Home Blog Page 479

विरासत बनेगा शिबू सोरेन का आवास

शिबू सोरेन को भाजपा के शासन-काल में जो सरकारी आवास ताउम्र के लिए आवंटित किया गया था। अब झामुमो की सरकार में सोरेन के इस सरकारी आवास को उनके जीते-जी विरासत के रूप में सँजोने का निर्णय लिया गया है। ख़ास बात यह है कि झामुमो के नेतृत्व वाली सरकार में उनके पुत्र के मुख्यमंत्री होने के बाद भी इस फ़ैसले की कहीं आलोचना या विरोध नहीं हो रहा है। इसकी वजह यह है कि शिबू सोरेन सर्वमान्य नेता हैं।

राजनीतिक परिधि से दूर रहने वाले, जनहित की परवाह करने वाले सर्वमान्य नेता बिरले ही होते हैं। भारतीय राजनीति के पूरे इतिहास को खंगाला जाए, तो ऐसे नेता उँगलियों पर गिने जा सकते हैं। ऐसे ही एक सर्वमान्य नेता हैं- शिबू सोरेन। शिबू सोरेन का सम्मान हर नेताओं से लेकर जन सामान्य तक कोई करता है। उनकी अपनी पार्टी झामुमो हो या भाजपा, कांग्रेस, राजद जैसे अन्य दल हों, सभी शिबू सोरेन की इज़्ज़त करते हैं।

राज्य में अगर कोई गुरुजी के सम्बोधन से कुछ कहता है, तो इसका अर्थ कॉलेज या स्कूल के शिक्षक से नहीं, बल्कि शिबू सोरेन से है। वह कभी शिक्षक नहीं रहे हैं; लेकिन समाज को उन्होंने जो राह दखायी, जो शिक्षा दी, उससे उन्हें दिशोम गुरु की उपाधि मिल गयी। यही कारण है कि झारखण्ड में शिबू सोरेन अपने मूल नाम से कम और गुरुजी के नाम से ज़्यादा जाने जाते हैं।

यूँ तो शिबू सोरेन किसी सम्मान के मोहताज नहीं हैं। हर सम्मान से वह ऊपर हैं। इसके बाद भी सरकार ने हाल में जो फ़ैसला लिया है, वह राज्य के लोगों को लिए एक तोहफ़ा है और ख़ुद शिबू के सम्मान में वृद्धि है।

दरअसल झारखण्ड के सबसे बड़े और सबसे क़द्दावर नेता दिशोम गुरु के रांची स्थित सरकारी आवास को विरासत के रूप में बदलने का फ़ैसला उनके जीते-जी लिया गया है। खास बात यह है कि यह फ़ैसला उनके बेटे और राज्य के मुख्यमंत्री हेंमत सोरेन की सरकार ने लिया है। सरकार का यह फ़ैसला झारखण्ड के जनमानस की उस भावना को धरातल पर उतारने जैसा है, जिसमें गुरुजी के प्रति बेपनाह प्यार झलकता है। गुरुजी अब केवल झारखण्ड के नेता नहीं हैं, बल्कि एक ऐसी शख़्सियत हैं, जिन्होंने हमेशा अलग लकीर खींची है। चाहे सामाजिक आन्दोलन हो या राजनीतिक, शिबू सोरेन का तरीक़ा हमेशा से अलग रहा है। महाजनी प्रथा और आदिवासियों में नशे की बुरी लत के ख़िलाफ़ अभियान चलाने वाले शिबू सोरेन ने राजनीति में भी अद्भुत शालीनता का परिचय दिया है। अपने पाँच दशक के राजनीतिक जीवन में उन्होंने शायद ही अपने किसी राजनीतिक विरोधी के लिए नकारात्मक बातें कही हों। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दलों में उनके लिए बराबर का सम्मान है। झारखण्ड की माटी का यह नायाब हीरा दरअसल हर उस सम्मान का हक़दार है, जो झारखण्ड की हवाओं की ख़ुशबू से होकर गुजरता है। केवल झारखण्ड के लिए जीने वाले इस शख़्सियत को दिया जाने वाला हर सम्मान ख़ुद उस सम्मान का सम्मान है; ऐसा लोग मानते हैं।

कहीं विरोध या आलोचना नहीं

राजनीति में सत्ता पक्ष और विपक्ष सिक्के के दो पहलू हैं। अमूमन सत्ता पक्ष यानी सरकार के हर फ़ैसले में विपक्षी ख़ामियाँ निकालता है। सरकार के फ़ैसलों में विपक्षी दलों का विरोध या आलोचना एक आम बात है। देखा गया है कि सरकार के बहुत-ही कम फ़ैसलों में विपक्ष की सहमति रहती है। राज्य में झामुमो के नेतृत्व में गठबन्धन की सरकार है। सरकार में कांग्रेस, राजद घटक दल के रूप में शामिल हैं। मुख्य विपक्षी दल भाजपा है। सरकार ने पिछले सप्ताह शिबू सोरेन के सरकारी आवास को विरासत (हेरीटेज बिल्डिंग) बनाने का फ़ैसला लिया और इसकी घोषणा की गयी। इस घोषणा पर कहीं से विरोध या आलोचना के स्वर नहीं उभरे हैं। यहाँ तक कि विपक्षी दल यानी भाजपा के नेताओं ने भी इस मामले का विरोध नहीं किया। उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की। भाजपा के कुछ नेता सरकार के इस फ़ैसले के पक्ष में ही दिखे।

भाजपा ने ही दिया था आवास

शिबू सोरेन झामुमो का नेतृत्व करते हैं। यानी भाजपा के लिए विपक्षी दल के नेता हैं। लेकिन उनके कद का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शिबू सोरेन वर्तमान में जिस सरकारी आवास में रहते हैं, वह उन्हें भाजपा शासनकाल में ही आवंटित किया गया था। ख़ास बात है कि इस आवास को आवंटित करते समय उनके सम्मान, प्रतिष्ठा को देखते हुए यह निर्णय लया गया कि शिबू सोरेन सांसद या विधायक रहें अथवा न रहें, वह किसी पद को धारण करें अथवा न करें; इससे उनके आवास आवंटन पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। आवंटित आवास ताउम्र उनके ही अधीन रहेगा। यानी एक तरह से यह आवास शिबू के नाम ही कर दिया गया। अब उन्हीं की पार्टी के नेतृत्व में चल रही उनके बेटे हेमंत सोरेन की सरकार ने इसी आवास को विरासत के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया है।

ख़ुद में मिसाल हैं दिशोम गुरु

रांची से लगभग 70 किलोमीटर दूर रामगढ़ जिले के गोला से एक पतली-सी सडक़ पहाड़ों पर नागिन की तरह डोलती जाती है। यह सडक़ जहाँ ख़त्म होती है, वहीं एक गाँव है- नेमरा। वहीं एक छोटा-सा रेलवे स्टेशन है, जिसका नाम है- बडग़ल्ला। इसी नेमरा में शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी, 1944 को हुआ। नेमरा गाँव विशालकाय चंदू पहाड़ के बीच बसा हुआ है। गाँव के आसपास महाजनों-बनियों की अजगर-सी कतारें फैली हुई हैं। चंदू पहाड़ से शिबू सोरेन का बड़ा गहरा नाता है; क्योंकि इसी पहाड़ के आँचल में उनके पिता सोबरन माँझी की समाधि है। अफ़सोस कि शिबू जब छोटे थे, उनके पिता की महाजनों और बनियों ने 27 नवंबर, 1957 को हत्या कर दी थी। इस पूरी घटना का किशोर शिबू सोरेन पर गहरा प्रभाव पड़ा। थोड़ा बड़ा होते ही शिबू सोरेन ने दुश्मनों को नहीं, बल्कि दुश्मनी पैदा करने वाली व्यवस्था अर्थात् महाजनी सभ्यता को समाप्त करने के लिए धनकटनी आन्दोलन छेड़ दिया और आदिवासियों के मन में यह बात बैठा दी कि जल-जंगल-ज़मीन पर उनका प्राकृतिक अधिकार है। इस आन्दोलन ने महाजनी प्रथा की नींव को खोखला कर दिया। साथ ही धरती की लूट से बचाने वाले दूसरे आन्दोलन (कोयलांचल की कोयला माफिया के ख़िलाफ़ लड़ाई) करने वाले लोग भी इस आन्दोलन से जुड़ते चले गये। एक महा आन्दोलन खड़ा होने से महाजनी सभ्यता की नुमाइंदगी करने वाले परेशान हो गये। इसी क्रम में बिनोद बिहारी महतो और ए.के. राय से भी शिबू सोरेन का मिलना हुआ। झारखण्ड की भूमि की लूट को रोकने के लिए सांगठनिक प्रयास के रूप में सन् 1972 में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का जन्म हुआ। शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा के ख़िलाफ़ बड़े आन्दोलन की शुरुआत की और आदिवासी समाज में जागृति लाने के लिए अभियान प्रारम्भ किया। पोखरिया आश्रम में रहने के दौरान ही उन्हें जनजातीय समाज की ओर से दिशोम गुरु की संज्ञा दी गयी।

उनके संघर्ष की फ़ेहरिस्त इतनी लम्बी है कि गिनाने के लिए सम्भवत: शब्द भी कम पड़ जाएँ। शिबू सोरेन सम्भवत: लोकतंत्र के अकेले ऐसे नेता हैं, जो आक्रामक राजनीति के इस दौर में भी कभी अपने विरोधियों के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोलते। शान्त, संयत और शालीन तरीक़े की राजनीतिक कार्यशैली ही उन्हें दूसरों से अलग करती है, और यही कारण है कि वह जननेता कहे जाते हैं। शिबू सोरेन के जीवन में कहानियाँ ही कहानियाँ हैं। जिस तरह से चट्टानें हज़ारों साल का इतिहास अपने सीने में सँजोये रखती हैं, उसी तरह दिशोम गुरु का जीवन क़िस्सों-कहानियों और असंख्य दु:खों से रंगा हुआ है। वह संघर्ष और आन्दोलन की जीती-जागती मिसाल हैं। अपने जीवन-काल में ही इतिहास पुरुष बन चुके शिबू सोरेन को जानते-समझते हुए सैकड़ों संघर्ष याद आने लगते हैं, जो अपनी माटी, पहाड़, पेड़, पानी और ज़िन्दगी की हिफ़ाजत में लड़े गये। दिशोम गुरु का संघर्ष हमेशा प्रेरित करता है। उनकी सादगी विरल है। उनकी आँखें अब भी उतनी ही स्वपनीली हैं, जितनी पहले हुआ करती थीं। बदलाव के तमाम झंझावातों और दबावों में वह आज भी कई मायनों में पहले जैसे ही हैं। राजनीति में आने के बाद दिशोम गुरु को भी तमाम जटिल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। मगर उन्हें राजनीति में लाने के लिए वही परिस्थितियाँ ज़िम्मेदार हैं, जिन्होंने उनका बचपन काँटों से भर दिया था।

