अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दोबारा जबसे अमेरिका की कमान सँभाली है, भारत उनकी आँखों में तिनके की तरह चुभ रहा है। इसके चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उनसे दोस्ती का दावा अब उन्हें भी समझ आने लगा है, जो नमस्ते ट्रम्प के आयोजन में भारत सरकार के 100 करोड़ रुपये के ख़र्च पर भी उछल-उछलकर इसे मोदी की बहुत बड़ी उपलब्धि बता रहे थे। लेकिन ये लोग चुप हैं। बिलकुल प्रधानमंत्री मोदी और उनके मुरीद भाजपाइयों की तरह। क्या कहेंगे? जवाब ही नहीं है। लंगोटिया दोस्ती की पोल खुल गयी और बोलने जैसा कुछ किया नहीं है। इसलिए सबको गुमराह करने के लिए रगों में गर्म सिंदूर दौड़ा दिया। चीन के अतिक्रमण, पाकिस्तान की हिमाक़त, अमेरिका की धौंस और देश में व्याप्त अराजकता, भ्रष्टाचार, महँगाई, ग़रीबी, बेरोज़गारी, अपराध पर जवाब देने के लिए हक़ीक़त में 56 इंच का सीना चाहिए।
कहा जाता है- नीयत साफ़, तो मंज़िल आसान। सारा खेल नीयत का है। नीयत में खोंट हो, तो आदमी कहीं बोलने लायक नहीं होता; और अगर कहीं बोलता भी है, तो उसे झूठ का सहारा लेना पड़ता है। नाटक करना पड़ता है। यह किसी एक व्यक्ति विशेष की बात नहीं है। संसार में ऐसे लोगों की भरमार है। निजी अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि छ: तरह के लोग आँखों में आँखें डालकर बात करने लायक नहीं रहते- धोख़ेबाज़, क़ज़र्दार, दलाल, ग़ुलाम, अहसान में दबे हुए और जिनकी नग्नता जगज़ाहिर हो। अब तो भारत में ऐसे-ऐसे लोग हैं, जो इन लक्षणों से कहीं आगे बुराइयों का पहाड़ बने हुए हैं।
आज भारत के दुश्मन देशों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। जो देश कभी अंग्रेजों के ख़िलाफ़ भारत की आज़ादी के लिए लड़ने को तैयार थे, वे भी आज भारत को पीठ दिखा रहे हैं। पड़ोसी देशों ने भारत को इतना कमज़ोर मान लिया है कि वे गाहे-ब-गाहे भारत को आँख दिखाने की कोशिश करते रहते हैं। चीन की लगातार भारत के सीमावर्ती राज्यों में घुसपैठ, पाकिस्तान के द्वारा लगातार सीजफायर और आतंकवादियों के हमले, अमेरिका का भारत के ख़िलाफ़ लगातार बयानबाज़ी करना और कमज़ोर देशों का आँख दिखाना भारत की मौज़ूदा सरकार के मिकम्मेपन की वो मिसालें हैं, जिन्हें इतिहास माफ़ नहीं करेगा।
इसके अलावा देश में तमाम तरह की समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं, जिनमें धर्म और जाति के नाम पर सरेआम हो रही हत्याएँ, मारपीट और बलात्कार की घटनाएँ, बेरज़गारी, हर तरफ़ बढ़ती नफ़रत, तनाव, कई पुलिसकर्मियों का क्रूर चेहरा, लगातार होता भ्रष्टाचार, बढ़ती ग़रीबी, कालाबाज़ारी, बढ़ता कालाधान, पूँजीपतियों को फ़ायदा पहुँचाने की सोच, नेताओं के शर्मनाक बयान और उनकी क्रूरता एवं अश्लीलता के वीडियो, सरकार से सवाल करने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई जैसी तमाम घटनाएँ भारत की गरिमा को धक्का पहुँचाने वाली हैं। इस सबके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी का चुनावों में डूबे रहना और देश-विदेश की यात्राएँ करते रहना इस बात के सुबूत हैं कि उनकी नसों में बह रहा गर्म सिन्दूर अपने ही लिए घातक है, बाहर वालों के लिए नहीं। वह बिना सोचे-समझे कुछ भी बोल देते हैं। इसलिए अब उनके किसी भी बयान को लोग गंभीरता से नहीं लेते हैं। देश-विदेश में बहुत-से लोग तो उनकी हँसी उड़ाने लगे हैं।
कम-से-कम आज़ादी के बाद भारत के इतिहास में यह पहली बार है, जब प्रमुख संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति का इस तरह दुनिया भर में मज़ाक़ उड़ रहा है। कितने ही लोग प्रधानमंत्री पद की गरिमा का सम्मान करके भी प्रधानमंत्री मोदी का सम्मान नहीं कर रहे हैं और सार्वजनिक तौर पर उन्हें भला-बुरा कह रहे हैं। लेकिन इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है? क्या लोग इसके लिए ज़िम्मेदार हैं? लोग तो आख़िर वही हैं, जिन्होंने 2014 में मोदी का ज़ोरदार स्वागत किया था और लगातार चुनकर केंद्र की सत्ता में पहुँचाया भी है। एक समय था, जब कोई मोदी के बारे में ज़रा-सी भी नकारात्मक टिप्पणी कर देता था, तो ज़्यादातर लोग उससे झगड़ जाते थे। फिर महज़ 11 साल में ऐसा क्या हो गया कि देश के ज़्यादातर लोग प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ खड़े नज़र आने लगे हैं? अभी हाल ही में एक सर्वे रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि देश के 70 प्रतिशत लोग प्रधानमंत्री मोदी के टी.वी. पर आते ही चैनल बदल देते हैं। मन की बात के सुनने वाले घटते जा रहे हैं।
कहा जाता है कि अपनी इज़्ज़त अपने हाथ में होती है। लेकिन अपनी इज़्ज़त भी बचाना तभी संभव है, जब व्यक्ति समझदार और ईमानदार हो। केवल ताक़त के भरोसे इज़्ज़त बचाना अगर संभव होता, तो बड़े-बड़े धनवान फ़क़ीरों के चरणों में नतमस्तक नहीं होते। संसार में धनवानों का सम्मान लोग अपनी ज़रूरत और धन के कारण ही करते हैं। इस हृदयविहीन सम्मान की पूरी इमारत स्वार्थ और डर पर टिकी होती है। लेकिन ज्ञानी कमज़ोर भी हों, तो भी उनका सम्मान होता है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी को चाहिए कि वह सोच-समझकर बोलें और देश की समृद्धि एवं विकास के लिए काम करें; सिर्फ़ स्व-सत्ता के लिए नहीं।
22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत के बाद नई दिल्ली ने आतंकवाद को समर्थन देने की पाकिस्तान की भूमिका को उजागर करने के प्रयास तेज़ कर दिये हैं। पाकिस्तान का यह समर्थन आतंकी प्रशिक्षण और संभार-तंत्र से आगे सतत वित्तीय सहायता तक विस्तृत है। 33 देशों में शुरू किये गये कूटनीतिक अभियान के बीच पाकिस्तान का मुक़ाबला करने के राष्ट्र के संकल्प के अनुरूप ‘तहलका’ द्वारा की गयी एक हालिया पड़ताल से पता चला है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के हाई अलर्ट पर रहने के बावजूद अवैध विदेशी मुद्रा व्यापार का अवैध विनिमय (लेन-देन) फल-फूल रहा है।
इस बार ‘तहलका’ की आवरण कथा ‘विदेशी मुद्रा रैकेट और आतंकवाद’ में ‘तहलका’ रिपोर्टर ने पाया कि दिल्ली के निज़ामुद्दीन क्षेत्र में मुद्रा डीलर नियामकीय निगरानी को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए खुलेआम मुद्रा बदलने का काम कर रहे हैं; फिर भी क़ानून प्रवर्तन एजेंसियाँ आँखें मूँदे बैठी हैं। यह स्मरणीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘नो मनी फॉर टेरर’ कॉन्फ्रेंस के दौरान पाकिस्तान की तरफ़ इशारा करते हुए कहा था कि कुछ देश आतंकवाद को विदेश नीति के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इसके अतिरिक्त कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने पनामा की यात्रा के दौरान पिछले दो दशकों में न्यूयॉर्क और मैड्रिड से लेकर मुंबई तक हुए हमलों के पैटर्न का हवाला देते हुए पाकिस्तान पर ‘आतंकवाद को बढ़ावा देने की नीति’ चलाने का आरोप लगाया था।
बता दें कि 26/11 के हमलों के बाद प्रस्तुत किये गये ठोस सुबूतों के बावजूद पाकिस्तान ने एक भी आतंकवादी को दोषी नहीं ठहराया है। आतंकवाद को लेकर बढ़ती चिन्ताओं के बीच भारत द्वारा विदेश में इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी गयी है कि पाकिस्तान अक्टूबर, 2022 में वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की ग्रे सूची से हटाये जाने के बावजूद आतंकवाद के वित्तपोषण पर अंकुश लगाने की अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफल रहा है। भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए भी आग्रह कर रहा है। क्योंकि भारत को आशंका है कि विदेशी सहायता का उपयोग आतंकवाद को वित्तपोषित करने और प्रतिबंधित आतंकवादी समूहों को समर्थन देने में किया जा रहा है। पाकिस्तान का उच्च रक्षा व्यय उसके राष्ट्रीय बजट का लगभग 18 प्रतिशत है, जो कि हथियारों के आयात में वृद्धि, विशेष रूप से आईएमएफ सहायता की अवधि के दौरान; विदेशी सहायता को सैन्य तथा संभावित रूप से आतंकवाद-सम्बन्धी उद्देश्यों की ओर पुनर्निर्देशित करने का संकेत करता है।
