलन भी छिड़ा। नतीजतन ड्यूटी 20 रुपये से घटाकर 10 रुपये कर दी गयी। लेकिन व्यापारियों का कहना था कि समस्याएँ यथावत् बनी हुई हैं; क्योंकि 10 रुपये की छूट इस शर्त के साथ दी गयी कि स्लैब निर्माण कम-से-कम 25 फीसदी हिस्से का अपव्यय होना चाहिए। जबकि मार्बल कटिंग में अपव्यय की यह स्थिति नहीं होती। यह तो अधिकारियों का व्यापारियों को परेशान करने का तरीका है।

हालाँकि वे कहते हैं कि हम यह सोचकर अपने आपको तसल्ली दे सकते हैं कि किस तरह की समस्याएँ सदैव नहीं रहने वालीं। उद्योग का मिजाज़ दिनोंदिन बेहतर हो रहा है। इसकी वजह भी है कि माँग दिनोंदिन बढ़ रही है। इसमें कोई अनावश्यक उछाल नहीं है। हमारा मानना है कि मकराना उज्ज्वल भविष्य की तरफ बढ़ रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह ग्रोथ बाज़ार के बुनियादी और पारम्परिक हिस्सों से आयी है। रोज़गार, खपत और ग्रोथ की सम्भावना के नज़रिये से देखा जाए, तो असंगत बदलाव भी बर्दाश्त किये जा सकते हैं। लेकिन जीएसटी ने जिस तरह इस बाज़ार को आहत किया है, उसका क्या किया जाए? नोटबंदी और जीएसटी लागू होने से पहले तक मार्बल उद्योग अच्छा-खासा फल-फूल रहा था; लेकिन अब सब कुछ गड़बड़ा गया है। बिक्री में गिरावट, लम्बे समय तक काम बन्द रहना और डूबता संघारण मार्बल की चमक को निगल रहे हैं।

खनन महकमे की रिपोर्ट को समझें तो इस उद्योग में रोज़गार का स्तर 30 फीसदी से घटकर 12 फीसदी रह गया है। उद्यमियों का कहना है कि नोटबंदी जीएसटी और रेरा का सबसे बुरा असर इस उद्योग पर हुआ है। उद्योग विभाग के सूत्र भी इस बात को मानते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी से बदहाली को देखना हो, तो मार्बल उद्योग इसकी सबसे बड़ी मिसाल है। सूत्रों का कहना है कि टैक्स दर के पाँच फीसदी से बढ़कर 28 फीसदी हो जाने का क्या मतलब होता है? जीएसटी माँग और खपत को पूरी तरह निगल गया है। इन बदतर हालात में अगर कोई उम्मीद की किरण है, तो अमेरिकी बाज़ार उबरने के संकेत देते हैं। हालाँकि मिडिल-ईस्ट की माँग भी हौसला बढ़ाने वाली है। व्यावसायिक बाज़ार में इस क्षेत्र की माँग काफी कुछ उत्साहवद्र्धक कही जा सकती है।

काला बाज़ार की काली दुनिया

 चमचमाता मार्बल बेशक अपने रुपहले रंगों से रोमांचित करता है, लेकिन इस उद्योग में लुकाछिपी करती ढेरों सुलगती सचाइयाँ इसकी सफेदी को दागदार करती नज़र आती हैं। राजस्थान का मार्बल अपने देश के अलावा विदेश में भी खूब जाता है। इन देशों में स्पेन, इटली, तुर्की और वियतनाम तक शामिल हैं। मार्बल का ग्लोबल ब्रांड एक अलग चमक लिए लोगों के दिलों में घर किये हुए बाज़ार में अच्छी-खासी प्रतिस्पर्धा बनाये हुए है। उदारीकण के चलते यूपीए सरकार के दौरान पिछले दशक में विदेशी मार्बल का आयात करने के लिए निर्धारित नियामकों के आधार पर व्यवसायियों को इम्पोर्ट लाइसेंस दिये जाने का प्रावधान था। लेकिन इस सुविधा ने मार्बल कारोबार में काले बाज़ार की काली दुनिया खड़ी कर दी।

इम्पोर्ट लाइसेंस की सच्चाई

मिसाल के तौर पर यदि एक व्यवसायी को तीन हज़ार टन तक मार्बल आयात करने का लाइसेंस हासिल था। लेकिन इस सुविधा की सबसे बड़ी त्रासदी रही कि व्यवसायी ने इस पर कोई मामूली मुनाफा नहीं कमाया।

इस पहेली की गिरह जैसे-जैसे खुलती जा रही है, चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। मसलन, अगर व्यवसायी ने 40 लाख रुपये अदा किये होंगे, तो उसने खुले बाज़ार में बेचकर चार करोड़ जैसी मोटी कमायी की होगी। सूत्रों का कहना है कि सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि इम्पोर्ट लाइसेंस हासिल करने के लिए कितना घमासान मचता होगा? भ्रष्टाचार के इस कुण्ड में कितने सियासतदानों ने डुबकी लगायी होगी? कहना मुश्किल है। इस खेल में जितनी असंगतियाँ थीं, उससे कहीं ज़्यादा मुनाफा था। जानकार सूत्रों का कहना है कि उस दौरान अकेले मकराना-उदयपुर ओर अजमेर किशनगढ़ मार्बल बेल्ट में सालाना एक हज़ार करोड़ का काला बाज़ार उल्टी साँसें लेने लगा था। मार्बल की काला बाज़ारी यहीं तक सीमित नहीं रही, इसमें घोटालों की एक और कहानी रची-बसी थी।

रिश्वत का एक और दरवाज़ा 

इम्पोर्ट लाइसेंस का एक निर्धारित नियामक होने के बावजूद इसका पिछला दरवाज़ा भी खुला था। नतीजतन पिछले दरवाज़े से हासिल होने वाले अतिरिक्त मार्बल की मिकदार का भुगतान ‘हवाला’ के ज़रिये होने लगा। इस घालमेल ने आये दिन घोटालों को जन्म दिया, तो नये विवाद भी छिडऩे लगे। नतीजतन नित नयी असंगतियों के परनाले खुलने लगे। लेकिन इसका सबसे बड़ा नुकसान तो तब नज़र आया, जब सरकार के राजस्व की पेंदी में छेद होने लगा।

इम्पोर्ट ड्यूटी का नया विकल्प 

केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद बेशक इसमें एक हद तक रोक लगी। मोदी सरकार ने इम्पोर्ट लाइसेंस खत्म करने के साथ ‘इम्पोर्ट ड्यूटी’ लगाने का नया विकल्प शुरू कर दिया। इम्पोर्ट ड्यूटी की भारी भरकम राशि भी कम चौंकाने वाली नहीं है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि नो बॉल पर भी छक्का जडऩे वालों की कमी नहीं है। आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि मेक इन इंडिया पर दो-तीन बैठकों के बाद ही सरकार को इल्हाम हो गया था कि आयात महँगा किये बिना मेन्यूफैक्चरिंग को प्रतिस्पर्धात्मक बनाना सम्भव नहीं। यही वजह रही कि आयात किये जाने वाले उत्पादों पर कस्टम ड्यूटी में भी अच्छी-खासी बढ़ोतरी की गयी। हालाँकि आयातकों की मज़बूत लॉबी ने अड़ंगे भी लगाये, लेकिन बात नहीं बनी।

विदेशी मार्बल की कालाबाज़ारी 

सूत्रों का कहना है कि ‘विदेशी मार्बल’ की काला बाज़ारी डगमगायी ज़रूर लेकिन पूरी तरह थमी नहीं। नतीजतन ‘हवाला’ में कालाबाज़ारी को उड़ान भरने का मौका दिया। अब प्रक्रियागत खामियाँ तलाशने में माहिर बिचौलिये आये दिन इस व्यवस्था को दागदार करते नज़र आ रहे हैं। व्यावसायिक जानकारों का कहना है कि ऊर्जा और खनन क्षेत्र तो असंगतियों का शानदार नमूना है। मार्बल खनन का भूगोल समझें, तो यह कोई पहाड़ की तलहटी को खुरचने वाला काम नहीं है। मार्बल बेल्ट की पूरी ज़मीन ही संगमरमर से अटी पड़ी है। इसका कोई अन्त नहीं है। लेकिन अगर कोई चीज़ चौंकाती है, तो खनन क्षेत्र में खुदी हुई खंदकें और उनके आस-पास चिंकारियों से लदे ऊँचे टीले। लेकिन खानों से पत्थर निकालना भी कोई आसान काम नहीं है। खासकर तब जब बेढंगी और तिरछी ज्यामिती वाली खान से पत्थर निकालने की नौबत आ जाए?

सिलिकोसिस के पंजे

जयपुर स्थित अपेक्स स्टोन इंडस्ट्री ऑर्गेनाइजेशन सेंटर की मानें, तो राजस्थान कीमती पत्थरों के उत्पादन की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा सूबा है। राजस्थान हर साल 5 करोड़ कीमती पत्थरों का उत्पादन करता है। मार्बल का सालाना उत्पादन डेढ़ करोड़ टन है; जबकि ग्रेनाइट और सेंड स्टोन का उत्पादन दोनों मिलाकर ढाई करोड़ है। लेकिन इस उद्योग में लोग कर्मचारियों की सेहत के प्रति कोई िफक्रमंद नहीं है; न सरकार और न ही व्यवसायी। अकेले भीलवाड़ा ज़िले के श्रीजी का खेड़ा में 70 लोग तो पिछले दशक में सिलिकोसिस से जान गँवा बैठे हैं। यह बीमारी नाक में धँसती पत्थरों की गर्द से होती है। आज भी यह बीमारी काबू से बाहर है। ऐसे में उद्योग पर नाज़ करने का क्या मतलब?