संघर्ष की गाथा बताएगा भवन

दिशोम गुरु का सरकारी आवास रांची के मोरहाबादी इलाक़े में है। इसे नये सिरे से सँवारने की तैयारी शुरू हो गयी है। इसे ऐतिहासिक इमारत के रूप में भी विकसित किया जाएगा, जिसमें शिबू सोरेने का जीवन दर्शन भी झलकेगा। भवन निर्माण विभाग ने इसके लिए निविदा (टेंडर) जारी की है। विरासत भवन का रूप देने के लिए इस पर क़रीब पाँच करोड़ रुपये ख़र्च किये जाएँगे। नये साल में इसके निर्माण का काम शुरू होने की उम्मीद है। इसे छ: महीने में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। भवन निर्माण विभाग द्वारा भवन का काम किया जाएगा। भवन के अन्दर इंटीरियर और अन्य कार्य कला एवं संस्कृति विभाग द्वारा किया जाएगा। यहाँ शिबू सोरेन के संघर्ष की गाथा को तस्वीरों के ज़रिये दिखाया जाएगा। इसके लिए पुरानी तस्वीर और पेंटिंग्स के साथ-साथ उनके संघर्ष की पूरी कहानी की जानकारी मिल सकेगी। अधिकारियों का कहना है कि इस भवन को विरासत के रूप में विकसित करने के पीछे सरकार का उद्देश्य कि लोग सूदख़ोरी-महाजनी प्रथा से लेकर झारखण्ड आन्दोलन तक लम्बी लड़ाई लडऩे वाले अपने नेता के जीवन और संघर्ष के बारे में प्रामाणिक तरीक़े से जानकारी हासिल कर सकें।

“सांसद शिबू सोरेन के आवास को ऐतिहासिक इमारत के रूप में संरक्षित किया जाएगा। आवासीय परिसर में विभिन्न प्रकार की गैलरी होंगी। जिसमें शिबू सोरेन के पूरे जीवन-काल के संघर्ष को तस्वीरों के ज़रिये दिखाया जाएगा। राज्य के विभिन्न आन्दोलनों में शिबू सोरेन की भूमिका का विस्तार से वर्णन होगा। अलग-अलग वक़्त में दिशोम गुरु के द्वारा किये गये कार्यों की व्याख्या भी होगी। चूँकि अभी शिबू सोरेन इस आवास में रह रहे हैं, इसलिए इसके एक हिस्से को विरासत के रूप में विकसित किया जा रहा है। इस कार्य को छ: माह में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। उनके आवास को विरासत भवन बनाने में कला संस्कृति विभाग की भी मदद ली जा रही है”।

(सुनील कुमार, सचिव, भवन निर्माण विभाग)

लम्बे संघर्ष के बाद घर लौटे अन्नदाता

कोरोना वायरस की दहशत के बीच सन् 2020 की पहली तालाबन्दी के दौरान केंद्र सरकार द्वारा लाये गये तीन कृषि क़ानूनों की वापसी के बाद किसानों की अन्य माँगों पर सरकार ने हाँ की मुहर लगा दी है। किसानों ने केंद्र सरकार से यह लड़ाई दिल्ली की सीमाओं पर पूरे एक साल 13 दिन तक लड़ी, जबकि अगर पंजाब की धरती से शुरू हुए इस आन्दोलन की समय-सीमा की बात करें, तो यह डेढ़ साल से अधिक चला। हालाँकि अभी एमएसपी पर क़ानून नहीं बना है, जिसका कि आश्वासन देकर सरकार ने समिति गठन की सहमति दे दी है।

इतिहास में यह बाद स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज होगी कि एक मनमानी करने वाली सरकार को किसानों ने लम्बा, त्यागपूर्ण और शान्तिपूर्ण आन्दोलन करके आख़िरकार झुका दिया। यह कोई आसान काम नहीं था। इसके कृषि क़ानूनों के विरोध में इस लड़ाई में असीमित समय के लिए घर छोडऩे, नुक़सान उठाने और यहाँ तक कि जान जाने तक का जोखिम किसानों ने उठाया। बड़ी बात यह रही कि इसे किसानों ने उसी तरह सहर्ष हँसकर स्वीकार किया, जिस तरह कोई देशभक्त अपने वतन को बचाने के लिए सब कुछ न्योछावर करने को तैयार हो जाता है। और उन्होंने हर तरह का नुक़सान उठाया भी, जिसमें सबसे बड़ा नुक़सान उन किसान परिवारों का हुआ, जिनके अपने इस आन्दोलन के दौरान शहीद हो गये। यह संख्या कोई छोटी नहीं, बल्कि 700 से अधिक थी।

किसानों ने इतने पर भी सीमाओं पर खड़े जवानों की तरह अपना हौसला बनाये रखा और सबसे बड़ी बात शान्ति बनाये रखी। जबकि उन्हें देशद्रोही, ख़ालिस्तानी, पाकिस्तानी और दलाल जैसे अशोभनीय और कलंकित करने वाले शब्दों से भी इस दौरान सम्बोधित किया गया। उन पर अत्याचार भी किये गये। शत्रुओं की तरह उनसे व्यवहार किया गया। किसानों के इस आन्दोलन की सबसे बड़ी बात यह है कि यह लड़ाई सिर्फ़ किसानों ने अपने लिए ही नहीं, बल्कि लोगों के लिए भी लड़ी। क्योंकि उन्होंने यह आन्दोलन खेती, जमीन बचाने के अलावा महँगाई पर रोक लगाने के मक़सद से भी किया। खैर, एक साल 13 दिन (कुल 378 दिन) तक चला यह आन्दोलन अब सरकार द्वारा किसानों की सभी माँगें माने जाने के आश्वासन पत्र दिये जाने के बाद स्थगित हो चुका है। लेकिन ख़बरें आन्दोलन के समाप्त की चलने लगी हैं। दरअसल समझने बात यही है कि यह आन्दोलन ख़त्म नहीं, बल्कि स्थगित हुआ है।

कुछ किसान नेताओं ने भी यह बात कही है कि किसान आन्दोलन समाप्त नहीं, बल्कि स्थगित हुआ है। हर महीने की 15 तारीख़ को किसान संगठन की बैठक होती रहेगी। किसानों की सभी माँगें पूरी होने के बाद भी संयुक्त किसान मोर्चा संगठित रहेगा। किसान आन्दोलन ख़त्म करने के सवाल पर संयुक्त किसान मोर्चा के नेता और भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत कहते हैं- ‘पहली बात तो यह कि आन्दोलन स्थगित हुआ है, खत्म नहीं। दूसरी बात, अभी हम (किसान) सरकार की चिट्ठी का अर्थ समझेंगे, फिर उसी के हिसाब से प्रतिक्रिया करेंगे।’

वहीं संयुक्त किसान मोर्चा के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा- ‘संयुक्त किसान मोर्चा की समीक्षा बैठक 15 जनवरी को दिल्ली में की जाएगी। इसके बाद यह समीक्षा बैठक हर महीने हुआ करेगी। अगर केंद्र सरकार अपने वादे से मुकरी, तो आन्दोलन फिर शुरू किया जाएगा।’

वास्तव में देखा जाए, तो किसानों ने एक अहंकारी और स्वयंभू सरकार को झुकाया है, जिससे लोग सबक लेंगे कि अपने हक़ की लड़ाई कैसे लड़ी जाती है। यह आन्दोलन आज़ादी के बाद का देश का सबसे बड़ा किसान आन्दोलन तो है ही, अन्य कोई आन्दोलन भी इतना बड़ा आज़ादी के बाद देश में अभी तक नहीं हुआ है। सबसे बड़ी बात यह है कि किसान संगठनों ने आन्दोलन स्थलों से हटने के समय वहाँ पूरी तरह साफ़-सफ़ार्इ ख़ुद की  है। राकेश टिकैत सभी किसानों के जाने के बाद आन्दोलन स्थल से हटे। यह एक आन्दोलन के अगुआ की नैतिकता है।

किसानों की एकजुटता और सहनशीलता के आगे सरकार झुकी, यह बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात यह है कि किसानों ने सरकार को यह मानने के लिए विवश कर दिया कि वह ग़लती कर रही थी, जिसका उसे खेद है। हालाँकि इसके पीछे भाजपा का एक डर भी था, और यह डर चुनावों में हार के अलावा जनता में अपनी धूमिल होती और बिगड़ती छवि को लेकर था। किसान आन्दोलन के स्थगन से सरकार की छवि कितनी चमक सकेगी? यह तो समय और जनता का फ़ैलसा ही बताएगा। लेकिन प्रधानमंत्री का किसानों के साथ-साथ पूरे देश से माफ़ी माँगना इस बात का सुबूत है कि अन्नदाता का अपमान करने का हक़ किसी को नहीं है।

यह ज़रूरी भी है और सही भी। क्योंकि कृषि प्रधान देश में अगर किसान ही दु:खी हों यह देश, देश की सरकार और देश के दूसरे नागरिकों के लिए शर्म की बात है। इससे भी ज़्यादा शर्मिंदगी की बात यह है कि इतने पर भी हम शर्मिंदा नहीं हैं कि देश के अन्नदाता दु:खी हैं। इतना दु:खी कि वे ख़ुदकुशी करने को मजबूर हैं।

आज ऐसे समय में भी हर साल हज़ारों किसान बदहाली के चलते ख़ुदकुशी करने को मजबूर हो रहे हैं, जब ख़ुद प्रधानमंत्री छोटे किसानों को ख़ुशहाल करने की बात लाल क़िले की प्राचीर से कहते हैं। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि न तो प्रधानमंत्री किसानों की आय दोगुनी करने के अपने वादे को अभी तक निभा सके हैं और न ही देश का किसान ख़ुशहाल दिख रहा है। यह बात उनके ख़ुदकुशी के आँकड़ों से पुष्ट होती है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आँकड़े बताते हैं कि सन् 2016 से सन् 2020 तक कुल 53 हज़ार 341 किसानों ने ख़ुदकुशी की, जिनमें कुछ फ़ीसद खेतिहर मज़दूरों का भी है। हालाँकि सरकारी आँकड़ों में ख़ुदकुशी करने वालों की संख्या इतनी नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक, देश में हर रोज़ 28 किसानों और खेतिहर मज़दूर ख़ुदकुशी करते हैं। लेकिन कुछ जानकार यह संख्या ज़्यादा होने की पुष्टि करते हैं।