विशेषज्ञों ने काले बाज़ार में मुद्रा विनिमय की भूमिका पर भी प्रकाश डाला है, जो लंबे समय से टैक्स चोरी से जुड़ा हुआ है और स्लीपर सेल को बढ़ावा देने, आतंकियों को हथियार मुहैया कराने तथा चरमपंथी बुनियादी ढाँचे को समर्थन देने में भी भूमिका निभा रहा है। भारत की वित्तीय ख़ुफ़िया इकाई (एफआईयू) ने पहले भी हवाला नेटवर्क, अवैध विदेशी मुद्रा गतिविधि, तस्करी और आतंकवाद के बीच सम्बन्धों पर नज़र रखी है। हालाँकि प्रवर्तन एजेंसियों की सुस्ती से ये गतिविधियाँ अनियंत्रित रूप से बढ़ रही हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल ने इस वित्तीय सहायता को आतंकवाद की जीवन-रेखा कहा है।
यह विचार हाल ही में भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान भी दोहराया गया। लेकिन अंतरराष्ट्रीय ध्यान पाकिस्तान की बाहरी भागीदारी पर केंद्रित है, जबकि आंतरिक वित्तीय रिसाव की बढ़ती समस्या को नज़रअंदाज़ करना कठिन होता जा रहा है। आतंकवाद का वित्तपोषण किसी भी समाज में आतंकवाद को बनाए रखने वाले तीन सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्वों में से एक है। इसके साथ ही इससे ग़लत मानसिकता और हथियारों का प्रवाह भी होता है। धन के बिना आतंकवादियों की भर्ती करना, उनके लिए प्रशिक्षण शिविर चलाना या हथियारों की आपूर्ति सुनिश्चित करना असंभव है। जैसा कि अधिकारी और जाँचकर्ता तेज़ी से स्वीकार कर रहे हैं कि आतंकवाद सिर्फ़ विचारधारा पर नहीं पनपता है, बल्कि वह नक़दी पर चलता है, जो अवैध तरीक़े से संचरित होती है। और इस नक़दी के अधिकांश हिस्से का लेन-देन आतंक की छत्रछाया में होता है।
– आतंकवाद की छाया में फल-फूल रहा विदेशी मुद्रा रैकेट
इंट्रो- सन् 2016 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की थी, तब कहा था कि इससे आतंकवाद की कमर टूट जाएगी। लेकिन तबसे अनेक आतंकी घटनाएँ बताती हैं कि आतंकवाद की कोई कमर नहीं टूटी है। आतंकवादियों के दो संबल हैं- पहला और प्रमुख है वित्तपोषण यानी धन, और दूसरा है हथियार। अगर ये दो चीज़ें उन्हें न मिलें, तो आतंकी घटनाओं पर हमेशा के लिए रोक लग सकती है। लेकिन आतंकवादियों के वित्तपोषण के रास्ते कई हैं, जिनमें से एक उन्हें हवाला के ज़रिये विदेशी मुद्रा का मिलना है, जिसका वैध-अवैध लेन-देन लगातार हो रहा है। विदेशी मुद्रा का अवैध लेन-देन करने के लिए बाक़ायदा रैकेट चल रहे हैं। पहलगाम आतंकी हमले के बाद बढ़ी राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच ‘तहलका’ ने ऐसे ही अवैध विदेशी मुद्रा रैकेट चलाने वालों का पता लगाया है, जो बेरोकटोक आसानी से अवैध रूप से यह काम कर रहे हैं। इस तरह के अवैध विदेशी मुद्रा व्यापार से आतंकवाद का वित्तपोषण होता है। पढ़िए, तहलका एसआईटी की यह ख़ास रिपोर्ट :-
सन् 2008 के मुंबई हमलों के बाद 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में आम नागरिकों पर हुए सबसे घातक आतंकवादी हमले से देश हिल गया। पाकिस्तान से आये चार सशस्त्र आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में पर्यटकों पर हमला कर दिया, जिसमें 26 नागरिक मारे गये। पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा की शाखा द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने इसकी ज़िम्मेदारी ली है। आतंकवादियों ने हिन्दू पर्यटकों को निशाना बनाया और गोली मारने से पहले उनका धर्म पूछा। हालाँकि इस घटना में एक नेपाली पर्यटक और एक स्थानीय मुस्लिम की भी आतंकियों ने हत्या कर दी। एम4 कार्बाइन और एके-47 से लैस आतंकवादी घने देवदार के जंगलों से घिरी बैसरन घाटी के पर्यटक स्थल में घुस गये और नरसंहार को अंजाम दिया।
जवाब में भारत ने उन आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के लिए ऑपरेशन सिन्दूर शुरू किया, जिनके बारे में उसका मानना है कि वह (पाकिस्तान) हमले के पीछे था। भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर में नौ आतंकवादी स्थलों पर हमला किया और 100 आतंकवादियों को मार गिराने का दावा किया। पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई करते हुए भारत के सीमावर्ती राज्यों में ड्रोन हमले किये और गोलाबारी की। बदले में भारत ने मिसाइलों और ड्रोन से हमला किया, जिससे कम-से-कम पाकिस्तानी वायुसेना के आठ ठिकानों को भारी नुक़सान पहुँचा। दोनों पड़ोसी देशों के बीच कम तीव्रता वाला संघर्ष उस समय अचानक रुक गया, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम कराने का श्रेय लेते हुए इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया। हालाँकि भारत सरकार ने ट्रम्प के दावे को तुरंत ख़ारिज कर दिया। इस रिपोर्ट के लिखे जाने के समय तक दोनों देश युद्ध विराम की स्थिति में थे।
हालाँकि हमले के लगभग एक महीने बाद भी पहलगाम नरसंहार के संदिग्ध अभी भी फ़रार हैं। 13 मई को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने तीन लोगों की तस्वीरें जारी कीं, जिनके पहलगाम हमले में शामिल होने का संदेह है। जाँच में तेज़ी लाने के लिए अधिकारियों ने उनकी गिरफ़्तारी में सहायक सूचना देने वाले को 20 लाख रुपये का नक़द इनाम देने की भी घोषणा की। सूत्रों का कहना है कि स्थानीय समर्थन के बिना इतना भीषण हमला संभव नहीं था। पहलगाम की घटना भारत में दशकों से हो रहे आतंकवादी हमलों की लम्बी श्रृंखला में नवीनतम घटना है। देश को आतंकवाद मुक्त बनाने के लिए उत्तरोत्तर सरकारों ने विभिन्न क़दम उठाये हैं; लेकिन आतंकवादियों ने बार-बार हमला करके इन प्रयासों पर पानी फेर दिया है।
आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में अवैध वित्तपोषण किसी भी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। यह सवाल दशकों से हर भारतीय के मन में रहा है कि आतंकवादियों को भारत में हमला करने के लिए धन और सैन्य सहायता कहाँ से मिलती है? हालाँकि व्यापक रूप से माना जाता है कि इन हमलों के पीछे पाकिस्तान का हाथ है; लेकिन स्थानीय स्तर पर इनका समर्थन कौन कर रहा है? उन्हें कौन धन मुहैया करा रहा है? और यह धन आतंकवादियों तक किस रास्ते से पहुँच रहा है? पहलगाम हमले के बाद ये सवाल एक बार फिर केंद्र में आ गये हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, विदेशी मुद्रा घोटाला ऐसा ही एक रास्ता हो सकता है। इन घोटालों के माध्यम से शोधित धन कई माध्यमों से होकर गुज़र सकता है, जिसमें संभावित रूप से विदेशी मुद्रा बाज़ार भी शामिल है; और आतंकवादी संगठनों या व्यक्तियों तक पहुँचाया जा सकता है। यह विदेशी मुद्रा विनिमय मार्ग अब तक जाँच से बचा हुआ हो सकता है। लेकिन क्या इसका उपयोग पहलगाम हमलावरों को धन मुहैया कराने के लिए किया गया था? यह अभी भी जाँच का विषय है। भारत में वित्तीय ख़ुफ़िया इकाई (एफआईयू) ने पहले भी आतंकवाद और तस्करी से जुड़े अवैध मुद्रा प्रवाह का पता लगाया है।
भारत में विदेशी मुद्रा लेन-देन विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) द्वारा विनियमित होता है। बिना उचित बिल या रसीद के किया गया कोई भी लेन-देन अवैध माना जाता है। यदि ऐसी गतिविधि में संलिप्त पाया गया, तो मुद्रा परिवर्तक (विनिमयकर्ता यानी करेंसी डीलर) और ग्राहक दोनों को क़ानूनी परिणाम भुगतने होंगे। अधिकृत विदेशी मुद्रा परिवर्तकों को प्रत्येक लेन-देन के लिए रसीद जारी करना आवश्यक है। यह ख़रीद के प्रमाण के रूप में कार्य करता है। भारतीय क़ानून के अनुपालन को सुनिश्चित करता है, और ग्राहकों को भविष्य के विवादों से बचाता है। पहलगाम हमले के बाद दिल्ली सहित प्रमुख भारतीय शहरों को हाई अलर्ट पर रखा गया। ऐसे समय में जब सभी सुरक्षा एजेंसियाँ सतर्क थीं, ‘तहलका’ ने दिल्ली में अवैध विदेशी मुद्रा लेन-देन पर एक स्टिंग ऑपरेशन किया। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने निज़ामुद्दीन दरगाह और उसके पुलिस स्टेशन के नज़दीक स्थित निज़ामुद्दीन इलाक़े में नक़ली ग्राहक बनकर कई मनी एक्सचेंजरों से मुलाक़ात की। हमें आश्चर्य हुआ कि हाई अलर्ट के बावजूद सभी मनी एक्सचेंजर्स, जो भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अधिकृत होने का दावा करते हैं; अवैध विदेशी मुद्रा लेन-देन करते हैं, जो ‘तहलका’ के गुप्त कैमरे में क़ैद हुए हैं।