प्रमुख खनन केंद्र, पट्टे

राजस्थान में देश में खदानों की संख्या सबसे अधिक है। प्रमुख खनिजों के लिए 1,324 पट्टे, लघु खनिजों के लिए 10,851 और खनन पत्थरों के लिए 19,251 खदान लाइसेंस जारी किये गये हैं। राज्य ने 2004-2005 में सीसा, जस्ता और चूना पत्थर जैसे प्रमुख खनिजों से लगभग 590 करोड़ रुपये की रॉयल्टी अर्जित की। लेकिन यह क्षेत्र राज्य के राजस्व में केवल तीन फीसदी का योगदान देता है। राजस्थान में 44 प्रमुख और 22 लघु खनिजों का भण्डार है और गार्नेट, जैस्पर, सेलेनाइट, वोलास्टोनाइट और जस्ता केंद्रित का एकमात्र उत्पादक है। यह कैल्साइट, लेड कॉन्सन्ट्रेट, बॉल क्ले, फायरक्ले, गेरू, फॉस्फोराइट, सिल्वर और स्टीटाइट का प्रमुख उत्पादक भी है। लेकिन यह संगमरमर, बलुआ पत्थर, संगमरमर और अन्य पत्थरों के उत्पादन के लिए जाना जाता है। यह दुनिया के 10 फीसदी और भारत के चूनापत्थर के 70 फीसदी का उत्पादन करता है। अजमेर, भीलवाड़ा, बीकानेर, डूंगरपुर, जयपुर, पाली, राजसमंद और उदयपुर इसके प्रमुख खनन ज़िले हैं। लीज की न्यूनतम अवधि 20 वर्ष की होती है। अधिकतम लीज 30 वर्ष से ज़्यादा स्वीकृत नहीं की जाती। लीज की मंज़ूरी राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत किये गये प्लान के आधार पर ही मिलती है। सामान्य रूप से लीज स्वीकृति हेतु न्यूनतम क्षेत्र चार हेक्टेयर और अधिकतम 50 हेक्टेयर होना चाहिए। सितंबर, 2016 में केंद्र सरकार ने मार्बल ब्लॉकों के आयात की नयी नीति बनायी। हालाँकि इसे लचीली नीति कहा गया; लेकिन असल में उद्योग भारी-भरकम इम्पोर्ट ड्यूटी झेल रहा है। सूत्रों का कहना है कि इम्पोर्ट लाइसेंस लेना अब आसान नहीं रहा।

ढेरों इकाइयाँ, हज़ारों खदानें

मार्बल के अकूत भंडारण और संसाधनों की प्रचुरता के लिहाज़ से राजस्थान देश का सबसे बड़ा सूबा गिना जाता है। देश के कुल मार्बल उत्पादन में राजस्थान की 90 प्रतिशत हिस्सेदारी है। गुणवत्ता की दृष्टि से वास्तुकला विषेषज्ञ दक्षिणी उदयपुर के रिखबदेव क्षेत्र के मार्बल को उत्कृष्ट बताते हैं। उनका कहना है- ‘साज-सज्जा और मेहराबों का सौंदर्य गढऩे के लिए जिस तरह के मार्बल की आवश्यकता होती है, वो रिखबदेव की खानों से ही मँगवाया जाता है। उच्च कोटि के मार्बल उत्पादन की वजह से ही उदयपुर मार्बल की मुख्य व्यावसायिक मंडी के रूप में विकसित हुआ है। मार्बल की स्लेब्स तैयार करने के लिए यहाँ ढेरों अत्याधुनिक इकाइयाँ हैं। राजस्थान के 33 ज़िलों में 20 ज़िले किसी-न-किसी रूप में मार्बल उत्पादन से जुड़े हुए हैं। हालाँकि मुख्य क्षेत्रों की बात करें, तो उदयपुर, राजसमंद, चित्तौडग़ढ़, मकराना-किशनगढ़ बेल्ट, बाँसवाड़ा, डूँगरपुर परिक्षेत्र के अलावा जैसलमेर आँधी और झीरी बेल्ट को मार्बल उत्पादन का प्रमुख क्षेत्र माना जा सकता है। सफेदी और शुद्धता की बात करें, तो इस प्रान्त में मकराना मार्बल को ही गिना जा सकता है। अकेले राजस्थान में मार्बल की 4,000 खदानें हैं। इनके विस्तार की बात करें, तो न्यूनतम एक हेक्टेयर से लेकर 50 हेक्टेयर तक की खदानें देखी जा सकती हैं। खनन के अत्याधुनिक तौर-तरीकों के बावजूद मानवीय और मशीनी, दोनों तरीके इस्तेमाल किये जा रहे हैं। खनन की प्रक्रिया इतनी जटिल होती है कि हर कदम पर खतरों से दो-चार होना पड़ता है। खनन के दौरान झुलसा देने वाले तापमान को कम करने के लिए पानी की फुहार आवश्यक होती है। सामान्य रूप से खनन के दौरान प्रतिदिन एक हज़ार लीटर पानी की आवश्कता होती है। लेकिन जिस तेज़ी से भूगर्भ जल में गिरावट आ रही है। मार्बल खनन के लिए शंकाओं के बादल मँडराने लगे हैं। मार्बल के विकास और संरक्षण के नियमों की बात करें, तो खनन के लिए लीज स्वीकृत की जाती है।

व्हाइट गोल्ड का काला सच

विषेशज्ञों की मानें तो भारत में मार्बल का कुल बाज़ार सालाना 35 मिलियन टन का है। इसमें आयातित मार्बल की हिस्सेदारी 8 लाख टन की है। कभी इस शाही पत्थर ने ताजमहल सरीखी बेमिसाल इमारत गढऩे वाले कारीगरों के हाथ निगल लिये थे। अब 500 साल बाद इसके गर्भ से अंडरवल्र्ड की नयी दुनिया निकल पड़ी है, जिसके तार ‘ऊपर’ तक जुड़ते हैं। इस दुनिया को पालती-पोसती मार्बल लॉबी में मार्बल को व्हाइट गोल्ड के नाम से पुकारा जाता है। मार्बल के धन्धे से जुड़े कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि इस धन्धे पर तानाशाही शासन चलता है, जिसके चलते अब तक अनेक हत्याएँ तक हो चुकी हैं। तो इस मार्बलकी कहानी तब तक अधूरी मानी जाएगी, जब तक मध्य प्रदेश में जबलपुर के निकट भेड़ाघाट की सफेद बुर्राक चट्टानों का ज़िक्र न हो? फिल्म ‘जिस देश में गंगा बहती है’ में भेड़ाघाट का अछूता सौंदर्य बखूबी उभरकर आया था।

गिर रहा भूजल स्तर

चित्तौड़ की चूना पत्थर की खानों ने इस क्षेत्र में जल स्तर बहुत नीचे कर दिया है। खदानें 1987 से चालू हैं और इकाई ने 40 मीटर तक गहरे गड्ढों की खुदाई की है। न्यू सुरजाना गाँव, जो खदान के पास स्थित है, में भूजल तालिका में तीव्र गिरावट और पानी की कमी हुई है। स्थानीय निवासियों का दावा है कि पहले पानी 25 फीट तक मिल जाता था, लेकिन अब जलस्तर 400-500 फीट तक नीचे चला गया है। विज्ञान और पर्यावरण के लिए भारत की छठी राज्य पर्यावरण रिपोर्ट, क्या टिकाऊ खनन सम्भव है? में खुलासा किया गया है कि राजस्थान में गैर-कानूनी खनन और बड़े पैमाने पर अवैध खनन ने वनों को नष्ट कर दिया है, अरावली को तबाह कर दिया है और राज्य के जल संसाधनों के साथ गम्भीर खिलवाड़ किया है। नौ साल के लिए प्रतिबन्धित और 2008 में पिछली वसुंधरा राजे सिंधिया सरकार के समय में खोले गये अनुसूची-5 के क्षेत्रों में खनन पट्टों के बल पर उद्योगपतियों द्वारा कब्ज़ा करने से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। अगर हम अब भी नहीं चेते, तो एक दिन वह आयेगा जब पारिस्थितिकी और पर्यावरण को बचाना असम्भव हो जाएगा।

पर्यावरण को हो रहा नुकसान

भले, मार्बल उद्योग हज़ारों लोगों को रोज़गार प्रदान करता है और राज्य की अर्थ-व्यवस्था में काफी योगदान देता है। लेकिन संगमरमर खनन के सामाजिक और पर्यावरणीय व्यापक नुकसान के मूल्यांकन के कोई प्रयास नहीं किये गये हैं। इसकी कितनी बढ़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है; गोमती नदी की मृत्यु इसका एक बड़ा उदाहरण है। नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में लापरवाह और अनियोजित संगमरमर खनन और संगमरमर की डंपिंग और इसकी गाद से नालों को रोक देना इसके लिए ज़िम्मेदार है। नदी एक छोटे मौसमी नाले में बदल गयी है, जो मानसून के दौरान ही पानी से भर पाती है।

इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए और एक स्थानीय एनजीओ और अन्य पर्यावरण संगठनों के एक जनहित याचिका दायर करने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में पूरे राजस्थान में संगमरमर खनन पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने का आदेश दिया। प्रतिबन्ध लम्बे समय तक नहीं चला। राज्य सरकार के लॉबिंग करने और हलफनामे दायर करने, विकास गतिविधि के लिए मीडिया की लॉबिंग, बेरोज़गारी के भय, नीति में परिवर्तन और अनुमति के नियमों के चलते महज़ दो महीने बाद ही इस प्रतिबन्ध हो वापस ले लिया गया। पिछले साल, राजस्थान उच्च न्यायालय ने मकराना में नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए पाये 474 संगमरमर की खदानों को बन्द करने का आदेश दिया था।