अफ़सोस की बात यह है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, इसके बावजूद देश के ही अन्नदाताओं की आर्थिक हालत इतनी ख़राब है कि वह दिन-रात की मेहनतों के बावजूद क़र्ज़ में डूबे रहते हैं। इसकी वजह यह है कि किसानों के उत्पादों को सस्ते में ख़रीदकर दलाल और बिचौलिये बहुत कम समय में उनसे अधिक पैसा कमा लेते हैं। वहीं जो उत्पाद सरकार किसानों से ख़रीदती है, वह पैसा भी उन्हें नक़द नहीं मिलता। गन्ना फैक्ट्रियाँ तो किसानों से उधार गन्ना लेकर लाखों-करोड़ों के बारे-न्यारे करती हैं। इस प्रकार देश के किसानों से दो तरह से ठगी होती है। एक, उनके उत्पाद सस्ते ख़रीदे जाते हैं और दूसरे, उन्हें अमूमन नक़द भुगतान नहीं किया जाता। इसके विपरीत किसानों को खेती करने के लिए जिन-जिन चीज़ों की ज़रूरत पड़ती है, वे सब उन्हें नक़द और महँगी ख़रीदनी पड़ती हैं।

इस तरह की सदियों से मार सहने वाले किसानों को इस बार कृषि क़ानूनों के झमेले में डाला जा रहा था, जो कि उनके हित में नहीं बताये जा रहे थे। यही वजह रही कि किसानों को इन कृषि क़ानूनों के विरोध में आन्दोलन करना पड़ा। इससे केंद्र सरकार की देश के अलावा दुनिया में भी निंदा हुई। इसके अलावा उसे हाल के चुनावों में इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा। माना जा रहा है कि चुनावों में हार का डर सामने देख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि क़ानूनों की वापसी की घोषणा 19 नवंबर, 2020 को गुरु पर्व के दिन बड़े ही भावुक तरीक़े से की। 29 नवंबर को इस साल के शीत सत्र के पहले दिन 29 नवंबर को संसद के दोनों सदनों में फटाफट तीनों कृषि क़ानूनों की वापसी के लिए कृषि क़ानून वापसी विधेयक पास कर दिया। हालाँकि अभी किसानों की बाक़ी माँगों को लेकर कोई काम नहीं हुआ है; लेकिन सरकार ने इसके लिए किसानों को पत्र सौंपकर आश्वासन ज़रूर दिया है, जिनमें आन्दोलन में शहीद हुए किसानों के परिजनों को मुआवज़ा देने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर क़ानून बनाने को लेकर एक समिति गठित करने की सहमति समेत किसानों की अन्य सभी प्रमुख माँगें मान ली हैं।

‘तहलका’ ने आन्दोलन शुरू होने से लेकर आन्दोलन के हर पहलू को अपने अंकों में निष्पक्ष और निर्भीक तरीके से स्थान दिया है। किसानों की घर वापसी भले ही आन्दोलन समाप्त करने की शर्त पर नहीं हुई है; लेकिन तसल्ली वाली है। हम किसानों को इस बड़ी जीत की बधाई देते हैं और कामना करते हैं कि अब कुछ ऐसा हो, जिससे देश के सभी किसानों की आर्थिक दशा सुधरे और वे ख़ुशहाल हों।

एमएसपी का आकलन

सन् 1965 में देश की तत्कालीन सरकार ने यह निर्णय लिया कि कुछ कृषि उत्पादों को सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य अर्थात् मिनिमम सपोर्ट प्राइस (एमएसपी) पर ख़रीदेगी। तबसे सरकार द्वारा तय भाव पर किसानों द्वारा उगायी गयी कुछ फ़सलों के उत्पादों को देश की सरकार ने अपने तथा राज्य सरकारों के माध्यम से ख़रीदना शुरू किया। इन उत्पादों की ख़रीद के लिए केंद्र सरकार ने भारतीय खाद्य निगम की स्थापना की, जो राज्य सरकारों की ख़रीद संस्थाओं के ज़रिये किसानों से लेबी (सहकारी ख़रीद केंद्र) की मदद से किसानों के उत्पाद ख़रीदती हैं।

भारतीय खाद्य निगम की मानें, तो कृषि उत्पाद खरीद की इस श्रेणी में कुल 23 उत्पाद आते हैं, जिन्हें कि सरकार द्वारा ख़रीदा जाना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से किसानों के पाँच-छ: उत्पाद ही इन ख़रीद केंद्रों पर ख़रीदे जाते हैं। इनमें भी गेहूँ और धान की सबसे ज़्यादा ख़रीद होती है; लेकिन यह भी केवल क्रमश: 22 और 28 फ़ीसदी ही है। बाक़ी खाद्यान्नों में कुछ की ख़रीद उत्पादन से 10 फ़ीसदी, तो कुछ की पाँच फ़ीसदी से भी कम की जाती है। लेकिन ये उत्पाद भी चार-पाँच ही हैं। अर्थात् 23 में से 13 से अधिक उत्पादों को सरकार नहीं ख़रीदती। इसके बावजूद जो भी उत्पाद सहकारी ख़रीद केंद्रों पर ख़रीदे जाते हैं, उन्हें बेचने में भी किसानों को तरह-तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। इस बार की ही बात करें, तो धान की ख़रीदी इतनी देरी से हुई कि छोटे किसानों ने मजबूरन आढ़तियों को कम भाव में धान बेच दिये। किसानों के लिए यह हर साल का रोना है। ऐसे में अगर एमएसपी पर क़ानून बन जाता है, तो सम्भवत: किसानों को राहत मिले तथा वे बिचौलियों, आढ़तियों और दलालों के हाथों ठगे जाने से बच सकें।

लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या केंद्र सरकार द्वारा बनायी गयी यह समिति एमएसपी पर क़ानून बनाने के निर्णय तक पहुँच सकेगी? क्या समिति एमएसपी को लेकर कोई ऐसा निर्णय ले पाएगी, जिससे किसानों को हर फ़सल पर होने वाले नुक़सान से निजात मिल सके?

आर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) की रिपोर्ट के मुताबिक, सन् 2000 से सन् 2017 तक केवल 18 साल में देश के किसानों को 45 लाख करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह नुक़सान किसानों को उनके कृषि उत्पादों का उचित दाम न मिलने की वजह से हुआ है।

हाल ही में जारी नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन (एनएसएसओ) की रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों की प्रति महीने औसत आय केवल 10,218 रुपये है, जिसमें खेती से उन्हें केवल औसतन 3,798 रुपये प्रति माह ही प्राप्त होते हैं। इसके अलावा एक अन्य सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में 80 फ़ीसदी छोटे किसान हैं और उनकी दैनिक आय महज़ 27 रुपये है। किसानों की इतनी कम आय की वजह उनके कृषि उत्पादों का बाज़ार में सही भाव नहीं मिलना है। आज देश के ज़्यादातर कृषि वैज्ञानिक और बुद्धिजीवी इस बात के पक्ष में हैं कि किसानों को उनके उत्पादों का सही भाव मिले। लेकिन वहीं कुछ तथाकथित कृषि विशेषज्ञ और सरकार के नुमाइंदे कहते हैं कि एमएसपी लागू करने से बाज़ार की स्थिति बिगड़ जाएगी। महँगाई बढ़ जाएगी। लेकिन सवाल यह है कि कई महीने खेतों में मेहनत करके, लागत लगाकर फ़सल पैदा करने वाला किसान अपनी लागत भी वापस नहीं पाता, जबकि बिचौलिये, दलाल और आढ़तिये चंद मिनटों या कुछ ही दिनों में किसान से भी ज़्यादा मुनाफ़ा उन्हीं उत्पादों से कमा लेते हैं। तो क्या सरकार और यह तथाकथित कृषि विशेषज्ञ इन बिचौलियों, दलालों और आढ़तियों के पक्ष में खड़े हैं? क्या सरकार को देश का पेट भरने वाले अन्नदाता से ज़्यादा चिन्ता उन लोगों की है, जो अपने मुनाफ़े के चक्क में किसानों को लूटने के अलावा जनता की भी जेब काटते हैं और इसके बावजूद मिलावट करके जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हैं? इसके पीछे क्या रहस्य है? यह बताने की हमें ज़रूरत नहीं; आप ख़ुद समझदार हैं।

एमएसपी पर ना-नुकुर क्यों?

किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने में अब तक की सभी सरकारों ने ना-नुकुर की है। यही वजह रही कि सन् 1965 में एमएसपी पर कृषि उत्पादों की ख़रीद की सहमति के बावजूद आज तक न्यूनतम समर्थन मूल्य क़ानून नहीं बन सका। न ही आज तक किसी सरकार ने रंगनाथन समिति और स्वामीनाथन समिति की सिफ़ारिशें लागू कीं। यहाँ तक कि सन् 2011 में वर्किंग रूल्स ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स के अध्यक्ष रहते हुए नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार को रिपोर्ट ऑफ वर्किंग ग्रुप कंज्यूमर अफेयर्स के नाम से एक रिपोर्ट सौंपकर एमएसपी को वैधानिक दर्जा देने की माँग की थी। तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। लेकिन अब जब मोदी ख़ुद प्रधानमंत्री हैं, तो वह इस पर क़ानून बनाने से कतराते रहे हैं, और अब किसानों द्वारा दबाव बनाये जाने पर एमएसपी पर क़ानून बनाने के लिए उनकी सरकार ने समिति बनाने पर सहमति दी है। जबकि सरकार दूसरे क़ानूनों की तरह बिना चर्चा के चुपचाप यह क़ानून बना सकती है।

कोरोना का यू-टर्न ओमिक्रॉन!