‘हम आपको दो लाख रुपये की भारतीय मुद्रा के बदले सऊदी रियाल देंगे। बिना किसी बिल, पासपोर्ट या वीजा के। लेकिन अगर एजेंसियाँ आपको अवैध रूप से विदेशी मुद्रा ले जाने के आरोप में पकड़ती हैं, तो यह हमारी ज़िम्मेदारी नहीं होगी।’ -दरगाह निज़ामुद्दीन इलाक़े में अनम एक्सचेंज नाम से काम करने वाले मनी एक्सचेंजर के ज़ैद ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा।
‘मैं तुम्हें दो लाख रुपये के बदले चीनी युआन, पाँच लाख रुपये के बदले ब्रिटिश पाउंड और एक लाख रुपये के बदले रूसी रूबल दूँगा और वह भी बिना किसी वैध दस्तावेज़ या बिल के।’ – एसजीएस फॉरेक्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से कम्पनी चलाने वाले इस इलाक़े के एक अन्य मनी एक्सचेंजर नईम ख़ान ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा।
‘भारतीय मुद्रा में दो लाख रुपये के बदले हम आपको नक़द अमेरिकी डॉलर देंगे। हम आपको कोई बिल नहीं देंगे, न ही आपसे कोई दस्तावेज़ माँगेंगे।’ -दरगाह निज़ामुद्दीन इलाक़े में शिफ़ा फॉरेक्स चलाने वाले सरफ़राज़ ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा।
‘भारत में बिना दस्तावेज़ों के विदेशी मुद्रा ख़रीदना अवैध है। लेकिन मैं यह काम वर्षों से करता आ रहा हूँ। मैं अपने भरोसेमंद एक्सचेंजर्स से बिना किसी काग़ज़ी कार्रवाई के विदेशी मुद्रा प्राप्त करता हूँ। अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हारे लिए भी इसका प्रबंध कर सकता हूँ।’ – स्वतंत्र दलाल प्रशांत सिंह उर्फ़ पिंटू ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा।
निज़ामुद्दीन विदेशी मुद्रा डीलरों पर ध्यान केंद्रित करने से पहले आइए प्रशांत सिंह उर्फ़ पिंटू की बात करें। पिंटू एक स्वतंत्र ऑपरेटर है, जो वर्षों से डॉलर और सोने की तस्करी में संलिप्त रहा है और हवाला मार्ग के ज़रिये थाई मुद्रा को भारत में लाने के लिए जाना जाता है। ‘तहलका’ के समक्ष उनके क़ुबूलनामे से डॉलर तस्करी और हवाला धन के आवागमन के व्यापक नेटवर्क का ख़ुलासा हुआ है। पहलगाम हमले से काफ़ी पहले ‘तहलका’ रिपोर्टर ने पिंटू से मुलाक़ात की थी। उस समय उसने हमारे रिपोर्टर को बताया कि वह लंबे समय से सोने और डॉलर दोनों की तस्करी करता रहा है। हालाँकि उसने कहा कि डॉलर की तस्करी अधिक लाभदायक है। पिंटू ने क़ुबूल किया कि वह भारतीय बाज़ार (काले बाज़ार) से अवैध रूप से अमेरिकी डॉलर ख़रीदता है, उन्हें थाईलैंड ले जाता है, उन्हें थाई बाथ (थाईलैंड की मुद्रा) में परिवर्तित करता है, और हवाला चैनलों के माध्यम से धन को भारत वापस लाता है। उसने कहा कि चूँकि उसे थाईलैंड में अच्छी विनिमय दर मिलती है, इसलिए उसे वापसी पर अच्छा-ख़ासा लाभ मिलता है। बातचीत में पिंटू ने अपने तस्करी नेटवर्क की कार्यप्रणाली का भी ख़ुलासा किया कि कैसे थाईलैंड से सोना लाया जाता है और अमेरिकी डॉलर भारत से बाहर ले जाये जाते हैं, जिन्हें थाई बाथ में परिवर्तित किया जाता है और हवाला के माध्यम से भारतीय मुद्रा के रूप में वापस भेजा जाता है। मार्जिन मामूली लग सकता है; लेकिन उसका नेटवर्क मज़बूत और समय की कसौटी पर खरा उतरा है।
पिंटू : हम काम करते हैं डॉलर (अमेरिकी मुद्रा) और गोल्ड (सोने) में। …और दोनों के प्रॉफिट अलग-अलग हैं। अगर हम 100 ग्राम गोल्ड लेते हैं 50,000 रुपये बचते हैं। 100 ग्राम की वैल्यू (क़ीमत) हुई 5-5.5 लाख रुपये। और डॉलर में बैठते हैं 8.5 लाख। …एक पूरा बंडल आता है, उसमें हमें दो रुपये 25 पैसे बचते हैं, तो वो उसमें 2,500 रुपये अप्रॉक्स (लगभग) बचते हैं।
रिपोर्टर : ये लाते कहाँ से हो आप, …गोल्ड और डॉलर?
पिंटू : ये थाईलैंड से लाते हैं। गोल्ड थाईलैंड से लाते हैं; …डॉलर इंडिया से लेकर जाते हैं।
रिपोर्टर : कहाँ जाते हो?
पिंटू : बैंकॉक में।
रिपोर्टर : डॉलर इंडिया से लेकर जाते हो? …वहाँ उसे इंडियन करेंसी में चेंंज करवाते हो?
पिंटू : नहीं; …थाई करेंसी में चेंज करवाते हैं। उसके बाद हम इसको हवाला लगवाकर इंडिया में लाते हैं। …इंडिया में पैसा रिटर्न आ जाता है, इंडियन करेंसी में। तो हमें सब मिलाकर 20-22 हज़ार बचते हैं।
अब पिंटू ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि कैसे डॉलर की तस्करी ने भारत और बैंकॉक के बीच निरंतर लूप में कई वाहक और छोटी खेपों का उपयोग करके जाँच से बचने के लिए ख़ुद को अनुकूलित किया है। प्रत्येक चरण में थोड़ा लाभ होता है। लेकिन प्रक्रिया को दोहराने से वह बढ़ता है। यह नेटवर्क यात्रा लागत की भरपाई कपड़े और इलेक्ट्रॉनिक्स सामान के साथ करता है।
रिपोर्टर : 20-22 हज़ार रुपये कितने पर बचते हैं?
पिंटू : आरएस (रुपये) आठ लाख पर। …पर ट्रिप (प्रत्येक चक्कर)। जैसे मैं आज गया वहाँ पर एक्सचेंज करवाया और मैंने रिटर्न मारे और पैसे इंडिया में आ गये। अब इंडिया में वो बंदे रिटर्न में फिर गया, …तो साइकिलिंग सिस्टम है।
रिपोर्टर : नहीं; जो पैसे हवाला से इंडिया में आये, वो फिर बहार जाते हैं?
पिंटू : फिर हमारा दूसरा लड़का, …हम अकेले काम तो करते नहीं हैं; तो वो पैसे वापस आ गये, तो आज जीतू भाई वापस जाएगा, वो पैसे लेकर। तो आज आरएस 25,000 का प्रॉफिट आया, कल भी आरएस 25 के (25 हज़ार) का प्रॉफिट आएगा।
रिपोर्टर : कितने पर 25 के (हज़ार) का बताया आपने?
पिंटू : 8.5 लाख पर।
रिपोर्टर : 8.5 लाख पर आरएस 25 हज़ार का प्रॉफिट आपको?
पिंटू : पाएगा और हम साइकिलिंग में इसको 20-25 दिन में 2.5 लाख कर देते हैं। …ये प्रॉफिट है।
रिपोर्टर : मतलब, एक चक्कर में आरएस 25 थाउजेंड, तो 10 चक्कर में 2.5 लाख्स?
पिंटू : हाँ; ये प्रॉफिट है और टिकट का जो निकलता है, हम साथ में कपड़ा भी लाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम भी लाते हैं, और भी बहुत सारा सामान; …तो हम टिकट और कस्टम उस में कर लेते हैं।
बातचीत के दौरान पिंटू ने स्वीकार किया कि वह बिना किसी काग़ज़ी कार्रवाई के काले बाज़ार से डॉलर ख़रीदकर कर (टैक्स) का भुगतान करने से बचता है। उसने बताया कि क़ानूनी तरीक़े से मुद्रा लेन-देन करने पर बिलों और जीएसटी के कारण उनका लाभ ख़त्म हो जाएगा।
रिपोर्टर : ये बताइए, इसमें टैक्स किसका बचा?
पिंटू : टैक्स देखो; अगर हम प्रॉपर तरीक़े से जाएँगे, तो पूरा बिल बनेगा। तो जो चीज़ हमें 8.5 लाख की पड़ रही है, वो फिर हमें 8.70 (लाख) की पड़ेगी; …ज़्यादा ही पड़ेगी। जीएसटी मिलाकर तो जो हमारी बचत है, वो सारी उसमें चली जाएगी।
अब पिंटू ने बताया कि वह कैसे पकड़े बिना हवाई अड्डे की सुरक्षा से डॉलर की तस्करी करने में कामयाब हो जाता है। वह मुद्रा को इस तरह से छुपाता है कि एक्स-रे मशीन भी इसका पता नहीं लगा सकती। उसने इस काम में कभी-कभी रिश्वत देने की बात भी स्वीकार की। लेकिन पिंटू ने यह भी कहा कि अंतिम क्षण में होने वाली परेशानी से बचने के लिए यह काम बहुत होशियारी से छिपाकर ही किया जाता है।
पिंटू : वो वहाँ जाकर कुछ भी करें, वो पैसे हमें इक्वल-इक्वल (बराबर-बराबर) हो गया। अगर हम यहाँ से कस्टम को कुछ कट दे देते हैं, 5,000 – 3,000 रुपीज; …3,000-4,000 पर बंदा चला जाता है। उसको पता होता है। मगर फिर भी हम उस पैसे को बहुत मैनिपुलेट करके ले जाते हैं। ऐसा नहीं कि जेब में डाला चल दिये। क्यूँकि रिस्क होता है। कल को वो मुकर गया, …कह दिया मेरा सीनियर आ गया था, मैं क्या कर सकता हूँ। इसलिए बहुत मैनिपुलेट करके ले जाते हैं।
रिपोर्टर : जैसे 10,000 डॉलर हैं, उसे आप अलग-अलग रखते हैं…?
पिंटू : ऐसे सिस्टम में रखते हैं कि वो एक्स-रे में भी नहीं आता।
रिपोर्टर : ऐसा भी है? …वो एक्स-रे में आएगा भी नहीं!?
पिंटू ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को आगे बताया कि कैसे वह बिना किसी काग़ज़ी प्रक्रिया के आधिकारिक मुद्रा नियमों को दरकिनार करके प्रतिदिन क़ानूनी सीमाओं से कहीं अधिक मात्रा में मुद्रा का लेन-देन करता है और जाँच से बचने के लिए बिना बिल वाले ऑफ-द-रिकॉर्ड लेन-देन को प्राथमिकता देता है।
रिपोर्टर : अच्छा; डॉलर कैसे ख़रीद सकता है कोई? …उसमें कोई डिस्काउंट की ज़रूरत नहीं होती?
पिंटू : बिल के संग चाहिए, तो बहुत कुछ है। …इंडिया में ना आप साल में बस एक बार 10,000 डॉलर भेज सकते हो, अपने पासपोर्ट में। उसके बाद आप दोबारा जाओगे, तो वो नहीं देंगे। क्यूँकि आपने एक ही बार में भेज दिया।
रिपोर्टर : अच्छा; साल में एक पासपोर्ट पर 10,000 रुपये आ सकते हैं?
पिंटू : सिर्फ़ 5,000…।
रिपोर्टर : और आप कितना लाते हो?