राजस्थान के दक्षिणी भाग में उन खानों पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी है, जिनके मालिक अदालत का कोई आदेश आने या विभाग से जागने से पहले ही जितना कर सकते हैं, दोहन करने की जल्दी में हैं।

बढ़ रहा मरुस्थल

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के साथ वरिष्ठ कार्यक्रम समन्वयक के रूप में काम करने वाले भोमिक शाह और एक रिसर्चर आकाश मेहरोत्रा ने माउंटेन ऑफ मार्बल वेस्ट नामक एक शोध पत्र में बताया है कि मरुस्थलीकरण का खतरा बढ़ रहा है। स्थिति इतनी खराब है कि कई हिस्सों में मवेशियों के लिए कोई चारागाह नहीं बचा है और न ही कोई हरा भरा खेत है। उदाहरण के लिए, उदयपुर ज़िले के ओबरी गाँव के आदिवासियों के पास अब अन्न पैदा करने के लिए खेत तक नहीं बचे हैं। पूरा क्षेत्र एक संगमरमर खनन क्षेत्र में तब्दील हो गया है। ओबरी के हुकमा भाई (55) कहते हैं कि तीस साल पहले हमने खानों का स्वागत किया था, लेकिन अब हम अपने वनों और अपनी ज़मीन को खो चुके हैं। जो कुछ भी बचा है वह किसी काम का नहीं है।

बच्चों तक पहुँच रही अश्लील सामग्री!

राज्यसभा की सात महिला सदस्यों सहित 14-सदस्यीय समिति ने बच्चों की पोर्नोग्राफी सामग्री तक पहुँच को फिल्टर करने के लिए अनिवार्य एप का सुझाव दिया है।

राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू की गठित के गयी समिति ने बच्चों के यौन शोषण को रोकने और सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री तक पहुँच को लेकर 40 सिफारिशें की हैं। समिति का गठन नायडू ने पिछले साल 12 दिसंबर को किया था, जिसमें कुछ सदस्यों ने अश्लील सामग्री और बाल शोषण के लिए सोशल मीडिया के व्यापक दुरुपयोग पर चिन्ता व्यक्त की थी।

समिति के अध्यक्ष जय राम रमेश की तरफ से प्रस्तुत रिपोर्ट में समिति ने बाल पोर्नोग्राफी की भयावह सामाजिक बुराई की व्यापकता पर चिन्ता व्यक्त की है। इसने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अलावा तकनीकी, संस्थागत, सामाजिक और शैक्षणिक उपायों और राज्य स्तर की पहल के अलावा सोशल मीडिया पर पोर्नोग्राफी के खतरनाक मुद्दे और बच्चों और पूरे समाज पर इसके प्रभावों के समाधान के लिए महत्त्वपूर्ण संशोधनों की सिफारिश की है।

समिति ने महिलाओं और बाल विकास, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी और गृह मामलों के मंत्रालयों के अलावा एनसीपीसीआर और भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण और गूगल, फेसबुक, व्हाट्स एप, बीटेडेंस (टिकटॉक), ट्विटर और शेयर चैट जैसे अन्य हितधारकों के विचारों को सुना। समिति को तीन एनजीओ- एचईआरडी एजुकेशनल एंड मेडिकल रिसर्च फाउंडेशन (नागपुर), सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स (नई दिल्ली) और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (नई दिल्ली) से भी प्रतिनिधित्व प्राप्त हुआ। समिति की रिपोर्ट में जयराम रमेश ने कहा कि यह एक अच्छा मॉडल है, जिसका उपयोग समय-समय पर राज्यसभा के सदस्य सामाजिक मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।

समिति की तरफ से की गयी 40 सिफारिशें चाइल्ड पोर्नोग्राफी की व्यापक परिभाषा को अपनाने, ऐसी सामग्री के लिए बच्चों तक पहुँच को नियंत्रित करने और बाल यौन शोषण सामग्री (सीएसएएम) के प्रसार को रोकने, इंटरनेट सेवा प्रदाताओं और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को जवाबदेह बनाने, बच्चों को इसकी पहुँच से वंचित करने, सामग्री की निगरानी, पोर्न देखने की स्थिति का पता लगाने और ऑनलाइन साइटों से ऐसी अश्लील सामग्री को हटाना, ऐसी सामग्री के काम उम्र बच्चों में उपयोग को रोकने, माता-पिता को बच्चों के इस तरह की सामग्री का जल्दी पता लगाने के लिए सक्षम करने, सरकारों के प्रभावी कार्रवाई करने और एजेंसियों को आवश्यक निवारक और दंडात्मक उपाय आदि करने के लिए अधिकृत करने से सम्बन्धित हैं। यह देखते हुए कि बाल पोर्नोग्राफी से जुड़े लोग हमेशा नियामकों से एक कदम आगे रहते हैं। समिति ने अपनी सिफारिशों को एक एकीकृत पैकेज के रूप में लागू करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। समिति ने व्यापक रूप से सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री के लिए बच्चों की पहुँच के मुद्दे और सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री के प्रचलन पर गौर करने की माँग की है, जिसमें बच्चों का शोषण किया जाता है।

विधायी उपाय

समिति ने भारतीय दंड संहिता में किये जाने वाले बदलावों के साथ पोक्सो अधिनियम, 2012 और आईटी अधिनियम, 2000 में कुछ महत्त्वपूर्ण संशोधनों की सिफारिश की है, जिनमें कुछ प्रमुख यह हैं-

पोक्सो अधिनियम, 2012 में एक खंड डाला जाए, जिसके तहत किसी भी लिखित सामग्री, दृश्य प्रतिनिधित्व या ऑडियो रिकॉॄडग या किसी भी लक्षण वर्णन के माध्यम से 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के साथ यौन गतिविधियों की वकालत को अपराध बनाया जाये। पोक्सो अधिनियम, 2012 में एक और खंड जोड़ा जाए, जिसमें बिचौलियों (ऑनलाइन प्लेटफॉर्म) की एक आचार संहिता की बात हो, ताकि ताकि ऑनलाइन बाल सुरक्षा सुनिश्चित हो, आयु अनुसार उपयुक्त सामग्री सुनिश्चित हो और अश्लील उद्देश्यों के लिए बच्चों के उपयोग पर अंकुश लगाया जा सके।

पोक्सो अधिनियम, 2012 के तहत स्कूल प्रबंधन को स्कूलों के भीतर बच्चों की सुरक्षा, परिवहन सेवाओं और ऐसे अन्य कार्यक्रमों के लिए ज़िम्मेदार होना चाहिए, जिनके साथ स्कूल जुड़ा हुआ है।  राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोॄटग पोर्टल इलेक्ट्रॉनिक सामग्री के मामले में पोक्सो अधिनियम में रिपोॄटग आवश्यकताओं के तहत राष्ट्रीय पोर्टल के रूप में नामित किया जाए। आईटी अधिनियम-2000 में एक नया खंड शामिल किया जाना चाहिए, जो बच्चों को अश्लील पहुँच प्रदान करने वालों और बाल यौन उत्पीडऩ सामग्री (सीएसएएम) का उपयोग, उत्पादन या संचार करने वालों के लिए भी दंडात्मक उपायों की व्यवस्था करता है। संघ सरकार को उन सभी वेबसाइटों/बिचौलियों जो बाल यौन शोषण सामग्री ले जाते हैं; को ब्लॉक करने/रोकने के लिए अपने प्राधिकारी के माध्यम से सशक्त किया जाना चाहिए।

आईटी अधिनियम को संशोधित किया जाए, ताकि बिचौलियों को सक्रिय रूप से पहचानने और सीएसएएम को हटाने के अलावा भारतीय अधिकारियों के साथ-साथ विदेशी अधिकारियों को भी इसकी सूचना  देने के लिए उसे ज़िम्मेदार बनाया जाए। गेटवे इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स (आइएसपी) को सीएसएएम वेबसाइटों का पता लगाने और उन्हें अवरुद्ध करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण दायित्व निभाना चाहिए। बिचौलिये भी नामित प्राधिकारी को रिपोर्ट करने, बाल पोर्न / खोज करने वाले सभी लोगों के आईपी पते/पहचान/सीएसएएम की वड्र्स के लिए ज़िम्मेदार होंगे।

प्रोद्योगिक उपाय

बाल पोर्नोग्राफी के वितरकों का पता लगाने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों को एंड-टू एंड एंक्रिप्शन को ब्रेक करने की अनुमति मिले। ऐसे एप्स, जो बच्चों की पोर्नोग्राफिक सामग्री तक पहुँच की निगरानी करने में मदद करते हैं; उन्हें भारत में बेचे जाने वाले सभी उपकरणों में अनिवार्य बनाया जाए। ऐसे एप या इसी तरह के समाधान विकसित किये जाएँ और उनकी आईएसपी, कम्पनियों, स्कूलों और माता-पिता तक पहुँच आसान की जाए।

इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी और गृह मंत्रालय मंत्रालय बाल पोर्नोग्राफी ऑनलाइन खरीदने के लिए क्रिप्टो मुद्रा लेन-देन में संलग्न उपयोगकर्ताओं की पहचान का पता लगाने के लिए ब्लॉक चेन विश्लेषण कम्पनियों के साथ समन्वय करें। ऑनलाइन भुगतान पोर्टल्स और क्रेडिट कार्ड किसी भी अश्लील वेबसाइट के लिए प्रसंस्करण भुगतान से निषिद्ध किये जाएँ। इंटरनेट सामग्री तक बच्चों की पहुँच को विनियमित करने के लिए साइनअप के बिन्दु पर माता-पिता को परिवार के अनुकूल फिल्टर प्रदान करने के लिए आईएसपी को ज़रूरी किया जाए, सभी सामाजिक मीडिया प्लेटफार्मों को देश में कानून प्रवर्तन एजेंसियों को नियमित रिपोॄटग के अलावा बाल यौन उत्पीडऩ सामग्री का पता लगाने के लिए न्यूनतम आवश्यक तकनीकों के साथ अनिवार्य किया जाए। नेटफ्लिक्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे ट्विटर, फेसबुक आदि पर ऑन-स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म में अलग-अलग वयस्क सेक्शन होने चाहिए, जहाँ कम उम्र के बच्चों को रोका जा सके। सोशल मीडिया में आयु सत्यापन और आपत्तिजनक/अश्लील सामग्री तक पहुँच को प्रतिबन्धित करने के लिए तंत्र होना चाहिए।

संस्थागत उपाय

समिति ने बाल पोर्नोग्राफी के मुद्दे से निपटने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में एक उन्नत और तकनीकी रूप से सशक्त राष्ट्रीय आयोग की सिफारिश की है, ताकि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) का संरक्षण किया जा सके। समिति ने कहा कि एनसीपीसीआर में आवश्यक तकनीकी, साइबर पुलिसिंग और अभियोजन क्षमता होनी चाहिए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) अनिवार्य रूप से हर तरह के चाइल्ड पोर्नोग्राफी के सालाना मामलों की रिपोर्ट का रिकॉर्ड रखेगा। एक राष्ट्रीय टिपलाइन नम्बर बनाया जाना चाहिए, जहाँ बाल यौन शोषण के साथ-साथ सम्बन्धित बाल अश्लील सामग्री के वितरण को लेकर सम्बन्धित नागरिक रिपोर्ट कर सकें।

सामाजिक और शैक्षिक उपाय

महिला, बाल विकास और सूचना प्रसारण मंत्रालय माता-पिता में बच्चों के प्रति शोषण के आरम्भिक लक्षणों को पहचानने, ऑनलाइन जोखिमों और अपने बच्चे के लिए ऑनलाइन सुरक्षा के प्रति बेहतर रूप से जागरूकता पैदा करने के लिए अभियान चलाएँ। स्कूल वर्ष में कम-से-कम दो बार माता-पिता के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करें, जिससे उन्हें कम उम्र में स्मार्ट फोन, इंटरनेट के मुफ्त उपयोग के खतरों के बारे में पता चल सके। अन्य देशों के अनुभवों के आधार पर, कम उम्र बच्चों के स्मार्ट फोन के उपयोग को प्रतिबन्धित करने के लिए एक उचित व्यावहारिक नीति पर विचार किया जाए।

राज्य स्तरीय कार्यान्वयन

समिति ने सिफारिश की कि प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश के पास बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए एनसीपीसीआर क्षमताओं वाला राज्य आयोग हो। अश्लील सामग्री को हटाने, आयु सत्यापन, चेतावनी जारी करने आदि से सम्बन्धित सोशल मीडिया और वेबसाइट दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए राज्य स्तर पर ई-सुरक्षा आयुक्तों की नियुक्ति की जाए।

विकास जीता, नफरत हारी

आखिर भाजपा के लिए यह चुनाव आ बैल, मुझे मार साबित हो गया। दिल्ली में जैसा नफरत वाला माहौल भाजपा ने बनाने की कोशिश की, वो वोटों में तो तब्दील नहीं हुआ, पार्टी की एक खराब छवि देश में ज़रूर बना गया। राजधानी में अपनी झोली में सिर्फ आठ सीटें पाकर भाजपा खुद से ही शर्म महसूस कर रही होगी। आम आदमी पार्टी एक बार फिर पूरी ताकत से सत्ता में आ गयी। आप ने 62 सीटें जीत लीं और भाजपा 8 पर सिमट गयी।

नागरिकता संशोधन कानून और सम्भावित एनआरसी के िखलाफ आंदोलन के दौरान भाजपा का रुख जनता को पसंद नहीं आया। आम आंदोलनकारियों को देशविरोधी बता देने की उसकी कोशिश जनता के गले नहीं उत्तरी। जनता ने यह भी देखा कि शाहीन बाग में एक आन्दोलनकारी की चार साल की बच्ची की मौत को तो मुद्दा बना दिया गया, जेएनयू में जिन लोगों ने उपद्रव मचाया उन्हें लेकर सरकार ने कुछ नहीं किया। इसका भी भाजपा को ही नुकसान हुआ।

भारतीय जनता पार्टी का घृणा अभियान उसके लिए ही घातक साबित हुआ। हिन्दू-मुस्लिम, शाहीन बाग, जामिया मिल्लिया, पाकिस्तान और गोली मारो…. जैसे अभियान से भाजपा जिस सफलता की उम्मीद कर रही थी, वह रंग नहीं लाया। इसी शाहीन बाग में आप के अमानतुल्ला 72,000 जैसे बड़े अंतर से जीते। भाजपा के लिए यह चुनाव नतीजे बड़ा सबक हैं और उसे तय करना होगा कि क्या वह अभी भी इन्हीं मुद्दों पर चलती रहेगी या जनता के असली मुद्दों को सामने रखकर कांग्रेस और आप जैसे राजनीतिक विरोधियों का सामना करेगी।

गैर-विकासात्मक मुद्दों पर आधारित भाजपा का हाई वोल्टेज अभियान फुस्स साबित हुआ है। यह भाजपा के उन रणनीतिकारों के लिए भी चोट है, जिन्होंने इस तरह के अभियान को चुना। तहलका की जानकारी के मुताबिक, दरअसल भाजपा ने इस अभियान को इसलिए नहीं चुना कि वो जीतने के लिए कोशिश कर रही थी, बल्कि इसलिए चुना कि 20 जनवरी के आसपास पार्टी को मिले इनपुट्स बहुत निराशाजनक थे। जानकारी के मुताबिक, भाजपा को उस समय 2-3 सीटों पर सिमटने जैसे इनपुट्स मिले थे। लिहाज़ा उसे हिन्दु-मुस्लिम की लाइन पकडऩी पड़ी, लेकिन यह भी उसे राहत नहीं दिला पायी।

पिछले कुछ राज्यों के चुनाव, जिनमें अब दिल्ली का चुनाव परिणाम भी शामिल है; यह दर्शाता है कि यदि आप स्थानीय भावनाओं को अनदेखा करते हैं, तो क्षेत्रीय क्षत्रप भी भाजपा के नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे राष्ट्रीय नेताओं पर भारी साबित हो सकते हैं। आम आदमी पार्टी (आप) की बड़ी जीत पार्टी के विकास पर ध्यान केंद्रित करने और सीएम अरविंद केजरीवाल के चेहरे का परिणाम है। चुनाव में न तो भाजपा और न ही कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के रूप में कोई चेहरा घोषित किया, जिसका भी इन दोनों को बहुत नुकसान हुआ, खासकर भाजपा को।

इस चुनाव में चुनाव आयोग जैसी संस्थाएँ, जिनसे चुनावों के दौरान ही नहीं हमेशा तटस्थ रहने की उम्मीद की जाती है; भी विवाद में घिर गयीं। चुनाव आयोग ने मतदान के 24 घंटे बाद प्रतिशत सहित चुनाव डाटा की घोषणा की, जिससे देश में कई लोगों को आश्चर्य ही नहीं हुआ, बल्कि आयोग कीे निष्पक्षता पर भी सवाल उठाने का मौका दिया। यह भी आरोप है कि मतदान केंद्रों के 200 मीटर के दायरे में जय श्री राम (भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा) और जय बजरंगबली (आप कार्यकर्ताओं द्वारा) जैसे नारे लगाये गये। चुनाव आयोग इन सभी उल्लंघनों पर कार्रवाई करने में विफल रहा।

दिल्ली ऐसी जगह है, जहाँ देश के हरेक कोने के लोग रहते हैं। यहाँ भाजपा का हिन्दू-मुस्लिम वाला एजेंडा फेल होना उसके लिए बहुत बड़ा राजनीतिक नुकसान है। आने वाले चुनावों में भाजपा को इसकी गर्मी झेलनी पड़ सकती है। भाजपा ने दिल्ली में क्षेत्रवाद को भी उभारने की कोशिश की, जिसमें उसे बिल्कुल सफलता नहीं मिली। केजरीवाल के विकास के नारे के आगे उसका हर दाँव फेल हो गया। कहने को भाजपा ने केजरीवाल पर मुफ्तखोरी की आदत डालने का आरोप लगाया। खुद भाजपा ने मुफ्त में स्कूटी व साइकिल बाँटने और सस्ता आटा जैसे नारे दिये। लिहाज़ा उसका आप पर यह आरोप हास्यास्पद ही लगता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणामों से संकेत मिलता है कि नफरत वाले अभियान चुनाव जीतने की कोई गारंटी नहीं है, बल्कि यह बहुत बड़ा नुकसान दे सकता है। कुल मिलाकर दिल्ली के चुनाव परिणाम इस बात के संकेत हैं कि भाजपा मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने में बुरी तरह विफल रही और मतदाताओं ने चुनाव में विकासात्मक मुद्दों को प्राथमिकता दी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और भाजपा नेताओं के अभियान में भी बड़ा अंतर था। जहाँ केजरीवाल ने व्यक्तिगत स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी को बिल्कुल भी निशाना नहीं बनाया, वहीं भाजपा के नेताओं ने केजरीवाल को आतंकवादी तक कहा।

