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पेगासस पर संसद में हंगामा, जांच कराने की मांग की कांग्रेस ने, 22 तक संसद की कार्यवाही स्थगित

सुप्रीम कोर्ट: केरल में राज्य सरकार द्वारा बकरीद पर व्यापारियों को छूट देने वाला फैसला माफी योग्य नहीं

केरल के मुख्यमंत्री पिनरार्इ विजयन ने 17 जुलार्इ को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया। जिसमें उन्होंने इलाके में पॉजिटिविटी रेट के अनुसार 21 जुलार्इ को बकरीद मनाने के लिए व्यापारियों को दुकानें खोलने की अनुमति दी थी।

बकरीद के मौके पर राज्य सरकार के कोरोना महामारी में पाबंदियों में छूट दिए जाने के फैसले से नाराज़ होकर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को फटकार लगार्इ है। और कहा कि, व्यापारियों को छूट देने की मांग को स्वीकार कर लेना बेहद गलत है व माफ करने योग्य नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा है कि, “भारत के नागरिक के जीवन का अधिकार का उल्लंघन किसी भी प्रकार के दबाव से नही किया जा सकता। कोर्इ भी अप्रिय घटना घटित होने के बाद यदि उसे हमारे संज्ञान में लाया जाएगा तो उसके अनुसार कार्यवार्इ की जाएगी। केरल की सरकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के साथ अनुच्छेद 44 पर ध्यान देने का निर्देश दिया जाता है।“

अदालत ने चेतावनी दी है कि, यदि सरकार द्वारा छूट देने के बाद राज्य में संक्रमण फैलता है तो इसके खिलाफ उचित कार्यवार्इ की जाएगी।

क्राइम सीन इन्वेस्टिगेटर बने क्राइम पेट्रोल के होस्ट अनूप सोनी

लोकप्रिय अपराध आधारित शो क्राइम पेट्रोल के होस्ट व अभिनेता अनूप सोनी ने हाल ही में अंतराष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान (आर्इएफएस) शिक्षा विभाग से अपराध दृश्य जांच में सर्टिफिकेट हासिल किया है।

इस कोर्स को पूरा कर सर्टिफिकेट हासिल करने की जानकारी अनूप ने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट पर साझा की है।

पोस्ट शेयर कर उन्होंने लिखा, “क्राइम सीन इन्वेस्टिगेशन” में सर्टिफिकेट कोर्स हाल ही में लॉकडाउन के दौरान मैंने अपना समय और ऊर्जा कुछ और रचनात्मक बनाने का फैसला किया। हाँ, यह बेहद चुनौतीपूर्ण था, ‘किसी प्रकार के अध्ययन’ पर वापस जाना। लेकिन निश्चित रूप से एक विकल्प जिस पर मुझे गर्व है।“

अंतराष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान भारत सरकार और महाराष्ट्र सरकार के साथ पंजीकृत है। अपनी डिग्री की फोटो इंस्टाग्राम पर अपलोड करने के बाद से ही अनूप सोशल मीडिया पर लगातार ट्रेंड कर रहे है। कमेंट सेक्शन में लिखकर उनके दोस्तों ने उन्हें डिग्री हासिल करने की बधार्इ दी है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

हंगामे के साथ संसद के मानसून सत्र की शुरुआत

विपक्ष के शोरशराबे के चलते मंत्रियों का परिचय नहीं करा पाए प्रधानमंत्री
संसद के मानसून सत्र का हंगामे के साथ आगाज हुआ। दोनों सदनों में सोमवार को विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष हमलावर दिखा। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने नए मंत्रिपरिषद के साथियों का भी परिचय नहीं करा सके।