पिंटू : सर! हमें पेपर चाहिए ही नहीं, वो कच्चे में देते हैं। हमें कच्चे में ही चाहिए। जीएसटी नहीं कटवाना। अगर पक्के में चाहिए, पैसे अकाउंट से कटेंगे।
रिपोर्टर : आप पासपोर्ट भी नहीं दिखाते होंगे?
पिंटू : मैं कुछ नहीं दिखाता।
रिपोर्टर : आप कितने ले लेते हो साल में?
पिंटू : साल में, …मैं डेली के 25,000 डॉलर ले लेता हूँ।
रिपोर्टर : तो बहुत आगे निकल गये आप तो?
पिंटू ने स्पष्ट रूप से हवाई अड्डों के माध्यम से डॉलर की तस्करी को सुविधाजनक बनाने के लिए सीमा शुल्क अधिकारियों को रिश्वत देने की बात स्वीकार की और यह दावा किया कि यह प्रणाली अच्छी तरह से काम कर रही है। उसने कई हवाई अड्डों के नाम भी बताये, जहाँ नियमित इस तरह अवैध मुद्रा लेकर लोगों का आना-जाना रहता है और खुले तौर पर रिश्वत की माँग की जाती है।
पिंटू : देखो सर! बिना ऑफिसर के काम करना तो बेव$कूफ़ी है। कल को कोई बात होती है, तो मैं बोल भी सकता हूँ सर थोड़ा-सा देख लीजिए। …अगर आप लेते हैं, तो कहीं-न-कहीं रियायत भी करेंगे। वो भी ज़रूरी है। xxxx एयरपोर्ट में कोई 10 लाख, …50 लाख से नीचे बात ही नहीं करता। जितने पैसे, उतना ही काम होता है; …और सीधा-सीधा होता है।
रिपोर्टर : यहाँ से भी xxxx एयरपोर्ट से काम हो रहा है, मतलब?
पिंटू : xxxx? …ऐसा कोई एयरपोर्ट नहीं है, जहाँ से ये काम न होता रहा हो।
रिपोर्टर : यही काम? …डॉलर का?
पिंटू : डॉलर का, गोल्ड का। …गोल्ड में रिस्क बहुत है।
रिपोर्टर : आप सिर्फ़ बैंकॉक से ही कर रहे हो?
पिंटू : हाँ; बीच में मैंने दुबई से किया था; …सेकेंड लॉकडाउन के समय। ….दुबई बहुत एक्सपेंसिव (महँगा) है, तो हमारा नहीं बन पाया था।
अब पिंटू ने बताया कि भारत से डॉलर बाहर ले जाने की सीमा क्या है और यह भी स्वीकार किया कि वह किस प्रकार से करोल बाग़ से अवैध रूप से डॉलर ख़रीदकर भारतीय नियमों को तोड़कर सीमा से कहीं अधिक डॉलर ले जाता है।
रिपोर्टर : नहीं, आप ये कह रहे हो डॉलर की एक लिमिट है इंडिया से बाहर ले जाने की?
पिंटू : इंडिया से बाहर ले जाने की सिर्फ़ इंडिया में ही लिमिट है। विदेश वालों की नहीं।
रिपोर्टर : एक बंदे की क्या लिमिट है?
पिंटू : एक बंदे को आरएस 1,500-2,000 तक यूएस डॉलर।
रिपोर्टर : आप कितना ले जाते हो?
पिंटू : 1,500-2,000…।
रिपोर्टर : ये डॉलर आपके पास कहाँ से आते हैं?
पिंटू : हम ख़रीदते हैं लोकल मार्केट से, …यहाँ पर करोल बाग़ से।
पिंटू यह स्वीकार करता है कि बिना दस्तावेज़ों के विदेशी मुद्रा ख़रीदना अवैध है। लेकिन वह बैंकों और अधिकृत एजेंटों के माध्यम से क़ानूनी तरीक़े की तुलना अवैध तरीक़े से ही यह सब करता हैं, जिसमें कोई पहचान, जाँच शामिल नहीं होती। वह ‘तहलका’ रिपोर्टर को इस काम में रुचि रखने वाला आम आदमी समझकर अपने नेटवर्क के माध्यम से उन्हें थोक में डॉलर या यूरो की व्यवस्था करके देने का भी वादा करता है।
रिपोर्टर : अच्छा; बिना पासपोर्ट के डॉलर नहीं ख़रीद सकते इंडिया में?
पिंटू : ख़रीद सकते हैं।
रिपोर्टर : लेकिन वो इल्लीगल होगा?
पिंटू : ब्लैक मार्केटिंग होगा। ..(जैसे)24 रुपये रेट है; लेकिन वो 25 देंगे।
रिपोर्टर : लेकिन वो लीगलाइज्ड नहीं होगा?
पिंटू : नहीं; आप प्रूफ कैसे करोगे?
रिपोर्टर : अगर लीगलाइज्ड करवाना है, तो पासपोर्ट देना पड़ेगा?
पिंटू : लीगली लेना है, तो बैंक से लेना होगा। व्हाइट होगा। पूरा जीएसटी कटेगा। …फिर व्हाइट कॉलर होगा, तो आप कहीं भी जाओगे, दिखा सकते हो, ये मेरे बिल है इट्स (इत्यादि)…। आप जवाब दे सकते हो ना!
रिपोर्टर : तो विदआउट डिस्काउंट ऐसे है लोगों को?
पिंटू : हाँ।
रिपोर्टर : आपकी सेटिंग कैसी है?
पिंटू : सेटिंग नहीं, आपको भी मिल जाएँगे। मैं नंबर दे देता हूँ आपको; …आज तो नहीं। मगर 20-25 हज़ार लोगों के पास होते ही हैं।
रिपोर्टर : दिल्ली में ही?
पिंटू : हाँ।
रिपोर्टर : आप दिलवा दोगे बिना पासपोर्ट, वीजा के?
पिंटू : हाँ; डॉलर, यूरो, …कुछ भी।
रिपोर्टर : बिना पासपोर्ट के?
पिंटू : हाँ।
यह ‘तहलका’ की पड़ताल का एक हिस्सा था, जिसमें यह उजागर हुआ कि कैसे एक दलाल अवैध रूप से भारत से बैंकॉक डॉलर ले जा रहा है और उन्हें थाई मुद्रा में परिवर्तित करने के बाद हवाला के माध्यम से रुपये में बदलकर भारत वापस ला रहा है। लेकिन इसके बाद ‘तहलका’ एसआईटी अपनी जाँच को पहलगाम आतंकी हमले के ठीक बाद आगे बढ़ाते हुए बिना किसी दस्तावेज़ के अवैध रूप से एक बदलने वाले मुद्रा विनिमयकर्ताओं (मनी एक्सचेंजर्स) का पर्दाफ़ाश किया गया है। इसी सिलसिले में ‘तहलका’ रिपोर्टर की मुलाक़ात ज़ैद से हुई, जो दिल्ली के दरगाह निज़ामुद्दीन इलाक़े में अनम एक्सचेंज नाम से मुद्रा विनिमय का कारोबार चलाता है। रिपोर्टर ने ज़ैद से कहा कि उन्हें भारतीय मुद्रा में दो लाख रुपये मूल्य के सऊदी रियाल की ज़रूरत है। तब ज़ैद ने बिना किसी क़ानूनी प्रक्रिया, बिना दस्तावेज़ या बिना बिल के रियाल उपलब्ध कराने पर सहमति जतायी। हालाँकि उसने रिपोर्टर से कहा कि पकड़े जाने पर जोखिम आपका रहेगा।
ज़ैद : रियाल कितना चाहिए?
रिपोर्टर : दो लाख इंडियन करेंसी का।
ज़ैद : (किसी से फोन पर पूछते हुए) …रियाल कितने का है? 23.20 पैसे का है।
रिपोर्टर : 23.20 पैसे एक सऊदी रियाल का? …कितना हो गया दो लाख का?
ज़ैद : 8,620…।
रिपोर्टर : 8,620 सऊदी रियाल मिल जाएँगे दो लाख के? …कोई डाक्यूमेंट तो नही देने पड़ेंगे?
ज़ैद : अगर बिल बनवाना है, तो देने पड़ेंगे।
रिपोर्टर : नहीं, बिल नहीं बनवाना।
ज़ैद : अपने रिस्क पर लेकर जाना फिर।
रिपोर्टर : अपना रिस्क, मतलब?
ज़ैद : रोक लें तो हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं रहेगी।
रिपोर्टर : ठीक है, वो तो हमारा रिस्क है। उसमें फिर ये है कि पासपोर्ट, वीजा हमें कुछ नहीं देना?
ज़ैद : नहीं।
ज़ैद के बाद ‘तहलका’ रिपोर्टर ने निज़ामुद्दीन इलाक़े में एसजीएस फॉरेक्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से मुद्रा विनिमय का काम करने वाले नईम ख़ान से कहा कि उन्हें (रिपोर्टर को) पाँच लाख रुपये के पाउंड (ब्रिटिश मुद्रा), दो लाख रुपये के रूबल (रशियन मुद्रा) और एक लाख रुपये के युआन (चाइनीज मुद्रा) चाहिए। इस पर नईम ‘तहलका’ रिपोर्टर को उनकी विनिमय दर (एक्सचेंज रेट) बताकर बिना किसी दस्तावेज़ और बिना बिल के मुद्रा बदलने को तैयार हो गया।
रिपोर्टर : ब्रिटिश पाउंड?
नईम : कितना है?
रिपोर्टर : पाँच लाख इंडियन करेंसी।
नईम : ब्रिटिश चाहिए आपको?
रिपोर्टर : हम्म! क्या रेट है?
नईम : 114.90…।
रिपोर्टर : 113.90 का एक पाउंड? …और रशियन का?
नईम : अभी हैं नहीं हमारे पास, …5-6 के (हज़ार) हैं।
रिपोर्टर : 5-6 के, …उसका क्या रेट है?
नईम : 1.05 पैसे।
रिपोर्टर : एक रुपये पाँच पैसे? …और चाइनीज?
नईम : है।
रिपोर्टर : चाइनीज का क्या रेट है?
नईम : 12.80 है।
रिपोर्टर : 12.80 रुपये? …दो लाख का कितना हो गया?
नईम : चाइनीज 15,625 रुपये।
रिपोर्टर : विद्आउट बिल मिल जाएगा ना?
नईम : बिल चाहिए इसका?
रिपोर्टर : नहीं चाहिए।
नईम : पाँच लाख का पाउंड चाहिए; …दो लाख का?