एक और दिलचस्प बात जो यह देखी गयी कि चुनाव में केजरीवाल के ट्वीट रणनीतिकार प्रशांत किशोर के आम आदमी पार्टी के अभियान में शामिल होने के बाद अचानक बहुत बेहतर और संतुलित हो गये। सूत्रों ने तहलका को बताया कि यह प्रशांत किशोर ही थे, जिन्होंने आप और कांग्रेस के बीच अघोषित समझ बनाने के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को सहमत करवाया, जिससे कांग्रेस ने चुनाव अभियान में न के बराबर हिस्सा लिया; ताकि भाजपा ही हार सुनिश्चित करवायी जा सके।

इस नतीजे ने दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी के भविष्य पर भी तलवार लटका दी है, जो भाजपा संगठन को खड़ा करने में बुरी तरह विफल रहे। उन्हें 2016 में  राज्य अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, जिसके बाद भाजपा ने दिल्ली नगर निगम चुनावों में जीत दर्ज की थी। हालाँकि मई, 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने दिल्ली की सभी 10 सीटें जीतीं। यह तिवारी के कारण नहीं बल्कि भाजपा के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उच्च वोल्टेज वाले उग्र राष्ट्रवाद अभियान का नतीजा था। नतीजे भाजपा के युवा तुर्क प्रवेश वर्मा के लिए भी बुरे साबित हुए, जिन्होंने प्रचार के दौरान कई अवांछित टिप्पणियां कीं और लोगों ने इस तरह की भाषा को खारिज कर दिया। वर्मा इस तरह के अभियान के साथ खुद को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे थे; लेकिन इसने उलटा उनका नुकसान किया है।

भाजपा ने चुनाव में कोई चेहरा घोषित नहीं किया, जिसने उसे नुकसान पहुँचाया। यह चुनाव सीएम केजरीवाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच सीधी प्रतिस्पर्धा बन गया। आम आदमी पार्टी ने यह चुनाव विकास और गोली मारो…के नारे के बीच बदल दिया और जनता ने उन्हें चुना। राज्य चुनावों में भी भाजपा के लिए यह एक और हार है। दिल्ली से पहले भाजपा ने झारखंड को खो दिया। इससे पहले वे महाराष्ट्र में भी सरकार खो चुके हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्य पहले ही भाजपा के हाथों से चले गये हैं। ये सभी चुनाव परिणाम उस पार्टी के लिए गम्भीर संकेत हैं; जो दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक संगठन होने का दावा करती है।

इन परिणामों से संकेत मिलता है कि कोई भी पार्टी, जो स्थानीय भावना (स्थानीय मुद्दों) की अनदेखी करती है, राज्य विधानसभा चुनावों में जीत के बारे में नहीं सोच सकती। इस नतीजे ने पीएम नरेंद्र मोदी और चाणक्य अमित शाह जैसे भाजपा नेताओं की करिश्माई छवि को भी चोट पहुँचाने वाले हैं; जिनसे विकास, अर्थ-व्यवस्था, बेरोज़गारी आदि मुद्दों पर बात की उम्मीद थी। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

यह सही समय है कि भाजपा देश के प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू करे। अगर वह इसी तरह राज्यों को खोटी रही, तो इससे पार्टी कैडर का मनोबल गिरना शुरू हो जाएगा। पार्टी को बिहार जैसे राज्य में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव झेलने हैं। लगातार हार से जनता में भाजपा को लेकर निश्चित ही गलत सन्देश जा रहा है।

नए भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के लिए भी यह एक मुश्किल समय है। पार्टी उनके नेतृत्व में पहला ही चुनाव हार गई है। नड्डा को एक गहन रणनीतिकार माना जाता है और उनके मार्गदर्शन में भाजपा ने उत्तर प्रदेश का चुनाव जीता था। लेकिन भाजपा अब राष्ट्रीय राजधानी में अपनी सर्वोच्चता स्थापित करने में विफल रही है, जो भाजपा के लिए एक बड़ी क्षति है।

यह चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए भी एक सबक है, जो फिर से एक भी सीट हासिल करने में असफल रही। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस आप को तीसरे स्थान पर धकेलते हुए दूसरे स्थान पर रही थी। ऐसा कहा जाता है कि कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर करने की रणनीति के तहत अपना वोट आप को हस्तांतरित करवाया, लेकिन इससे खुद उसे क्या फायदा मिला? इस चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटकर 4 फीसदी के आसपास सिमट गया।

केजरीवाल को फिर से दिल्ली की कमान

अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री हो गये और शीला दीक्षित के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली। वैसे शीला दीक्षित पूरे 15 साल सत्ता में रहीं; क्योंकि केजरीवाल के मुकाबले उनकी पहली पारी भी पाँच साल की थी, जबकि केजरीवाल पहली बार दो साल ही सत्ता में रहे। आम आदमी पार्टी ने लगातार तीसरी बार सरकार बना ली और अरविन्द केजरीवाल लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बन गये। उन्होंने चुनाव प्रचार में खुद को जनता के बेटे के रूप में प्रोजेक्ट किया और जब भाजपा के एक नेता ने उन्हें आतंकवादी कहा तो उन्होंने इसे बहुत तरीके से भुनाया। यहाँ तक कि भाजपा नेता ने जब उन पर आरोप लगाया कि हनुमान जी के दर्शन करने से पहले उन्होंने जब जूते उतरे तो उसकी बाद हाथ नहीं धोये। केजरीवाल ने इसे यह कहकर अपने पक्ष में कर लिया कि वे उन्हें हनुमान जी के मंदिर में जाने से रोक रहे हैं। जीत के बाद केजरीवाल ने कहा कि यह पूरे देश की जीत है। यह विकास की जीत है। उन्होंने कहा कि आज हनुमान जी ने कृपा बरसायी है। हमें हनुमान जी शक्ति दें कि हम अगले पाँच साल भी जनता की सेवा करते रहे। अरविंद  केजरीवाल का जान 16 अगस्त, 1968 को सिवानी (हरियाणा) में हुआ। उनकी माता गीता देवी और पिता गोबिंद राम केजरीवाल हैं। उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल और बच्चों पुलकित और हर्षिता ने भी उनके लिए जमकर चुनाव प्रचार किया। आयकर अधिकारी केजरीवाल अब तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गये हैं।

किसको कितनी सीटें और मत फीसद

आप      62 (53.57)

भाजपा  08 (38.51)

कांग्रेस   00 (4.26)

अन्य      00 (3.66)

9.2 करोड़ थी तनख्वाह पर करता था चोरी!

बॉलीवुड, हॉलीवुड और कई प्रतिष्ठित लोगों के बारे में आपने सुना होगा कि वे हेराफेरी करते पकड़े गये। अमूमन हमने देखा है कि बड़े लोग बड़े स्तर पर हेराफेरी करते हैं। इसमें सबसे ज़्यादा टैक्स चोरी के मामले सामने आते हैं। लेकिन अगर करोड़ों रुपये कमाने वाला कोई व्यक्ति खाना चुराये, तो हैरानी होती है। लंदन में सिटी बैंक में कार्यरत भारतीय मूल के एक व्यक्ति ऐसा ही करता था। सवाल यह है कि ऐसे लोग चोरी कैसे कर लेते हैं, जो सक्षम हैं। बता दें कि लंदन में हाई-प्रोफाइल भारतीय बैंकर पारस शाह को सिटी ग्रुप ने ऑफिस कैंटीन से खाना चुराने के आरोप में नौकरी से निकाल दिया है। हैरत की बात यह है कि शाह को बर्गर चुराते हुए पकड़ा गया था। इससे भी ज़्यादा हैरत की बात यह है कि पारस शाह की सालाना तनख्वाह 9.2 करोड़ रुपये थी। िफलहाल पारस शाह को सिटी ग्रुप ने ऑफिस कैन्टीन से खाना चुराने के आरोप में निलंबित कर दिया है। शाह ने खाना कैनरी घाट के लंदन के यूरोपीय मुख्यालय से चुराया था। फाइनेंशियल टाइम्स में हाल ही में छपी खबर के मुताबिक, 31 वर्षीय पारस शाह ने 7 साल एचएसबीसी ग्रुप के साथ काम करने के बाद 2017 में सिटी ग्रुप को ज्वाइन किया था। कुछ सप्ताह पहले ही सिटीग्रुप के अपने वरिष्ठ कर्मचाारियों को बोनस देने के कारण भी उनका निलंबन हुआ था।

बता दें कि इसी प्रकार की चोरियाँ करते हुए कई हॉलिवुड कलाकार, प्रतिष्ठित व्यक्ति सीसीटीवी फुटेज वायरल होने के बाद चर्चा में आ चुके हैं। ऐसे ही लोगों में एक बहुत ही प्रसिद्ध हॉलिवुड अभिनेत्री विनोना रडार भी पकड़ी गयी थीं। रडार कुछ साल पहले डिज़ाइनर कपड़ों की चोरी करते हुए पकड़ी गयी थीं। इसी प्रकार कुछ साल पहले हिडंसे लोहान भी पकड़े गये थे। उन पर एक ज्वेलरी शोरूम से 2,500 डॉलर का कीमती हार चुराने का आरोप है। बताया जा रहा है कि वे यह हार लेकर बिना बिल चुकाये शोरूम से बाहर निकल गयी थीं। लोहान के साथ अमेंडा वरेन और फॉयस रोसट भी शामिल थे।