देश में कोरोना वायरस के मामलों में हर रोज़ आ रही गिरावट को लेकर राहत के बीच इस महामारी के नये वायरस ओमिक्रॉन ने दस्तक दे दी है।

देश में ओमिक्रॉन के मामले कर्नाटक, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में ओमिक्रॉन के कई मामले आ चुके हैं; लेकिन अच्छा यह है कि ओमिक्रॉन के मरीज इलाज के बाद निगेटिव (ठीक) भी हो रहे हैं। ओमिक्रॉन वायरस हमें सावधान करता है कि अगर ज़रा-सी लापरवाही की गयी, तो फिर से कहर का सामना करना होगा। कोरोना के दूसरी लहर ने 2021 अप्रैल-मई में जो कहर बरपाया था, उससे से भी अधिक ओमिक्रॉन के कहर से तीसरी लहर आने की सम्भावनाएँ जतायी जा रही हैं।

‘तहलका’ संवाददाता ने ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों को लेकर देश के डॉक्टरों और डब्ल्यूएचओ के अधिकारियों से बात की। उन्होंने बताया कि कोई भी महामारी हो अगर लापरवाही बरती जाए, तो घातक परिणाम सामने आते हैं। फिर यह तो ओमिक्रॉन है, जो कोरोना के नये स्वरूप में आया है। दुनिया के 60 से अधिक देश इसकी ज़द में है। दिल्ली सरकार के स्टेट प्रोग्राम ऑफिसर (एनसीसीएचएच) डॉक्टर भरत सागर का कहना है कि भले ही भारत में ओमिक्रॉन के मामले बहुत कम सामने आये हैं। लेकिन हमें सतर्क रहना होगा। क्योंकि जिस गति से पूरी दुनिया में ओमिक्रॉन का प्रसार हो रहा है, वो वाक़र्इ चिन्ता की बात है। नये ओमिक्रॉन का जो कहर यूरोप और अमेरिका हर रोज़ जो देखने को मिल रहा है, वो ज़रूर तीसरी लहर की आशंका को बल देता है। उन्होंने बताया कि ओमिक्रॉन के बारे में जो अध्ययन देश-दुनिया में किया गया है, उससे आशंका है कि जनवरी-फरवरी माह में तीसरी लहर आ सकती है। तीसरी लहर को रोकने के लिए हमें उन कारकों पर रोक लगानी होगी, जो ओमिक्रॉन को बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार हैं। अगर समय रहते पाबन्दी नहीं लगायी गयी, तो आने वाले दिनों में भयावह परिणाम सामने आ सकते हैं।

कोरोना के नये स्वरूप के बारे में डॉक्टर दिव्यांग देव गोस्वामी ने कहा कि कोरोना वायरस जब भारत देश में 2020 में आया था, तब हम और हमारी चिकित्सा प्रणाली नये वायरस को लेकर काफ़ी हद तक अनभिज्ञ थे। लेकिन अब कोरोना वायरस हो या ओमिक्रॉन हो, हम काफ़ी हद तक इसका उपचार करने में सफल हुए हैं। टीकाकरण भी हुआ है, जिससे राहत मिली है। इसलिए जितनी जल्दी हो सके, सभी का टीकाकरण होना चाहिए। जिन लोगों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम है, उनको बूस्टर की ख़ुराक लगनी चाहिए। साथ-ही-साथ 12 से 18 साल के बच्चों का टीकाकरण होना चाहिए। डॉक्टर दिव्यांग का कहना है कि कोरोना वायरस का कहर जब 2020 में आया था, हम सबने मिलकर सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) अपनाकर, मास्क लगाकर और सेनेटाइजर का उपयोग करके उसका मुक़ाबला किया। अब यही सब हमें फिर से करना है; क्योंकि सावधानी में ही बचाव है। केवल घबराने से काम नहीं चलेगा।

डब्ल्यूएचओ इंडिया की अधिकारी डॉक्टर पूनम खेत्रपाल ने बताया कि डब्ल्यूएचओ ने सचेत किया है कि कोरोना के नया स्वरूप ओमिक्रॉन डेल्टा के नये वॉरिएंट से अधिक गति से फैलता है। इसकी शुरुआत अफ्रीका से हुई और अब यह दुनिया के 60 से अधिक देश में फैल चुका है। डॉक्टर पूनम खेत्रपाल का कहना है कि समय रहते अगर अभी से सख़्ती की जाए तो जनवरी-फरवरी में तीसरी लहर की सम्भावनाओं को टाला जा सकता है।

आईएमए के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि जिस गति से कोरोना से बचाव के लिए टीकाकरण हुआ है, उसी गति से जल्द-से-जल्द बच्चों के लिए टीकाकरण पर फ़ैसला होना चाहिए। क्योंकि जो आशंका बच्चों को लेकर व्यक्त की जा रही है, वो हमें जल्द-से-जल्द उनकी हिफ़ाज़त में क़दम उठाने के लिए सचेत करती है। डॉक्टर बंसल का कहना है कि ये तो स्पष्ट है कि कोरोना अभी हमारे बीच से गया नहीं है। ऐसे में सरकार महानगरों से साथ-साथ गाँव-गाँव तक में कोरोना से बचाव के लिए जो भी हो सके, स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करे, ताकि कोई भी मरीज़ इलाज व चिकित्सा संसाधनों के अभाव में दम न तोड़े। क्योंकि गत अप्रैल-मई माह में कोरोना के चलते तबाही का जो मंज़र देखा है, वो आज भी अन्दर से हिला देता है। देश में आज भी इलाज के अभाव में बहुत लोगों की मौत हो रही है, जो कि चिन्ता का विषय है।

डॉक्टर बंसल का कहना है कि कोरोना हो या ओमिक्रॉन, बचाब और बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाओं से ही इनसे निपटना सम्भव है। आज देश में मधुमेह, हृदय, अस्थमा और अन्य कई बीमारियों के मरीज़ों की भरमार है, उनका भी इलाज ज़रूरी है। कोरोना संक्रमण के साथ अन्य संक्रमणों से ख़ुद का बचाव लोगों को भी करना होगा। लोगों को डरने की बजाय बचाव और पौष्टिक भोजन पर बल देना चाहिए, ताकि रोग-प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एसोसिएट प्रो. डॉक्टर युद्धवीर सिंह ने बताया कि जिस तरह कोरोना वायरस से बचाव के लिए सावधानी बरती गयी है, उतनी ही सावधानी ओमिक्रॉन को लेकर नहीं बरती जा रही है। लोगों को चाहिए कि जब तक कोरोना पूरी तरह से समाप्त न हो जाए, मास्क लगाकर घर से निकलें, भीड़-भाड़ वाले इलाक़ों में न जाएँ। जिन लोगों ने टीका नहीं लगवाया है, वे जल्द-से-जल्द टीकाकरण करवाएँ। डॉक्टर युद्धवीर सिंह का कहना है कि ओमिक्रॉन को लेकर यह न सोचें कि यह वायरस कम प्रभावी है या अधिक प्रभावी; बल्कि इस बात पर बल दें कि कोरोना संक्रमण किसी पास न भटकने पाये। ओमिक्रॉन के लक्षण बच्चों और वयस्कों में अलग-अलग हैं, यह कह पाना कठिन है। ऐसे में अगर बच्चे और बुज़ुर्ग को खाँसी, जुकाम और बुख़ार हो, तो उसे नज़रअंदाज़ न करें; डॉक्टर से परामर्श लें और उपचार करवाएँ।

गंगाराम अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर प्रवीण भाटिया का कहना है कि कोरोना का यू-टर्न जो ओमिक्रॉन के रूप में आया है, वो सचेत करता है कि कोरोना हमारे बीच में है। लेकिन कोरोना के अटैक से डरना नहीं है, उसका समय रहता इलाज करवाना है। मौज़ूदा समय में ओमिक्रॉन से बचने के लिए जिन देशों में ओमिक्रॉन के मामले अधिक हैं, उन देशों की यात्रा करने से बचना चाहिए।

कोरोना के यू-टर्न को लेकर पूरी दुनिया में फिर वही डर और महामारी का वातावरण बनने लगा है, जो कोरोना के आने के बाद 2020 में बना था। तब भी डब्ल्यूएचओ ने दुनिया भर को कोरोना को लेकर सावधानी बरतने को कहा था। इस बार यह बात भी सामने आ रही है कि कोरोना के नये स्वरूप को लेकर ज़्यादातर लोगों में डर और भय का माहौल नहीं है। देश के जाने-माने चिकित्सकों का कहना है कि कोरोना को लेकर जो बातें तमाम अध्ययन डब्ल्यूएचओ के द्वारा किये जा रहे हैं, उससे देश का एक बड़ा चिकित्सा समुदाय इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता है। ऐसे में लोग स्वयं भी कोरोना से बचाब के दिशा-निर्देशों का पालन करें और टीकाकरण कराएँ। डर का जो माहौल बनाया जा रहा है, वो ग़लत है। आँकड़ों की हेरा-फेरी है। देश में आँकड़ों की बाज़ीगरी करके लोगों के मन में यह बैठाया जा रहा है कि कोरोना महामारी से ज़्यादा ख़तरनाक ओमिक्रॉन है।

दिल्ली के दवा व्यापारी रोमेश कुमार का कहना है कि कोरोना को हमेशा के लिए ख़त्म करना मुश्किल इसलिए हो रहा है, क्योंकि इसके पीछे मुनाफ़े का बड़ा बाज़ार है। कोरोना को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है, ताकि लोगों में डर बना रहे और कोरोना के नाम पर बाज़ार चलता रहे हैं। जिस अंदाज़ में इस बार ओमिक्रॉन को बच्चों का दुश्मन बताया गया है, उससे ऐसा लगता है जैसे कि किसी वैज्ञानिक को पता हो कि ओमिक्रॉन सिर्फ़-ब-सिर्फ़ बच्चों के लिए है। दुनिया में अभी ओमिक्रॉन के कुछ ही मामले सामने आ रहे हैं। फिर यह कैसे कहा जा रहा है कि ओमिक्रॉन वायरस सीधे बच्चों पर ही अटैक कर रहा है और करेगा? गत वर्ष अप्रैल-मई माह में जिस तरह कोरोना वायरस की जाँच के नाम पर सीटी स्कैन करवाने के लिए मरीज़ों पर दबाव डाला गया था, उससे देश का ग़रीब तबक़ा काफ़ी परेशान रहा है। क्योंकि सरकारी अस्पतालों में सीटी स्कैन करवाना मुश्किल होता है और वहाँ मरीज़ों को सिफ़ारिश का सहारा लेना होता है; या फिर कई-कई महीनों बाद की तारीख़ मिलती है। ऐसे में मरीज़ों को निजी अस्पतालों में जाकर सीटी स्कैन करवाना पड़ा।

इस बारे में आयुर्वेदिक डॉक्टर सुधीर कुमार का कहना है कि जबसे ओमिक्रॉन को लेकर चिन्ता व्यक्त की गयी है, तबसे निजी अस्पतालों में वो सारी व्यवस्था की जा रही है, जो कोरोना-काल में मरीज़ों के लिए की थी। क्योंकि निजी अस्पतालों में मरीज़ों का इलाज पैसा देकर होता है। सरकारी अस्पतालों मुफ़्त में इलाज भले ही होता है; इनमें सुविधाएँ भी होती हैं; लेकिन मरीज़ का दाख़िला आसानी से नहीं होता है।

तमिलनाडु विमान दुर्घटना हादसा या साज़िश!