रिपोर्टर : …रूबल (रशियन करेंसी)।
नईम : और येन (जापानी करेंसी)?
रिपोर्टर : एक लाख का, तीनों के सही रेट लगा लो? …नईम भाई! बताएँ फिर, …डिस्काउंट तो नहीं चाहिए?
नईम : नहीं।
रिपोर्टर : मैं फिर एक घंटे में आ जाऊँ?
नईम : हाँ; आ जाओ।
अब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने सरफ़राज़ नाम के एक मुद्रा विनिमयकर्ता से मुलाक़ात की। सरफ़राज़ भी निज़ामुद्दीन में शिफ़ा फॉरेक्स में मनी एक्सचेंज का कारोबार चलाता है। सरफ़राज़ बिना किसी पहचान या दस्तावेज़ माँगे तुरंत दो लाख रुपये को अमेरिकी डॉलर में बदलने के लिए सहमत हो गया। उसने इस बात पर ज़ोर दिया कि वह मुद्रा विनिमय की जो दर बता रहा है, वह उचित है। साथ ही यह आश्वासन दिया कि इसमें कोई काग़ज़ी प्रक्रिया की ज़रूरत नहीं है। यह सौदा अनियमित, हाथों और चिन्तामुक्त है।
रिपोर्टर : मनी एक्सचेंज हो जाएगा?
सरफ़राज़ : कितना?
रिपोर्टर : दो लाख इंडियन करेंसी। …क्या रेट है?
सरफ़राज़ : 8,660…।
रिपोर्टर : 8,660?
सरफ़राज़ : हाँ।
रिपोर्टर : कितने डॉलर मिलेंगे यूएस?
सरफ़राज़ : 100 डॉलर, …8,660 का रेट है।
रिपोर्टर : दो लाख का कितना हो गया?
सरफ़राज़ : 2,309 डॉलर।
रिपोर्टर : 2,309 डॉलर यूएस? …कुछ डिस्काउंट तो नहीं देने पड़ेंगे?
सरफ़राज़ : कैश।
रिपोर्टर : वीजा, पासपोर्ट देने की ज़रूरत तो नहीं है?
सरफ़राज़ : नहीं, नहीं।
रिपोर्टर : कुछ और अच्छा रेट मिल जाए?
सरफ़राज़ : बेस्ट (बढ़िया) है, …बेस्ट रेट है।
रिपोर्टर : पूरा होगा दो लाख। बिलिंग वग़ैरह नहीं चाहिए हमें। …डिस्काउंट वग़ैरह?
सरफ़राज़ : कुछ नहीं।
अब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने निज़ामुद्दीन इलाक़े के एक अन्य मुद्रा विनिमयकर्ता अरफ़िन राजपूत से संपर्क किया, जो नोडल फॉरेक्स के नाम से अपना मुद्रा विनिमय का व्यापार चलाता है। दूसरे मुद्रा विनिमयकर्ताओं की तरह ही अरफ़िन राजपूत भी पाँच लाख रुपये को यूरो में बदलने को तैयार था, जिसके लिए उसने यह काम बिना किसी पासपोर्ट, बिना वीजा और बिना बिल के करने में रुचि दिखायी।
रिपोर्टर : यूरो मिल जाएगा यूरो? …पाँच लाख इंडियन करेंसी का?
अरफ़िन : मिल जाएगा।
रिपोर्टर : क्या रेट है?
अरफ़िन : 58 रुपये 70 पैसे।
रिपोर्टर : 58 रुपये 70 पैसे? …रुपये 58, 79 पैसे?
अरफ़िन : हाँ।
रिपोर्टर : दो लाख इंडियन करेंसी का कितना हो गया? …सॉरी पाँच लाख का?
अरफ़िन : ये हो गये तुम्हारे 5,065 (फाइव थाउजेंड सिक्सटी फाइव)।
रिपोर्टर : 5,065 रुपये। …डिस्काउंट तो नहीं चाहिए कुछ?
अरफ़िन : न।
रिपोर्टर : पासपोर्ट, वीजा की ज़रूरत तो नहीं? …बिल भी नहीं
चाहिए हमें।
अरफ़िन : न।
हम सभी को सन् 2015 का कुख्यात विदेशी मुद्रा घोटाला याद है, जिसमें सीबीआई ने बैंक ऑफ बड़ौदा और एचडीएफसी बैंक के कर्मचारियों सहित कई लोगों को गिरफ़्तार किया था। सन् 2017 में व्यापार आधारित धन शोधन के एक बड़े मामले में, जिसे विदेशी मुद्रा घोटाला भी कहा गया; सीबीआई ने 2015-2016 के दौरान फ़र्ज़ी आयात की आड़ में लगभग 2,253 करोड़ रुपये के विदेशी धन भेजने के लिए 13 निजी कम्पनियों और अज्ञात बैंक अधिकारियों के ख़िलाफ़ जाँच शुरू की। पिछले वर्ष 2024 में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ग्राहकों को ठगने वाले 75 अनधिकृत विदेशी मुद्रा डीलरों की सूची जारी की।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद शुरू की गयी ‘तहलका’ की दूसरे भाग की जाँच ने दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाक़े में विदेशी मुद्रा डीलरों के माध्यम से चल रहे तस्करी और हवाला नेटवर्क को उजागर किया है; वह भी स्थानीय पुलिस स्टेशन की नाक के नीचे। ‘तहलका’ रिपोर्टर के गुप्त कैमरे में क़ैद हुए मुद्रा विनिमयकर्ताओं ने दावा किया कि वे आरबीआई से अधिकृत हैं। लेकिन वे स्पष्ट रूप से क़ानूनी नियमों को तोड़कर काम कर रहे हैं; वह भी तब, जब देश पहलगाम हमले के बाद हाई अलर्ट पर है। यह सर्वविदित है कि ग्राहक अक्सर काग़ज़ी प्रक्रिया से बचने तथा केवल नक़द में ही लेन-देन करने के लिए ऐसे डीलरों को प्राथमिकता देते हैं। ये मुद्रा विनिमयकर्ता अवैध रूप से उस अवैध प्रक्रिया से काम करते हैं, जिसे सामान्य भाषा में काला बाज़ार कहा जाता है। जैसा कि नाम से पता चलता है, मुद्रा विनिमय एक ऐसा क्षेत्र, जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं (करेंसीज) को बदलने का काम होता है। लेकिन यही काम मुद्राओं के अवैध विनिमय से लेकर कर (टैक्स) चोरी और हवाला के ज़रिये आतंकवाद के लिए वित्तपोषण तक का ज़रिया बना हुआ है, जिसका केंद्र अवैध रूप से मुद्राओं को बदलने वाले ऐसे ही मुद्रा विनिमयकर्ता हैं। इस समानांतर अर्थव्यवस्था के प्रति आँखें मूँद लेने से इस कालाबाज़ारी का जोखिम और भी बढ़ जाता है, जिसे लोग सुविधाजनक रूप से लेन-देन, क़ानूनी प्रक्रिया और पैसे बचाने के चक्कर में नकार देते हैं।
18 मई की सुबह हैदराबाद के ऐतिहासिक चार मीनार स्थल से महज़ 100 मीटर की दूरी पर स्थित गुलजार हाउस की एक इमारत में लगी भीषण आग से आठ बच्चों सहित 17 लोगों की मौत हो गयी। अग्नि विभाग की प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, आग शॉर्ट सर्किट की वजह से 18 मई की सुबह क़रीब 5:30 बजे लगी, जब अधिकांश निवासी सो रहे थे।
ग़ौरतलब है कि गुलजार हाउस हैदराबाद की एक बहुत पुरानी इमारत है और यह हैदराबाद की संकरी गलियों में स्थित है। यह इलाक़ा मोती निर्मित गहनों के कारण दुनिया भर में अपनी एक ख़ास पहचान रखता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह आग वहाँ कई दशकों से बसे एक परिवार की मोती की दुकान में लगी, जिसका घर दुकान की ऊपर वाली मंज़िल पर था। इस हादसे में मरने वाले 17 सदस्य एक ही परिवार के थे और धुएँ में दम घुटने से उनकी मौत हुई। तेलंगाना राज्य सरकार ने इस आग-दुर्घटना की व्यापक जाँच के लिए छ: सदस्यीय समिति का गठन किया है। देश में रिहायशी भवनों, झुग्गी-झोंपड़ियों, अस्पतालों, स्कूलों, औद्योगिक भवनों में आग लगने की घटनाएँ अक्सर सुनने को मिलती हैं, जिनसे लोगों की जान और माल को ख़तरा होता है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की दिसंबर, 2023 को प्रकाशित रिपोर्ट ‘एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड्स इन इंडिया 2022’ के अनुसार, वर्ष 2022 में देश की आग लगने की 7,566 घटनाओं में 7,435 लोगों की जान गयी। इनमें से आधी से अधिक मौतें आवासीय इमारतों और घरों में आग लगने की वजह से हुई हैं। एनसीआरबी के आँकड़े दर्शाते हैं कि देश में आग की दुर्घटनाओं में कमी आयी है और इससे होने वाली मौतें भी 1996 में 27,561 से घटकर 2022 में 7,435 हो गयी हैं; लेकिन अग्नि-सुरक्षा पर काम करने वाले एक नागरिक समूह बियोन्ड कार्लटन का मानना है कि इन आँकड़ों की क्रॉस चेकिंग की ज़रूरत है। बियोन्ड कार्लटन ने 15 फरवरी, 2025 को ‘भारत में अग्नि-सुरक्षा कार्लटन से परे परिप्रेक्ष्य’ नामक एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बर्न रजिस्ट्री, अस्पताल डाटा और अग्निशमन विभाग जैसे अन्य डाटा स्रोतों का उपयोग करके ही सही डाटा का पता लगाया जा सकता है। रिपोर्ट में अन्य विसंगतियों की ओर भी ध्यान दिलाया गया है। जैसे- मौतों की संख्या की तुलना में घायलों की संख्या बेहद कम लगती है। यही नहीं, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो पुलिस से डेटा एकत्र करता है, न कि अग्निशमन सेवाओं से। भारत सरकार के पास उपलब्ध अग्निशमन केंद्रों और अग्निशमन कर्मियों का नवीनतम डाटा 2018 का है, जो संसाधनों की भारी कमी को दर्शाता है।