मेगन फॉक्स ने वॉलमार्ट से एक स्टोर से मेकअप किट चुरायी थी। ब्रिटनी स्पेयर्स और मेगन स्पोट्र्स भी अपनी इसी प्रकार की चोरियों और अन्य आपराधिक कार्यों के चलते कुछ समय के लिए जेल भी जा चुके हैं। दोनों पर आरोप हैं कि वे स्थानीय बाज़ारों और शोरूमों से अपनी पसन्द का सामान चुराती थीं।

इसी प्रकार पिछले साल चेन्नई के एक पुलिस कॉन्सटेबल को एक प्रसिद्ध इलाके चेटपेट की सुपर मार्केट में दुकान से सामान चुराते हुए पकड़ा गया था। इसी तरह एक महिला कॉन्सटेबल नंदनी ने फोन पर बात करते-करते सामान उठाकर अपनी जेब में रख लिया था। नंदनी की यह हरकत सीसीटीवी कैमरे में कैमरे में कैद हो गयी थी।

इसी प्रकार बाली में छुट्टी बिताने पहुँचे एक भारतीय परिवार को होटल का सामान अपने बैग में भरकर ले जाते हुए पकड़ा गया था। इस भारतीय परिवार की यह हरकत भी सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गयी थी। इस 2 मिनट 20 सेकेंड के वीडियो में एक औरत अपने परिवार समेत होटल से चेकआउट करके जाने लगी। उसने होटल का सारा समान, जैसे-तौलिया, साबुन, शैम्पू, कपड़ों के हैंगर इत्यादि अपने बैग में भर लिये थे। लेकिन बाहर निकलते समय पकड़ी गयी। अपनी इस चोरी को छिपाने के लिए वह होटल कर्मचारियों को फ्लाइट छूटने का हवाला देने लगी। इतना ही नहीं, जिस सामान की उसने चोरी की थी, उसमें से आधे सामान या फिर सामान के पैसे देने का लालच सिक्योरिटी गाड्र्स को देने लगी। परन्तु होटल स्टाफ  ने सामान के पैसे लेने से मना कर दिया। इस घटना का वीडियो खूब वायरल हुआ।

सवाल यह उठता है कि िफल्मी कलाकारों से लेकर प्रसिद्ध प्रतिष्ठानों में कार्यरत लोग इस प्रकार की चोरियाँ करने में क्यों विश्वास करते हैं? जबकि इन लोगों की एक आवाज़ पर इनके अनुसार सब हाज़िर हो जाता है और ये लोग महँगे से महँगा सामान खरीदने की हैसियत रखते हैं।

‘आप’ की हैट्रिक

आम आदमी पार्टी (आप) ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 62 सीटें पाकर जीत   का परचम लहरा दिया। आप के प्रदर्शन ने इसकी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी के सपनों को चकनाचूर कर दिया। भाजपा सिर्फ 8 ही सीटें जीत सकी, जबकि कांग्रेस पिछली बार की तरह शून्य पर अटक गयी। देश में यह सबसे अधिक विवादास्पद चुनाव रहा और विभाजनकारी राजनीति और घृणा फैलाने वाले बयानों और प्रचार ने दिल्ली की सत्ता पाने की जंग को एक विषैले माहौल में बदल दिया। यह बहुत कड़ुवे अनुभवों वाला चुनाव अभियान था। आम आदमी पार्टी ने अपनी सरकार की उपलब्धियों पर केंद्रित अभियान चलाया और सरकारी स्कूलों, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार और रियायती दरों पर बिजली-पानी देने की बात कही।

इस चुनाव में आप नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने संयमित प्रचार किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करने से परहेज़ किया। उन्होंने राष्ट्रीय मुद्दों को भी बहस के बीच नहीं आने दिया और केवल अपनी सरकार के विकास पर ही अभियान केंद्रित रखा, जिससे वे भाजपा की रणनीति के फंदे में नहीं फँसे। केजरीवाल ने खुद को एक ऐसे नेता के रूप में सामने रखा, जो भाजपा के किसी भी नेता की तरह हिन्दू हैं, राष्ट्रवादी हैं और उनके पास सरकार की उपलब्धियों का रिकॉर्ड है। इसके विपरीत भाजपा के पास कोई स्थानीय चेहरा मुख्यमंत्री के रूप में नहीं था। भाजपा ने अपने अभियान के ज़रिये अपने एजेंडे को एक तरह से जनमत संग्रह में बदलने की कोशिश की और इसके लिए शाहीन बाग की बात उठाकर आम आदमी पार्टी और मुस्लिम समर्थन के घालमेल की कोशिश की। इस सारी प्रक्रिया में भाजपा नेता भड़काऊ बयानबाज़ी में भी लगे रहे। दिल्ली एक अनूठी राष्ट्रीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है, जहाँ देश के हर कोने के लोग रहते हैं। चुनाव नतीजों ने न केवल विजेताओं और हारे हुए लोगों के राजनीतिक सामर्थक, बल्कि नागरिकता संशोधन अधिनियम जैसे विवादास्पद मुद्दों के बारे में धारणा को भी निर्धारित किया है। साल 2012 में लोकपाल आंदोलन से उपजी केजरीवाल और उनकी पार्टी की लोकप्रियता पाँच साल के कार्यकाल के बाद भी निर्विवाद रूप से उतनी ही मज़बूत है। स्वाभाविक रूप से, पूरा चुनाव अभियान एके-70 और अच्छे बीते पाँच साल, लगे रहो केजरीवाल जैसे लोकप्रिय नारे के इर्द-गिर्द घूमता रहा। दिल्ली के पानी को पीने के लिए असुरक्षित कहने वाले आलोचकों को करारा जवाब देने के लिए केजरीवाल ने पीतमपुरा में मंच पर एक गिलास जल बोर्ड का पानी पिया। एक टीवी साक्षात्कार के दौरान हनुमान चालीसा का जाप किया और सभी चीज़ें अंतत: उनके पक्ष में गयीं। दिल्ली विधानसभा चुनावों में अपनी शानदार जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी अब निकट भविष्य में होने जा रहे अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव में खुद को एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक ताकत बनाने की योजना बना रही है। यह स्पष्ट है कि कांग्रेस ने जिस राज्य में 15 साल शासन किया, वहाँ उसने अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ी; लेकिन खाली हाथ रही। इसी तरह दिल्ली में सत्ता से बाहर रहने के 21 साल बाद वापसी की उम्मीद कर रही भाजपा का सपना टूट गया और आप ने फिर सत्ता पा ली। केजरीवाल ने हैट्रिक बनायी है। हालाँकि इससे उनके प्रति लोगों की उम्मीदें भी उतनी ही ऊँची हो गयी हैं। आप को अब दो प्रमुख मुद्दों से जूझना है- शासन से और अपने घोषणा-पत्र के वादों से।

प्रोफेशनल टैक्स की संवैधानिकता क्या है?

अब तक दुनिया की तमाम संस्थाओं की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत विकास की गति से फिसल गया है, लेकिन देश में इस पर सुधार की भरपूर गुंजाइश है। विश्व रैंकिंग के हिसाब से देखें तो व्यापार करने में आसानी के मापदंडों के मामले में सरकार ने सुधार किये जाने के लिए कई कदम उठाये हैं। तहलका ने यह पड़ताल करने की कोशिश की है कि ऐसे कौन से कारक हैं, जिनसे तय हो कि पेशेवर कर (प्रोफेशनल टैक्स) की संवैधानिकता क्या है? क्योंकि कुछ राज्य इसे लागू करते हैं और कुछ नहीं; ऐसा क्यों है?

क्या है प्रोफेशनल टैक्स?

पहले जान लें कि प्रोफेशनल टैक्स है क्या? यह वह टैक्स है, जो राज्य सरकारें अपने विवेक से लगाती हैं। यह एक पेशेवर व्यक्तियों पर लगाया जाता है; जैसे- चार्टर्ड अकाउंटेंट, वकील, डॉक्टर व अन्य। भारत में सभी राज्य इसे अनिवार्य कर के तौर पर नहीं लगाते हैं।

सवाल यह उठता है कि क्या पेशेवर कर संवैधानिक है? कुछ राज्य सरकारें यह कर लगाती हैं; क्योंकि यह उनके लिए आय का एक स्रोत है। सवाल यह भी है कि पेशेवर कर, कम्पनी या उसके कर्मचारियों का भुगतान करने के लिए कौन उत्तरदायी है? चार्टर्ड एकाउंटेंट कुलतार सिंह का कहना है कि यह पेशेवर कर का भुगतान करने के लिए सम्बन्धित कर्मचारी की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि एक कम्पनी कर्मचारी की ओर से पेशेवर कर का भुगतान कर सकती है और खर्च से भरपाई कर सकती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जीएसटी और पेशेवर कर पूरी तरह से अलग हैं, हालाँकि जीएसटी में सेवाएँ भी शामिल हैं; लेकिन पेशेवर कर अलग रखा है।

