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किसानों को खाद सब्सिडी का तडक़ा

डेढ़ महीने में छल पूर्वक दो बार बढ़ाये गये डीएपी के दाम
खेती दिन-दिन होती जा रही महँगी, खाद्यान्न ख़रीद बेहद सस्ती
डीएपी के दाम दोगुने, अब आधी सब्सिडी देगी केंद्र सरकार

हाल ही में 1200 रुपये महँगी हुई डीएपी खाद की 50 किलोग्राम की बोरी अब किसानों को 2400 रुपये की मिलेगी। लेकिन इस पर केंद्र सरकार 1200 रुपये की सब्सिडी देगी। यानी अब डीएपी की 50 किलोग्राम की बोरी किसानों को 1200 रुपये की ही मिलेगी। लेकिन इस सब्सिडी के चक्कर से किसानों का दिमाग़ चकराने लगा है। किसान भानू प्रताप कहते हैं कि अगर सरकार को ईमानदारी से डीएपी का भाव 1200 रुपये ही रखना है, तो सब्सिडी के चक्कर में किसानों को फँसाने की क्या ज़रूरत है? उन्हें पहले की तरह सीधे-सीधे 1200 की बोरी देनी चाहिए। सब्सिडी के चक्कर में कितने ही सीधे-सादे अनपढ़ किसान चक्कर खाते रह जाएँगे। कहीं ऐसा न हो कि गैस सिलेंडर की तरह डाई महँगी करने के बाद सरकार यह सब्सिडी किसानों को देना बन्द कर दे। सम्भवत: भानू प्रताप की शंका कुछ हद तक सही है; लेकिन उनकी जानकारी ठीक नहीं है।

दरअसल किसानों को सही जानकारी न होने और सरकारी कामकाज की जानकारी न होने के चलते वे ऐसा बोल रहे हैं। सही मायने में सब्सिडी किसानों से ली नहीं जाएगी, बल्कि सरकार सीधे इफको को इसे देगी और किसानों को सब्सिडी काटकर ही डीएपी के दाम देने होंगे। लेकिन यह सम्भव है कि आने वाले समय में सरकार धीरे-धीरे सब्सिडी कम कर दे और इसी वसूली किसानों से की जाए। इसी तरह प्राइवेट पशु चिकित्सक और कृषि मामलों के जानकार डॉक्टर रूम सिंह कहते हैं कि किसानों को दोगुनी आय का सपना दिखाकर लूटने का खेल सरकार जिस तरह कर रही है, वह ठीक नहीं है। देश का किसान जितनी मेहनत करता है, उस हिसाब से उसे कुछ नहीं मिलता। एक किसान से तो मज़दूर की आनुपातिक (एवरेज) आय ज़्यादा होती है। इसी तरह होता रहा, तो किसान खेती करना छोड़ देगा और अपनी ज़मीनें बेचकर कोई और धन्धा करने लगेगा और इसका ख़ामियाज़ा पूरे देश को किसी दिन भुगतना पड़ेगा।

बता दें कि इफको ने 20 अप्रैल से 12 मई तक दो बार डीएपी के दाम बढ़ाकर 1200 रुपये से 1900 रुपये किये थे। बाद में देश के प्रधानमंत्री ने इस पर 140 फ़ीसदी सब्सिडी देने की बात कही, मगर बोरी का भाव 2400 तय हुआ माना गया है। यह पहले तय सब्सिडी के मुक़ाबले 140 फ़ीसदी हुई है।

कम जानकारी और अविश्वास
इधर किसान डीएपी के अप्रैल से दो बार बढ़े दामों को लेकर परेशान हैं। उन्हें डीएपी के बढ़े दाम और मिलने वाली सब्सिडी की सही जानकारी भी नहीं है और सरकार पर विश्वास भी नहीं हो रहा है कि वह उन्हें सब्सिडी देगी भी या नहीं। इसलिए समझ नहीं आ रहा है कि वे जाल में फँस रहे हैं या उन्हें राहत मिल रही है। एक किसान राजपाल मौर्य कहते हैं कि सरकार ने हम किसानों को सब्सिडी के झाँसे में ऐसे डाला है कि हम सरकार के क़दम को अच्छा तो मान लें, मगर डर रहे हैं कि यह भी कृषि क़ानूनों की तरह धोखा न हो। जबकि कुछ किसान कृषि क़ानूनों के चलते अभी भी सरकार पर भरोसा ही नहीं कर पा रहे हैं और इसे चालाकी भरा क़दम बता रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार किसानों को मूर्ख बना रही है। जब डीएपी की बोरी की क़ीमत पहले ही 1200 थी, तो अब उसे 2400 का करके फिर उसमें 1200 करके कौन-सा अहसान कर दिया? यह तो सरकार की चालाकी है। जालिम नगला के किसान हरि का कहना है कि सरकार ने किसानों को परेशान करने की ठान ली है। वह किसानों से ही वोट लेकर जीतती है और किसानों को ही बली का बकरा बनाती है।

सब्सिडी की बात दिये जाने की बात सुनकर हरि कहते हैं कि अरे, सब बाबू मिलकर बाँटबखरा करेंगे किसान के पैसे का। किसान जब सब्सिडी माँगेगा, तो उससे रिश्वत माँगी जाएगी। भला किसान का कोई काम बिना रिश्वत के होता है कभी। किसानों की आय दोगुनी करने के प्रधानमंत्री के बात पर हरि कहते हैं कि यह तो दिन में सपने देखने जैसा है। हरि कहते हैं कि सरकार कोरोना के बहाने लोगों को मरने पर मजबूर कर रही है।

कुछ को बीमारी में इलाज न देकर मारा जा रहा है, तो कुछ को महँगाई बढ़ाकर मारने की सरकार ने मानो ठान ली है। अगर ऐसा नहीं होता, तो इस महामारी में डाई की बोरी इतनी महँगी क्यों करती सरकार। यह सब्सिडी-फब्सिडी तो किसानों का विरोध रोकने के लिए है, कुछ दिन बाद में किसानों को बढ़े हुए भाव में ही खाद दी जाएगी। पहले उसने डीजल के दाम बढ़ाये और अब खाद के। बीज और कीड़ों की दवाइयाँ तो पहले से ही आसमान पर हैं।

परेशान हो रहे किसान
बता दें कि अप्रैल में डीएपी के दाम 1200 रुपये प्रति बोरी से बढक़र सीधे 1900 रुपये करने का इफको कम्पनी ने ऐलान किया था। लेकिन जब इस बात को लेकर हंगामा हुआ, तो इफको ने कहा कि वह पुराना स्टाक पुराने दाम पर
ही बेचेगी।
इतना ही नहीं इफको ने डाई के दाम 700 रुपये बढ़ाने की जगह 500 रुपये बढ़ाने की बात कही। लेकिन अब इफको अपनी बात से पलट गयी है और उसने 1200 रुपये के 50 किलोग्राम के बोरे को सीधे 1900 रुपये में बेचने का फ़ैसला ही मानो कर लिया। फिर इसमें केंद्र की सरकार ने दख़ल दी और 1900 रुपये पर 700 की सब्सिडी की जगह 2400 दाम करके 1200 रुपये सब्सिडी देने की बात कही। इधर कई किसानों की शिकायत है कि उनको डीएपी नहीं मिल रही है।
खाद गोदाम वाले पहले कह रहे थे कि समितियों और गोदामों पर नये दाम वाली डीएपी पहुँच चुकी है। लेकिन अब चुप्पी साधे बैठे हैं। इससे किसानों को पुराने दाम वाली डीएपी भी कोई पुराने दाम पर देना नहीं चाह रहा है और नयी डीएपी ख़रीदने की किसानों की हिम्मत नहीं पड़ रही। लेकिन अब सरकार की सब्सिडी देने की बात सुनकर उनका डर धीरे-धीरे ख़त्म हो रहा है।

लॉकडाउन में उथल-पुथल
अब तो मामला शान्त हो गया है, मगर जब डीएपी के दाम बढऩे की ख़बरें किसानों ने सुनीं, तो वे परेशान हो उठे थे और इस ज़रूरी खाद के इंतज़ाम में इधर-उधर दौडऩे लगे थे। कई किसान डाई महँगी होने की अफ़वाह में डाई ख़रीदने के लिए जुगाड़ करने लगे और महँगे दाम में उसे ख़रीदकर जमा कर बैठे।
कुछ दिन पहले तक डीएपी पाने के लिए किसानों का हाल यह था कि वे लॉकडाउन होते हुए भी डीएपी के जुगाड़ में इधर-उधर दौड़ रहे थे। किसान राकेश कुमार ने बताया कि उन्हें जैसे ही पता चला कि डाई की बोरी के भाव 700 रुपये ज़्यादा हो गये हैं, वे तीन दिन तक डाई की बोरी ख़रीदने के लिए सहकारी और प्राइवेट गोदामों पर दौड़ते रहे और जैसे ही मौक़ा मिला 1900 के नये दाम की बोरी ख़रीदने से बचने के चक्कर में 1700 रुपये के हिसाब से पाँच बोरी ख़रीद लाये। मगर अब पछता रहे हैं। कुछ किसानों ने बताया कि डीएपी तो भाव बढऩे की ख़बर आते ही हवा हो गयी। उसका फ़ायदा उठाते हुए कुछ प्राइवेट व्यापारी और सहकारी खाद विक्रेता किसानों को स्टॉक की कमी और भाव ग़लत बताकर महँगी डीएपी पहले ही बेच चुके हैं।