दरअसल मानव बस्तियों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों आदि में आग की घटनाओं की वजहें हैं- ज़्यादातर रसोई में ईंधन इस्तेमाल में लापरवाही, बिजली से जुड़ी लापरवाही और शॉर्ट सर्किट, धूम्रपान और खुले में आग जलाना, उद्योगों में हानिकारक रसायन और ज्वलनशील पदार्थों का ग़ैर-ज़िम्मेदाराना इस्तेमाल करना और आग से जुड़े सुरक्षा-उपायों को नज़रअंदाज़ करना। यूँ तो राष्ट्रीय भवन संहिता (एनबीसी), 2016 में संरचनाओं के निर्माण, रखरखाव और अग्नि-सुरक्षा के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश शामिल हैं, जिनमें प्रमुख घातक आग के ख़तरे को कम करने वाली डिजाइन और सामग्रियों के संदर्भ में बताया गया है कि दीवारों, छत, अग्नि-निकास आदि में उपयोग की जाने वाली अग्नि-प्रतिरोधी सामग्रियों का इस्तेमाल करना। एनसीबी यह भी सुनिश्चित करती है कि इमारतों में आग लगने की सूरत में सचेत करने और इसे बुझाने से सम्बन्धित प्रौद्योगिकियों को शामिल किया जाए। जैसे-आग का पता लगाने के लिए स्वचालित अलार्म प्रणाली, पानी के छिड़काव के लिए स्वचालित स्प्रे, फायरमैन लिफ्ट, अग्नि-अवरोधक आदि। लेकिन सबसे मुख्य सवाल यह है कि देश में ज़रूरत के अनुपात में अग्निशमन केंद्रों और अग्निशमन कर्मियों की कमी है। इस पर सरकार कब ध्यान देगी? इसके साथ ही एनसीबी के दिशा-निर्देशों पर अमल करने में अक्सर जो उदासीनता नज़र आती है, उस नज़रिये में गंभीरता नज़र आनी चाहिए। अक्सर कार्रवाई करने वाले सरकारी कर्मचारी, अधिकारी अपनी जेबें गर्म करने के चक्कर में अग्नि-सुरक्षा के मानकों का निरीक्षण करने, अग्निशमन सम्बन्धित नियमों, दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करने वालों के प्रति कठोर कार्रवाई करने से बचते हैं। जिस तरह से जलवायु परिवर्तन के कारण धरती अब पहले की अपेक्षा साल-दर-साल अधिक गर्म हो रही है और इंसान की एयरकंडीशनर पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, इंसान के व्यवहार में बदलाव की यह प्रक्रिया भी आग लगने की घटनाओं में वृद्धि का एक कारण सामने आया है।
आग की घटनाएँ कम-से-कम हों और उनमें जान-माल की हानि भी बहुत कम हो, इसके लिए चौतरफ़ा अभियान और बेहतर प्रयासों की ज़रूरत है। स्कूलों, दफ़्तरों और रिहायशी इलाक़ों में इससे बचाव, अग्निशमन उपकरणों के इस्तेमाल की जानकारी सम्बन्धित अभियान बराबर चालू रहने चाहिए। अग्निशमन उपकरणों के रखरखाव के प्रति सम्बन्धित विभागों को सचेत रहना, सरकार का अग्निशमन विभागों के आधुनिकीकरण के लिए अधिक वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना। भारत, जहाँ दुनिया की सबसे अधिक आबादी है; शहरीकरण की प्रक्रिया की रफ़्तार बहुत तेज़ है। शहरों में आबादी का घनत्व बढ़ रहा है, ऐसे में सरकार और समाज दोनों को मिलकर ठोस काम करने की ज़रूरत है।
यूक्रेन और रूस के बीच जारी संघर्ष ने एक नया और खतरनाक मोड़ ले लिया। रूस ने जहां यूक्रेन के कई शहरों पर लगातार 9 घंटे तक मिसाइल और ड्रोन से भीषण हमले किए, वहीं यूक्रेन ने जवाबी कार्रवाई करते हुए रूस के भीतर अब तक का सबसे बड़ा ड्रोन ऑपरेशन चलाया। यूक्रेनी सेना ने दावा किया है कि उसने रूस के 4 एयरबेस को निशाना बनाते हुए बम गिराए और कम से कम 40 से अधिक बमवर्षक विमानों को नष्ट कर दिया।
रूस द्वारा यूक्रेन पर किए गए हमलों के कुछ ही घंटों बाद, यूक्रेन ने रूस के सुदूर साइबेरिया क्षेत्र में एक जबर्दस्त ड्रोन हमला कर पलटवार किया। इसे इस युद्ध की अब तक की सबसे बड़ी ड्रोन कार्रवाई बताया जा रहा है।
शनिवार देर रात रूस ने कीव, खारकीव, ओडेसा, ज़ापोरिज्जिया और दनिप्रोपेत्रोव्स्क समेत यूक्रेन के कई शहरों को मिसाइलों और ड्रोन से निशाना बनाया। एक सैन्य प्रशिक्षण केंद्र पर हुए हमले में 12 लोगों की मौत हो गई और 60 से अधिक घायल हो गए। नागरिक क्षेत्रों, घरों, बैंक शाखाओं और गोदामों को भी नुकसान पहुंचा। कीव में दर्जनों मकान क्षतिग्रस्त हो गए, हालांकि जानहानि की कोई खबर नहीं है। यूक्रेन का कहना है कि रूस ने लगभग 9 घंटे तक हवाई हमले जारी रखे।
रूसी हमलों के कुछ ही घंटों के भीतर, यूक्रेन ने रूस के चार सैन्य एयरबेस पर ड्रोन हमले किए। यूक्रेनी मीडिया और रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह हमला रूस के अंदरूनी हिस्से साइबेरिया तक पहुंचा। यूक्रेनी सेना ने दावा किया कि पहला हमला साइबेरिया में एक रूसी सैन्य इकाई पर किया गया। इसके बाद बेलाया और ओलेन्या एयरबेस सहित चार ठिकानों पर एक साथ हमले किए गए। इन हमलों में कम से कम 40 रूसी बमवर्षक विमानों को तबाह कर दिया गया, जिनमें रूस के अत्याधुनिक Tu-95 और Tu-22M3 जैसे बमवर्षक विमान शामिल हैं। यूक्रेन के इस दावे की स्वतंत्र पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है, लेकिन इस घटना ने निश्चित रूप से दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है।
शिक्षा इंसान को समझदार ही नहीं बनाती, बल्कि पैसा कमाने लायक बनाने के अलावा उसे ज़िन्दगी जीने का तरीक़ा भी सिखाती है। लेकिन आज जब पूरी दुनिया विज्ञान में हैरान कर देने वाले चमत्कारिक प्रयोग कर रही है, तब दुनिया के पहले शिक्षित देश और विश्व गुरु कहलाने वाले हिंदुस्तान में शिक्षा का स्तर बेहद गिरता जा रहा है। सवाल यह है कि शिक्षा के इस गिरते स्तर के लिए ज़िम्मेदार कौन है? मेरे ख़याल से इसके लिए किसी एक को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। क्योंकि इसके लिए कोई एक व्यक्ति या एक समाज ज़िम्मेदार है भी नहीं। मसलन, शिक्षा के गिरते स्तर के लिए न सिर्फ़ शिक्षक ज़िम्मेदार हैं, न सिर्फ़ विद्यार्थी ज़िम्मेदार हैं, न सिर्फ़ समाज ज़िम्मेदार है, न सिर्फ़ शिक्षा पद्धति ज़िम्मेदार है और न सिर्फ़ सरकारें ज़िम्मेदार हैं, बल्कि ये सब इसके लिए ज़िम्मेदार हैं। और इनके अलावा मोबाइल, नशा, अपराध, क़ानून व्यवस्था, ख़ासतौर पर शिक्षा के लिए बनी क़ानून व्यवस्था भी ज़िम्मेदार हैं। लेकिन फिर भी अगर यह तय किया जाए कि शिक्षा के गिरते स्तर के लिए सबसे बड़ा ज़िम्मेदार कौन है? तो इसमें पाँच बड़े ज़िम्मेदार नज़र आएँगे। पहले नंबर पर सरकारें, दूसरे नंबर पर शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा के लिए बना क़ानून, तीसरे नंबर पर शिक्षक, चौथे नंबर पर पैरेंट्स और पाँचवें नंबर पर विद्यार्थी। बाक़ी सब चीज़ें इनकी वजह से ही शिक्षा में अड़चन और हानिकारक बनती नज़र आती हैं।
बहरहाल, अभी हाल ही में पूरे देश में बोर्ड परीक्षाओं के रिजल्ट घोषित हुए हैं। सबसे पहले सरकारी नौकरी के लिए सबसे प्रमुख परीक्षा यूपीएससी का रिजल्ट घोषित हुआ और उसके बाद 10वीं और 12वीं बोर्ड की परीक्षाओं के रिजल्ट घोषित हुए। लेकिन जिस प्रकार से हरियाणा बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन के 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों का इस बार का रिजल्ट ख़राब रहा है, वो बेहद चौंकाने वाला और शर्मनाक है। हरियाणा बोर्ड में 12वीं में कुल 85.66 फ़ीसदी विद्यार्थी ही पास हुए हैं, जबकि कई स्कूलों का रिजल्ट काफ़ी निराशाजनक रहा है।
इससे भी हैरत की बात ये है कि हरियाणा के 18 स्कूल ऐसे हैं, जहाँ 12वीं का एक भी विद्यार्थी पास नहीं हो सका है। हरियाणा बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन ने इसे देखते हुए राज्य के इंटरमीडिएट स्कूलों का आकलन किया है, जिसमें 100 ऐसे स्कूल पाये गये हैं, जहाँ विद्यार्थियों का परीक्षा रिजल्ट बेहद ख़राब औसतन महज़ 35 फ़ीसदी ही रहा है। और जिस प्रकार से हरियाणा बोर्ड के 18 स्कूलों में एक भी 12वीं का विद्यार्थी पास नहीं हुआ है, उनकी स्थिति तो हरियाणा बोर्ड ही नहीं, हरियाणा सरकार को बताने में भी शर्म आ रही है। हरियाणा बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन के अध्यक्ष डॉ. पवन कुमार कह रहे हैं कि अधिकांश ऐसे स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या भी बहुत कम थी, कुछ जगहों पर केवल एक या दो विद्यार्थी ही थे। लेकिन जहाँ कम विद्यार्थी थे, वहाँ का तो रिजल्ट और अच्छा आना चाहिए; क्योंकि ऐसे में विद्यार्थियों को पढ़ने में आसानी रहती है और अपने अध्यापक से सवाल पूछने या अच्छी तरह पढ़ाई करने का मौक़ा भी ख़ूब रहता है। हालाँकि उन्होंने ये स्वीकार किया है कि परिणाम निराशाजनक रहे। उन्होंने कुल 13 विद्यार्थियों वाले एक स्कूल का उदाहरण भी दिया, जहाँ सभी विद्यार्थी फेल हो गये। इसके साथ ही बोर्ड ने इस प्रकार के ख़राब रिजल्ट आने पर चिन्ता व्यक्त करते हुए सुझाव दिया है कि ख़राब रिजल्ट वाले स्कूलों के अध्यापकों के ख़िलाफ़ कड़े क़दम उठाये जाने चाहिए और सम्बन्धित शिक्षा निदेशालय को इन स्कूलों और अध्यापकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए एक रिपोर्ट भी सौंप दी है।