पेशेवर कर विभिन्न पेशेवरों से एकत्र किया जाता है, जो इस अधिनियम में सूचीबद्ध हैं। यह वेतनभोगी कर्मचारियों, निदेशकों के साथ-साथ पेशेवरों से एकत्र किया जाता है। कम्पनी के तौर पर देखें, तो कम्पनी के निदेशक, स्व-नियोजित पेशेवर, साझेदारी, व्यक्तिगत साझेदार, या राज्य में किये गये किसी भी व्यवसाय के मालिकों, पूर्ववर्ती वर्ष में उनके सकल कारोबार के आधार पर कर की देयता से लिया जाता है। कुछ मामलों में कर का भुगतान तय है और इसका टर्नओवर के बावजूद भुगतान किया जाना है। उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल में किसी फैक्ट्री मालिक को पेशेवर कर का भुगतान तभी करना पड़ता है, जब पूर्ववर्ती वर्ष का कारोबार 5 लाख रुपये से अधिक का हो। कम्पनियों के मामले में प्रत्येक वर्ष 2,500 रुपये पेशेवर कर देना अनिवार्य है। यह नियोक्ता द्वारा उनके कर्मचारी से हर महीने काटा जाता है और सरकारी खजाने को भेजा जाता है और कुछ राज्यों में नगर निगम को भेजा जाता है। प्रोफेशनल टैक्स देना ज़रूरी होता है। राजीव ढांड एंड कम्पनी के राजीव ढांड ने बताया- ‘प्रोफेशनल टैक्स आयकर की तरह है। आयकर केंद्र सरकार के पास जमा होता है, जबकि पेशेवर टैक्स में अगर छूट नहीं दी गयी है, तो सम्बन्धित राज्य सरकार द्वारा एकत्र किया जाता है। कोई भी व्यक्ति जो वेतन, व्यवसाय या किसी भी प्रकार के पेशे से कमाई कर रहा है, तो वह प्रोफेशनल टैक्स का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है।’

कम्पनी के निदेशकों पर प्रोफेशनल टैक्स कैसे लगाये जाने के सवाल पर राजीव ढांड ने बताया कि कम्पनी को पहले प्रोफेशनल टैक्स रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (पीटीआरसी) प्राप्त करना होगा। यदि निदेशक पूर्णकालिक निदेशक हैं या उनमें से कोई भी प्रबन्ध निदेशक है, तो ऐसे निदेशकों को कम्पनी का कर्मचारी माना जाता है और इसलिए कम्पनी को हर निदेशक के वेतन से प्रति माह प्रोफेशनल टैक्स काटना होगा और ऐसी राशि सम्बन्धित प्राधिकरण के पास जमा करनी होगी। कम्पनी के हर निदेशक को अलग से पीटीई नम्बर प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होती। हालाँकि पूर्णकालिक निदेशक या प्रबन्ध निदेशक के अलावा अन्य निदेशकों के मामले में ऐसे निदेशकों को अलग से पीटीई नम्बर प्राप्त करना होगा और सालाना 2500 रुपये का भुगतान करना होगा।

संवैधानिकता है या नहीं?

भारत के संविधान के अनुच्छेद 276 में यह प्रावधान है कि इस अधिनियम के तहत पेशेवरों, व्यवसायों, कॉलिंग और रोज़गार पर एक कर लगाया जाएगा और उसे एकत्र किया जाएगा। अनुसूची के दूसरे कॉलम में उल्लिखित किसी भी पेशे, व्यापार, कॉलिंग, रोज़गार और एकल तरीके से या वर्ग रूप में के तहत राज्य सरकार को कर का भुगतान करना होगा, जो कि तीसरे कॉलम में सूचीबद्ध हैं। अनुसूची 23 की प्रविष्टि केवल उन लोगों पर लागू होती है, जो राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचना के ज़रिये निर्दिष्ट करती हैं। अत: व्यापारिक कर संवैधानिक है।

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट मेंं वरिष्ठ अधिवक्ता वाई.के. कालिया ने बताया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 276 के तहत व्यापारिक कर संवैधानिक है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद-276 राज्य सरकार को पेशेवर कर के विषय के सम्बन्ध में कानून बनाये जाने की मंज़ूरी देता है। इसमें कहा गया है कि चूँकि संसद द्वारा कानून बनाये जाते हैं। इसलिए हम पेशेवर कर के बारे में राज्य सरकार की कानून बनाने की शक्ति पर सवाल नहीं उठा सकते। उन्होंने कहा कि एक व्यवसाय का मालिक अपने कर्मचारियों के वेतन से पेशेवर कर काटने की ज़िम्मेदारी होती है; साथ ही इस राशि को उचित सरकारी विभाग को जमा कराना होता है, जो कि कानून के हिसाब से कर विभाग को देता है।

प्रोफेशनल टैक्स स्लैब (रुपये में राज्यवार)

महाराष्ट्र

1/- से 5000/- तक         शून्य

5,001/- से 10,000/- तक           175/-

10,001/- या इससे अधिक पर      200/-

* फरवरी माह के लिए  300/-

आंध्र प्रदेश

1/- से 5000/- तक         शून्य

5,001/- से 6,000/-तक  60/-

6,001/- से 10,000/- तक           80/-

10,001/- से 15,000/- तक         100/-

15,001/- से 20,000/- तक         150/-

20,001/- या इससे अधिक पर      200/-

असम

1/- से 3500/- तक         शून्य

3,501/- से 5,000/- तक 30/-

5,001/- से 7,000/-        75/-

7,001/-  से 9,000/- तक 110/-

9,001/- या इससे अधिक पर        208/-

छत्तीसगढ़

1/- से 12,500/- तक      शून्य

12,501/- से 16,667/- तक         150/-

16,668/- से 20,833/- तक         180/-

20,834/- से 25,000/- तक         190/-

25,001/- या इससे अधिक पर      200/-

गुजरात

1/- से 2,999/- तक        शून्य

3,000/- से 5,999/- तक 20/-

6,000/- से 8,999/- तक 40/-

9,000/- से 11,999/- तक           60/-

12,000/- या इससे अधिक पर      80/-

कर्नाटक

1/- से 9,999/- तक        शून्य

10,000/- से 14,999/- तक         150/-

15,000/- या इससे अधिक पर      200/-

मध्य प्रदेश

1/- से 3,333/- तक        शून्य

3344/- से 4,166/- तक  30/-

4,167/- से  5,000/- तक 60/-

5,001 से 6,666/- तक    90/-

6,667/- से 8,333/- तक 150/-

8334/- या इससे अधिक पर         175/-

मेघालय

1/- से 4,166/- तक        शून्य

4,167/- से  6,250/- तक 16.50/-

6,251/- से  8,333/- तक 25/-

8,334/- से 12,500/- तक           41.50/-

12,501/- से 16,666/- तक         62.50/-

16,667/- से 20,833/- तक         83.33/-

20,834/- से 25,000/- तक         104.16/-

25,001/- से 29,166/- तक         125/-

29,167/- से 33,333/- तक         150/-

33,334/- से 37,500/- तक         175/-

37,501/- से 41,666/- तक         200/-

41,667/- या इससे अधिक पर      208/-

ओडिशा

1/- से 5000/- तक         शून्य

5,001/- से 6,000/- तक 30/-

6,001/- से 8000/- तक  50/-

8,001/- से 10,000/- तक           75/-

10,001/- से 15,000/- तक         100/-

15,001/-  से 20,000/- तक        150/-

20,001/- या इससे अधिक पर      200/-

पश्चिम बंगाल

1/- से 5000/- तक         शून्य

5,001/- से  6000/- तक 40/-

6,001/- से 7,000/- तक 45/-

7,001/- से 8000/- तक  50/-

8,001/- से 9,000/- तक 90/-

9,001/- से 15,000/- तक           110/-

15,001/- से 25,000/- तक         130/-

25,001/- से 40,000/- तक         150/-

40,001/- और इससे अधिक        200/-

वह व्यक्ति, जो किसी व्यवसाय का मालिक है; अपने कर्मचारियों के वेतन से पेशेवर कर में कटौती करने के लिए ज़िम्मेदार है। इस कर को सम्बन्धित राज्य को जमा कराया जाता है और फिर उसी के अनुसार रिटर्न दािखल किया जाता है। अब हम कहानी के दूसरे हिस्से पर आते हैं कि कैसे नयी कर व्यवस्था से व्यापार करने में आसानी (ईज ऑफ डूइंग) के लिए सुधार किया है? क्या नयी कर व्यवस्था, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ने व्यापार करने में आसानी को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण घटक साबित हुआ है? क्या जीएसटी  लॉजिस्टिक और लेन-देन लागत में कमी के ज़रिये प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के साथ बाज़ार प्रदान किया जा सका है? जीएसटी अनुपालन और अप्रैल, 2020 से एक नये जीएसटी रिटर्न फाइलिंग तंत्र को और सुधार करने की योजना लागू करने की है। सूत्रों के अनुसार, अप्रैल, 2020 से शुरू होने वाले नये रिटर्न फाइलिंग सिस्टम में जीएसटी के तहत पंजीकृत करदाताओं की सभी श्रेणियों में दािखल करने में आसानी के लिए फॉर्म को सरल बनाया जाएगा। ई-चालान के लिए सरकार इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रमाणित करने और रिटर्न दािखल करने व ई-वे बिल बनाने के लिए अन्य पोर्टलों पर उपयोग में आसानी के लिए हर चालान को सत्यापित करने की भी योजना है। व्यापार करने में आसानी के तुलनात्मक आँकड़े बताते हैं कि से 2014 में दुनिया के 190 देशों में भारत 142वें स्थान पर था। जीएसटी को देश में 01 जुलाई, 2017 को आधी रात से लागू किया गया। डूइंग बिजनेस-2020 पर विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, केवल एक वर्ष में भारत 2018 में 77वें स्थान पर चढ़ गया और अक्टूबर, 2019 तक 63वें पायदान पर पहुँच गया। अब भारत का लक्ष्य है- विश्व रैंकिंग में शीर्ष 50 देशों की सूची में पहुँच जाए। आँकड़े बताते हैं कि जीएसटी और जीएसटी अनुपालन से बदलाव दिखा है।

डीपीआईआईटी के कदम

उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी), केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों और राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों के साथ समन्वय करके भारत में व्यापार करने की सुविधा के लिए इस क्षेत्र में कई उपाय किये गये हैं। इसमें 10 संकेतक हैं; जिनसे किसी व्यवसाय के चक्र को समझा जा सकता है-