प्रधानमंत्री ने विपक्षी दलों को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि कुछ लोगों को यह रास नहीं आ रहा है कि दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग और महिला मंत्रियों का यहां परिचय कराया जाए। उन्होंने विपक्षी दलों के रवैये को महिला एवं दलित विरोधी मानसिकता तक करार दिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने पहले लोकसभा में और बाद में राज्यसभा में जब नए मंत्रियों का सदन में परिचय देना शुरू किया। उसी दौरान दोनों सदनों में विपक्षी सदस्यों ने हंगामा किया। राज्यसभा के सभापति एम वैंकेया नायडू एवं लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्षी सदस्यों से शांत होने और मंत्रियों का परिचय होने देने की अपील की। किंतु उनकी अपील का विपक्षी सदस्यों पर कोई असर नहीं हुआ।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि विपक्ष परंपराओं को न तोड़े। आप लंबे समय तक शासन में रहे हैं, परंपरा को तोड़कर सदन की गरिमा को कम न करें।

राजनाथ ने हंगामे को दुखद बताया
बाद में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नए मंत्रियों का परिचय कराने के दौरान कांग्रेस सदस्यों के हंगामे को दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने संसद में ऐसा दृश्य अपने 24 वर्ष के संसदीय जीवनकाल में नहीं देखा। उन्होंने कहा कि संसद की सबसे बड़ी शक्ति स्वस्थ परंपराएं होती हैं। ये परंपराएं संविधान एवं संसद नियमों पर आधारित होती हैं। इनको बनाकर रखना सत्ता पक्ष, विपक्ष सभी की जिम्मेदारी है।

इसके बाद जब प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में मंत्रिपरिषद के सदस्यों का परिचय कराना शुरू किया तो वहां पर भी हंगामा शुरू हो गया। ऐसे में प्रधानमंत्री ने उच्च सदन में प्रश्न किया कि यह कौन सी मानसिकता है कि आदिवासी के बेटे, दलित के बेटे और किसान के बेटे का गौरव करने को लोग तैयार नहीं हैं? नेता सदन पीयूष गोयल ने विपक्ष के इस आचरण की निंदा की। गोयल ने कहा कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री के समय से चल रही इस परंपरा में बाधा पहुंचाना बहुत दुखद है। उन्होंने कहा कि विपक्ष का यह व्यवहार देश के लोकतंत्र को हानि पहुंचाएगा।

पेगासस : राहुल गांधी की भी की गयी जासूसी, सूची में उनका और प्रशांत किशोर का भी आया नाम

पेगासस स्पाइवेयर विवाद मामले में 40 पत्रकारों की जासूसी के आरोपों के बाद अब कांग्रेस नेता राहुल गांधी का भी नाम जुड़ गया है। बताया गया है कि जासूसी किये जाने वाले नेताओं की सूची में राहुल गांधी और उनके करीबी भी हैं। कल सरकार ने कहा था कि जो आरोप लग रहे हैं वे बेबुनियाद हैं, हालांकि, अब राहुल गांधी की जासूसी किये जाने (फोन हैक करने) की बात सार्वजनिक रूप से सामने आने के बाद राजनीतिक तूफान मच सकता है।

बता दें विश्व भर में न्यूज संगठनों के समूह ने अपनी एक रिपोर्ट में भारत में पत्रकारों, नेताओं की जासूसी करने का खुलासा करके हंगामा खड़ा कर दिया है। रिपोर्ट में दावा है कि दुनिया भर में सरकारों ने पत्रकारों, राजनीतिकों के अलावा मशहूर हस्तियों की जासूसी करने के लिए इजरायली सॉफ्टवेयर पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है। रिपोर्ट में भारत में इस सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल का दावा है।

राहुल गांधी का नाम सामने आने के बाद देश में राजनीतिक रूप से तूफड़ान खड़ा हो सकता है। उनके अलावा चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का भी नाम है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी, अब आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव, प्रह्लाद पटेल आदि की जासूसी करने की बात भी सामने आई है।

रिपोर्ट में पत्रकारों, राजनेताओं (मंत्रियों और विपक्ष सहित), सरकारी संस्थानों के प्रमुख (चुनाव आयुक्त अशोक लवासा और अन्य ), सेना के अधिकारियों सहित कोई 300 भारतवासियों के फोन हैक करके उनकी जानकारी चुरा लेने (जासूसी करने) के लिए पेगासस सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल का दावा  है। यह जासूसी लोकसभा चुनाव से पहले 2018 और 2019 के बीच के काल में की गयी है।