धान की फ़सल में बढ़ेगी डीएपी की खपत

डीएपी फ़सलों को ताक़त देने वाली एक उत्तम खाद मानी जाती है। इसका पूरा नाम डाई अमोनियम फास्फोरस है, जिसे डाई भी कहा जाता है। धान की फ़सल में किसान डाई का बहुत अधिक इस्तेमाल करते हैं। क्योंकि इससे धान की फ़सल मज़बूत, पानी में खड़ी रह सकने वाली और हरी-भरी होती है। लगता है इसीलिए ऐसे समय में इफको ने डीएपी के भाव बढ़ाये, जब किसानों को इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत पड़ती है।
अगर देखा जाए, तो डीएपी का भाव धान के प्रति कुंतल भाव से तीन गुना महँगा पड़ता है। अगर सब्सिडी हटाकर देखें, तो एक कुंतल डीएपी का भाव 2400 रुपये और बिना सब्सिडी के 4800 रुपये पड़ेगा। वहीं धान की सामान्य प्रजाति का भाव 800 से 1000 रुपये प्रति कुंतल और बासमती 1200 से 1800 रुपये प्रति कुंतल तक बिकती है। इस हिसाब से धान में किसान की प्रति कुंतल की लागत क़रीब 600 से 900 रुपये बैठती है। अगर सिंचाई इंजन से ज़्यादा करनी पड़े तो लागत 1000-1200 रुपये प्रति बीघा तक पहुँच जाती है। अगर कोई आपदा, अति वृष्टि या अल्प वृष्टि न हो अथवा हवा तेज़ न चले, तो धान की पैदावार 3 से 5 कुंतल प्रति बीघा होती है। ऐसे में किसान का भाग्य ठीक रहा तो उसे 50 या 100 रुपये प्रति कुंतल से लेकर 500-700 रुपये प्रति कुंतल तक ही हो पाती है। इस मुनाफ़े में किसान की कड़ी मेहनत अगर घटा दी जाए, तो घाटा ही होगा।
सरकार का बहाना
हैरत की बात यह है कि डीएपी के भाव में कम्पनियों को बढ़त की छूट देकर केंद्र की सरकार ने किसानों को सब्सिडी देकर कहा है कि इससे उसको सब्सिडी के मद में 14,775 करोड़ रुपये अतिरिक्त ख़र्च करने होंगे।
सरकार ने डीएपी की बढ़ती क़ीमतों को लेकर यह भी कहा है कि फास्फेट एवं पोटाश उर्वरकों के कच्चे माल की बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय भाव के चलते डीएपी के भाव बढ़े हैं और बढ़ते भाव के प्रभावों को कम करने के लिए उसने सब्सिडी देने का विचार किया है। इस क़दम के पीछे उसका उद्देश्य देश के किसानों को रियायती दरों पर उर्वरक की उपलब्धता सुनिश्चित कराना है।
उर्वरक मंत्रालय ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के संकट के समय में सरकार किसानों के हितों की रक्षा के लिए सभी ज़रूरी क़दम उठा रही है। बता दें डीएपी की 1200 रुपये में मिलने वाली 50 किलोग्राम की बोरी अब 1900 रुपये की नहीं, बल्कि 2400 की हो गयी है।

इसी तरह एनपीके (12.32.16) और एनपीके (10.26.26) की बोरियाँ, जो क़रीब 1075 रुपये के आसपास थीं, अब क्रमश: 1800 रुपये और 1775 रुपये की बिकेंगी। यूरिया के विपरीत फास्फेट एवं पोटाश उर्वरकों उत्पादों के भाव विनयिमित हैं। विनिर्माता इनके भाव तय करते हैं और सरकार प्रति वर्ष उन्हें निर्धारित सब्सिडी देती है। मंत्रालय ने कहा कि सरकार सस्ते भाव पर फास्फेट एवं पोटाश (पी एंड के) उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।
सवाल यह है कि जब इफको कम्पनी प्रति बोरी के भाव 700 बढ़ाना चाहती है, तो सरकार उसे 2400 रुपये बोरी करके ज़्यादा सब्सिडी क्यों दे रही है? वही सीधे 700 रुपये सब्सिडी क्यों नहीं देती, इससे सरकारी ख़जाने की बचत भी होगी और कम्पनी को उसका उतना ही लाभ मिलेगा, जितना वह कमाना चाहती है।
अगर पहले से ही सरकार इफको को 500 रुपये सब्सिडी दे रही है, तो इसमें 200 रुपये और बढ़ाती, इससे डीएपी का भाव 1900 रुपये होता। आँकड़े देखें तो केंद्र सरकार रासायनिक खादों पर हर साल क़रीब 80,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी देती है। अब ख़रीफ़ सीजन से इसका भार क़रीब 94,775 करोड़ रुपये हो जाएगा।
छत्तीसगढ़ सरकार से सीख ले केंद्र
रूम सिंह कहते हैं कि फास्फेट और पोटाश वाली खादों के भाव मन मर्ज़ी से बढ़ाने वाली कम्पनियों पर सरकार को रोक लगानी चाहिए और सब्सिडी किसानों को सीधे अलग से देनी चाहिए। इस मामले में हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने कुछ अलग हटकर किसानों के हित में काम किये हैं। जैसे छत्तीसगढ़ की सरकार ने आने वाले ख़रीफ़ के मौसम यानी इसी साल से धान की जगह पर ख़रीफ़ की दूसरी फ़सलों की खेती करने पर किसानों को 10,000 रुपये प्रति एकड़ की सब्सिडी देने का निर्णय लिया है। छत्तीसगढ़ की सरकार की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, ख़रीफ़ सीजन 2021-22 से राजीव गाँधी किसान न्याय योजना के दायरे का विस्तार करते हुए राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया है कि अब धान पर 9000 रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि दी जाएगी, जो पहले 10,000 रुपये प्रति एकड़ थी। लेकिन दूसरी ख़रीफ़ की फ़सलों पर इसे 10,000 रुपये किया जाएगा।
इससे धान उत्पादक किसान भले ही प्रभावित होंगे, मगर राज्य में मुख्यमंत्री पौधारोपण प्रोत्साहन योजना को बल मिलेगा। क्योंकि इस योजना के तहत धान के बदले पौधारोपण करने वाले किसानों को पूरे तीन साल तक 10,000 रुपये प्रति एकड़ का भुगतान सरकार करेगी।
इफको में भ्रष्टाचार
इफको में इन दिनों भ्रष्टाचार की एक परत सीबीआई की जाँच और कार्रवाई में उठी है। इस मामले में सीबीआई ने इफको के प्रबन्ध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी यूएस अवस्थी, इंडियन पोटाश लिमिटेड के पूर्व एमडी परविंदर सिंह गहलोत और इनके पुत्रों समेत अन्य के $िखलाफ़ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया है। इन लोगों के $िखलाफ़ उर्वरक आयात और सब्सिडी का दावा करने में गड़बड़ी का आरोप है। बताया जा रहा है कि यह मामला वित्तीय वर्ष 2012-13 का है।
सीबीआई ने यह इन लोगों पर यह कार्रवाई एफआईआर दर्ज करने के बाद दिल्ली, मुंबई और गुरुग्राम समेत देश भर में अवस्थी और गहलोत से जुड़े 12 परिसरों पर छापे मारकर की। बता दें कि यूएस अवस्थी 1993 से ही इफको के एमडी और सीईओ के पद पर हैं।
इफको पर महँगे भाव पर उर्वरकों का आयात कर सरकार से अधिक सब्सिडी का दावा करने और आपूर्तिकर्ताओं से फ़र्ज़ी लेन-देन के ज़रिये कमीशन लेने का आरोप है। सीबीआई के अनुसार आरोपियों ने अधिक सब्सिडी का दावा कर सरकार को धोखा देने के लिए इफको की दुबई स्थित सब्सिडी किसान इंटरनेशनल ट्रेडिंग एफजेडई और अन्य बिचौलियों के ज़रिये ज़्यादा क़ीमत पर उर्वरकों और कच्चे माल का
आयात किया।


सीबीआई ने इस मामले में यूएस अवस्थी के पुत्रों अमोल और अनुपम के $िखलाफ़ भी मामला दर्ज किया है। अमोल कैटालिस्ट बिजनेस एसोसिएट और अनुपम कैटालिस्ट बिजनेस साल्यूशन का प्रमोटर है। इसके अलावा गहलौत के पुत्र विवेक, दुबई स्थित ज्योति ग्रुप ऑफ कम्पनी और रेयर अर्थ ग्रुप के पंकज जैन, उसके भाई और ज्योति ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के प्रेसिडेंट संजय जैन, ज्योति ग्रुप के अन्य अधिकारियों के $िखलाफ़ भी मामला दर्ज किया है।
सवाल यह है कि अब जब सरकार ख़ुद ही इफको को अधिक सब्सिडी देने के लिए तैयार है, तो फिर भ्रष्टाचार नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी है? दूसरा सवाल यह है कि सरकार जब जानती है कि इफको में अधिक सब्सिडी का दावा पहले भी किया जा चुका है, तो उसे इस कम्पनी को अधिक सब्सिडी क्यों देनी चाहिए? कहीं इसमें भी तो मोटी कमीशन का खेल नहीं हो रहा है, जिससे देश का सीधा-सादा किसान अनभिज्ञ है।

गुड़गांव के मेदांता में रामरहीम की देखभाल करेगी हनीप्रीत

 

दुष्कर्म और हत्या के मामलों में हरियाणा की जेल में सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम से मिलने हनीप्रीत गुड़गांव के मेदांता अस्पताल पहुंची। उसने अगले एक हफ्ते के लिए बतौर अटेंडेंट कार्ड बनवा लिया है। इसकी जानकारी हनीप्रीत ने खुद दी है। हनीप्रीत को बाबा की मुंहबोली बहन कहा जाता है। वह उसी की फिल्म में हीरोइन भी बन चुकी है। हनीप्रीत को लेकर कई तरह की चर्चाए हो चुकी हैं।

चर्चित निजी अस्पताल में अब हनीप्रीत रोजाना रामरहीम से मिलने उसके कमरे में जा सकती है। हालांकि, अस्पताल प्रशासन इसकी पुष्टि नहीं कर रहा है और न ही रामरहीम की ओर से जानकारी दी गई है। बता दें कि तबीयत बिगड़ने के बाद मुजरिम को रविवार को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। जांच में कोरोना संक्रमित मिलने के बाद उसे भर्ती कर लिया यगा है। अस्पताल की ओर से बताया गया कि गुरमीत रामरहीम को के पैंक्रियाज में भी शिकायत है।

महीने भर में चौथी बार जेल से बाहर आया
हरियाणा की सुनारियां जेल में सजा काट रहा गुरमीत रामरहीम पिछले एक महीने से भी कम समय में चौथी बार जेल से बाहर आया है। इसमें से एक बार वह मां से मिलने पैरोल पर बाहर आया था। वीरवार को पेट में दर्द की शिकायत के बाद उसे पीजीआई ले जाया गया था। पिछले 26 दिन में तीन बार अस्पताल ले जाना पड़ा। 17 मई को इमरजेंसी पैरोल पर मां से मिलाने के लिए गुरुग्राम ले जाया गया था। उस समय पैरोल 48 घंटे की मिली थी, लेकिन सुरक्षा कारणों से पुलिस उसे शाम ढलने से पहले वापस लेकर आ गई थी। साध्वी दुष्कर्म मामले में गुरमीत 20 साल की सजा काट रहा है।