बहरहाल, स्कूलों के ख़िलाफ़ और पढ़ाने वाले अध्यापकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी ही चाहिए; लेकिन क्या इसके लिए विद्यार्थी ज़िम्मेदार नहीं हैं? क्या उन विद्यार्थियों के माँ-बाप ज़िम्मेदार नहीं हैं? और क्या सरकार इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है? क्या इसके लिए लचर क़ानून व्यवस्था ज़िम्मेदार नहीं है? मेरे कहने का मतलब यह है कि शिक्षा के गिरते स्तर और विद्यार्थियों की अवारागर्दी, माँ-बाप की लापरवाही, अध्यापकों की लापरवाही और क़ानूनी मजबूरी भी, स्कूल प्रबंधन की ढिलाई, शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा बजट को लेकर सरकार की कमी और विद्यार्थियों के पक्ष में बने लचर क़ानून की भी कमी ही है, जिसके चलते इतना ख़राब रिजल्ट हरियाणा बोर्ड में 12वीं के विद्यार्थियों का आया, जो इससे पहले कभी नहीं आया होगा। अध्यापकों की मजबूरी यह है कि वे विद्यार्थियों को क्लास में न आने या न पढ़ने पर पीट नहीं सकते। उन पर बहुत सख़्ती नहीं कर सकते। साल 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने साल 2015 में ही किशोर न्याय अधिनियम-2015 लागू किया, जिसके तहत अध्यापक यदि बच्चों को न पढ़ने या शैतानी करने पर मारपीट नहीं सकता और न पढ़ने के लिए ज़्यादा दबाव बना सकता है।
अगर कोई अध्यापक ऐसा करता है, तो विद्यार्थी के पैरेंट्स उस अध्यापक के ख़िलाफ़ इस क़ानून की धारा-82 के तहत थाने में एफआईआर दर्ज करा सकते हैं, जिससे अध्यापक के ख़िलाफ़ कार्रवाई होगी। इसके पहले कांग्रेस के नेतृत्व में बनी यूपीए की केंद्र सरकार राइट टू एजुकेशन एक्ट-2009 लेकर आयी थी, जिसकी धारा-17 के मुताबिक, कोई भी शिक्षक किसी भी विद्यार्थी को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित नहीं कर सकता। इन क़ानूनों के अलावा भारतीय संविधान का अनुच्छेद-21 भी विद्यार्थियों की गरिमा और सुरक्षा के पक्ष में है, जिसके तहत हर व्यक्ति को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है। ऐसे में विद्यार्थियों को किसी भी तरह से प्रताड़ित करने पर अध्यापकों के लिए धारा-82 के तहत सज़ा का प्रावधान तो है ही। धारा-82(1) के तहत विद्यार्थियों को शारीरिक दंड देने पर अध्यापक को 10,000 रुपये ज़ुर्माना भरना पड़ सकता है और तीन साल की जेल हो सकती है या दोनों ही हो सकते हैं। इसके अलावा धारा-82(2) के तहत अध्यापक को बर्ख़ास्त कर दिया जाएगा, जो कि अनिवार्य है। इसके साथ ही धारा-82(3) के तहत अगर अध्यापक / अध्यपाकों के जाँच में सहयोग न करने पर उन्हें तीन महीने की जेल और संस्था / स्कूल पर एक लाख रुपये का ज़ुर्माना लगाये जाने का प्रावधान है। ऐसे क़ानून बने होने पर कोई अध्यापक या स्कूल विद्यार्थियों को जबरन कैसे पढ़ा सकता है? बल्कि वे तो विद्यार्थियों की कमियाँ या ग़लतियाँ होने पर भी उन्हें मारने और सज़ा देने से बचना ही चाहेंगे।
पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आये हैं, जिनमें विद्यार्थियों को मारने-पीटने पर पैरेंट्स ही स्कूल जाकर अध्यापकों से लड़ने लगे हैं और कइयों ने तो अध्यापकों के ख़िलाफ़ एफआईआर तक दर्ज करायी है। एक वो ज़माना था कि जब बच्चा नहीं पढ़ता था या शैतानी करता था, तो स्कूल में जमकर पिटाई होती थी और जब यह बात घर वालों को पता चलती थी, तो घर में और पिटाई होती थी। यहाँ तक कि स्कूल में बिना ग़लती के भी पिटाई हो जाती थी; लेकिन कोई पैरेंट्स कभी अध्यापक से लड़ने नहीं जाते थे। उलटा और अगर कहीं कोई अध्यापक या क्लास टीचर रास्ते में पिता या दादा को मिल जाते थे, तो यह पूछते थे कि हमारा बच्चा ठीक से पढ़ रहा है कि नहीं? ऊपर से यह और कह देते थे कि उसे सुधारकर रखना। अगर नहीं पढ़े, तो मारना। तब न घर में बहस करने की हिम्मत होती थी और न स्कूल-कॉलेज में, चाहे ग़लती हो या न हो। आत्महत्या तो उस समय विद्यार्थियों के लिए बहुत दूर की बात होती थी। लेकिन अब तो अध्यापकों के ज़रा-सी बात कह देने भर से विद्यार्थी उन्हें पीटने को तैयार हो जाते हैं। कई जगह ऐसे मामले सामने आ भी चुके हैं। स्कूल जाना या नहीं जाना, क्लास रूम में बैठना या नहीं बैठना, ये सब विद्यार्थियों की मर्ज़ी पर निर्भर हो चुका है। अध्यापक अपनी इज़्ज़त और जान बचाने के लिए विद्यार्थियों से कुछ नहीं कह पाते या उन्हीं विद्यार्थियों से कहते हैं, जो पढ़ना चाहते हैं। माँ-बाप भी अब बच्चों से कुछ पूछना उचित नहीं समझते, वे सिर्फ़ रिजल्ट देखने के लिए साल भर इंतज़ार करते हैं।
लेकिन समस्या यह भी है कि जो माँ-बाप अपने बच्चों पर पढ़ने का ज़्यादा दबाव बनाते हैं, उनमें से कई विद्यार्थी आत्महत्या जैसा आपराधिक क़दम उठा लेते हैं। इसके चलते पैरेंट्स भी डरे-सहमे रहते हैं कि कहीं उनका बच्चा या बच्ची कोई ग़लत क़दम न उठा ले। आँकड़ों के मुताबिक, साल 2021 में 1,64,033 विद्यार्थियों (छात्र-छात्राओं) ने देश में आत्महत्या की थी, तो साल 2022 में आत्महत्या करने वाले विद्यार्थियों की संख्या बढ़कर 1,70,924 पहुँच गयी। साल 2022 में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीते एक दशक में छात्रों में आत्महत्याओं के मामलों में 50 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई, जबकि छात्राओं की आत्महत्याओं के मामलों में 61 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई।
बहरहाल, अगर ठीक से शिक्षा के गिरते स्तर और विद्यार्थियों में बढ़ते आत्महत्या के मामलों पर ग़ौर किया जाए, तो कई कमियाँ दिखायी देंगी, जिन्हें ठीक करने की ज़रूरत है। इस मामले में किसी एक को पूरी तरह ज़िम्मेदार भी नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि अगर सरकारें चाहें, तो इन कमियों को बड़ी आसानी से दूर कर सकती हैं। लेकिन कई राज्यों में सरकारी स्कूलों की दुर्दशा, शिक्षा के बजट की कमी और बंद हो रहे स्कूलों जैसे मुद्दों पर अगर ध्यान दिया जाए, तो शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो सकता है। इसके अलावा देश में एक शिक्षा नीति, एक पाठ्यक्रम भी लागू होना चाहिए, जिससे ग़रीब और अमीर सबके बच्चे न सिर्फ़ एक जैसी शिक्षा हासिल कर सकें, बल्कि उनमें भेदभाव और हीन भावना पैदा न हो और शिक्षा का स्तर सुधर सके।
नई दिल्ली: उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तहत केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) ने शुक्रवार को ई-कॉमर्स साइटों पर रेडियो उपकरणों की अवैध लिस्टिंग और बिक्री पर अंकुश लगाने के लिए नए मानदंड जारी किए हैं। ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर वॉकी-टॉकी सहित रेडियो उपकरणों की अवैध लिस्टिंग और बिक्री की रोकथाम और विनियमन के लिए दिशानिर्देश, 2025 का उद्देश्य वायरलेस उपकरणों की अनधिकृत बिक्री रोकना है, जिनसे उपभोक्ता सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा हो सकता है।
मंत्रालय ने कहा कि ये उपकरण उपभोक्ताओं को उनकी कानूनी स्थिति के बारे में गुमराह कर सकते हैं। साथ ही कानून प्रवर्तन और आपातकालीन सेवाओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले महत्वपूर्ण संचार नेटवर्क में हस्तक्षेप कर सकते हैं। दूरसंचार विभाग (डीओटी) और गृह मंत्रालय (एमएचए) के साथ व्यापक अंतर-मंत्रालयी परामर्श के बाद इन दिशानिर्देशों को अंतिम रूप दिया गया।
जांच में पाया गया कि वायरलेस ऑपरेटिंग लाइसेंस की जरूरत या लागू कानूनों के अनुपालन के बारे में जरूरी और स्पष्ट खुलासे के बिना ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर वॉकी-टॉकी बेचे जा रहे हैं। वॉकी-टॉकी के लिए प्रोडक्ट लिस्टिंग में यह साफ नहीं किया गया है कि डिवाइस को इस्तेमाल करने के लिए संबंधित प्राधिकरण से लाइसेंस की जरूरत है या नहीं।