विमान हादसे में जनरल रावत, उनकी पत्नी समेत 13 अफ़सरों की मौत पर उठे सवाल

यह 13 नवंबर, 2021 की ही बात है, देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने एक कार्यक्रम में कहा था कि भारत के लिए पाकिस्तान नहीं, बल्कि चीन सबसे बड़ा खतरा है। यह जनरल रावत ही थे, जो सीमा पर चीन की तरफ़ से तनाव बनाये जाने पर उसका नाम लेकर हुंकार भरते थे। यह माना जाता है कि रावत के चीन को लेकर बयान दरअसल मोदी सरकार की आवाज़ होते थे। केंद्र सरकार ने दोनों देशों के बीच वर्तमान तनाव पर कभी सीधे-सीधे चीन का नाम लेकर कोई टिप्पणी नहीं की। इसके पीछे कूटनीतिक सम्बन्धों में कोई बाधा नहीं आने देने की रणनीति हो सकती है। लेकिन जनरल रावत ने नवंबर में चीन का सीधे-सीधे नाम लेकर टिप्पणी की। अब साल के आख़िरी महीने की 8 तारीख़ को तमिलनाडु में एक विमान हादसे में जनरल बिपिन रावत सहित 13 प्रमुख लोगों की मौत हो गयी। इस विमान हादसे पर सवाल उठ रहे हैं। देश की ख़ुफ़िया संस्थाएँ इस खोज में जुट गयी हैं कि क्या यह हादसा एक साधारण हादसा ही था या इसके पीछे देश को नुक़सान पहुँचाने का कोई गहरा षड्यंत्र है।

प्रारम्भिक जाँच के सुबूत संकेत करते हैं कि इस हादसे को साधारण हादसा मानकर ख़ारिज नहीं किया जा सकता। भारतीय वायु सेना पहले ही दुर्घटना की जाँच के आदेश दे चुकी है। फ़िलहाल इस हादसे की जाँच जारी है, ताकि दुर्घटना का सच सामने लाया जा सके।

जनरल बिपिन रावत हमेशा चीन के ख़िलाफ़ मुखर रहने वाले सेनाधिकारी रहे। भारत और चीन के बीच वृहद सीमा पर तनाव के मामले में रणनीति के सूत्रधारों में जनरल रावत प्रमुख चेहरा थे। ऐसे में संदिग्ध तरीक़े के इस हवाई हादसे में उनकी जान जाने के बाद कई प्रमुख जानकारों ने सवाल उठाये हैं और यह माँग की है कि इस हादसे की व्यापक जाँच होनी चाहिए। क्योंकि इस हादसे के बाद चीन के सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स की टिप्पणी गौर करने लायक है, जिसने हादसे के बाद अपने एक लेख में चीनी विशेषज्ञों का हवाला देते हुए लिखा- ‘विमान हादसे में भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की मौत भारत की सैन्य अनुशासनहीनता और युद्ध की तैयारियों की पोल ही नहीं खोलती, अपितु भारत के सैन्य आधुनिकीकरण की सच्चाई को भी सामने लाती है।’

अख़बार ने दावा किया है कि भारत में सैन्य आधुनिकीकरण आज भी ठहरा हुआ है और यह काफी समय लेगा। ख़ास बात यह है कि ग्लोबल टाइम्स ने इस लेख को अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से भी शेयर किया है। ग्लोबल टाइम्स के इस लेख पर भारत में कड़ी प्रतिक्रिया दखने को मिली है और कई बड़ी हस्तियों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए जवाबी हमला भी किया है। एक ट्वीट में भारत के सेना प्रमुख रहे जनरल वेद मलिक ने कहा- ‘सामाजिक मूल्यों और नैतिकता की घोर कमी के चलते चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी से और क्या उम्मीद की जा सकती है?’

हादसे में जनरल रावत और अन्य लोगों की मौत ने देश को निश्चित की बड़ा झटका दिया है और लोग इससे सदमे में हैं। इसके कारण भी हैं। देश के किसी भी महत्त्वपूर्व मुद्दे पर अपनी बेबाक राय रखने के लिए पहचाने जाने वाले भारत के बुद्धिजीवी नेता माने जाने वाले राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी ने इस हादसे के बाद इस घटना के पीछे बड़ी विदेशी साज़िश की आशंका जताकर देश में नयी बहस छेड़ दी है। स्वामी  ने कहा- ‘सब जानते हैं कि जनरल रावत चीन को लेकर स्पष्टता से अपनी बात कहते थे। मुझे लगता है कि शायद भारत अभी तक चीन को बहुत हल्के में ले रहा है। इस  आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता कि विमान हादसे का शिकार न हुआ हो और उसे निशाना बनाया गया हो। इस घटना में साइबर वारफेयर की आशंका से इन्कार नहीं जा सकता।’

ज़ाहिर है उनके बयान के बाद देश में इस मसले पर लोगों की उत्सुकता है कि घटना के पीछे का सच क्या है? दर्ज़नों आशंकाओं के इन काले बादलों के बीच यह जानना भी ज़रूरी है कि जिस एमआई-17वी -5 विमान हादसे में जनरल रावत सहित 13 लोगों की जान चली गयी, उसे सुरक्षा की दृष्टि से वायु सेना का सबसे भरोसेमंद वर्कहॉर्स माना जाता है। एमआई-17वी -5 विमान बेहतर एवियोनिक्स के साथ रूसी निर्मित एमआई-17 विमानों के बेड़े का नवीनतम संस्करण है। भारत के पास इनका एक बड़ा बेड़ा है, जिसे यूपीए के समय सन् 2008 और एनडीए के समय सन् 2018 के बीच ख़रीदकर सेना के बेड़े में शामिल किया गया। हादसे के बाद बहुत-से रक्षा विशेषज्ञों और पूर्व सैन्य अधिकारियों ने एमआई-17वी-5 विमान को उत्कृष्ट और बेहद सुरक्षित बताते हुए हादसे पर सवाल उठाये हैं।

इन पूर्व सैन्य अधिकारियों और रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि एमआई-17वी-5 विमान सियाचिन ग्लेशियर जैसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में लम्बे समय तक इस्तेमाल किया जा रहा है। यहाँ तक कि इसकी विश्वसनीयता और सुरक्षा गारंटी के कारण इस हेलीकॉप्टर को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे वीवीआईपी के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। हादसे के बाद इस विमान के वॉयस रिकॉर्डर और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर के अलावा ब्लैक बॉक्स मिलने पर इससे जानकारियाँ जुटाने की कोशिशें की जा रही हैं।

हादसे की जाँच

भारतीय वायु सेना का कहना है कि हादसे की जाँच जारी है, कृपया अटकलें न लगाएँ। बता दें कुछ बड़े रक्षा विशेषज्ञों ने भी हादसे पर शक ज़ाहिर किया है। जाने-माने रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने तो इस विमान हादसे की तुलना ताइवान के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ जनरल शेन यी मिंग के विमान हादसे से की है। इस हादसे को लेकर उन्होंने चीन पर शक ज़ाहिर किया है। हादसे के तुरन्त बाद जैसे ही जाँच दल का गठन किया गया, भारतीय वायु सेना और स्थानीय पुलिस दल विमान हादसे की जाँच के लिए तमिलनाडु में कुन्नूर के नांजपा छत्रम गाँव पहुँच गया।

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, अभी तक की जाँच में कुछ ज़्यादा साफ़ नहीं हुआ है। हालाँकि जानकर्ता इस हादसे में किसी साज़िश की आशंका को ख़ारिज नहीं कर रहे हैं और जाँच में इस पहलू पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है। हादसे की जाँच को लेकर जानकारी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में दी, जहाँ सभी सदस्यों ने एकमत से इस हादसे पर गहरा दु:ख जताया और रावत व उनकी पत्नी सहित सभी 13 सैन्य अफ़सरों को श्रद्धांजलि दी। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने रावत की देश को दी सेवाओं को याद करते हुए उन्हें महान् योद्धा बताया।

रक्षा विश्लेषक ब्रह्म चेलानी ने रावत की मौत को देश के लिए बड़ा नुक़सान बताते हुए कहा कि सीडीएस की मौत ऐसे मुश्किल समय में हुई है, जब सीमा पर कई महीनों से चीन के आक्रामक रवैये के चलते तनाव वाले हालात हैं और हिमालय के मोर्चे पर युद्ध जैसी स्थिति हमेशा बनी हुई है। चेलानी ने कहा कि स्पष्टवादी और साफ़ नज़रिये वाले जनरल रावत चीन की आक्रामकता के ख़िलाफ़ भारत का चेहरा थे। जहाँ राजनीतिक नेतृत्व की ज़ुबान से चीन शब्द नहीं निकल रहा था, तब जनरल रावत साफ़-साफ़ नाम ले रहे थे।

इसमें कोई दो-राय नहीं कि जनरल रावत चीन के इस आक्रामक रूख़ के तोड़ की रणनीति का नेतृत्व कर रहे थे। कुछ जानकार मानते हैं कि रावत के जाने से चीन को लेकर भारत की रणनीति पर विपरीत असर पड़ सकता है। हालाँकि कुछ अन्य कहते हैं कि ऐसी रणनीति एक सतत प्रक्रिया है और इसमें समय के अनुसार चीज़ें जुड़तीं और बदलती जाती हैं। इन जानकारों का कहना है कि हादसा इस प्रक्रिया में अस्थायी अवरोधक है और कुछ समय में ही इसकी पूर्ति हो जाएगी।

रक्षा विशेषज्ञ उदय भास्कर का भी कहना है कि जनरल रावत की हादसे में मौत से भारत की चीन नीति पर कोई विशेष असर पड़ेगा; क्योंकि एक अधिकारी की मौत से रणनीति पर तो कम-से-कम अन्तर नहीं पड़ेगा। भारत अपने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर बदलाव के दौर में है और यह किसी भी संस्था के साथ होता है कि बदलाव का दौर उनके लिए अस्थायी अवरोधक लाता ही है।

हालाँकि इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कंफ्लिक्ट स्टडीज के रिसर्च स्कॉलर कमल मदीशेट्टी मानते हैं कि जनरल रावत के सेना प्रमुख और सीडीएस बनने के बाद यह बड़ा बदलाव आया कि चीन को लेकर भारतीय रणनीति साफ़ हुई है। रावत अब हमारे बीच नहीं हैं; लेकिन जो विरासत वह छोड़ गये हैं। अब आने वाले सीडीएस शायद ही उससे अलग जा सकेंगे। फ़िलहाल तो यही दिख रहा है।

