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ज्यों नावक के तीर

bookदूर तक चुप्पी मदन कश्यप का नया कविता संग्रह है. इससे पहले उनके तीन कविता संग्रह- लेकिन उदास है पृथ्वी, नीम रोशनी में और कुरुज प्रकाशित हो चुके हैं. बिहारी के लिखे छोटे लेकिन प्रभावशाली दोहों के बारे में कहा जाता था- सतसैया के दोहरे ज्यों नावक के तीर, देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर. मदन कश्यप की छोटी लेकिन बेहद असरदार कविताओं पर यह उक्ति लागू होती है.

संग्रह की कविताओं के एक हिस्से में ढेर सारी यादें हैं. त्रिलोचन की याद, महल फिल्म की याद, गुवाहाटी कांड (जहां एक 17 साल की युवती के साथ उन्मादी भीड़ ने बेहद बर्बर व्यवहार किया था), बोकारा में हुए गोलीकांड की याद और ऐसी तमाम अन्य घटनाओं की स्मृतियां दर्ज हैं. संग्रह में तमाम ऐसी कविताएं हैं जो एक किस्म की बेचैनी को जन्म देती हैं. ‘प्रतिकूल’ शीर्षक से लिखी यह कविता उसकी बानगी है, ‘अचानक पोखर में कूद पड़ी वह स्त्री/ उसी समय पता चला कि उसे तैरना आता है/ चेहरे को सुविधा थी/ वह ऊपर उठ भी सकता था/ और पानी की सतह में छुप भी सकता था/ लगातार पांव चलाने में/ साड़ी सिमट कर घुटनों तक आ गई थी/  तभी लगा कि तैरने के लिए/  यह वस्त्र कितना प्रतिकूल है.’

एक अन्य कविता में वह कहते हैं- गम खाना भले ही माना जाता है अच्छा/ लेकिन अच्छा होता नहीं है/ जब आप गम खाते हैं/ तो असल में/ गम आपको खा रहा होता है.

इन कविताओं का रचनाकाल सन 1973 से 2012 तक यानी तकरीबन चार दशकों में फैला हुआ है. युवा पीढ़ी के लिए यह दुर्लभ अवसर है कि वह मदन कश्यप जैसे हस्तक्षेप करने वाले कवि के साथ इन चार दशकों में विचरण कर सकता है. पाठकों के समक्ष अवसर है कि वे एक ही संग्रह में एक ही कवि की उदारीकरण के पहले और उसके बाद रची गई रचनाओं का पाठ कर सकता है, उनके आस्वाद, उनकी प्रकृति में अंतर को रेखांकित कर सकता है.

संग्रह की एक और विशेषता यह है कि लेखक ने सभी  कविताओं को विषम पंक्तियों पर समाप्त किया है. इससे कविताओं में किसी तरह की लयकारी ढूंढ़े नहीं मिलती. ऐसा क्यों है यह तो लेखक ही बताएगा लेकिन जब परिस्थितियां इतनी विषम हैं तो कविता सम पर क्यों

समाप्त हो?

इतने भी मासूम न बनो कि भोंदू लगो

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िफल्म » फगली
निर्देशक» कबीर सदानंदे
लेखक » राहुल हांडा
कलाकार » जिमी शेरगिल, विजेंदर, कियारा आडवाणी, मोहित मारवाह, अरफी लांबा

कहानी फगली को समर्पित एक अप्रकाशित उपन्यास. (अंश नहीं, पूरा का पूरा उपन्यास.)