  दिल्ली के बाजारों में लौटी रौनक

राजधानी दिल्ली में आज से बाजारों के खुलने से दिल्ली वालों और बाजार वालों के चेहरे खिल गये है। लगभग डेढ़ महीने के बाद बाजारों के खुलने से व्यापारियों और लोगों ने बताया कि कोरोना के कहर के कारण व्यापारिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप्प हो गयी थी। लोगों के बीच मायूसी थी कि कोरोना का कहर कब तक रहेगा। लेकिन कोरोना की रफ्तार कम होने से दिल्ली सरकार द्वारा लाँकडाउन को अनलाँकडाउन किया गया है।बाजारों में दुकानदारों ने खुशी के साथ अपनी दुकानें खोली और कोरोना से बचाव के सारे साधन अपनाये दुकानों में सेनेटाइजर ऱख कर मास्क लगाकर आने-जाने वाले ग्राहकों का स्वागत किया।

सरोजनी गगर मार्केट के अध्यक्ष अशोक रंधावा का कहना है कि कोरोना की रफ्तार कम होने से बाजारों के खुलने से व्यापारियों ने राहत की सांस ली है। उन्होंने कहा कि अब उम्मीद करते है कि कोरोना का कहर अब दोबारा ना आये। सदर बाजार के अध्यक्ष राकेश यादव का कहना है कि कोरोना ने व्यापार को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया है। कनाँट पैलेस के व्यापारी संतोष और पवन अरोड़ा का कहना है कि वे व्यापारियों और ग्राहकों से अपील करते है। कि बिना मास्क लगाये ना तो दुकानों में बैठेगें और ना ही ग्राहकों को सामान बेचेंगे। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करेंगे ताकि कोरोना दोबारा से हमला ना कर सकें।

क्योंकि कोरोना से बहुत कुछ तबाह कर दिया है। करोलबाग बाजार में सामान खरीदने आये दीपक परमार ने बताया कि कोरोना के साथ ब्लैक फंगस के कहर से लोगों का जीवन तहस-नहस हो गया है। ऐसे में बाजार तो अब सरकार ने खोल दिये है। दुकानदारों , ग्राहकों को भी सावधानी बरतनें की जरूरत है। जिससे कोरोना फिर से हावी ना हो सकें।

 

पीएम ने कहा, 21 जून से 18 साल से ऊपर वालों को भी मुफ्त टीका, मुफ्त अन्न योजना दीवाली तक

देश में अब 18 वर्ष से ऊपर के नागरिकों को भी 21 जून से मुफ्त में वैक्सीन लगेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन में इसकी घोषणा की। केंद्र मुफ्त टीके का खर्चा उठाएगा और टीकाकरण का पूरा जिम्मा अब केंद्र ही संभालेगा। कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित अन्य राजनीतिक दल पहले से यह वैक्सीन मुफ्त में देने की मांग कर रहे थे। हालांकि, जो लोग निजी अस्पतालों में वैक्सीन लगवाना चाहेंगे उन्हें केंद्र के निर्धारित नियमों और मूल्य के तहत ही यह वैक्सीन अस्पतालों को लगवानी होगी।
मोदी ने यह भी ऐलान किया कि पिछले साल लॉक डाउन के समय मुफ्त राशन की जो योजना शुरू की थी उसे (प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना) को दीवाली तक बढ़ा दिया है। इसे पहले मई-जून तक के लिए घोषित किया गया था।
पीएम ने बताया कि देश में 23 करोड़ से ज्यादा कोरोना टीके लग चुके हैं।
देश में कोरोना संकट की बात करें तो अब मामले धीरे-धीरे कम हो रहे हैं।  ज्यादातर राज्यों में कोरोना का पीक आकर जा चुका है, ऐसा लगता है।
पीएम ने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर से पहले फ्रंटलाइन वर्कर्स, डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ को टीका नहीं लगा होता तो क्या होता। टीका लगा होने की वजह से वे निश्चिंत होकर काम कर पाए।
मोदी ने कहा – ‘पिछले एक साल में भारत ने दो मेड एन इंडिया वैक्सीन लॉन्च की। अब 23 करोड़ से ज्यादा कोरोना टीके लगाए जा चुके हैं। अभी और कोरोना टीके भी आएंगे। नेजल स्प्रे वैक्सीन पर काम चल रहा है। इसमें सफलता मिलती है तो टीकाकरण में और तेजी आएगी। बच्चों के लिए दो कोरोना टीकों पर काम चल रहा है।’
उन्होंने कहा कि पिछले काफी समय से देश लगातार जो प्रयास और परिश्रम कर रहा है, उससे आने वाले दिनों में वैक्सीन की सप्लाई और भी ज्यादा बढ़ने वाली है। आज देश में 7 कंपनियाँ, विभिन्न प्रकार की वैक्सीन्स का प्रॉडक्शन कर रही हैं।  तीन और वैक्सीन्स का ट्रायल भी एडवांस स्टेज में चल रहा है।
मोदी ने कहा कि आज पूरे विश्व में वैक्सीन के लिए जो मांग है, उसकी तुलना में उत्पादन करने वाले देश और वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां बहुत कम हैं।  कल्पना करिए कि अभी हमारे पास भारत में बनी वैक्सीन नहीं होती तो आज भारत जैसे विशाल देश में क्या होता? आप पिछले 50-60 साल का इतिहास देखेंगे तो पता चलेगा कि भारत को विदेशों से वैक्सीन प्राप्त करने में दशकों लग जाते थे।
पीएम ने कहा – ‘अभी हमारे पास भारत मे बनी वैक्सीन नहीं होती तो भारत जैसे विशाल देश में क्या होता ? सेकेंड वेव के दौरान अप्रैल और मई के महीने में भारत में मेडिकल ऑक्सीजन की डिमांड अकल्पनीय रूप से बढ़ गई थी।  भारत के इतिहास में कभी भी इतनी मात्रा में मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत महसूस नहीं की गई। इस जरूरत को पूरा करने के लिए युद्धस्तर पर काम किया गया। सरकार के सभी तंत्र लगे. मोदी बोले कि सरकार ने मिशन मोड पर काम किया।’

पीएम नरेंद्र मोदी शाम 5 बजे देश को करेंगे संबोधित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शाम 5 बजे देश को संबोधित करेंगे। पीएमओ के आधिकारिक ट्वीटर हैंडल पर कुछ देर पहले ही यह जानकारी दी गयी है।
संभावना है कि प्रधानमंत्री कोविड-19 के घटते मामलों और राज्यों के इस विषय में काम पर बात कर सकते हैं।
कई राज्य टीकाकरण अभियान पूरी तरह अपने हाथ में लेने की केंद्र सरकार से मांग कर रहे हैं और हो सकता है पीएम मोदी इस विषय पर कुछ कहें। यहाँ यह बताना भी ज़रूरी है कि इस बार केंद्र सरकार ने अपनी तरफ से लॉक डाउन की घोषणाओं से बचने की कोशिश की और राज्यों से कहा कि वे अपनी जरूरतों के हिसाब से इस मसले को देखें। पिछले साल केंद्र के बिना योजना के लॉक डाउन घोषित करने से देश भर में करोड़ों लोगों को बड़े पैमाने पर दिक्कत झेलनी पड़ी थी और लोग बेरोजगार हो गए थे।
इस बार कोविड की दूसरी लहार तो जनता पर बहुत भारी पड़ी और केंद्र सरकार एक तरह से पंगु होकर रह गयी। बड़े पैमाने पर लोगों को आक्सीजन की कमी के कारण अपनी जान से  हाथ धोना पड़ा। देश में ऐसी हालत पहली  बार देखी गयी जिससे मोदी सरकार को सात साल में पहली बार गंभीर आलोचना सहनी पड़ी।

पाकिस्तान ट्रेन हादसे में 30 की मौत; 50 घायल, राहत कार्य जारी  

पड़ौसी देश पाकिस्‍तान के सिंध प्रांत में सोमवार एक बड़े ट्रेन हादसे में कम से कम 30 लोगों की मौत हो गयी जबकि 50 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। हादसा तब हुआ जब दो ट्रेन आमने-सामने आपस में भिड़ गईं और पलट गईं। बड़े पैमाने पर राहत का काम शुरू किया गया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हादसा सिंध प्रांत के घोटकी जिले में धार्की के पास हुआ जब दो यात्री रेलगाड़ियां आमने-सामने टकरा गईं। हादसे में अब तक 30 यात्रियों की जान जाने की सूचना है जबकि 50 से ज्यादा लोग घायल हैं जिनमें से कुछ की हालत गंभीर बताई गयी है। मरने वालों की संख्या ज्यादा हो सकती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक मिल्‍लत एक्‍सप्रेस की सर सैयद एक्‍सप्रेस ट्रेन के साथ सीधी भिड़ंत हो गयी जब एक ट्रेन पटरी दे उतर गयी। सैयद एक्‍सप्रेस लाहौर से कराची जा रही थी।
टक्‍कर के बाद मिल्‍लत एक्‍सप्रेस की बोगियां पटड़ी पर ही पलट गईं। हादसे के बाद घोटकी, ओबारो और मीरपुर के अस्‍पतालों में इमरजेंसी लगा दी गयी। घोटकी के डीसी के मुताबिक 30 लोगों की जान गयी और 50 के करीब घायल हुए हैं। बोगियां पलट जाने से दबे लोगों को निकालने में दिक्‍कत आ रही है।
हादसे में 13-14 बोगियां पलट गईं जिनमें से आठ लगभग नष्‍ट हो गई हैं। कई यात्री अभी बोगियों में फंसे हैं जिन्हें निकालने की पूरी कोशिश की जा रही है। बोगियों में फंसे लोगों को निकालने के लिए बड़ी मशीनों को घटनास्‍थल पर लाया गया है।