रावत बतौर सीडीएस और बतौर सेना अधिकारी क्यों बहुत महत्त्वपूर्ण थे, यह इस तथ्य से ज़ाहिर हो जाता है कि उनका चयन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पद के लिए किया था। इससे पहले मोदी सरकार ने ही उन्हें दो अधिकारियों पर तरजीह देकर सन् 2016 में देश का सेना प्रमुख बनाया था। जनरल रावत ने चीन की आक्रामक नीति के ख़िलाफ़ भारत की प्रतिक्रिया का नेतृत्व किया और सन् 2017 में डोकलाम में और सन् 2020 में गलवान में चीनी आक्रामकता का मुक़ाबला किया।

आँखों देखी

तमिलनाडु के कन्नूर में सीडीएस जनरल बिपिन रावत के विमान हादसे के कुछ चश्मदीद भी सामने आये हैं। एक वीडियो भी हादसे के वक़्त का सामने आया है। एक चश्मदीद के दावे के मुताबिक, हादसा होने के तुरन्त बाद जब एक ग्रामीण घटनास्थल पर पहुँचा था, तब रावत सहित तीन लोग वहाँ पड़े थे, जिनमें दो (रावत भी) जिन्दा थे। सुकुमार नाम के इस चश्मदीद के मुताबिक, यह हादसा उसके घर के साथ लगती ढलान में हुआ था, जहाँ विमान दो पेड़ों के बीच अटका था और धूँ-धूँ करके जल रहा था।

सुकुमार और अन्य गाँव वालों ने ही इस हादसे की जानकारी पुलिस और फायर ब्रिगेड को दी थी। ये लोग पूरे इलाक़े में अपने स्तर पर तलाशी कर रहे थे; ताकि विमान से गिरकर बचे किसी व्यक्ति को बचाने की कोशिश की जा सके। सुकुमार ने ही सबसे पहले यह बताया था कि विमान हादसे में तीन दिखने वाले तीन में से दो ज़िन्दा लोगों को बचाने के लिए उनके पास ऐसा कोई साधन नहीं था, जिससे वे इन घायलों को सडक़ तक पहुँचा पाते। इन लोगों ने बस्ती में वापस जाकर चादरें, रस्सी आदि चीज़ें जुटायीं, ताकि पुलिस के आने तक उन्हें सडक़ की तरफ़ ले जाया जा सके।

पुलिस भी तब तक घटनास्थल पर पहुँच गयी और इंतज़ाम करने लगी। सुकुमार के मुताबिक, इनमें से एक व्यक्ति ने पानी भी माँगा था। वहाँ अधिकारियों ने इन लोगों को बताया कि यह जनरल रावत थे। ज़िन्दा लोगों को यह लोग और पुलिस चादर पर रखकर दो बार में ढलान पर ले गये। इन लोगों ने वहाँ से गुज़र रही पानी की लाइन को तोडक़र जलते हुए विमान की आग बुझाने की कोशिश की। इन चश्मदीदों के मुताबिक, तीन लोगों को छोडक़र बाक़ी सब बुरी तरह जल चुके थे और उन्हें पहचान पाना भी बहुत मुश्किल था।

एक और चश्मदीद के मुताबिक, हादसे से पहले विमान बहुत नीचे उड़ रहा था। इससे पहले आसमान पर कई विमान उड़ते दिखे हैं; लेकिन इतने नीचे उड़ता कोई विमान कभी नहीं देखा था। अचानक यह विमान बादलों के समूह के बीच लुप्त हो गया और शायद किसी पेड़ से टकराकर हादसे का शिकार हुआ।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने घटना के अगले दिन संसद में एक बयान दिया कि एमआई-17 विमान हादसे के हर पहलू को जाँच समिति देखेगी, जिसका नेतृत्व एयर मार्शल मानवेन्द्र सिंह कर रहे हैं। जनरल रावत ने अपनी पत्नी और 12 अन्य लोगों के साथ सुलुर से वायुसेना के -17वी5 विमान से सुबह 11:48 बजे वेलिंग्टन के लिए उड़ान भरी थी, जिसे दोपहर 12:15 बजे वेलिंग्टन में उतरना था। लेकिन 12:08 बजे विमान का एटीसी से सम्पर्क कट गया था। बाद में लोगों ने सैन्य विमान का मलबा देखा। उस मलबे से जितने लोगों को निकाला जा सका, उन सबको वेलिंग्टन पहुँचाया गया। जिन लोगों की दुर्भाग्यपूर्ण मौत हुई, उनमें सीडीएस बिपिन रावत उनकी पत्नी समेत कुल 13 लोग हैं। हादसे में गम्भीर घायल ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह सेना अस्पताल में लाइफ सपोर्ट पर हैं और उनको बचाने की पूरी कोशिश की जा रही है।

राजनाथ सिंह के मुताबिक, हादसे के बाद में कन्नूर के पास जंगल में स्थानीय लोगों ने आग लगी देखी। मौक़े पर जाकर उन्होंने विमान को आग की लपटों से घिरा देखा, जिसके बाद सूचना पर स्थानीय प्रशासन का एक बचाव दल वहाँ पहुँचा। विमान में सवार कुल 14 लोगों में से 13 की मृत्यु हो गयी, जिनमें सीडीएस जनरल रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत भी शामिल हैं। सिंह ने बताया कि अन्य मृतकों में सीडीएस के रक्षा सलाहकार ब्रिगेडियर लखविंदर सिंह लिड्डर, सीडीएस के सैन्य सलाहकार और स्टाफ अफ़सर लेफ्टिनेंट कर्नल हरजिंदर सिंह, विंग कमांडर प्रतीक सिंह चौहान, स्क्वाड्रन लीडर कुलदीप सिंह, जूनियर वारंट अधिकारी राणा प्रताप दास, जूनियर अधिकारी अरक्कल प्रदीप, हवलदार सतपाल, नायक गुरसेवक सिंह, नायक जितेन्द्र कुमार, लांस नायक विवेक कुमार और लांस नायक वीर साई तेजा शामिल थे।

 

जनरल रावत का सफ़र

जनरल रावत का जन्म 16 मार्च, 1958 को उत्तराखण्ड के पौड़ी ज़िले में एक सैन्य परिवार में हुआ। उनके पिता सेना में लेफ्टिनेंट जनरल थे। जनरल रावत सन् 1978 में सेना में शामिल हुए। शिमला के सेंट एडवड्र्स स्कूल से पढ़ाई के बाद उन्होंने खडक़वासला की नेशनल डिफेंस एकेडमी में सैन्य प्रशिक्षण लिया था।

देहरादून की इंडियन मिलिट्री एकेडमी से ट्रेनिंग के बाद वह 11वीं गोरखा राइफल्स टुकड़ी की पाँचवीं बटालियन में सेकेंड लेफ्टिनेंट बनाये गये। गोरखा ब्रिगेड से सेना के सर्वोच्च पद पर पहुँचने वाले वह चौथे अफ़सर थे।

जनरल बिपिन रावत को 31 दिसंबर, 2019 को भारत का पहला सीडीएस नियुक्त किया गया था। उन्होंने 1 जनवरी, 2020 को यह कार्यभार सँभाला। बतौर सीडीएस जनरल रावत की ज़िम्मेदारियों में भारतीय सेना के विभन्न अंगों में तालमेल और सैन्य आधुनिकीकरण जैसी महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारियाँ शामिल थीं।

जनरल रावत इससे पहले भारतीय सेना के प्रमुख रह चुके थे। वह 31 दिसंबर, 2016 से 1 जनवरी, 2017 तक भारत के 26वें थल सेना प्रमुख रहे। 1 सितंबर, 2016 को उप सेना प्रमुख की ज़िम्मेदारी सँभाली थी। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद बनाये जाने की घोषणा प्रधानमंत्री मोदी ने लाल क़िले पर दिये 15 अगस्त के भाषण के दौरान की थी। चार दशक तक चले सैन्य जीवन में जनरल रावत को सेना में बहादुरी और योगदान के लिए परम् विशिष्ट सेवा पदक, उत्तम युद्ध सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक, युद्ध सेवा पदक, सेना पदक और विशिष्ट सेवा पदक के अलावा और कई प्रशस्तियों से सम्मानित किया गया।

बिपिन रावत यूआईएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम, एसएम, वीएसएम के साथ वीरता और विशिष्ट सेवा के लिए सम्मानित हो चुके हैं। उन्हें दो मौ$कों पर सीओएएस कमेंडेशन और आर्मी कमेंडेशन भी दिया जा चुका है।

उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने 29 सितंबर, 2016 को पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक करके कई आतंकी शिविरों को नष्ट कर दिया था। बड़ी बात यह है कि जनरल बिपिन रावत के उप सेना प्रमुख बनने के एक महीने के अन्दर ही सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया गया था। हमले में कई आतंकी भी मारे गये थे। उरी में सेना के कैम्प और पुलवामा में सीआरपीएफ पर हुए हमले में कई जवानों के शहीद हो जाने के बाद सेना ने यह कार्रवाई की थी। जनरल रावत के नेतृत्व में भारतीय सेना ने देश की सीमा के पार जाकर आतंकी शिविरों को ध्वस्त कर कई आतंकियों को ढेर किया था। मणिपुर में जून, 2015 में आतंकी हमले में कुल 18 जवान शहीद हो गये थे; जिसके बाद 21 पैरा के कमांडो ने सीमा पार जाकर म्यांमार में आतंकी संगठन एनएससीएन के कई आतंकियों को ढेर कर दिया था। तब 21 पैरा थर्ड कॉप्र्स के अधीन थी, जिसके कमांडर बिपिन रावत ही थे।

जनरल रावत की ज़िन्दगी में कई बड़ी उपलब्धियाँ रहीं।  उनमें से कुछ की बात करें, तो उन्हें सन् 1978 में सेना की 11वीं गोरखा राइफल्स की पाँचवीं बटालियन में कमीशन मिला। भारतीय सैन्य अकादमी में उन्हें सोर्ड ऑफ ऑनर मिला। सन् 1986 में चीन से लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर इन्फैंट्री बटालियन के वह प्रमुख रहे। जनरल रावत ने राष्ट्रीय राइफल्स के एक सेक्टर और कश्मीर घाटी में 19 इन्फेन्ट्री डिवीजन की अगुआई भी की थी। बिपिन रावत ने कॉन्गो में संयुक्त राष्ट्र के शान्ति मिशन का नेतृत्व भी किया।

 

“मैं तमिलनाडु में हुई विमान दुर्घटना से बहुत दु:खी हूँ, जिसमें हमने जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और सशस्त्र बलों के अन्यकर्मियों को खो दिया है। उन्होंने पूरी लगन से भारत की सेवा की। मेरी संवेदनाएँ शोक संतप्त परिवारों के साथ हैं। जनरल बिपिन रावत एक उत्कृष्ट सैनिक और एक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने हमारे सशस्त्र बलों और सुरक्षा तंत्र के आधुनिकीकरण में बहुत योगदान दिया। सामरिक मामलों पर उनकी अंतर्दृष्टि और दृष्टिकोण असाधारण थे। उनके निधन से मुझे गहरा दु:ख पहुँचा है। ओ३म् शान्ति।’’

नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

 

“विश्लेषकों का मानना है कि चीन विरोधी भारत के शीर्ष सेना अधिकारी की मौत के बाद भी चीन को लेकर भारत की आक्रामक छवि में कोई परिवर्तन नहीं आएगा। भारतीय मीडिया में विमान ध्वस्त होने की वजह ख़राब मौसम,  ग़लत ऊँचाई और तकनीकी गड़बड़ी बतायी जा रही है। इन सब कारणों को मान भी लिया जाए, तो इससे यह पता चलता है कि यह गड़बड़ी मानवीय है, न कि रूस में बने विमान में कमी होने के कारण। एमआई-17 सीरीज के विमान का इस्तेमाल दुनिया के कई देशों में होता है।’’

चीनी अख़बार ग्लोबल टाइम्स में एक लेख

 

 

 

“सीडीएस जनरल बिपिन रावत सेना के उन चुनिंदा टॉप लेवल के अधिकारियों में शामिल थे, जो सरकार से नहीं डरते थे और कहते रहे थे कि चीन दुश्मन है… चीन एक ख़तरा है… चीन हमारे इलाक़े में दाख़िल हुआ… तमिलनाडु में एक विमान में टेकऑफ के बाद आग लग जाती है या इसी तरह का कुछ… मुझे उतनी समझ तो नहीं है; लेकिन यह साइबर वारफेयर (हमले) की ओर ध्यान ले जाता है… साइबर वारफेयर में एक लेजर से ऑब्जेक्ट को जलाया जाता है।’’

सुब्रमण्यम स्वामी, राज्यसभा सदस्य

 

“मैं जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी के परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूँ। यह एक अभूतपूर्व त्रासदी है और इस कठिन समय में हमारी संवेदनाएँ उनके परिवार के साथ हैं। अपनी जान गँवाने वाले अन्य सभी लोगों के प्रति भी हार्दिक संवेदना। इस दु:ख की घड़ी में भारत एक साथ खड़ा है।’’

राहुल गाँधी, कांग्रेस नेता

 

 

“इस दु:खद विमान हादसे के कारणों की जाँच के लिए एक ट्राई सर्विस इंक्वायरी का गठन किया गया है। इस मामले की पूरी जाँच तेज़ी से की जाएगी और तथ्य सबके सामने रखे जाएँगे। जाँच पूरी होने तक मृतकों की गरिमा का सम्मान करते हुए बेबुनियाद अटकलों से बचा जाना चाहिए।’’

भारतीय वायुसेना

ओमिक्रॉन की दस्तक से बढ़ी महँगाई

पिछले क़रीब पौने दो साल से देश जिन मुसीबतों में घिरा है, उनसे निकलना आसान नहीं लग रहा है। क्योंकि न तो कोरोना वायरस पूरी तरह गया है और न ही देश की आर्थिक स्थिति पहले जैसी हो पायी है। ऊपर से महँगाई लगातार बढ़ रही है। सन् 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद देश को एक नयी दिशा देने का स्वर्णिम अवसर भाजपा की मोदी सरकार के हाथ में था; लेकिन अपने वादे के विपरीत संकटमय परिस्थियाँ पैदा करने के हालात इस सरकार में बने हैं। आज हालात इस क़दर बिगड़ चुके हैं कि उन्हें अब ठीक करना आसान नहीं लग रहा है। अब जब पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव नज़दीक आते जा रहे हैं, केंद्र सरकार सोच रही है कि उत्तर प्रदेश में विकास की हवा चलाने की कोशिशों और कृषि क़ानूनों की वापसी के ज़रिये ख़फ़ा जनता उससे फिर से ख़ुश हो जाएगी। लेकिन वह इस बात को नहीं समझ रही है कि बेरोज़गारी, महँगाई, भुखमरी, सरकार के दर्ज़नों मंत्रालयों की नाकामी, भाजपा शासित राज्यों में पैदा हुईं तरह-तरह की दिक़्क़तों से जनता में उसके ख़िलाफ़ जो आक्रोश है, उसका बदल अब सत्ता के बदल से ही लोग पूरा करना चाहते हैं।

देश में जबसे कोरोना महामारी फैली है, महँगाई तेज़ी से बढ़ी है। अब कोरोना के नये वायरस ओमिक्रोन वारियंट के चलते देश के कई राज्यों में अलर्ट जारी कर दिया गया है। बड़ी बात यह है कि कोरोना महामारी के फैलने का जैसे ही ख़तरा बढ़ता है, महँगाई बढ़ जाती है। कोरोना के इस नये वायरस को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया कह चुके हैं कि कोरोना क़ाबू में है; लेकिन ख़त्म नहीं हुआ है।

सवाल उठता है कि तो क्या कोरोना महामारी की जिस लहर की आशंका जतायी जा रही थी, वह फिर से आएगी? क्या ओमिक्रॉन इस तीसरी लहर की दस्तक है? अभी तो बाज़ारों में जिस तरह की भीड़ है, जिस तरह से बड़ी संख्या में लोग बिना मास्क के घरों से निकल रहे हैं, और जिस तरह से कोरोना टीका इस नये वायरस पर बेअसर बताया जा रहा है, उससे तो यही डर है कि यह नया वायरस भी कहीं दूसरी लहर की तरह तबाही न मचा दे! क्योंकि इस वायरस से निपटने के लिए कोई दवा या टीका ईजाद नहीं किया जा सका है। दूसरा, सरकारी व निजी अस्पतालों में व्यवस्थाएँ पहले से ही चरमरायी हुई हैं। लगता नहीं कि सरकार इस नये वायरस को लेकर कोई ख़ास तैयारी कर पा रही है। अभी तक सभी को टीके भी नहीं लग सके हैं। बच्चों के लिए तो कोई टीका बना भी नहीं है। कहने का मतलब यह है कि अगर कोरोना की यह लहर तेज़ी से बढ़ी, तो हम एक बड़ी बर्बादी की ओर फिर से जा सकते हैं, जिसमें जन-धन का बड़ा नुक़सान पूरे देश को उठाना पड़ेगा।

चिन्ता इस बात की है कि देश की अर्थ-व्यवस्था जो कि एक बार बुरी तरह धरातल पर जाने के बाद धीरे-धीरे सँभल ही रही है, कहीं वह फिर से न बिगड़ जाए। हालाँकि हम जन साधारण के चिन्ता करने से कोई बड़ा फ़ायदा नहीं होने वाला। हमारे क़लम उठाने से इतना भर हो सकता है कि शायद देश के कुछ लोग जागरूक हो जाएँ, बाक़ी काम तो सरकार का ही है। लेकिन मेरा मानना है कि देश की तरक़्क़ी और लोगों के हित में सरकार के साथ हमें भी अपने स्तर पर कोशिशें करनी चाहिए। क्योंकि देश किसी एक व्यक्ति से नहीं, बल्कि सबके सहयोग से ही चलता है। यह ज़िम्मेदारी तब और बढ़ जाती है, जब हालात सामान्य न हों। लेकिन सरकार की ज़िम्मेदारी बड़ी और प्रमुख है।

आज अगर महँगाई को ही लें, तो यह जनता के हाथ में तो क़तर्इ नहीं है। लेकिन सरकार इसे रोकने में असफल है। फिर सवाल तो उठेंगे ही। केवल पेट्रोल-डीजल के दोगुने हो चुके दामों में 5-10 रुपये कम करने भर से महँगाई कम नहीं होगी। महँगाई से राहत तभी मिल सकती है, जब सरकार हर चीज़ को कम-से-कम मुनाफ़े में बेचने के लिए कम्पनियों को बाध्य करे। जिस तरह सरकार किसानों के उगाये खाद्यान्नों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने से भी कतराती दिख रही है, उसी तरह उसे हर चीज़ बनाने वाली कम्पनी को उसका न्यूनतम समर्थन मूल्य देने भर की सहमति देनी होगी। बड़ी हैरत होती है कि किसानों को उसकी लागत के बराबर भी खाद्यान्नों के दाम भी कई बार नहीं मिलते, जबकि कम्पनियाँ सैकड़ों गुना लाभ अपने बनाये उत्पादों पर कमाती हैं। अभी पिछले दो साल में महँगाई जिस क़दर बढ़ी है, उसके लिए भले ही सरकार कोरोना महामारी में सभी धन्धों के बन्द होने और वैश्विक मंदी की आड़ लेती फिरे; लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं, बल्कि एक बहाना ही है। क्योंकि सच यही है कि कोई भी सरकार महँगाई पर रोक नहीं लगाना चाहती, सिवाय किसानों से सब कुछ सस्ते में ख़रीदने के अलावा। जो खाद्यान्न किसान से 10 रुपये किलो ख़रीदा जाता है, बाज़ार में उसकी क़ीमत 40 से 50 रुपये किलो हो जाती है। कहने का मतलब यह है कि सरकार कम्पनियों और बिचौलियों के मुनाफ़ा कमाने पर रोक नहीं लगा पा रही है, जिसके चलते महँगाई तेज़ी से बढ़ती जा रही है।

पिछले सात साल में, ख़ासकर कोरोना-काल में जिस तेज़ी से महँगाई बढ़ी है, वह पहले कभी नहीं बढ़ी। अब ओमिक्रॉन वारियंट आने के बाद से महँगाई बढऩे की ख़बरों ने लोगों को एक बार बेचैन करना शुरू कर दिया है। बताया जा रहा है कि अगले साल से माचिस से लेकर गैस सिलेंडर समेत कई चीज़ों के दाम बढ़ जाएँगे।

(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं)

तमिलनाड हेलीकॉप्टर हादसे में गंभीर रूप से घायल ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह का भी निधन

तमिलडाडु में सीडीएस बिपिन रावत हेलीकॉप्टर हादसे में गंभीर रूप से घायल हुए ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह का भी निधन हो गया है। इस हादसे में 14 लोगों में से बिपिन रावत सहित 13 लोगों की पहले ही मौत हो गयी थी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद,  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित कई नेताओं ने ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह के निधन पर शोक जताया है।

ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह की मृत्यु की खबर आते ही देश में शोक की लहर दौड़ गई है। मृत्यु पर राष्ट्रपति कोविंद ने ट्विटर पर पोस्ट किया – ”यह जानकर दुख हुआ कि ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह ने जीवन के लिए एक बहादुरी भरी लड़ाई लड़ने के बाद अंतिम सांस ली। हेलिकॉप्टर दुर्घटना में बुरी तरह घायल होने के बावजूद उन्होंने वीरता और अदम्य साहस का परिचय दिया। राष्ट्र उनका आभारी है। उनके परिवार के प्रति मेरी संवेदनाएं।’