दिलचस्प यह है कि सोमवार शाम राहुल गांधी का नाम सूची में होने की बात सामने आने से पहले सुबह ही राहुल गांधी ने इस मसले पर प्रतिक्रिया दी थी। गांधी ने सरकार पर निशाना साधते हुए तंज कसते हुए कहा था – ‘हम जानते हैं कि आप क्या पढ़ रहे हैं – आपके फोन की हर एक बात जानते हैं।’ एक और ट्वीट में गांधी ने कहा – ‘साथियो, आजकल आप लोग जो पढ़ रहे हैं उसे जानकर मुझे हैरानी हो रही है।’

यह रिपोर्ट सामने आने के बाद भारत में कांग्रेस के अलाव पूरा विपक्ष अब सरकार पर हमलावर हो गया है। अब नेताओं के नाम सामने के बाद यह मामला राजनीतिक रंग ले लेगा। रिपोर्ट में यह दावा होने के बावजूद कि इजरायल के सॉफ्टवेयर पेगासस स्पाइवेयर के जरिए सरकार ने पत्रकारों और नेताओं के फोन टेप कराए, सरकार ने इसे बेबुनियाद बताया है। कुछ समय पहले तक आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आज भाजपा प्रवक्ता के नाते इन आरोपों को खारिज किया

राज्यों में राहुल गांधी की पसंद के पिछले एक साल में अध्यक्ष बनने वाले सिद्धू चौथे नेता

राज्यों में कांग्रेस की लड़ाई के बीच बड़ी खबर यह है कि वहां अब लगातार राहुल गांधी की पसंद के नेता ही अध्यक्ष बन रहे हैं। नवजोत सिंह सिद्धू ताजपोशी के बाद पिछले एक साल में राज्यों में अध्यक्ष बनने वाले राहुल गांधी की पसंद की चौथे नेता हैं। उनसे पहले तेलंगाना में कई दिग्गजों को किनारे कर राहुल के भरोसेमंद सांसद रेवंत रेड्डी, महाराष्ट्र में थोराट की जगह विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिलवाकर नाना पटोले और केरल में विधानसभा चुनाव में हार के बाद के सुधाकरण को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जबकि वीडी सतीशन को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। राहुल केरल से ही सांसद हैं। पंजाब के बाद अब अन्य राज्यों के अलावा राजस्थान में भी सचिन पायलट समर्थकों में उम्मीद जगी है कि उनका मामला भी जल्द निपटा दिया जाएगा। यूपी में पहले ही दो बार के विधायक अजय कुमार लल्लू प्रदेश अध्यक्ष हैं जो प्रियंका गांधी की पसंद हैं।

तेजतर्रार और जनता में अपने भाषणों के तरीके से लोकप्रिय नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर और कार्यकारी अध्यक्षों के रूप में अपनी पसंद के नेताओं को जगह देकर आलाकमान ने बता दिया है कि पार्टी के फैसले करने का अधिकार किसका है। आलाकमान ने इसके लिए पर्याप्त समय लिया और पंजाब के सभी मंत्रियों, विधायकों और वरिष्ठ नेताओं से विस्तृत बातचीत की। कांग्रेस में राज्यों के इस फेरबदल में राहुल गांधी की छाप साफ़ दिख रही है।

हाल के महीनों में राज्यों के कांग्रेस नेता पार्टी आलाकमान को जिस तरह हलके से ले रहे थे, उनको भी पंजाब में सिद्धू को अध्यक्ष बनाकर इस जरिये सन्देश दे दिया गया है। पंजाब में ऐसा माना जाता है कि मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह उनका विरोध कर रहे थे। अब आलाकमान ने यह सन्देश दे दिया है कि मुख्यमंत्री का काम चुनाव के समय जनता से किये गए वादे पूरे करना है और संगठन में किसे क्या बनाना है, यह पार्टी आलाकमान का अधिकार है।