सियासी टूलकिट

किसान आन्दोलन में पहली बार सामने आने वाला टूलकिट मामला अब फिर से सिर उठाने लगा है। अब यह मामला दो सियासी पार्टियों के बीच में एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का बन गया है। तहलका संवाददाता ने इस बारे में जब सियासी लोगों से बात की, तो कुछ ने जवाब दिया कि कुछ तो गड़बड़ है, जो अपने सियासी शब्द बाणों से काम चलता न देख कांग्रेस और भाजपा को पुलिस में शिकायत तक करनी पड़ी। सियासी गलियारों में इन दिनों टूलकिट की चर्चा आम है।
कुछ लोगों का कहना है कि देश में अपनी गिरती शाख और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में हार के बाद भाजपा ने अपनी साख को बट्टा लगाने का आरोप कांग्रेस पर मढ़ा है। क्योंकि वह कोरोना-काल ध्वस्त होती स्वास्थ्य सेवाओं को ठीक करने और लगातार बड़े पैमाने पर हो रही मौतों का जवाब देने में नाकाम साबित हो रही है। ऐसे में अपनी कमी को छिपाने के लिए कांग्रेस पर टूलकिट के ज़रिये लोगों का ध्यान बाँटने का सियासी खेल भाजपा के द्वारा खेला जा रहा है।

कांग्रेस का कहना है कि देश में जन-मानस अस्त-व्यस्त है। महामारी से लोग बेमौत मर रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाएँ ध्वस्त पड़ी हैं। ऑक्सीजन के अभाव में लोगों की जानें चली गयीं। लेकिन इस तरफ़ केंद्र की मोदी सरकार का कोई ध्यान नहीं है, न ही चिन्ता है। अगर भाजपा को चिन्ता है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि की चिन्ता है। भारतीय युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव अमरीश रंजन पाण्डेय का कहना है कि कांग्रेस को बदनाम करने के चक्कर में भाजपा अपने ही जाल में फँस गयी है। उनका कहना कि भाजपा का चाल, चरित्र और चेहरा सब सामने आ गया है। देश में लोगों को कोरोना-काल में ज़िन्दगी बचाना मुश्किल हो रहा है। लेकिन भाजपा अपनी छवि बचाने के लिए लोगों को भ्रमित कर रही है, ताकि केंद्र सरकार की नाकामियों को छिपाया जा सके। लेकिन अब सब कुछ सामने आ गया है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने जिस चतुराई से टूलकिट के लिए कांग्रेस का नक़ली पत्र के ज़रिये कांग्रेस को बदनाम और घेरने की योजना बनायी थी, उसी जाल में संबित पात्रा ख़ुद फँस गये हैं। लेकिन कांग्रेस इस मामले में चुप बैठने वाली नहीं है, जब तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और प्रवक्ता को जेल नहीं भेज देती। क्योंकि इन दोनों नेताओं ने एक षड्यंत्र के तहत कांग्रेस का बदनाम करने का काम किया है। अमरीश रंजन पाण्डेय का कहना है कि भाजपा कितनी भी होशियारी कर ले, उसके कई सियासी दाँव उस पर ही उलटे पड़ जाते हैं, टूलकिट वाला दाँव भी उलटा पड़ गया। क्योंकि आज भाजपा अपने बचाव के लिए जिस तरह सियासी टूल का सहारा ले रही है वह अब लोगों की समझ में आने लगा है और अब यह सियासत यहीं तक रुकने वाली नहीं है, बल्कि देश के हर जिले-कस्बे में जाएगी।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला का कहना है कि कांग्रेस ने कथित टूलकिट मामले में भाजपा को एक फिर से कटघरे में खड़ा किया है। इस फ़र्ज़ी मामले में भाजपा के नेताओं को जेल जाना पड़ सकता है। रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि अगर पुलिस भाजपा नेताओं के दबाव में आकर काम करती है, तो कांग्रेस अब दूसरे राज्यों में कार्यकर्ताओं के ज़रिये टूलकिट मामले को लेकर एफआरआई दर्ज कराएगी, ताकि भाजपा को घेरा जा सके और भाजपा की नक़ली जालसाजी जनता के सामने लायी जा सके।

कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा का कहना है कि देश में क्या हो रहा है? महामारी से लोग मर रहे हैं। युवाओं की नौकरी जा रही है। पढ़े-लिखे युवाओं को नौकरी नहीं है। ग़रीबी बढ़ रही है। बेरोज़गारी किसी महामारी से कम नहीं है। उस पर भाजपा की मोदी सरकार को अपनी नाकामी को ढकने के सिवाय कुछ नहीं दिख रहा है। बस दिख रहा है, तो सिर्फ़ इतना ही कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ख़राब होती छवि को बचाया जाए। राजनीति के जानकार अनुज कहते हैं कि देश के प्रधानमंत्री की छवि इस बार जितनी ख़राब हुई है, क्या इससे पहले कभी इस तरह ख़राब हुई थी? ख़ुद अपनी छवि ख़राब करने में उन्होंने (नरेंद्र मोदी ने) ख़ुद कोई क़सर छोड़ी है?

इधर भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा का कहना है कि टूलकिट के ज़रिये सरकार की छवि को बदनाम करने के लिए कांग्रेस ने देश के साथ धोखा किया है। कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी की छवि धूमिल करने वाले लेखों को विदेशों में छपवा रहे हैं। यह भी कांग्रेस कह रही है कि कोरोना वायरस को इंडियन स्ट्रेन कहा जाए कि मोदी स्ट्रेन। ये सारी हरकतों से देश को काफ़ी नुक़सान हो रहा है। संबित पात्रा का कहना है कि कांग्रेस के नेता राजीव गौड़ा की रिसर्च टीम से जुड़ी सौम्या वर्मा इस टूलकिट की सूत्रधार हैं। जो टूलकिट के माध्यम से कांग्रेस नेता केंद्र सरकार के विरोध में माहौल बनाने में लगे हैं, उन्होंने दावा भी किया है कि इस मामले में उनके पास पुख़्ता सुबूत भी हैं। सौम्या वर्मा कांग्रेस नेता राजीव गौड़ा के साथ राहुल गाँधी, सोनिया गाँधी की तस्वीर भी है। संबित पात्रा का आरोप यह है कि यह टूलकिट उन्हीं प्रबन्धकों की टीम है, जिन्होंने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर लोगों को गुमराह करने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि बिगाडऩे का काम किया है।

बताते चलें कि टूलकिट मामले में सियासी बवाल पर तमाम सवाल उठने के बाद सूचना एवं तकनीकी मंत्रालय ने भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा के टूलकिट वाले ट्वीट को मैन्युप्लेटेड मीडिया बताये जाने पर आपत्ति जतायी है। मंत्रालय का कहना है यह मामला जाँच एजेंसी के पास है। ऐसे में ट्विटर को किसी मामले में फ़ैसला देने का अधिकार नहीं है। वह तुरन्त इस टैग को हटाएँ। मंत्रालय ने कहा कि ट्विटर का यह क़दम न केवल उसकी विश्वनीयता घटाएगा, बल्कि उसकी इस मामले पर सवाल भी खड़ा करेगा कि वह सिर्फ़ और सिर्फ़ एक माध्यम है। मंत्रालय ने ट्विटर से कहा कि इस मामले में पहले से ही सम्बन्धित पक्षों की ओर से शिकायतें की गयी हैं, जिस पर क़ानूनी जाँच चल रही है। सरकार ने ट्विटर की इस कार्रवाई को सियासत का हिस्सा बताया है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि टूलकिट को लेकर सोशल मीडिया में जो हो-हल्ला हो रहा है, उससे किसी राजनीतिक दल को कोई लाभ होने वाला नहीं है। बस यह सारा का सारा प्रोपेगेंडा लोगों का ध्यान बाँटने का काम है। लेकिन सरकार को ख़ुद चाहिए कि वह इस मामले में उलझकर ख़ुद सकारात्मक काम करे, ताकि छवि बनाने और बिगाडऩे वाली राजनीति न हो। क्योंकि देश में कोरोना वायरस का कहर कुछ कम ज़रूर हुआ है, न कि कोरोना गया है। वैसे ही जबसे देश में ट्वीट और ट्विटर वाली राजनीति हावी हुई है, तबसे जनमानस की समस्या बढ़ी है।

क्योंकि राजनेता अब अपना बचाव ट्वीट और ट्वीटर के ज़रिये ही करते हैं, जिसका धरातल से कोई वास्ता नहीं है। भाजपा नेता का कहना है कि कांग्रेस के साथ अन्य भाजपा विरोधी राजनीति दलों ने जो इस मामले में पर्दे के पीछे जो राजनीति की है, उससे कांग्रेस को ज़रूर बल मिला है। लेकिन उससे कांग्रेस को कुछ हासिल होने वाला नहीं है। क्योंकि आज कांग्रेस अपनी जीत के लिए राजनीति नहीं कर रही है, बल्कि भाजपा को हराने के लिए राजनीति कर रही है। जैसा कि पश्चिम बंगाल में देखने को मिला है कि कांग्रेस ने अपनी हार पर मंथन तक नहीं किया, बल्कि भाजपा की हार पर जश्न मनाया।
वहीं कांग्रेस के युवा नेता अवनीश कुमार का कहना है कि पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में मिली हार के कारण अब आने वाले उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और पंजाब में होने वाले अगले साल के विधानसभा चुनाव में हार दिख रही है, जिससे भाजपा बौखला रही है। लेकिन कांग्रेस अब चुपचाप राजनीति करने वाली नहीं है, क्योंकि कांग्रेस ने टूलकिट के ज़रिये लोगों को गुमराह नहीं किया है। बल्कि फूड किट और मेडिकल किट के माध्यम से कोरोना-काल में लोगों की कही मायने में सेवा की है।

इस मामले सियासत के जानकारों का कहना है कि कई बार कई मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने और अपनी ज़िम्मेदारी से बचने के लिए ऐसी चालें चली जाती हैं, ताकि आरोप-प्रत्यारोप की सियासत में जनता उलझी रहे। मौज़ूदा दौर में महामारी, ग़रीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी, परेशानी और लॉकडाउन के डर से लोगों को जूझना पड़ रहा है, जो जीते जी मरने से कम नहीं है। क्योंकि देश में किसान आन्दोलन को भी दबाना है, तभी तो टूलकिट जैसे मामले आते हैं।

राम तेरी गंगा मैली हो गयी

उत्तर प्रदेश में अलग-अलग जगहों पर गंगा में बह रहीं लाशें, रेत मेंदफ़्नपड़े शव

आज जीवदायनी माँ गंगा के दामन मेंदफ़्नऔर तैरती सैंकड़ों लाशों की ख़ामोशी इन मरे हुए लोगों की असमय दर्दनाक मौत और अपनों मजबूरी वश द्वारा बिना संस्कारों के तिलांजलि देने की गवाही दे रही है। जैसे वे पूछना चाह रही हों कि क्या देश में चल रहा यह विध्वंसकारी कहर ही विकास है? आज उत्तर प्रदेश और बिहार के सभी गाँवों में 20 फ़ीसदी से अधिक घरों में कोरोना मरीज़ पडे हैं।