क्रमांक संकेतक  रैंक

  1. व्यवसाय शुरू करना 137
  2. कंस्ट्रक्शन परमिट के साथ डील 52
  3. बिजली 24
  4. सम्पत्ति का पंजीकरण 166
  5. श्रेय प्राप्त करना 22
  6. अल्पसंख्यक निवेशकों की सुरक्षा 7
  7. कर चुकाना 121
  8. सीमा पार व्यापार 80
  9. संविदा लागू करना 163
  10. इन्सॉल्वेंसी का निदान 108

कुल मिलाकर 77वीं रैंक

सरकार की ओर से देश में व्यापार के माहौल को आसान बनाने की दिशा में कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये गये हैं, जिसके बाद इसमें सुधार के संकेत भी दिखने लगे हैं। सार्वजनिक और निजी कम्पनी के लिए न्यूनतम पूँजी की आवश्यकता को कम्पनी (संशोधन) अधिनियम-2015 के तहत समाप्त कर दिया गया है। सरकार ने इसमें इलेक्ट्रॉनिक रूप से कम्पनी को शामिल करने के लिए एक एकल रूप सरलीकृत प्रोफार्मा पेश किया है, जिसमें अनुप्रयोगों को मिलाकर पाँच अलग-अलग नाम दिये हैं; जैसे- कि आरक्षण, कम्पनी निगमन, निदेशक पहचान संख्या (डीआईएन), स्थायी खाता संख्या (क्क्रहृ यानी पैन) और कर कटौती/संग्रह खाता संख्या (ञ्ज्रहृ यानी टैन)।

अन्य महत्त्वपूर्ण कारक ई-फॉर्म एजीआईएलई (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स आइडेंटिफिकेशन नम्बर (जीएसटीआईएन) के पंजीकरण के लिए आवेदन, कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) पंजीकरण के साथ ही कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) पंजीकरण हैं। कोई भी आवेदक, यदि वह इनमें से किसी भी निकाय के लिए पंजीकरण करना चाहता है, तो ई-फॉर्म एजीआईएलई भर सकता है और कम्पनी निगमन के समय ही पंजीकरण हासिल कर सकता है। यह फॉर्म एक उपयोगकर्ता को स्पाइस फॉर्म के साथ जीएसटी, ईपीएफ और ईएसआई पंजीकरण के लिए आवेदन करने में सक्षम बनाता है। एक नयी और सरलीकृत वेब आधारित सेवा का शुभारम्भ किया गया, जिसमें आरयूए (रिजर्व यूनीक नेम) के ज़रिये नाम को आरक्षित भी करा सकते हैं। इसने नाम आरक्षण के दौरान डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट (डीएससी) की आवश्यकता को भी हटा दिया है। 15 लाख रुपये तक की अधिकृत पूँजी वाली कम्पनियों के लिए निगमन शुल्क को शून्य कर दिया गया है। पैन कार्ड जारी करने की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त, पैन और टैन को निगमन प्रमाण-पत्र (सीओआई) में उल्लेख किया गया है, जिसे पैन और टैन के लिए पर्याप्त सुबूत माना जाता है। ईपीएफओ और ईएसआईसी के लिए ऑनलाइन और श्रमसुविधा पोर्टल से ही पंजीकरण प्रदान किया जाता है। मुम्बई शॉप्स एंड इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के तहत पंजीकरण बिना किसी लागत और निरीक्षण के तय समय में प्रदान किये जाते हैं। साथ ही जीएसटी पंजीकरण के लिए बैंक खाते के विवरण की आवश्यकता भी हटा दी गयी है।

अन्य उपाय ऑनलाइन सिंगल विंडो सिस्टम और यूनिफाइड बिल्डिंग बाय-लॉ भी शुरू किये हैं। यदि निर्धारित समयसीमा के भीतर मंज़ूरी नहीं दी गयी है, तो डीम्ड अनुमोदन जारी कर दिया जाता है। इमारतों के लिए जोखिम आधारित वर्गीकरण को फास्ट ट्रैकिंग बिल्डिंग प्लान की स्वीकृति, निरीक्षण और प्रमाण-पत्र के अनुमोदन के लिए पेश किया गया है। भवन योजना अनुमोदन के लिए नोटरी प्रमाण पत्र या शपथ पत्र प्रस्तुत करने की जगह ई-शपथ दे सकते हैं। कई चरण में पूरे होने वाले निरीक्षणों को एक बार में ही संयुक्त निरीक्षण और सड़क खराब होने व पानी और सीवर कनेक्शन को जोडऩे को आसान किया गया है। विद्युत निरीक्षणालय द्वारा आंतरिक वायरिंग निरीक्षण की प्रक्रियाओं को खत्म कर दिया गया है साथ ही बाहरी कनेक्शन कार्यों में लगने वाले समय को कम कर दिया गया है।

सुरक्षित लेनदारों को व्यापार परिसमापन के दौरान पहले भुगतान किया जाता है, इसलिए श्रम और कर जैसे अन्य दावों को प्राथमिकता दी जाती है। पूरे देश के लिए लगभग 17 अप्रत्यक्ष केंद्र और राज्य के करों को एक ही अप्रत्यक्ष कर को मिलाकर गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) में बदल दिया गया है। केंद्रीय बिक्री कर, सेनवैट, राज्य के वैट और सेवाकर सहित पुराने बिक्री करों को जीएसटी में शामिल कर दिया है। इन करों के एकीकरण ने टैक्स के कैस्केडिंग प्रभाव को कम कर दिया है और इनपुट पर भुगतान किये गये करों को काफी हद तक विश्वसनीय बना दिया है।

250 करोड़ रुपये तक टर्नओवर वाली कम्पनियों के लिए कॉरपोरेट आयकर दर 30 फीसदी घटाकर 25 फीसदी कर दिया गया है। सोशल सिक्योरिटी कॉन्ट्रिब्यूशन के भुगतान के लिए इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली शुरू की गयी है, जिससे आसानी से रिटर्न भुगतान किया जा सके। ईपीएफ भुगतान के लिए इलेक्ट्रॉनिक और प्रशासनिक शुल्क को अनिवार्य कर दिया गया है, साथ ही कर्मचारी भविष्य निधि योजना-1952 (ईपीएफएस) को मासिक वेतन के 0.85 फीसदी से घटाकर 0.65 फीसदी कर दिया गया है। कर्मचारियों के जमा लिंक्ड इंश्योरेंस (ईडीएएलआई) पर लगने वाले प्रशासनिक शुल्क 0.01 फीसदी को खत्म कर दिया गया है।

कंटेनरों की इलेक्ट्रॉनिक सीलिंग के कार्यान्वयन, बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे में सुधार और डिजिटल हस्ताक्षरों के साथ सहायक दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करने की अनुमति देने सहित विभिन्न पहलुओं के ज़रिये निर्यात और आयात के लिए लगने वाले समय और लागत को कम किया गया है। जोखिम-आधारित निरीक्षणों के लिए आयात-निर्यात के लिए 5 फीसदी सामान का भौतिक निरीक्षण किया जाता है। एडवांस बिल ऑफ एंट्री अपनायी है, जो जहाज़ के आने से पहले आयातकों को सीमा शुल्क निकासी की प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति प्रदान करती है। सिंगल विंडो इंटरफेस फॉर ट्रेड (स्विफ्ट) के तहत एक ऑनलाइन आवेदन प्रणाली ई-संचित शुरू की गयी है, जिसमें व्यापारियों को डिजिटल हस्ताक्षर के साथ इलेक्ट्रॉनिक रूप से सहायक दस्तावेज़ पेश करने की अनुमति है।

राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड की शुरुआत हुई है, जो स्थानीय अदालतों में मामले के मानदंडों की रिपोर्ट आसान बनाती है। व्यावसायिक न्यायालय अधिनियम-2015 में संशोधन करके ज़िला स्तर पर वाणिज्यिक न्यायालयों की स्थापना के लिए वाणिज्यिक न्यायालयों के आर्थिक अधिकार क्षेत्र को एक करोड़ से घटाकर मात्र तीन लाख रुपये कर दिया गया है। इनसॉल्वेंसी सम्बन्धी समस्याओं के निपटारे के लिए इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड को अपनाया गया है, जिसमें कॉरपोरेट देनदारों के लिए एक पुनर्गठन प्रक्रिया की व्यवस्था होगी। इनसॉल्वेंसी कार्यवाही के दौरान देनदारों के व्यवसाय को जारी रखने की सुविधा भी दी गयी है। पुनर्गठन और दिवाला कार्यवाही के प्रभावी संचालन के लिए व्यावसायिक संस्थानों की स्थापना की गयी है। आईबीसी के तहत समयबद्ध प्रक्रिया का संकल्प है और दिवालियापन अंतिम उपाय है। इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 की धारा-42 में यह संशोधन किया गया है कि लेनदार को लेनदार ेद्वारा और किसी अन्य लेनदार द्वारा लाये गये देनदार के िखलाफ दावों को स्वीकार करने या खारिज करने के फैसले पर आपत्ति करने का अधिकार है।

पेशेवर कर लगाने वाले राज्य निम्नलिखित हैं-

आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, असम, गुजरात, केरल, मेघालय, त्रिपुरा, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मिजोरम, ओडिशा, पुड्डुचेरी, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, नागालैंड, सिक्किम, राजस्थान, तेलंगाना

पेशेवर कर न लगाने वाले राज्य

अरुणाचल प्रदेश, दिल्ली, गोवा, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, अंडमान और निकोबार, चंडीगढ़, दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली, लक्षद्वीप