पंजाब में हाल के घटनाक्रम में कैप्टेन अमरिंदर सिंह को उनके ही उत्साही समर्थकों के दबाव बनाने की इरादे से मीडिया को दिए गए इस ‘फीडबैक’ से बड़ा नुक्सान पहुंचा है कि आलाकमान यदि ‘कैप्टेन की बात नहीं मानती है’ तो वह ‘भाजपा में जा सकते हैं’। पंजाब में किसान यदि किसी से सबसे ज्यादा खफा हैं तो वह भाजपा है। ऐसे में कैप्टेन अमरिंदर के भाजपा में जाने के शोर से सिर्फ उनका नुक्सान ही हुआ है।ऊपर से कांग्रेस के भीतर तक कैप्टेन से इस बात पर नाराजगी है कि पिछले चुनाव के कई वादे पूरे नहीं हुए हैं। यहाँ तक कि सिद्धू भी यह बात उठाते रहे हैं।

सिद्धू भाजपा से लगातार तीन बार अमृतसर से सांसद रहे हैं जो जनता में उनकी लोकप्रियता का प्रमाण है। सिद्धू जनहित के मुद्दों से समझौता करने वाले नेता नहीं माने जाते और सबसे बड़ी बात यह है कि पंजाब में उन्हें बादलों का कट्टर राजनीतिक विरोधी माना जाता है। यह बात कैप्टेन के मामले में नहीं कही जा सकती। उन्हें बादलों के प्रति ‘सॉफ्ट’ माना जाता है जिससे अकाली दल की सरकारों के समय ‘पीड़ित’ होने वाले कांग्रेसी नाराज रहते रहे हैं। उन्हें उम्मीद बंधी है कि सिद्धू के नेतृत्व में कांग्रेस ‘बादलों से मुक्त रहकर’ अपनी दबंग छवि बनाएगी।

पंजाब में पार्टी अध्यक्ष बनकर सिद्धू निश्चित ही अगले विधानसभा के लिए मुख्यमंत्री पद के दावेदार बन गए हैं। बेशक कांग्रेस ने कैप्टेन के ही नेतृत्व में पंजाब में अगला चुनाव लड़ने की बात कही है, यह नहीं कहा है कि कांग्रेस के चुनाव जीतने पर वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे। सिद्धू यदि ज्यादा समर्थकों को टिकट दिलाने में सफल रहे, तो वे निश्चित ही एक मजबूत दावेदार होंगे।

सिद्धू के साथ चार कार्यकारी अध्‍यक्ष चुनने में भी पार्टी आलाकमान ने कैप्टेन के ‘दबाव’ को दरकिनार किया है और संगत सिंह गिलजियां, सुखविंदर सिंह डैनी, पवन गोयल और कुलजीत सिंह नागरा को चुना है, जिन्हें पूरी तरह कैप्टेन की पसंद तो नहीं ही कहा जा सकता, भले इनमें से दो नेता कभी कैप्टेन के नजदीकी रहे हों। राजनीति के काफी जानकार मानते हैं कि इतना अनुभवी होने के बावजूद कैप्टेन ने सिद्धू के मामले में बेवजह की उलझनें पैदा कर लीं, जिनकी ज़रुरत ही नहीं थी।

कांग्रेस आलाकमान हमेशा से कैप्टेन के साथ खड़ी रही है, लेकिन हाल के घटनाक्रम से यह साफ़ सन्देश गया कि अमरिंदर अपनी मर्जी चलाने के लिए आलाकमान की ‘बेअदबी’ भी कर सकते हैं। उन्हें पिछले विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था और वे मुख्यमंत्री बने थे और अब वैसे ही सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। संकेत समझे जा सकते हैं।