श्मशानों और क़ब्रिस्तानों में जगह नहीं है। बहुत-से सनातनी (हिन्दू) अपने मृतकों को या तो गंगा में फेंक रहे हैं या गंगा किनारे रेत में दबा रहे हैं। अलग-अलग रिपोट्र्स में आ रहे आँकड़ों को देखें, तो केवल उत्तर प्रदेश में अलग-अलग जगहों पर 2000 से अधिक शवों के गंगा में और गंगा किनारे मिलने की ख़बर है। सरकारें लगातार स्थिति कंट्रोल करने के दावे और मौतों की कमी के जादुई आँकड़े बताकर लोगों को भरमाने की राजनीति कर रही हैं। जबकि अधिकतर गाँवों में कोरोना संक्रमण की जाँच नहीं हो रही है और जहाँ हो रही है, वहाँ बहुत धीमी गति से। सरकार के हर प्रयास के बावजूद गाँवों में शहरों के मुक़ाबले कोरोना की जाँच और चिकित्सा के पुख़्ता इंतज़ाम नहीं हो पा रहें हैं। इसलिए ग्रामीण इलाक़ों में खाँसी, बुख़ार और दूसरी बीमारियों से हो रही मौतों का कोई आँकड़ा भी उपलब्ध नहीं है। मेरे विचार से प्रदेश सरकार को तत्काल प्रदेश के सरकारी और $गैर-सरकारी दोनों प्रकार के अस्पतालों में कोरोना का इलाज मुफ़्त करना चाहिए। आज प्रदेश सरकार को आवश्यकता है कि वह तमाम सरकारी और निजी स्कूलों को अस्थायी अस्पतालों में तब्दील करके मेडिकल स्टाफ, डॉक्टर और नर्सेज को सरकार अपनी तरफ़ से नियुक्ति दे; भले ही ये नियुक्तियाँ अस्थायी हों। ज़ाहिर है कि स्कूलों और कॉलेजों में अलग-अलग क्लासरूम होने व वेंटिलेशन की बेहतर व्यवस्था होने से वहाँ बेहतर इलाज की व्यवस्था हो पाएगी और ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा का इंफ्रास्ट्रक्चर तुरन्त तैयार हो जाएगा।

उत्तर प्रदेश की जनसंख्या क़रीब 23 करोड़ से अधिक है। प्रदेश में सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, कोरोना संक्रमण दर क़रीब छ: फ़ीसदी है। यानी दो करोड़ से भी कम लोग कोरोना संक्रमित हैं। कोरोना संक्रमण से मृत्यदर क़रीब 1.5 फीसदी के आसपास बतायी जा रही है। यानी 25 मई तक क़रीब ढाई लाख लोगों की कोरोना संक्रमण से मौत हो गयी। उत्तर प्रदेश के इस हाल से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि बाक़ी राज्यों में क्या हाल होगा? हालाँकि कुछ सूत्र दावा कर रहे हैं कि सरकार जो आँकड़े उपलब्ध करवा रही है, उससे क़रीब चार-पाँच गुना अधिक मौतें हुई हैं। प्रदेश सरकार के आँकड़ों में जहाँ मई तक 20,000 से भी कम लोगों की कोरोना से मौत बतायी गयी है, वहीं बिहार में सिर्फ़4,000 से कम मौतों का आँकड़ा दिया है। जबकि वास्तव में श्मशानों और क़ब्रिस्तानों में लाशेंफूँकने-दफ़नाने की जगह तक नहीं है। श्मशानों में अगर मिल भी गयी, तो दाह संस्कार के लिए लकडिय़ाँ तक नहीं हैं। शायद यही कारण है कि लोग पवित्र गंगा की शरण में पहुँच रहे हैं।

हाल यह है कि गंगा में बहती, किनारों पर रेत मेंदफ़्नकफन में लिपटी लाशों को कुत्ते और जंगली जानवर नोच रहे हैं। इससे ज़्यादा वीभत्स क्या हो सकता है? ज़ाहिर है कि ये शव उन शहरी या ग्रामीण इलाक़ों से ही नदी किनारे ऊपर-ऊपर दफनाये या पानी में बहाये गये होंगे, जो गंगा किनारे पड़ते हैं। हालाँकि शवों को इस तरह बहाने-दफ़नाने की घटनाएँ मीडिया में आने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इसका संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों सरकारों को नोटिस जारी किये। यह तो ठीक है, लेकिन शवों की गरिमा और मानव अधिकारों का जो मुद्दा उठाया, उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर बिहार के बक्सर में गंगा नदी में शवों के मिलने के मामले में पटना उच्च न्यायालय ने जवाब तलब किया है। न्यायालय ने मुख्य सचिव से पूछा कि 01 मार्च से अब तक कितनी लाशें गंगा में मिलीं? धार्मिक रीति-रिवाज़ के अनुसार कितने शवों का दाह संस्कार और कितने शवों को दफ़नाया गया?

गंगा में बहती इन लाशों से अब गंगा के जल में कोविड संक्रमण के फैलने का गम्भीर ख़तरा बढ़ गया है। वर्तमान में गंगा नदी में जलस्तर कम है। एक महीने बाद जून तक यह प्रवाह बढऩे के आसार होते हैं। ज़ाहिर है कि पहाड़ों पर जब बर्फ़पिघलेगी, तो गंगा का पानी भी बढ़ेगा। जुलाई-अगस्त में कई जगह बाढ़ भी आती है। ज़ाहिर है कि संक्रमित लाशें सड़ेंगी और उही पानी के सम्पर्क में लोग आएँगे। जीव-जन्तु इस पानी को भी पीते हैं। इससे भी कोरोना संक्रमण बढ़ सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो इस महामारी से पार पाना नामुमकिन हो जाएगा। इतना ही नहीं, सड़ती लाशें नये रोग भी पैदा करेंगी। सनातन धर्म के इन तीन आदि प्रतीकों, गंगा, काशी और महादेव का जो अनादर इस काल में हुआ है, वह बेहद दु:खद है। सरकार को चाहिए कि गंगा ही नहीं उन सभी नदियों के किनारे के शहरों के प्रशासन और पुलिस को सतर्क करना होगा कि वे गंगा में शवों के प्रवाह को रोकें। हालाँकि यह काम केवल प्रशासन और पुलिस के बलबूते सम्भव नहीं है। नदियों के किनारे बसे गाँवों और शहरों के नागरिकों को जागरूक होना पड़ेगा। क्योंकि नदी किनारे बसे इलाक़ों में यह महामारी और तेज़ी के साथ फैल सकती है। अगर नदी में तैर रहे शवों के मामले को गम्भीरता से नहीं लिया गया, तो समाज और प्रसाशन को एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। बहरहाल आज कोरोना के कहर में इस विक्षिप्त सकारात्मकता से अधिक और क्या हो सकता है? जीवदायनी माँ गंगा के दामन मेंदफ़्नऔर तैरती सैंकड़ों लाशों की चीख़ से अधिक सकारत्मक क्या हो सकता है? हिन्दुस्तान में हिन्दू राष्ट्र की कुंठा में श्मशानों में जलती हज़ारों चिताओं और क़ब्रितानों में इंसानियत का मर्सिया पढ़ती हुई कब्रों से अधिक सकारत्मक क्या होगा? इस महामारी के कहर के सामने एक-एक साँस के लिए तड़पते लोगों की मौत से अधिक सकारत्मक क्या होगा? इस संकट-काल के कहर में भी मुनाफ़े और दलाली के लिए लोकतान्त्रिक भारत की लाश बेचने से अधिक सकारत्मक क्या होगा? आज विकारग्रस्त जिस्मों के ज़रिये मनुष्यता का लहू पीने वालों की सोच के अट्टहास से सकारत्मक क्या हो सकता है? हरिद्वार में कुम्भ की बात हो या राज्यों के चुनावों में रैललियों की, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी; लेकिन किसी ने नहीं सुनी।

अब श्रद्धालु भी गंगा स्नान से परहेज़ कर रहे हैं और गंगा की सफ़ाई को लेकर सवाल उठा रहे हैं। गंगा के स्नान करने आये कुछ लोगों ने बताया कि लोग पुण्य के ख़याल से गंगा स्नान करने आते हैं। लेकिन जिस तरह से हाल के दिनों में कोरोना संक्रमित मुर्दों की लाशें गंगा में प्रवाहित कर दी गयीं और अधजले शवों को गंगा के किनारे छोड़ दिया गया, उससे गंगा की स्वच्छता और पवित्रता प्रभावित हुई है। ज़ाहिर है महामारी के डर से जब लोग अपनों को नहीं छू रहे, तो गंगा के दूषित हो रहे जल में कौन डुबकी लगाएगा? बताते हैं कि अफ्रीका में इबोला वायरस से मरने वालों के शवों को दफ़नाने की प्रक्रिया पर विदेशी समाचार चैनलों और समाचार पत्रों की रिपोर्टें प्रसारित हुई थीं। आज उसके मद्देनज़र जब सोचता हूँ कि अगर गंगा किनारेदफ़्नऔर उसके जल में बहती लाशों से संक्रमण को कई-कई गुणा बढ़ा, तो क्या होगा? इसे सोचकर ही मन काँप उठता है। क्योंकि यह दृश्य मन को कुंठित और व्यग्र करने वाला है। समाज में किसी जीवित ही नहीं, मरने वाले के अधिकारों व सम्मान का ख़याल रखना भी सरकारों का कर्तव्य है। लेकिन ऐसा लगता है कि हमारी सरकारें निष्ठुर और निर्लज्ज हो चुकी हैं। यूँ तो लाशें नहीं बोलतीं; लेकिन यहाँ तो माँ गंगा के दामन मेंदफ़्नऔर जल में बहती लाशों की चीख़ सुनायी दे रही है, जो बहुत ही डरावनी, वीभत्स और भयाक्रांत है।

(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं।)

राजस्थान में कोरोना संक्रमित होने लगे बच्चे, कई राज्य चौकन्ने

जिस तीसरी लहर की बात मेडिकल विशेषज्ञ और जानकार कर रहे थे, कहीं वह बच्चों के ज़रिये शुरू तो नहीं हो गयी?