प्रथम अध्याय.
क्या यह एक फिल्म है. नहीं. अधूरी फिल्म. नहीं. इस सृष्टि की अदृश्य रचना. नहीं. आषाढ़ का एक दिन. नहीं. सूरज का जनरेटर. नहीं. जीवन. नहीं.  मौत. नहीं. कष्ट. पीड़ा. जहर का कटोरा. नहीं. नहीं. नहीं. तो आखिर ये फगली फगली क्या है, ये फगली फगली. कैसे समझाऊं मैं ये आपको, उसके लिए आपको फगली के तल में रहना होगा, पेट में पानी भरना होगा, दो घंटे बाद जब उबरेंगे तब भी समझेंगे, कह नहीं सकता. तब तक ये दुनिया फगली के आगे के रिक्त स्थान को कैसे भरेगी मान्यवर. फगली का चरित्र अमीबा जैसा है, उसका आकार निरंतर बदलता रहता है, उसे परिभाषित करना इतना आसान नहीं है, कुछ वर्षों का समय दीजिए और सब्र रखिए.

प्रथम और अंतिम के बीच के अध्याय.
फिल्म को शुरू होकर खत्म होने का ही चस्का है, उसका रस्ता सस्ता है, हाथों में उसके एक किताब का बस्ता है, जिसके सारे पन्ने खाली हैं, फिर भी पहले पन्ने पर स्क्रिप्ट लिख रखा है.

अंतिम अध्याय.
यहां हम एक फिल्म के मकरासन करने की क्रिया पर विस्तार से लिखेंगे. एक रोज जिंदगी से ऊब कर फगली मकरासन करने निकली. वो पेट के बल लेटी और उसने अपनी कहानी को दो भागों में बांटकर (दो हाथ बनाकर) जांघों के बगल में रख दिया. धीरे से उसने अपने सभी पात्रों के पैरों के पंजे बाहर की ओर फैलाए और एड़ियां अंदर की ओर कर लीं. एड़ियों (यानी सांकेतिक रूप से किरदारों की समझ) को दुनिया से छुपाकर अंदर की तरफ रखना जरूरी था, क्योंकि अगर लोगों को पता चलता कि उसके पास एड़ियां हैं (समझ/अक्ल), तो फिर ये देश उसे बहिष्कृत कर देता. इसके बाद योगा इंस्ट्रक्टर के कहे अनुसार फगली कहानी के दोनों भागों को सिर के नजदीक ले आती है. अब धीरे से बायीं कहानी अपनी कोहनी मोड़ते हुए दाहिनी कहानी के बगल के नीचे से निकालकर अपनी हथेली दाएं कंधे पर लगा देती है, और दाहिनी कहानी अपनी कोहनी को मोड़कर बाएं कंधे के ऊपर ले आती है. दोनों कहानियों के बने त्रिकोण के बीच फिर फगली अपना सिर टिकाती है. और फिर सो जाती है. फिल्म को सोता हुआ देख इस क्रिया को करा रहे योगा इंस्ट्रक्टर अक्षय कुमार (फिल्म के निर्माता) जूनियर इंस्ट्रक्टर (निर्देशक) कबीर सदानंद के साथ भागते हुए उसके नजदीक आते हैं और जोर से डांटते हुए उसे यो यो हनी सिंह के दो-चार गाने सुनते हुए आसन करने का आदेश देते हैं. आदेश मानकर फगली मस्त हो जाती है और फिर एक सौ पैंतीस मिनिट तक मकरासन करती है, हमें सन्न करती है.

चेतावनी : इस आसन को अच्छी-समझदार फिल्में न करें.

उपसंहार.
फगली मकरासन करने क्यों निकली? वाहियात फिल्में जिनके रक्त का संचार रुक-सा गया है, उन्हें इसे दिन में चार-बीस बार कर ही लेना चाहिए. इसलिए.

(नियमविरुद्ध) दूसरा उपसंहार.
कोई नहीं जानता ऐसा कैसे संभव हुआ. दस साल पहले बनाई अपनी एक फिल्म में ही निर्देशक कबीर सदानंद ने 2014 की फगली को सफलतापूर्वक देखने की कुंजी छोड़ी हुई थी. 2004 की उस फिल्म के नाम में ही. ‘पापकार्न खाओ! मस्त हो जाओ’.