इस तरह राहुल गांधी की टीम राज्यों में खड़ी हो रही है। दिल्ली में पिछले साल तब 44 साल के अनिल चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। उनके काम की समीक्षा होनी है। अब राजस्थान, हिमाचल, उत्तराखंड में नए अध्यक्ष बनाये जा सकते हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश भगेल अपने काम से पार्टी आलाकमान में अपना भरोसा बनाये हुए हैं, हालांकि, वहां नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना है। भगेल को जब मुख्यमंत्री बनाया गया था तब टीएस सिंह देओ भी दावेदार थे। माना जाता है कि दोनों को आधे-आधे समय मुख्यमंत्री बनाने का फार्मूला अपनाया गया था लेकिन भगेल ने एक मुख्यमंत्री के रूप में इतने कम समय में ही जिस तरह अपनी चमकदार छवि बनाई है, उनको हटाने से कांग्रेस को नुक्सान भी हो सकता है। ऐसे में हो सकता है देओ को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया जाए।

राहुल के समर्थकों सांसद रेवंत रेड्डी को तेलंगना, महाराष्ट्र में नाना पटोले, केरल में के सुधाकरण को हाल के महीनों में प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा चुका है। देखना है पंजाब में सिद्धू की तैनाती के बाद अब अन्य राज्यों में क्या होता है।

मायावती ‘खफा’ ब्राह्मणों को साधेंगी, बसपा के ब्राह्मण सम्मेलन का अयोध्या से होगा आगाज

उत्तर प्रदेश में मिशन-2022 के लिए जोर आजमाइश चालू हो चुकी है। सभी प्रमुख दल अपने-अपने पत्ते खोलने लगे हैं। पिछले दिनों जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी पहुंचे तो उसके अगले दिन ही प्रियंका गांधी वाड्रा भी यूपी में डेरा डाले हुए हैं। इसके अलावा अखिलेश यादव भी जल्द इसका आगाज करने वाले हैं।

इस बीच, सबसे पीछे माने जाने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती ने बड़ा कार्ड खेला है। उन्होंने ककहा कि ब्राह्मण और बनिया समुदाय भाजपा सरकार से दुखी और नाराज है। दलित-ब्राह्मण गठजोड़ के लिए वे राजय के 18 मंडलों में ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन करेंगी। इसकी शुरुआत अयोध्या से की जाएगी। मायावती ने रविवार को इसका ऐलान किया।

बसपा सुप्रीमो ने कहा कि 23 जुलाई से प्रदेश के 18 मंडलों में बसपा की तरफ से ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। पार्टी के महासचिव सतीश चंद्र मिश्र को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है। मायावती ने कहा कि जनता, देश और प्रदेश के बहुत से मुद्दों पर केंद्र की मोदी सरकार और यूपी की योगी सरकार से जवाबदेही चाहती है। जिन पर सभी विपक्षी पार्टियों को एकजुट और गंभीर होकर सरकार को कटघरे में खड़ा करना चाहिए। जनता भी यही चाहती है। यह समय की भी मांग है।

मायावती ने कहा कि केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों की वापसी की मांग को लेकर किसान लंबे समय से दिल्ली की सीमाओं के साथ ही देश के कई अन्य हिस्सों में धरना दे रहे हैं। मगर केंद्र सरकार का रुख पूरी तरह उदासीन है। यह दुखद है। मानसून सत्र में इस संवेदनशील मुद्दे पर संसद में हर प्रकार का दबाव बनाना जरूरी है।

ईंधन के दामों में इजाफे के साथ ही बढ़ती महंगाई पर मायावती ने कहा, ‘केंद्र सरकार की गलत नीतियों की वजह से देश में बेरोजगारी बढ़ रही है। आर्थिक संकट पैदा हो चुका है। पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस आदि की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। महंगाई आसमान छूने लगी है। केंद्र सरकार की लापरवाही से जनता बुरी तरह त्रस्त है।