कोरोना वायरस की दूसरी लहर का कहर जिस तरह जारी है, उससे हर कोई डरा हुआ है। लेकिन कोरोना महामारी की तीसरी लहर से अब लोग बहुत घबरा गये हैं। कोरोना की तीसरी लहर की आशंका से मेडिकल विशेषज्ञ और जानकार पहले ही आगाह कर चुके हैं। ज़्यादातर लोगों का कहना है कि तीसरी लहर अगस्त में आएगी और इस बार की महामारी की चपेट में बच्चे आएँगे। लेकिन क्या इस तीसरी लहर ने दस्तक दे दी है? क्योंकि राजस्थान में बच्चे इस कोरोना महामारी की चपेट में आने लगे हैं, वह भी बड़ी संख्या में।

हाल की रिपोर्टों की मानें, तो राजस्थान के दो ज़िलों दौसा और डूंगरपुर में बच्चे बहुत तेज़ी से कोरोना संक्रमित हुए, उसके बाद दूसरे शहरों में भी बच्चे संक्रमित होने लगे हैं। राजस्थान में 27 मई तक 18 साल से कम उम्र के 7,500 से ज़्यादा बच्चे के संक्रमित हो चुके थे। बच्चों में फैल रहे इस कोरोना को लेकर पूरे राजस्थान में दहशत का माहौल है।

राजस्थान के साथ-साथ गुजरात में भी इसे लेकर चर्चा गरम है और लोग अपने बच्चों को लेकर काफ़ी चिन्तित और परेशान दिख रहे हैं। बच्चों में कोरोना के संक्रमण से राजस्थान सरकार भी काफ़ी परेशान है और लोगों में हाहाकार मच गया है। दौसा में सिकराय उप खण्ड के एक गाँव में बच्चियों को कोरोना होने से यह बात सामने आ रही है कि इन बच्चियों के पिता कोविड पॉजिटिव थे, जिसके चलते उनका निधन भी हो गया था। इसी तरह दौसा में अन्य बच्चे भी संक्रमित मिल रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की मानें, तो 18 साल से कम उम्र के दौसा में 1 मई से 21 मई तक 341 बच्चे और डूंगरपुर में 12 मई से 22 मई तक 255 बच्चे संक्रमित हुए। डूंगरपुर के सीएमओ राजेश शर्मा ने 12 से 22 मई तक 250 से ज़्यादा बच्चे कोरोना संक्रमित होने की बात कही थी। उन्होंने यह भी कहा कि यह एक ऐसी महामारी है, जिसमें कुछ भी हो सकता है। इससे पहले डूंगरपुर के कलेक्टर सुरेश कुमार ओला ने कहा था कि ज़िले में बच्चों में कोरोना का संक्रमण बिल्कुल सामान्य है। उन्होंने यह भी कहा था कि जिन बच्चों के माँ-बाप कोरोना पॉजिटिव हुए थे, वे बच्चे संक्रमित हुए हैं और उनकी संख्या कम है। लेकिन बाद में कलेक्टर की बातों को सीएमओ ने ख़ारिज़ कर दिया और सच्चाई बतायी।

राजस्थान में बच्चों के संक्रमित होने कीख़बर के बाद पहले ही अलर्ट पर चल रहे महाराष्ट्र, दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में और भी सावधानी बरती जा रही है। वहीं केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश पर देश भर में बाल रोग चिकित्सकों को विशेष रूप से ट्रेनिंग करने की योजना तैयार की गयी है।

अगर दिल्ली की बात करें, तो कोरोना की तीसरी लहर से बच्चों को बचाने के लिए यहाँ की राज्य सरकार ने अलग टास्क फोर्स बनाने का फ़ैसला लिया है। माना जा रहा है कि अगर कोरोना की तीसरी लहर आयी, तो यहाँ 40,000 बेड और 10,000 आईसीयू बेड की आवश्यकता होगी। दिल्ली में संक्रमितों के इलाज में कोई कमी न आये, इसके लिए दिल्ली सरकार ने अस्पतालों में बच्चों के इलाज के लिए पहले से ही व्यवस्था शुरू कर दी है। इसके लिए अधिकारियों की एक अलग समिति अस्पतालों में दवाई, बेड और ऑक्सीजन की व्यवस्था पर नज़र रखेगी। इसके अलावा दिल्ली सरकार ने अधिक संख्या में ऑक्सीजन टैंकर और सिलिंडरख़रीदने का फ़ैसला किया है। वहीं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कोरोना महामारी की तीसरी लहर से छोटे बच्चों को बचाने के लिए राज्य की टास्क फोर्स के साथ बातचीत की, जिसमें तक़रीबन 6,000 बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर उनके साथ ऑनलाइन थे। उन्होंने कहा है कि तीसरी लहर में बच्चों पर होने वाले असर की सम्भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने बाल रोग विशेषज्ञों की टास्क फोर्स तैयार की है,

जिसके अध्यक्ष डॉ. सुहास प्रभु हैं और सदस्य डॉ. विजय येवले और डॉ. परमानंद आंदणकर हैं। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस मामले में सतर्कता बरतने की हिदायत देते हुए डॉक्टरों से कहा है कि हमें तीसरी लहर को लेकर पहले से तैयार रहने की ज़रूरत है। ज़रूरी है कि हम समय रहते प्रभावी क़दम उठाएँ। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने यह भी कहा कि समय रहते हमने लॉकडाउन लगाने के बारे विचार किया, जिसका राज्य के लोगों ने भी स्वागत किया। वहीं डॉक्टरों ने इस बुरे वक़्त में पूरी निष्ठा से काम करके लोगों की ज़िन्दगी बचाने की हर सम्भव कोशिश की है। उन्होंने जून में टीकाकरम की गति बढ़ाने की बात भी कही। बता दें कि महाराष्ट्र में 14 मई से 18 से 44 आयु वर्ग के लोगों के टीकाकरण का कार्यक्रम बन्द पड़ा है।
इधर उत्तर प्रदेश में भी तीसरी लहर से निपटने की तैयारी योगी सरकार युद्ध स्तर पर कर रही है। कहा जा रहा है कि प्रदेश सरकार ने कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए तैयारियों को अन्तिम रूप देना शुरू कर दिया है, जिसके तहत बच्चों के लिए अस्पताल मुहैया कराने और उनके माता-पिता के लिए स्पेशल टीकाकरण शिविर लगवाने का निर्णय सरकार द्वारा लिया गया है। इसके तहत प्रदेश में जगह-जगह शिविर लगाकर 12 साल से कम आयु के बच्चों के अभिभावकों का स्पेशल टीकाकरण किया जाएगा। इसके अलावा प्रदेश सरकार आयुष कवच से बच्चों को जोड़ेगी, जिसका नया फीचर तैयार किये जाने की बात हो रही है। इसके लिए राज्य सरकार हर ज़िले में बच्चों के लिए अलग से वार्ड बनवा रही है, जिसमें 20 से 25 बेड बच्चों के लिए होंगे। इसमें जापानी इंसेफलाइटिस से निपटने के लिए तैयार किये गये 38 अस्पतालों को भी शामिल किया जाएगा। इसके अलावा राज्य सरकार ने लखनऊ पीजीआई के डायरेक्टर की अध्यक्षता में विशेषज्ञ डॉक्टरों की समिति बनायी है। सभी शिशु और बाल रोग विशेषज्ञ को तकनीकि और कोरोना प्रोटोकॉल और उसके उपचार की बारीकियों को समझाने के लिए प्रशिक्षण जल्द शुरू होगा। इन प्रशिक्षित डॉक्टरों की पीडियाट्रिक आईसीयू संचालन में अहम भूमिका होगी।

बच्चों के लिए नेजल वैक्सीन
बुजुर्गों और युवाओं को बचाने के साथ-साथ अब देश की केंद्र और राज्य सरकारों के कन्धों पर बच्चों को बचाने की ज़िम्मेदारी भी पडऩे वाली है। क्योंकि देश में कोरोना वायरस जैसी भयंकर महामारी की तीसरी लहर शुरू हो रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना महामारी की यह लहर सबसे ज़्यादा बच्चों को प्रभावित करेगी। क्योंकि अब तक बड़ों के लिए वैक्सीन बनी है, लेकिन गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए नहीं बन सकी है। लेकिन तीसरी लहर के दावे के बाद कई दवा कम्पनियाँ बच्चों की वैक्सीन बनाने की कोशिश में जुटी हैं। फ़िलहाल नेजल वैक्सीन नाम की एक वैक्सीन बच्चों के लिए तैयार की जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो दावा भी किया है कि कोराना की नेजल वैक्सीन बच्चों के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है। डब्ल्यूएचओ की चीफ साइंटिस्ट सौम्या स्वामीनाथन हाल ही में एक टीवी चैनल पर कहा कि नेजल वैक्सीन नाक के ज़रिये दी जाएगी, जो इंजेक्शन वाली वैक्सीन के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा असरदार है। उन्होंने यह भी कहा कि इस वैक्सीन को लेना भी आसान रहेगा। यह रेस्पिरेटरी ट्रैक में बच्चों की इम्यूनिटी पॉवर भी बढ़ाएगी।

 


भारत बायोटेक बना रही नेजल वैक्सीन

अच्छीख़बर यह है कि नेजल वैक्सीन बनाने के लिए बड़ों की कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कम्पनी भारत बायोटेक ने तैयारी शुरू कर दी है। कम्पनी ने नेजल वैक्सीन का ट्रायल शुरू करने की बात कहते हुए कहा है कि नेजल स्प्रे की सि$र्फ चार बूँदें ही कोरोना को मात देने में कारगर साबित हो सकती हैं। इस वैक्सीन को बच्चों की नाक के दोनों नथुनों में केवल दो-दो बूँद डालना होगा, जिसके बाद इसके बेहतर परिणाम सामने आने लगेंगे। क्लीनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री के अनुसार, फ़िलहाल नेजल वैक्सीन ट्रायल के तौर पर 175 लोगों को दी गयी है। इन्हें तीन ग्रुपों में बाँटा गया है। पहले और दूसरे ग्रुप में 70 वालंटियर रखे गये हैं और तीसरे में 35 वालंटियर रखे गये हैं। लेकिन वैक्सीन ट्रायल के नतीजे आने पर ही इसके फ़ायदे और नुक़सान के बारे में कुछ कहा जा सकता है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही भारतीय बच्चों की नेजल नाम की कोरोना वैक्सीन मिल जाएगी।