एलबमः एक विलेन

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एलबमः एक विलेन
गीतकार » मनोज मुंतशिर, मिथुन, सोच
संगीतकार » अंकित तिवारी, मिथुन, सोच

भट्ट कैंप की छाप वाली आजू-बाजू खड़ी दो फिल्मों के संगीत में कितना अंतर है. ‘सिटीलाइट्स’ और ‘एक विलेन’. दोनों ही फिल्मों ने अपने-अपने हिस्से के दर्द को अलग-अलग जिंदगियों से चुना है. सिटीलाइट्स का दर्द सच्चा-अपना है तो एक विलेन के ज्यादातर गीत मैन्यूफैक्चर्ड दर्द पर आत्ममुग्ध हैं. एक विलेन अपने संगीत के लिए उस सिलबट्टे को चुनती है जिसपर पीसकर दर्द ज्यादा गाढ़ा निकलता है, और नैराश्य इतना महीन कि उसे दर्द का मांझा बना रूह के जिस हिस्से को आप चाहो, काट सको. इस प्रक्रिया में कई गीत गहरे उतर कर भी रूखे और सूखे रह जाते हैं.

फिल्म का सबसे अच्छा गाना, जाहिर है, ‘गलियां’ ही है. इतनी बार सुन चुके हैं कि अच्छा लगने लगा है कहना यहां सही नहीं है, वो दलील हिमेश के गानों के लिए ही अच्छी रहती है.‘गलियां’ में अंकित तिवारी अपने सितार, बांसुरी, गायकी और संगीत को इतनी नफासत से उनकी तयशुदा जगहों पर रखते हैं कि गाना सुनने में मजा आता है. दर्द इसका भी मशीन-निर्मित है, लेकिन बर्दाश्त की हद में रहता है, बुरा नहीं लगता. एक अच्छा गीत. इसका अनप्लग्ड वर्जन खासतौर पर श्रद्धा कपूर गाती हैं, और उनकी आवाज गाना नहीं सीख पाई एक छोटी बच्ची के रुंधे गले की आवाज है. नहीं गाना था. दूसरा अच्छा गीत अरिजीत का है, ‘हमदर्द’, धुनें पुरानी हैं लेकिन अरिजित अपनी आवाज में जाने कौन-सी चाशनी लपेटते हैं कि गाना मीठा भी लगता है और दर्द भी होता है. इसके अलावा दो और गाने हैं जिन्हें लिख मिथुन ने संगीत दिया है, दोनों ही झूठे दर्द से लबालब भरे हुए. गायक मुस्तफा जाहिद और मोहम्मद इरफान को अरिजित से सीखना चाहिए, दर्द को अपना बनाना. आखिरी गीत सोच बैंड का ‘आवारी’ है, कैलाश खेर की याद ज्यादा दिलाता है, एलबम का दुखद अंत करता है.

मैक्सिको

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विश्व रैंकिंग: 20
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनअंतिम आठ (1970, 86)

खास बात
मैक्सिको लगभग हमेशा ही ग्रुप स्टेज (प्रथम चरण) को पार करने में सफल रहा है लेकिन नॉकआउट दौर (सोलह टीमों वाला दूसरा चरण) में पहुंचकर यह टीम हमेशा लडखड़ा जाती है. कोच हेक्टर हरेरा ने इस बार ओरिब पेराल्टा को लेकर बेहद आक्रामक रणनीति तैयार की है. संभव है कि इस बार मैक्सिको नॉकआउट का दुष्चक्र तोड़ दे