मुनव्वर राना बोले, योगी दोबारा मुख्यमंत्री बने तो यूपी छोड़ दूंगा

मशहूर शायर मुनव्वर राना ने कहा कि अगर असदुद्दीन ओवैसी की वजह से उत्तर प्रदेश में भाजपा जीती और योगी आदित्यनाथ दोबारा मुख्यमंत्री बने तो वे यूपी छोड़कर कोलकाता लौट जाएंगे। मुनव्वर राना का कहना है कि चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में मुसलमानों का वोट बंट जाता है।

उन्होंने कहा कि ओवैसी यूपी आकर यहां के मुसलमानों को बरगला रहे हैं। वह मुसलमानों के वोट बैंक को बांटकर एक तरह से भाजपा की मदद कर रहे हैं। ऐसे में यदि ओवैसी की मदद से प्रदेश में भाजपा जीती और योगी आदित्यनाथ दोबारा मुख्यमंत्री बन गए तो वह प्रदेश छोड़ देंगे।

भाजपा ने मुनव्वर राना के इस बयान पर पलटवार करते हुए कहा है कि 2022 के चुनाव में जीत के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फिर से प्रदेश के मुख्यमंत्री बनेंगे इसलिए उन्हें किसी दूसरे राज्य में घर ढूंढ़ लेना चाहिए। पार्टी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि मुनव्वर राना को इस देश व प्रदेश ने भरपूर सम्मान दिया है और अब वह सियासी बयानबाजी कर रहे हैं।
मुनव्वर राना पिछले दिनों से योगी सरकार से काफी खफा हैं। दरअसल, जमीन विवाद को लेकर उनके परिवार में मामला चल रहा है। इसी को लेकर उनके बेटे पर अपने ऊपर फायरिंग का इलजाम यूपी पुलिस ने लगाया। इसकी तलाश में यूपी पुलिस ने देर रात दो बजे मुनव्वर राना के घर में दबिश देकर उनके और परिजनों के साथ बदसलूकी की थी। बता दें कि उनकी बेटी समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता हैं।
इससे पहले मुनव्वर राना ने हाल ही में कहा था कि एटीएस द्वारा राजधानी में कथित आतंकियों की गिरफ्तारी चुनाव जीतने के लिए की जा रही हैं। भाजपा सरकार का एक ही काम है कि किसी भी तरीके से मुसलमानों को परेशान करो। चाहे वो धर्मांतरण कानून व जनसंख्या नियंत्रण कानून का मामला हो या फिर आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तारी हो।

अफगानिस्तान में भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की हत्या

अफगानिस्तान में तालिबान और अफगान फोर्सेस के बीच जंग जारी है। अमेरिकी सैनिकों की वापसी के ऐलान के साथ ही वर्चस्व को लेकर हालात दिन ब दिन खराब होते जा रहे हैं।
कंधार प्रांत में कवरेज के लिए गए युवा भारतीय फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की हत्या कर दी गई है। दरअसल, दानिश सिद्दीकी की हत्या कंधार के स्पिन बोल्डक इलाके में एक झड़प के दौरान हुई है। तीन दिन पहले तालिबान ने इस इलाके में कब्जा किया था। इसी दौरान हमले में दानिश सिद्दीकी गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

पुलित्ज़र पुरस्कार से सम्मानित हो चुके दानिश सिद्दीकी की गिनती दुनिया के बेहतरीन फोटो पत्रकारों मे की जाती रही है। मौजूदा वक्त में अंतरराष्ट्रीय एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम कर रहे थे।  अफगानिस्तान में जारी हिंसा के कवरेज करने गए थे। उन्होंने चुनौतियों का सामना करना पसंद था। दो दिन पहले उनकी पिता से बात हुई थी।
अफगानिस्तान में तालिबान फिर से हावी हो रहा है, और कई जिलों में उसका कब्जा हो चुका है। यही वजह है कि अफगानिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में इस वक्त हिंसा का दौर चल रहा है। दुनियाभर से पत्रकार अफगानिस्तान में जुटे हुए हैं और यहां पर जारी संघर्ष को कवर कर रहे हैं। जानकारी के मुताबिक, अफगानिस्तान की स्पेशल फोर्स के सादिक करजई की भी मौत हुई है जो दानिश के साथ मौजूद थे।
दानिश सिद्दीकी की मौत के बाद सोशल मीडिया में पत्रकार जगत उनको खिराज ए अकीदत पेश कर रहे हैं। परिजन और देशवाले भी बेहद गमगीन हैं। 2007 में ही जामिया मिल्लिया इस्लामिया नई दिल्ली से पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद इस क्षेत्र से जुड़। उन्हें रोहिंग्याओं की कवरेज के लिए पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया था।