उधर पीएम मोदी ने ट्वीट में कहा – ‘ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह ने गर्व और वीरता के साथ देश की सेवा की। उनके निधन से बेहद आहत हूं। राष्ट्र के लिए उनकी सेवा को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। उनके परिवार तथा मित्रों के लिए संवेदनाएं। ओम शांति।’

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह के निधन पर कहा कि उनकी मृत्यु  से बहुत दुख पहुंचा। राष्ट्र उनकी सेवा को याद रखेगा। उनके परिवार को मेरी तरफ हार्दिक संवेदना। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह के निधन के बारे में जानकर गहरा दुख हुआ। ‘ईश्वर वीर की आत्मा को शांति दें और उनके परिवार को शक्ति प्रदान करें। मै गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं. ओम शांति शांति शांति।’

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा – ‘ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह के निधन के बारे में जानने के बाद बड़ा दुख हुआ। वे एक सच्चे योद्धा थे, जो अंतिम सांस तक लड़ते रहे। मेरे विचार और गहरी संवेदनाएं उनके परिवार और दोस्तों के साथ हैं। दुख की इस घड़ी में हम परिवार के साथ मजबूती से खड़े हैं।’

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी कहा – ‘वरुण सिंह एक फाइटर थे। उनकी बहादुरी हमारे जवानों को प्रेरित करती रहेगी। मेरी संवेदनाएं परिजनों के साथ है।  उनके दुख में पूरा देश भागीदार है।’

बड़े ही सोच समझ कर बयान बाजी कर रहे है उ. प्र के नेता

उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर राजनीतिक समीकरण क्या बनते और बिगड़ते है। ये तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन उत्तर प्रदेश में की सियासत के खिलाडियों का कहना है कि इस बार बसपा और कांग्रेस तो केवल अपने खोये हुये जनाधार को पाने के लिये प्रयास कर रही है। और प्रदेश में असली मुकाबला सपा और भाजपा के बीच में ही है।

बताते चलें, इस बार सपा के मुखिया अखिलेश यादव बड़ी ही सोची समझी राजनीति के तहत जनसभायें कर रहे है। जनसभाओं में उन चेहरों को ही आगे ला रहे है। जो साफ –सुथरी छवि के नेता है। जो कभी विवादों में नहीं रहे है।

इस बार चुनाव में एक संगठन ऐसा भी है जो दलित, पिछड़ों के साथ मुस्लिमों को दो साल से जोड़ने में लगा है। अगर ये संगठन एकता के साथ चुनाव में एक पार्टी के साथ खड़ा हो गया तो चुनाव के परिणाम चौंकाने वाले साबित होगे।

जबकि भाजपा भी पुनः सरकार वापसी के लिये रात–दिन एक किये हुये है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि भाजपा ने जो वादे किये है वो पूरे किये है। भाजपा पूरे चुनावी रंग में है। भाजपा का मानना है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के अलावा कोई दूसरी पार्टी ही नहीं है। जो भाजपा को चुनावी मुकाबल कर सकें। क्योंकि दूसरे राजनीतिक दल तो जातीय गुणा-भाग में लगे है।

भाजपा ही एक ऐसी पार्टी है जो विकास को बढ़ावा दे रही है। उन्होंने बताया कि जैसे ही चुनाव की तारीख घोषित होगी वैसे अन्य राजनीतिक दलों के नेता भाजपा का दामन थाम सकतें है। सबसे गौर करने वाली बात तो ये है बसपा की ओर से अभी तक कोई जनसभा की शुरूआत तक नहीं हुई है।फिलहाल उत्तर प्रदेश के बड़े–बड़े नेता सोच समझ कर ही वयानबाजी कर रहे है। ताकि कोई वयान सियासी माहौल न बिगाड़ दें।

राहुल गांधी ने लोकसभा में एसआईटी रिपोर्ट का हवाला दे लखीमपुर मामले में स्थान नोटिस दिया

सरकार के कुछ मांगें मान लेने के बाद और कुछ पर भरोसा मिलने से किसानों का आंदोलन स्थगित होने के बाद अब दो महीने पहले उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों को कथित तौर पर एक केंद्रीय मंत्री के बेटे द्वारा गाड़ी से कुचलकर मार देने की घटना बड़ा मुद्दा बनती जा रही है। लोकसभा में बुधवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जोरशोर से उठाया और आज सुबह एसआईटी की रिपोर्ट पर चर्चा के लिए लोकसभा में कार्य स्थगन नोटिस दिया है।

बता दें इस मामले की जांच कर रही एसआईटी ने एक रिपोर्ट में लखीमपुर खीरी के न्यायिक दंडाधिकारी से कहा है कि किसानों को 3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा द्वारा संचालित एक एसयूवी गाड़ी से प्रदर्शनकारी किसानों को ‘हत्या करने के इरादे से कुचला गया था और यह लापरवाही से हुई मौत नहीं थी। निश्चित ही यह रिपोर्ट केंद्रीय मंत्री और उनके बेटे के साथ-साथ भाजपा के लिए भी बड़ा झटका है।

विपक्ष, खासकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस रिपोर्ट को लेकर बुधवार को बड़ा हमला बोला। एसआईटी की रिपोर्ट जिसमें इस घटना को एक ‘सुनियोजित साजिश’ बताया गया है, के आधार ने पर राहुल गांधी ने अपने नोटिस में कहा कि स्पेशल इन्वेस्टिगेटिव टीम (एसआईटी) की रिपोर्ट आने के बाद केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी को मोदी मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाना चाहिए।

कांग्रेस सांसद ने लोकसभा में दिए स्थगन नोटिस में लिखा – ‘यूपी पुलिस की एसआईटी रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि लखीमपुर में किसानों का नरसंहार एक पूर्व नियोजित साजिश थी, न कि कोई लापरवाही। सरकार को गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा को तुरंत बर्खास्त करना चाहिए और पीड़ितों के परिवारों को न्याय दिलाना सुनिश्चित करना चाहिए।’

याद रहे राहुल गांधी और उनकी बहन पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी को पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए लखीमपुर खीरी जाते हुए यूपी सरकार और उसके प्रशासन की तरफ से बहुत दिक्क़तें झेलनी पड़ी थीं। प्रियंका को एक दिन से ज्यादा हिरासत में   रखा गया था जबकि राहुल गांधी को लख़नऊ एयरपोर्ट पर ही कई घंटे रोक कर रखा गया था। हालांकि, तमाम बाधाओं के बावजूद दोनों कांग्रेस नेता पीड़ित परिवारों से मिलने में सफल रहे थे।

अब मामले की जांच कर रही एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ”आशीष मिश्रा और अन्य के खिलाफ रैश ड्राइविंग के आरोपों को संशोधित किया जाना चाहिए, और  हत्या के प्रयास के आरोप और स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के आरोप शामिल किए जाने चाहिए।” बता दें मंत्री पुत्र आशीष मिश्रा पर पहले से ही हत्या और साजिश के आरोप हैं और उनपर मामला चल रहा है।

सभी राज्यों में निर्वाचन आयोग का चुनावी समीक्षा दौरा

वर्ष 2022 में देश के कर्इ राज्यों-केंद्रशासित प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होने है। लेकिन उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत अन्य पांच राज्य ऐसे है जिनमें वर्ष की शुरूआत यानि फरवरी-मार्च में मतदान होगें। इन सात राज्यों में मतदान और मतगणना की तारीखे तय होकर जनवरी में घोषित की जाऐंगी।

चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार, उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत पांच राज्यों में चुनाव आयोग तैयारियों और समीक्षा का दौरा 15 दिसम्बर से शुरू करेगा। चुनाव आयोग दौरे की शुरूआत पंजाब से शुरू करेगी जो कि दो दिवसीय दौरा होगा।

मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा, चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और चुनाव आयुक्त अनूप चन्द्र पांडे के चुनाव आयुक्त के अन्य अधिकारी भी पंजाब का दौरा करेंगे।

सूत्रों के अनुसार, चुनाव आयोग यूपी का दौरा दिसंबर महीने के अंत में करेगा और उत्तर प्रदेश के तमाम अधिकारियों से मिलकर चुनाव तैयारियों की समीक्षा करेगें। उत्तर प्रदेश में कई सात से अधिक चरणों में मतदान की संभावना है। यूपी में विधानसभा की 403 सीटें, पंजाब में 117 सीटें, गोवा में 40 सीटें, मणिपुर में 60 सीटें और उत्तराखंड में 70 विधानसभा की सीटें हैं। सभी सीटों पर 15 मार्च से पहले चुनाव खत्म होके की संभावना है।

चुनाव आयोग अपने दौरे के दौरान पंजाब के वरिष्ठ प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों से मुलाकात करेगा। चुनाव आयोग सभी 5 राज्यों का बारी-बारी से चुनावी दौरा करेगा जिसके बाद तैयारियों की समीक्षा कर तारीखों का ऐलान किया जाएगा।

चारधाम परियोजना को मिली सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी ऑन वेदर राजमार्ग परियोजना में सड़क की चौड़ाई बढ़ाने और डबल लेन हाईवे बनाने की अनुमति दे दी है। इस अनुमति के बाद से भारतीय सेना किसी भी मौसम में चीन से सटी सीमाओं पर पहुंचने में सक्षम होगी। जिससे भारत की पहुंच चीन तक और भी आसान हो जाएगी।

कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि, अदालत न्यायिक समीक्षा में सेना के सुरक्षा संसाधनों को तय नहीं कर सकती। हाल के दिनों में सीमाओं पर सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां सामने आई है। हाईवे निर्माण के लिए सड़क की चौड़ाई बढ़ाने में रक्षा मंत्रालय की कोई दुर्भावना नहीं है। साथ ही पर्यावरण के हित में सभी उपचारात्मक उपाय सुनिश्चित करने के लिए पूर्व सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज  जस्टिस एके सीकरी के नेतृत्व में एक निरीक्षण समिति को भी गठित किया गया है।

आपको बता दें, 11 नवंबर को चारधाम परियोजना पर सड़क की चौड़ाई को बढ़ाने वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और याचिकाकर्ता की दलीलों को विस्तार से सुनने के बाद फैसले को सुरक्षित रखा था। जिसके बाद करीब 900 किलोमीटर की चारधाम ऑल वेदर राजमार्ग परियोजना में सड़क की चौड़ाई को बढ़ाने या न बढ़ाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट को फैसला करना था।