मैक्सिको का दुर्भाग्य है कि ऐन विश्व कप से पहले उसके चोटिल खिलाड़ियों की लिस्ट लंबी होती जा रही है. इस सूची में सबसे प्रमुख नाम हैं मिडफील्डर जुआन कार्लोस मेडिना और लुइस मोंटेस. बावजूद इसके मैक्सिको के पास अग्रिम पंक्ति और रक्षा पंक्ति (डिफेंडर) दोनों में कुछ बेहद अच्छे खिलाड़ी मौजूद हैं. डिफेंडरों की बात करें तो हेक्टर मोरेनो और रफेल मार्केज के नाम लिए जा सकते हैं. इसी प्रकार ओरिब पेराल्टा के रूप में मैक्सिको के पास दुनिया के कुछेक बेहतरीन फॉरवर्ड में से एक मौजूद है. ग्रुप मैचों में मैक्सिको की सबसे बड़ी चुनौती होगी ब्राजील के साथ टक्कर. मिडफील्ड की कमजोरी और ब्राजीली समर्थकों के कानफोड़ू समर्थन के बीच मैक्सिको को चमत्कार की पूरी उम्मीद है. मौजूदा टीम के ज्यादातर खिलाड़ी वही हैं जिन्होंने 2012 के ओलंपिक फुटबॉल के फाइनल में ब्राजील को मात दी थी. ओलंपिक विजय में टीम के गोलकीपर जीसस करोना की भूमिका अहम थी. टीम के कोच मिगुएल हरेरा की सारी रणनीतियां गोलकीपर करोना के इर्द-गिर्द ही बुनी गई हैं. टीम के दूसरे महत्वपूर्ण खिलाड़ी स्ट्राइकर जेवियर हर्नांडिज हैं. हर्नांडिज इंगलिश प्रीमियर लीग में प्रतिष्ठित क्लब मैनचेस्टर युनाइटेड के लिए खेलते हैं.

चिली

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विश्व रैंकिंग: 42
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन : तीसरे स्थान पर  (1962)

खास बात
कोच साम्पाउली की योजना किसी परंपरागत स्ट्राइकर की बजाय दो चपल खिलाड़ियों के इस्तेमाल की है. अगर यह रणनीति कारगर होती है तो विपक्षी खेमे में इन खिलाड़ियों को रोकने को लेकर दुविधा और भ्रम पैदा हो जाएगा

जब तक यह टीम मैदान में होती है तब तक कुछ न कुछ घटित होता रहता है. 2010 के विश्व कप में इस टीम ने दुनिया-भर का ध्यान अपनी तरफ खींचा था. हालांकि टीम तब भी वांछित नतीजा नहीं पा सकी थी. दूसरे राउंड में ब्राजील के हाथों उसे 3-0 की हार का सामना करना पड़ा था. उस टूर्नामेंट में एलेक्सिस सांचेज बड़े खिलाड़ी बनकर उभरे थे. इसका ईनाम उन्हें बार्सिलोना के साथ जुड़कर मिला. वे अपनी टीम की तरफ से अहम खिलाड़ी बने रहे. क्वालीफायर राउंड में चिली ने 29 गोल दागे थे. 2014 की दौड़ में शामिल टीमों में यह दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था. लेकिन इसका दूसरा पक्ष भी है. टीम ने इस दौरान खुद भी 25 गोल खाए. चिलियन टीम का सबसे बड़ा सिरदर्द है उनका डिफेंस. इस कमी को कोच जॉर्ज साम्पाउली खुलकर स्वीकारते हैं. इस बीच आर्टुरो वीडल ने टीम को काफी राहत पहुंचाई है. यह खिलाड़ी किसी भी पोजीशन पर खेलने में सक्षम है. वीडल के आने से मिडफील्ड में नई जान आ गई है. हालांकि उनकी फिटनेस को लेकर संदेह बना हुआ है.