सुप्रीम सवाल: आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह कानून की जरूरत क्यों

सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोह या राजद्रोह कानून को अंग्रेजों के जमाने का कॉलोनियल कानून बताते हुए इस पर तल्ख टिप्पणियां की है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि आजादी के 75 साल बाद भी देश में इस कानून की क्या जरूरत है। अदालत ने यह भी कहा कि संस्थानों के संचालन के लिए ये कानून बहुत गंभीर खतरा है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये अधिकारियों या एजेंसियों को कानून के गलत इस्तेमाल की बड़ी ताकत देता है और इसमें उनकी कोई जवाबदेही भी नहीं होती। इससे लोगों की अभिव्यिक्ति की स्वतंत्रता का भी खतरा है।

बढ़ई के हाथ में कुल्हाड़ी
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षत वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि राजद्रोह की धारा 124ए का बहुत ज्यादा दुरुपयोग हो रहा है। ये ऐसा है कि किसी बढ़ई को लकड़ी काटने के लिए कुल्हाड़ी दी गई हो और वो इसका इस्तेमाल पूरा जंगल काटने के लिए ही कर रहा हो। इस कानून का ऐसा असर पड़ रहा है।
अगर कोई पुलिसवाला किसी गांव में किसी को फंसाना चाहता है तो वो इस कानून का इस्तेमाल करता है। लोग डरे हुए हैं। इसके आरोपों का सामना करने वाले बेहद कम लोग ही सजा पाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम किसी राज्य सरकार या केंद्र सरकार पर आरोप नहीं लगा रहे हैं, लेकिन देखिए कि आईटी एक्ट की धारा 66ए का अब भी इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि इसे असंवैधानिक घोषित किया जा चुका है। कितने ही दुर्भाग्यशाली लोग परेशान हो रहे हैं और इसके लिए किसी की भी जवाबदेही तय नहीं की गई है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने ही इस पर आश्चर्य जताया था कि जिस धारा 66A को 2015 में खत्म कर दिया गया था, उसके तहत अभी भी एक हजार से ज्यादा केस दर्ज किए गए हैं। हालांकि, अब केंद्र सरकार ने कहा है कि इसके तहत दर्ज मामले वापस लेगी और आगे भी कोई शिकायत दर्ज नहीं की जा जाएगी।

राजद्रोह कानून को वैधता को परखेगा सुप्रीम कोर्ट
शीर्ष अदालत ने कहा कि हम इस कानून की वैधता को हम परखेंगे। कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि वह उस आर्मी अफसर की याचिका पर जवाब दे, जिसमें अफसर ने कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और बोलने की आजादी पर इस कानून का बेहद बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इस मामले पर कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं और अब इन सभी की सुनवाई एक साथ की जाएगी। इस बीच, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और एक एनजीओ ने याचिका दायर कर राजद्रोह की धारा को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है।

क्या है राजद्रोह कानून
भारतीय दंह संहिता की धारा 124ए में राजद्रोह की परिभाषित किया गया है। अगर कोई भी व्यक्ति सरकार के खिलाफ कुछ लिखता है या बोलता है या फिर ऐसी बातों का समर्थन भी करता है, तो उसे उम्रकैद या तीन साल की सजा हो सकती है। पिछले छह साल के दौरान इस धारा के तहत 326 केस दर्ज किए जा चुके हैं। 559 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि महज 10 ही दोषी साबित हुए हैं।