दिशानिर्देशों के तहत यह अनिवार्य किया गया है कि केवल अधिकृत और अनुपालक वॉकी-टॉकी उपकरण ही ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर ग्राहकों के लिए पेश किए जाएं। इसके अलावा, प्रोडक्ट लिस्ट में फ्रीक्वेंसी और अन्य तकनीकी पैरामीटर की जानकारी देना जरूरी होगा। जारी दिशानिर्देश ऐसे भ्रामक विज्ञापनों या उत्पाद विवरणों पर प्रतिबंध लगाते हैं, जो उपभोक्ताओं को उपकरणों के कानूनी उपयोग के बारे में गलत जानकारी दे सकते हैं।
नए दिशानिर्देश उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अनुसार उल्लंघनों के लिए दंड और प्रवर्तन व्यवस्था की रूपरेखा भी तय करते हैं।
मंत्रालय की ओर से जानकारी दी गई है कि इन दिशानिर्देशों के साथ विभाग का लक्ष्य उचित जानकारी के माध्यम से उपभोक्ता जागरूकता को बढ़ावा देना है। साथ ही, विक्रेता की साख और प्रमाणीकरण का सत्यापन अनिवार्य करना, अनधिकृत लिस्टिंग के लिए स्वचालित निगरानी और निष्कासन तंत्र लागू करना है। इसके अलावा, जारी दिशानिर्देश अनुपालन न करने की स्थिति में दंड और प्लेटफॉर्म दायित्व लागू करना भी सुनिश्चित करते हैं।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को निर्देश दिया कि 15 जून को तय नेशनल एलिजिबिलिटी-कम-एंट्रेंस टेस्ट-पोस्ट ग्रेजुएट (NEET-PG) 2025 परीक्षा दो शिफ्ट के बजाय एक ही शिफ्ट में आयोजित की जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि NEET PG 2025 परीक्षा को दो शिफ्ट में ना कराया जाए। कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसा किया जाता है तो इससे मनमानी और कठिनाई के अलग-अलग स्तर पैदा हो सकते हैं। कोर्ट ने नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन यानी NBE से साफ तौर पर कहा है कि वह एक शिफ्ट में ही परीक्षा आयोजित कराने की व्यवस्था करें। सुप्रीम कोर्ट ने NEET PG 2025 परीक्षा को दो शिफ्ट मे कराए जाने के नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान ये बात कही है। ये याचिका यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट की तरफ से दाखिल की गई है। याचिका में कहा गया है कि ये परीक्षा पूरे देश में एक ही सत्र में आयोजित कराई जाए। पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। NEET PG की परीक्षा 15 जून को होनी है।
न्यायमूर्ति संजय कुमार और एन वी अंजरिया की पीठ ने कहा कि दो पालियों में परीक्षा आयोजित करना “मनमानी” को जन्म देता है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि दो अलग-अलग प्रश्नपत्रों का कठिनाई स्तर या सरलता कभी भी एक तरह की नहीं हो सकती। इसलिए, एकरूपता और निष्पक्षता के लिए एक ही शिफ्ट में इम्तिहान करवाना जरूरी है, ताकि तमाम उम्मीदवारों को समान मौका मिले।
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने धान, कपास, सोयाबीन, अरहर समेत खरीफ की 14 फसलों की मिनिमम सपोर्ट प्राइस बढ़ा दी है। केंद्रीय कैबिनेट ने आज यानी 28 मई को यह फैसला लिया। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि धान की नई एमएसपी 2,369 रुपए तय की गई है, जो पिछली एमएसपी से 69 रुपए ज्यादा है।
वैष्णव ने कहा कि सरकार ने बीते 10 साल में लगातार एमएसपी में बढ़ोतरी की है और हालिया फैसले से 7 करोड़ से अधिक किसानों को फायदा होगा। दालों में अरहर का समर्थन मूल्य 450 रुपये बढ़ाकर 8,000 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है, जबकि उड़द का एमएसपी 400 रुपये बढ़ाकर 7,800 रुपये प्रति क्विंटल और मूंग का एमएसपी 86 रुपये बढ़ाकर 8768 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है।
– सरकार ने बुधवार को संशोधित ब्याज सहायता योजना (एमआईएसएस) को 2025-26 के लिए जारी रखने को मंजूरी दे दी, जिसके तहत किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के माध्यम से सस्ती दर पर अल्पकालिक ऋण मिलता है। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि मौजूदा 1.5 प्रतिशत ब्याज सहायता के साथ वित्त वर्ष 2025-26 के लिए एमआईएसएस को जारी रखने का निर्णय केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा लिया गया। इस योजना को जारी रखने से सरकारी खजाने पर 15,640 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। एमआईएसएस के तहत, किसानों को केसीसी के माध्यम से 7 प्रतिशत की रियायती ब्याज दर पर 3 लाख रुपये तक का अल्पकालिक ऋण मिलता है, जिसमें पात्र ऋण देने वाली संस्थाओं को 1.5 प्रतिशत ब्याज सहायता प्रदान की जाती है। इसके अतिरिक्त, समय पर ऋण चुकाने वाले किसान शीघ्र पुनर्भुगतान प्रोत्साहन (पीआरआई) के रूप में 3 प्रतिशत तक के प्रोत्साहन के पात्र होते हैं, जिससे केसीसी ऋण पर उनकी ब्याज दर प्रभावी रूप से 4 प्रतिशत तक कम हो जाती है।
बडवेलनेल्लोरफोर–लेनहाईवेकोमंजूरी यह हाईवे बडवेल-गोपरावम गांव (NH-67) से लेकर गुरुविंदापुडी (NH-16) तक बनेगा। इसकी कुल लंबाई: 108.134 किलोमीटर होगी। इस फोर लेन बनाने की कुल अनुमानित लागत: 3653.10 करोड़ रुपये आंकी गई है। बडवेल-नेल्लोर कॉरिडोर आंध्र प्रदेश के तीन प्रमुख औद्योगिक कॉरिडोरों से कनेक्टिविटी सुनिश्चित करेगा। यह कॉरिडोर कृष्णपट्टनम पोर्ट तक की यात्रा दूरी को 142 किमी से घटाकर 108.13 किमी कर देगा। परियोजना के माध्यम से लगभग 20 लाख मानव-दिनों का प्रत्यक्ष रोजगार और 23 लाख मानव-दिनों का अप्रत्यक्ष रोजगार उत्पन्न होगा।
आंध्रप्रदेशमें 108 किलोमीटरलंबेफोर–लेनहाईवेपरियोजनाकोमंजूरी – परियोजना की लागत 3,653 करोड़ – BOT मॉडल पर विकसित किया जाएगा, रियायत अवधि 20 वर्ष
वर्धा–बल्लारशाहरेललाइनविस्तार – महाराष्ट्र में वर्धा से बल्लारशाह रेल मार्ग को दोहरीकरण की मंजूरी – माल और यात्री यातायात की क्षमता को दोगुना करेगी
रतलाम–नागदारेलपरियोजना – रतलाम-नागदा रेलवे लाइन पर चौथी लाइन बिछाने को मंजूरी – परियोजना की लागत ₹1,018 करोड़ – मध्य प्रदेश के रतलाम से नागदा तक 41 किलोमीटर लंबे रेलखंड को चार लाइन में बदला जाएगा
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने भारतीय रेलवे में लाइन क्षमता बढ़ाने के लिए दो मल्टीट्रैकिंग परियोजनाओं को मंजूरी दी। ताकि यात्रियों और माल दोनों का निर्बाध और तेज परिवहन सुनिश्चित किया जा सके। रतलाम-नागदा तीसरी और चौथी लाइन औऱ वर्धा- बल्हारशाह चौथी लाइन को मंजूरी मिली है। परियोजनाओं की कुल अनुमानित लागत 3,399 करोड़ रुपये (लगभग) है और इन्हें 2029-30 तक पूरा किया जाएगा।
स्पेसएक्स के विशालकाय स्टारशिप रॉकेट की ताज़ा परीक्षण उड़ान फिर से असफल हो गया। यह अंतरिक्ष यान अब तक का सबसे बड़ा औप शक्तिशाली रॉकेट था। इसे मंगल ग्रह पर कॉलोनी स्थापित करने की एलन मस्क की महत्वाकांक्षाओं के लिए अहम बताया जा रहा था। इसका 9वां टेस्ट भारतीय समयानुसार 28 मई की सुबह 5 बजे टेक्सास के बोका चिका से किया गया। हालांकि, ये टेस्ट कामयाब नहीं हो पाया।
स्टारशिप की लॉन्चिंग के करीब 30 मिनट के बाद ही रॉकेट ने अपना कंट्रोल खो दिया और इस वजह से पृथ्वी के वातावरण में एंटर करने पर ये नष्ट हो गया। ये तीसरी बार है जब स्टारशिप रॉकेट आसमान में ही नष्ट हुआ। हालांकि, मस्क की कंपनी स्पेसएक्स को इस टेस्ट के दौरान एक सफलता भी मिली है और रॉकेट के बूस्टर ने अमेरिका की खाड़ी में हार्ड लैंडिंग की है। लैंडिंग बर्न के दौरान एक सेंटर को जानबूझकर बंद कर दिया गया था, जिससे बैकअप इंजन की क्षमता के बारे में पता लगाया जा सके। इस रॉकेट की ऊंचाई 400 फीट है और यह पूरी तरह से रीयूजेबल है। बता दें, रॉकेट सफलतापूर्व लॉन्च हो गया था, लेकिन लॉन्चिंग के कुछ समय बाद ही कंट्रोल खोने की वजह से रॉकेट नष्ट हो गया। यह पूरा टेस्ट 1.06 घंटे का था। स्पेसएक्स के बयान के अनुसार, अंतरिक्ष यान तेज़ी से विखंडित हो गया और हिंद महासागर में गिरने से पहले ही टूट कर बिखर गया। एक्स पर एक पोस्ट में कंपनी ने कहा कि इस परीक्षण से उसे स्टारशिप की विश्वसनीयता में सुधार करने में मदद मिलेगी।
एलन मस्क ने टेस्ट के बाद कहा कि स्टारशिप निर्धारित शिप इंजन कटऑफ तक पहुंच गया, इसलिए पिछली उड़ानों की तुलना में काफी सुधार हुआ है। रिसाव के कारण कोस्ट और री-एंट्री फेज के दौरान मेन टैंक प्रेशर में कमी आई। उन्होंने कहा कि अब अगले तीन लॉन्च काफी तेजी से होंगे और लगभग हर 3 से 4 हफ्ते में लॉन्च किया जाएगा।