ऑस्ट्रेलिया

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विश्व रैंकिंग: 62
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन : दूसरे चरण में (1998)

खास बात

ऑस्ट्रेलियन टीम से ब्राजील में कोई बड़ी उम्मीद लगाना जायज नहीं है. अनुभव हासिल करने के लिहाज से टीम के लिए यह बड़ा मौका है. किसी तरह के भय से रहित और उम्मीदों के बोझ से मुक्त यह टीम अपने ग्रुप में दूसरों का खेल खराब करने का काम कर सकती है

ऑस्ट्रेलिया की गिनती इस बार सबसे कमजोर टीम के रूप में हो रही है. यह ऑस्ट्रेलिया की सबसे युवा टीम है और यह विश्व कप उनके लिए एक जरूरी अनुभव प्राप्त करने का जरिया-भर है. ब्राजील का टिकट पाने वाली 32 टीमों में यह टीम सबसे कम उम्र की टीम है. टीम को रास्ता दिखाने की जिम्मेदारी घरेलू कोच आंगे पोस्टकोग्लू और कप्तान टिम काहिल के हाथों में है. पोस्टकोग्लू की मजबूरी यह है कि उन्होंने पिछले अक्टूबर महीने में ही टीम की जिम्मेदारी संभाली है और इस दौरान टीम ने सिर्फ तीन बड़े मैच खेले हैं. टीम में किसी बड़े स्ट्राइकर (आक्रमण की कमान संभालने वाला खिलाड़ी) के अभाव को देखते हुए मिडफील्डर काहिल के कंधों पर अटैक की सारी जिम्मेदारी रहेगी. उनका साथ देने के लिए इवान फ्रैंजिक और जेसन डेविडसन मौजूद रहेंगे. समस्या ये है कि दोनों ही अग्रिम पंक्ति के खिलाड़ी हैं जबकि डिफेंस का इलाका पूरी तरह से खाली है. बड़े स्ट्राइकरों के सामने यह स्थिति आत्महत्या करने जैसी होगी. माइल जेडिनक के कंधों पर अकेले मिडफील्ड की जिम्मेदारी होगी. तमाम बातों और हालात के मद्देनजर जानकारों की राय है कि ऑस्ट्रेलियाई टीम विश्व कप से वापसी का जहाज पकड़ने वाली पहली टीम हो सकती है.

क्रोएशिया

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विश्व रैंकिंग: 18
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन : तीसरे स्थान पर (1998)

खास बात

कहा जाता है कि क्रोएशिया के पास ब्राजील के बाद प्रतिभाशाली खिलाडियों का सबसे बड़ा पूल है. यही बात टीम के लिए उम्मीद का सबब है. ल्यूका मॉडरिक, इवान राकटिक और मारियो कोवासिस टीम के बड़े स्टार हैं. तीनों में ही किसी भी टीम के ऊपर हावी होने की पूरी क्षमता है

ब्राजील के अलावा क्रोएशिया वह टीम है जो ग्रुप ए से अगले राउंड में जाने की प्रबल दावेदार है. इस यूरोपियन टीम के पास मिडफील्डरों (मध्य पंक्ति) और फॉरवर्ड (अग्रिम पंक्ति या आक्रमण पंक्ति) खिलाड़ियों की पूरी फौज है. टीम के कोच नीको कोवाक खुद टीम के पूर्व कप्तान और शानदार मिडफील्डर रहे हैं. 42 वर्षीय कोवाक के बारे में कहा जाता है कि नई प्रतिभाओं को पहचानने और उन्हें तराशने में उनका कोई सानी नहीं है. अग्रिम पंक्ति में टीम के पास तेज-तर्रार मारियो मैंजुकिक हैं पर पहले मैच में टीम को उनकी सेवाएं नहीं मिल सकीं क्योंकि क्वालीफायर मैच में आइसलैंड के खिलाफ उन्हें रेड कार्ड दिखाया गया था. यह कमी क्रोएशिया को ब्राजील के खिलाफ पहले मैच में काफी भारी पड़ी. फारवर्ड लाइन में मेंजुकिक के अलावा क्रोएशिया के पास आइविका ओलिस, निकिसा जेलाविक और एडुआर्डो जैसे खिलाड़ी मौजूद हैं. एडुआर्डो का तो जन्म ही ब्राजील में हुआ है. फुटबॉल के पंडितों का मानना है कि अगर मिडफील्ड से पर्याप्त सहयोग मिला तो एडुआर्डो टूर्नामेंट में सर्वाधिक गोल करने वाले खिलाड़ियों की कतार में शामिल हो सकते हैं. इसकी पूरी उम्मीद भी है क्योंकि टीम के पास लूका मोडरिक और इवान राकटिक जैसे विश्वस्तरीय मिडफील्डर मौजूद हैं. राकटिक का पिछला प्रदर्शन इतना सनसनीखेज रहा है कि यूरोपियन लीग के सबसे महत्वपूर्ण क्लब बार्सिलोना ने अगले सीजन में उनकी सेवाएं लेने का मन बना लिया है. क्रोएशिया की कमजोर नस है उनके डिफेंडर और गोलकीपर. अगर यहां भी उनका लचर रवैया जारी रहा तो टीम को भारी पड़ सकता है.