इधर 18 से 44 साल के युवाओं को कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड मिलने की क़िल्लतें जारी हैं। कई राज्यों मे दूसरे चरण का टीकाकरण रुका हुआ है। ऐसे में बच्चों को वैक्सीन समय पर मिल पाएगी या नहीं कुछ नहीं कहा जा सकता। क्योंकि महामारी आने से पहले टीकाकरण हो, तो हो सकता है कि बच्चों में तीसरी लहर का प्रभाव हो ही न या बहुत कम हो। इधर वैक्सीन अप्वॉइंटमेंट बुक करने के लिए एक मात्र साधन कोविन पोर्टल होने के चलते कोरोना की दूसरी डोज की उपलब्धता देखने के बाद लोग लगातार अपने लिए वैक्सीनेशन की बुकिंग के लिए जद्दोज़हद कर रहे हैं। कोविन पोर्टल पर गड़बड़ी सामने आने के बाद सरकार ने भी इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं किया है। हालाँकि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, देश भर में अब तक तक़रीबन 20 करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन लगने का अनुमान है। लेकिन वैक्सीनेशन की धीमी गति और अनुपलब्धता को लेकर केंद्र सरकार पर विपक्षी दल और लोग सवाल भी उठाते रहे हैं।

क्रूर राजनीति की चक्की में पिसता पश्चिम बंगाल

 

जबसे पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच सत्ता की जंग छिड़ी है, तबसे यह राज्य क्रूर राजनीति की चक्की में पिसता दिख रहा है। कहना न होगा कि यहाँ राज्य के विकास की नहीं, बल्कि सत्ता हथियाने की राजनीति होने लगी है, जो इतनी क्रूर होती जा रही है कि इसमें दोनों पार्टियों के समर्थकों और कार्यकर्ताओं की बलि दी जा रही है। छोटी पार्टी के नेताओं को फँसाने और अपने दल में खींचने से लेकर अन्दरखाने डराने-धमकाने का दौर चल रहा है, जिसमें तृणमूल कांग्रेस को कहीं-न-कहीं कमज़ोर करने की कोशिशें भी देखी जा रही हैं। इस बात को सिद्ध करने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं पर सीबीआई की कार्रवाई पर ग़ौर करके समझने की ज़रूरत है।
दरअसल यह मामला नारदा घोटाले से जुड़ा है। लेकिन इसके कुछ दोषियों को सीधे तौर पर बचा लिया गया है। हालाँकि कोलकाता उच्च न्यायालय ने नारदा घोटाला मामले के आरोपी टीएमसी के चारों नेताओं को अंतरिम जमानत दे दी है। सीबीआई ने आरोपी नेताओं को जमानत के कोलकाता उच्च न्यायालय के ख़िलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय का रुख़ किया, लेकिन फिर स्वयं ही याचिका वापस ले ली। इधर, पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुई राजनीति हिंसा को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य से एक लाख से ज़्यादा लोगों के पलायन के मामले को लेकर दायर याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर दोनों सरकारों से जवाब माँगा है। इस मामले की अगली सुनवाई 7 जून को होगी।

दरअसल नारदा घोटाला मामले में पिछले दिनों सीबीआई ने चार टीएमसी नेताओं- परिवहन मंत्री फिरहाद हकीम, मंत्री सुब्रत मुखर्जी, विधायक मदन मित्रा, कोलकाता के पूर्व मेयर और पूर्व कैबिनेट मंत्री शोभन चटर्जी के ख़िलाफ़ जाँच करने के बाद उनके ख़िलाफ़ अहम सुबूत मिलने का दावा कर चारों नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया था, जिसके बाद खुद बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सीबीआई दफ़्तर के बाहर धरना देकर बैठ गयी थीं और सीबीआई को चुनौती दी कि अगर हिम्मत है, तो सीबीआई अफ़सर उन्हें गिरफ़्तार करके दिखाएँ। हालाँकि इस मामले में तृणमूल कार्यकर्ताओं पर सीबीआई दफ़्तर के बाहर प्रदर्शन और पथराव करने का आरोप भी लगा। लेकिन इस मामले पर कोई बड़ा हंगामा नहीं हुआ। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि नारदा घोटाले में दो तृणमूल नेता, जो अब भाजपा में हैं; के ख़िलाफ़ सीबीआई ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? जबकि इस घोटाले में इन दोनों नेताओं के शामिल होने को स्टिंग ऑप्रेशन में साफ़-साफ़ देखा जा सकता है। इन दो नेताओं के नाम हैं- सुवेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय। सुवेंदु अधिकारी तो अख़बार में लिपटे हुए रुपयों के बंडल रिश्वत के रूप में लेते हुए कैमरे में क़ैद हुए थे; जिसे मुख्यधारा की मीडिया ने अभी तक नहीं दिखाया है।

सवाल यह है कि आख़िर नवनिर्वाचित विधानसभा का सत्र बुलाये जाने से ठीक पहले गिरफ्तारियाँ क्यों की गयीं? विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति क्यों नहीं ली गयी? हालाँकि इस मामले में सीबीआई ने लोकसभा अध्यक्ष से सुवेंदु अधिकारी समेत शिकंजा कसे गये चारों तृणमूल नेताओं पर मुक़दमा चलाने के लिए मज़ूरी माँगी थी। मगर बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने हाल ही में पश्चिम बंगाल के चार तृणमूल नेताओं पर मुक़दमा चलाने की मज़ूरी दी थी, जिसके बाद एजेंसी ने अपने आरोप-पत्र को अन्तिम रूप दिया और उन्हें गिरफ़्तार किया था।

हैरत यह है कि जब सीबीआई की पक्षपात वाली कार्रवाई को लेकर सवाल उठे, तो सीबीआई की तरफ से जाँच एजेंसी पर लगाये गये पक्षपात करने के आरोपों को ख़ारिज कर दिया गया। चारों तृणमूल नेताओं की गिरफ़्तारी के बाद तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष ने सुवेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय को बचाने का आरोप केंद्र सरकार पर लगाते हुए कहा था कहा कि सीबीआई ने अधिकारी और रॉय को छोड़ दिया, क्योंकि वे भाजपा में शामिल हो चुके हैं।


तृणमूल कांग्रेस के विधायक तापस रॉय ने भी भाजपा की केंद्र सरकार पर राज्य में करारी हार का बदला तृणमूल से लेने का आरोप लगाया था। तृणमूल कांग्रेस के नेता कल्याण बनर्जी ने कहा था कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने नारदा स्टिंग मामला सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया, जो संविधान के ख़िलाफ़ है। उन्होंने कहा था कि हम जानते हैं कि हम उनके ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज नहीं कर सकते। लेकिन हम लोगों से उनके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करने का आग्रह कर रहे हैं। वह भारतीय संविधान के हत्यारे हैं। इधर बंगाल सरकार ने 20 मई को कोलकाता नगर निगम (केएमसी) के कामकाज की देखरेख के लिए राज्य के शीर्ष विभागों के सचिवों का एक बोर्ड गठित किया है। ग़ौरतलब है कि कोलकाता नगर निगम का कार्यकाल समाप्त होने के बाद राज्य सरकार क़रीब एक साल से बोर्ड ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त कर निगम का कामकाज चला रही थी, जिसके प्रमुख फिरहाद हकीम हैं। लेकिन नारदा घोटाले के आरोप में हकीम की गिरफ़्तारी के बाद निगम के कामकाज को देखने के लिए राज्य सरकार ने अलग से सचिवों का एक बोर्ड गठित किया है, जिसका चेयरमैन मुख्य सचिव अलापन बंधोपाध्याय को बनाया है। जबकि गृह सचिव एसके द्विवेदी एवं शहरी विकास व नगरपालिका विभाग के प्रधान सचिव खलील अहमद को इस बोर्ड का सदस्य बनाया गया है। हालाँकि भाजपा नेताओं ने इस नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े किये हैं।

क्या है नारदा घोटाला?
सन् 2016 में बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले नारदा स्टिंग टेप का ख़ुलासा हुआ था। इस स्टिंग टेप को लेकर दावा किया गया था कि ये मामला सन् 2014 का है, तभी इसकी स्टिंग की गयी थी। इस स्टिंग टेप में तृणमूल के सांसद, मंत्री, विधायक और कोलकाता के मेयर को कथित रूप से एक काल्पनिक कम्पनी के प्रतिनिधियों से रक़म लेते दिखाया गया था।


यह स्टिंग ऑपरेशन नारदा न्यूज पोर्टल के सीईओ मैथ्यू सैमुअल ने किया था। सन् 2016 में बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले नारदा स्टिंग टेप सार्वजनिक किये गये थे। इसमें टीएमसी के मंत्री, सांसद और विधायक की तरह दिखने वाले व्यक्तियों को कथित रूप से एक काल्पनिक कम्पनी के प्रतिनिधियों से अख़बार में लिपटी नक़दी लेते देखा गया था, जिसमें सुवेंदु अधिकारी भी दिख रहे हैं। इसके बाद सन् 2017 में कोलकाता उच्च न्यायालय ने इन टेप की जाँच का आदेश सीबीआई को दिया था। लेकिन अब सीबीआई ने इस मामले में कार्रवाई की, जिसमें उसकी पक्षपातपूर्ण कार्रवाई पर उँगलियाँ उठने लगी हैं।

बोलने पर शिकंजा
वहीं दो पूर्वोत्तर राज्यों- त्रिपुरा और मेघालय के पूर्व गवर्नर और पश्चिम बंगाल में भाजपा नेता तथागत रॉय पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की निगाहें कुछ टेड़ी दिख रही हैं। क्योंकि उनके एक बयान के बाद शीर्ष नेतृत्व से उनका दिल्ली के लिए बुलावा आया, जिससे एक दिन पहले तथागत रॉय ने जानकारी दी कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से उन्हें दिल्ली आने के लिए कहा है। दरअसल उन्होंने इस आदेश के एक दिन पहले ही पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा शीर्ष नेतृत्व द्वारा उठाये गये कुछ क़दमों की आलोचना की थी।

दरअसल रॉय ने दावा किया था कि विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस से अवांछित तत्त्वों को भाजपा में शामिल किया गया और ऐसे नेताओं को राज्य के चुनाव प्रचार में शामिल किया गया, जिन्हें बंगाली संस्कृति और विरासत के बारे में कोई जानकारी या समझ नहीं है। चुनाव परिणाम आने के बाद उनकी यह टिप्पणी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को खल गयी और उन्हें दिल्ली हाज़िर होने को कहा गया। इसकी जानकारी ट्वीटर पर साझा करते हुए तथागत रॉय ने लिखा- ‘मुझे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा शीघ्र दिल्ली आने के लिए कहा गया है। यह सामान्य जानकारी के लिए है।’