इक्वाडोर

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विश्व रैंकिंग: 26
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन : दूसरा दौर (2006)खास बात

रूस में डायनामो मास्को के लिए खेलने वाले क्रिश्चियन नोबाओ इस टीम के सर्वश्रेष्ठ मिडफील्डर हैं. यह खिलाड़ी गेंद पर अपने नियंत्रण से अपनी टीम का भाग्य तय करने में अहम भूमिका निभाएगा

इस विश्व कप में इक्वाडोर की टीम जब-जब मैदान पर होगी तो 11 नंबर की जर्सी में कोई खिलाड़ी न तो मैदान पर और न ही डगआउट में नजर आएगा. इक्वाडोर के फुटबॉल फेडरेशन ने गत जुलाई में स्टार स्ट्राइकर क्रिश्चियन बेनिटेज के अचानक निधन के बाद इस जर्सी को ही रिटायर कर दिया. बेनिटेज की महज 27 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी. 2006 के विश्व कप में टीम को दूसरे दौर में पहुंचाने में बेनिटेज ने अहम भूमिका निभाई थी. ऐसे में उनके अनुभव की कमी खलेगी. कोच रेनाल्डो रुएडा ने एन्नार वालेंसिया को बेहद करीने से तैयार किया है ताकि वे बेनितेज की जगह भर सकें. मिडफील्ड में एंतोनियो वालेंसिया टीम की असली ताकत होंगे. मैनचेस्टर यूनाइटेड के लिए खेलने वाले एंतोनियो वालेंसिया और जैफरसन मोंटेरो के रूप में टीम के पास दो ऐसे खिलाड़ी हैं जो खेल को अपनी शर्तों पर चला सकते हैं. हालांकि अपने क्लबों के लिए इस सीजन में कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाए हैं लेकिन ब्राजील में उनका प्रदर्शन टीम में नई जान फूंक सकता है. डायनामो मॉस्को के लिए खेलने वाले क्रिश्चियन नोबाओ एक और बेहतरीन खिलाड़ी हैं जो बिना मौका गंवाए रक्षण से आक्रमण पर उतर सकते हैं. हालांकि रक्षा पंक्ति में जायरो कांपोस के घायल होने ने टीम को बड़ा झटका दिया है. अभी तक टीम के पास उनका कोई विकल्प नहीं है.

अल्जीरिया

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विश्व रैंकिंग: 22
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन : ग्रुप स्टेज (1982,1986, 2010)

खास बात

20 अंतर्राष्ट्रीय मैचों में 10 गोल कर चुके इस्लाम सुलेमानी इन दिनों शानदार फॉर्म में हैं. जरूरत के वक्त गोल करने की उनकी क्षमता का ही कमाल है कि 25 साल का यह स्ट्राइकर अपने क्लब और देश दोनों का चहेता है. पेनाल्टी बॉक्स के दायरे में उनकी तेजी देखते ही बनती है. अल्जीरिया के प्रदर्शन में उनकी भूमिका अहम होगी