रॉय ने ट्विटर पर यह भी लिखा कि अपनी गहरी निराशा के समय में मैं अपने प्रेरणास्रोत डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीन दयाल उपाध्याय के बारे में सोचता हूँ। उन्होंने कैसे-कैसे मुश्किलों का सामना किया, आज उसकी तुलना अपनी पीड़ा से करता हूँ। ऐसे विचार, ऐसे कष्ट व्यर्थ नहीं जाएँगे; कभी नहीं। केडीएसए (कैलाश-दिलीप-शिव-अरविंद) ने हमारे सम्मानित प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का नाम मिट्टी में मिला दिया और दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के नाम पर धब्बा लगाया है। हेस्टिंग्स अग्रवाल भवन में बैठे हैं। अपनी विवादास्पद टिप्पणियों के लिए चर्चा में आते रहने वाले तथागत रॉय ने इससे पहले कहा था कि भाजपा में शामिल अभिनय जगत से जुड़ी तीन महिला सदस्य बड़े अन्तर से हार गयीं, वे राजनीतिक रूप से मूर्ख हैं। उन्होंने कहा कि इन महिलाओं में कौन से महान् गुण थे? कैलाश विजयवर्गीय, दिलीप घोष ऐंड कम्पनी को जवाब देना चाहिए।

भाजपा नेताओं को सुरक्षा
इधर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल के कांथी संसदीय क्षेत्र से लोकसभा सांसद शिशिर कुमार अधिकारी और तमलुक सीट से सांसद दिब्येंदु अधिकारी को वाई+ सुरक्षा दी है। बता दें कि शिशिर कुमार अधिकारी पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं और फ़िलहाल वो लोकसभा सदस्य हैं। वहीं सिसिर कुमार अधिकारी भाजपा के टिकट पर इसी बार नंदीग्राम से विधायक चुने गये सुवेंदु अधिकारी के पिता हैं, जबकि दिव्येंदु अधिकारी सुवेंदु आधिकारी के भाई हैं।

भेदभाव
इधर चक्रवात ‘यास’ से राहत के लिए केंद्र सरकार ने भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र पर भेदभाव आरोप लगाते हुए कहा है कि ओडिशा और आंध्र प्रदेश की तुलना में बड़ी और अधिक घनी आबादी के बावजूद आपदा राहत के लिए पश्चिम बंगाल को कम राशि जारी की गयी है। दो तटीय राज्यों की तुलना में राहत राशि के तौर पर पश्चिम बंगाल को 400 करोड़ रुपये मिले, जबकि ओडिशा और आंध्र प्रदेश को 600-600 करोड़ रुपये दिये गये। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चक्रवात से राहत के लिए 15,000 करोड़ रुपये की केंद्र सरकार से माँग की है। फ़िलहाल 15 लाख से ज़्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया है।

हमले की राजनीति
पश्चिम बंगाल में पिछले क़रीब ढाई-तीन साल से भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच हमले की राजनीति चल रही है। दोनों तरफ़ के कई नेताओं पर भीड़ तंत्र द्वारा कई बार हमले हो चुके हैं और दोनों ही पार्टियाँ अपने-अपने नेताओं पर हुए हमलों का आरोप एक-दूसरे पर मढ़ती रही हैं। हाल ही में 6 जून को पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर ज़िले में केंद्रीय राज्यमंत्री वी मुरलीधरन की कार पर हमला हुआ, जिसमें उनका ड्राइवर जख़्मी हो गया।
मुरलीधरन ने ट्विटर पर आरोप लगाया कि उनके क़ाफ़िले पर हमले के पीछे टीएमसी के गुंडों ने का हाथ है। हमले के बाद मुरलीधरन ने कहा कि मैं पश्चिम मिदनापुर में पार्टी के उन कार्यकर्ताओं से मिलने गया था, जिनके ऊपर और घर पर हमला हुआ था। मैं अपने क़ाफ़िले के साथ एक घर से दूसरे घर जा रहा था, तभी लोगों का एक समूह अचानक हमारी ओर बढऩे लगा और हमला कर दिया। इससे पहले चुनावों के प्रचार प्रसार के दौरान ममता बनर्जी पर भी हमला हुआ था, जिससे उनके पैर में विकट चोट आयी थी। इसके अलावा भी दोनों पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर कई बार हमले हो चुके हैं।

बड़ी बात यह है कि अभी तक राजनीतिक हिंसा के लिए दोनों पार्टियाँ एक-दूसरे पर आरोप लगा रही हैं। यह लुकाछिपी का खेल राजनीतिक रंग में रंग गया है। भाजपा के नेताओं का आरोप है कि अभ तक उसके कई कार्यकर्ताओं की हत्याएँ हो चुकी हैं। वहीं तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा उसके कार्यकर्ताओं पर हमले करा रही है। कुछ भी हो हिंसा के लिए राजनीति में जगह नहीं होनी चाहिए। क्योंकि यह साज़िशें फिर-फिरकर अपना सिर उठाती रहती हैं और राज्य के सामान्य लोगों का जीवन इससे बहुत बुरी तरह प्रभावित होता है।

यहाँ यह भी बता देना ज़रूरी होगा कि पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का लम्बा इतिहास रहा है। लेकिन पिछले कुछ साल से यह हिंसा तेज़ी से बढ़ी हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अपने इस कार्यकाल में इस धब्बे को मिटाने की कोशिश करनी चाहिए। उसे यह भूलना नहीं चाहिए कि राज्य में कोरोना महामारी तेज़ी से फैल रही है, जिसे रोकने के लिए सरकार को अपनी पूरी ताक़त
लगानी चाहिए।
बता दें कि ममता बनर्जी पहले ही कह चुकी हैं कि उनकी सरकार की प्राथमिकता कोरोना महामारी को क़ाबू में करने की होगी, जो बिल्कुल ठीक है। इसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष ने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लोकतंत्र के लिए ख़तरा हैं। संतोष ने कहा कि पश्चिम बंगाल को लोकतंत्र की प्रयोगशाला बनना था, लेकिन यह राजनीतिक हिंसा की प्रयोगशाला बन गया है। वहीं तृणमूल के नेता और कार्यकर्ताओं का कहना है कि जबसे भाजपा की नज़र बंगाल पर लगी है, तबसे उसने हमलों की साज़िश करनी शुरू कर दी है। बंगाल में हार के बाद तो भाजपा का शीर्ष नेतृत्व और भी खिसिया गया है और हमलों की राजनीति कर रहा है, जो कि असंवैधानिक और बहुत-ही अशोभनीय कार्य है।

छवि ख़राब करने की शाज़िश
राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है। भाजपा और तृणमूल में इस समय यही चल रहा है। बात यह है कि भाजपा तो दंगों की राजनीति में काफ़ी बदनाम है। लेकिन इस बार तृणमूल पर भी कुछ ऐसे ही आरोप लग रहे हैं। भाजपा तृणमूल नेताओं का कहना है कि बेदा$ग छवि की नेता मानी जाने वाली ममता बनर्जी जनहित की सोच रखती हैं। अन्य दल के नेता और कु राजनीतिक जानकार भी बंगाल में हुई हिंसा को भाजपा की साज़िश बता रहे हैं।
बता दें कि प्रकृति से प्यार करने वाली संगीत प्रेमी ममता बनर्जी इतिहास, शिक्षा और कानून की डिग्रियाँ हासिल की हुई एक अच्छी और मझी हुई राजनीतिक खिलाड़ी हैं। और इस बार उन्होंने तीसरी बार बंगाल के विधानसभा चुनाव में दुनिया के सबसे बड़े दल भाजपा को चारों खाने चित करके 294 सीटों में से 211 सीटें हासिल करके यह सिद्ध कर दिया कि उन्हें बंगाल की भूमि पर हराना डंडे से हाथी को मारने की कोशिश करना है।
यूँ तो राजनीतिक गलियारों में दीदी के नाम से मशहूर ममता बनर्जी सामान्य जनजीवन जीने वाली ऐसी आरयन लेडी हैं कि सारी सुविधाएँ होते हुए भी वह हर रोज़ 5-6 किलोमीटर पैदल चलती हैं। कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि बंगाल में लगातार हिंसक झड़पों की आड़ में उनकी छवि को ख़राब किया जा रहा है, जिसे उन्हें ख़ुद ही हिंसा पर कट्रोल करके सुधारना होगा। अन्यथा आने वाले समय में उन्हें भी इसका नुक़सान भी हो सकता है। क्योंकि इसी बार दुनिया की सबसे बड़ी इस पार्टी भाजपा, जिसे बंगाल के लिए बाहरी मद भी कह सकते हैं; के कई नेताओं ने बंगाल के विधानसभा चुनाव में अच्छी बढ़त हासिल की है। हालाँकि इस बढ़त में बड़ा योगदान तृणमूल से भाजपा में छिटककर गये नेताओं का ही है।
तृणमूल में वापसी को बेचैन दलबदलू
इस बार के बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले ममता की पार्टी का दामन छोडक़र भाजपा में शामिल होने वाले दलबदलुओं का इस समय न घर, न घाट वाला हाल दिख रहा है। अब कई विधायक जो भाजपा में जाकर जीत भी गये ममता बनर्जी के साथ आने को परेशान दिख रहे हैं। तृणमूल से भाजपा में गयीं और भाजपा के टिकट पर जीतीं सोनाली गुहा ने तो यहाँ तक कह दिया कि जिस तरह एक मछली पानी से बाहर नहीं रह सकती, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी दीदी। मैं आपसे माफ़ी चाहती हूँ और अगर आपने मुझे माफ़ नहीं किया, तो मैं जीवित नहीं रह पाऊँगी। उन्होंने अपील की कि कृपया मुझे वापस (तृणमूल कांग्रेस में) आने के लिए की अनुमति दें। इससे सोनाली की बेचैनी का पता चलता है। बता दें कि कभी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की परछाई मानी जाने वाली सोनाली तृणमूल में चार बार विधायक रह चुकी हैं। इसी तरह सरला मुर्मू और अन्य कई भाजपा विधायक और कुछ हारे हुए प्रत्याशी तृणमूल में आने को बेताब हैं।