2010 के विश्व कप में अल्जीरिया का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था. एक भी गोल किए बिना वह पहले चरण में ही बाहर हो गई थी. चार साल बाद आज स्थितियां बदली हुई हैं. अल्जीरिया आज अफ्रीकी महाद्वीप की शीर्ष टीम है और उसके पास अपने ग्रुप की रूस और दक्षिण अफ्रीका जैसी टीमों को झटका दे सकने वाले कई खिलाड़ी हैं. 2011 में टीम का जिम्मा संभालने वाले कोच वाहिद हलीलहोज्डिक ने इस टीम का कायापलट कर दिया है. आज अल्जीरिया की टीम जिस शैली में खेलती है उसमें 2010 के उलट सकारात्मकता और आक्रामकता के दर्शन होते हैं. बोस्निया में जन्मे हलीलहोज्डिक ने मिडफील्ड और फॉरवर्ड पोजीशन के लिए नौजवान और फुर्तीले खिलाड़ियों को प्राथमिकता दी है. टीम की सुरक्षा पंक्ति की अगुवाई माजिद बगहेरा कर रहे हैं जो 62 अंतर्राष्ट्रीय मैचों के तजुर्बे के साथ टीम के सबसे अनुभवी खिलाड़ी हैं. नबील बिनतालिब , हसन येब्दा और लासन के साथ मिलकर वे एक बढ़िया सुरक्षा घेरा बनाते हैं. उधर, सोफियान फेगौली, अल अरबी सूडानी और इस्लाम सुलेमानी के रूप में अल्जीरिया के पास काफी प्रभावशाली आक्रमण है. इन सबके साथ अल्जीरिया 2010 के उलट प्रदर्शन कर सकता है.

बेल्जियम

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विश्व रैंकिंग: 11
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन : चौथा स्थान (1986)

खास बात

मशहूर क्लब चेलसी में जगह पाने में नाकाम रहने के बाद केविन डी ब्रुइन ने वुल्फ्सबर्ग का रुख किया और जर्मन लीग बंुडेसलीगा में शानदार प्रदर्शन किया. क्वालीफाइंग मुकाबलों में वे बेल्जियम के सबसे बेहतरीन खिलाड़ी के तौर पर उभरे. विपक्षी टीम का ध्यान हजार्ड पर रहने की वजह से ब्रुइन मौका चुराकर ज्यादा ुनकसान का सबब बन सकते हैं

बेल्जियम की इस टीम में कुछ खास बात है. वर्ष 2002 के विश्व कप के दूसरे दौर में ब्राजील (जो बाद में विजेता बनी) से हारने वाला बेल्जियम 2006 में जर्मनी तथा 2010 में दक्षिण अफ्रीका में हुए विश्व कप के लिए क्वालिफाई तक नहीं कर सका. लेकिन 12 साल के इस अंतराल में टीम ने युवा खिलाड़ियों की एक ऐसी फौज तैयार की है जो बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिए तैयार दिखते हैं. उनमें से कई तो पहले ही अपने-अपने क्लब के लिए काफी नाम कमा चुके हैं. स्पेनिश फुटबॉल लीग ला लीगा में अटलेटिको मैड्रिड की जीत के दौरान थिबाउत कोर्टियो के शानदार बचाव को भला कौन भूल सकता है. वहीं विंसेंट कोपनी मैनचेस्टर सिटी की रक्षापंक्ति के आधार हैं और उन्होंने टीम को प्रीमियर लीग में जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई. उधर, इडेन हर्जाड चेलसी के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रह चुके हैं.इस टीम के बारे में आम शिकायत यही है कि इसके खिलाड़ी क्लब के लिए किए गए प्रदर्शन को अपने देश के लिए दोहरा नहीं पाते. लेकिन उन्होंने विश्व कप के लिए बेहतरीन ढंग से क्वालिफाई किया. क्रोएशिया, सर्बिया और स्कॉटलैंड की मौजूदगी में उन्होंने ग्रुप में शीर्ष स्थान हासिल किया. कोच मार्क विलमॉट्स के लिए स्ट्राइकर क्रिश्चियन बेंटेक की चोट और अच्छे फुलबैक की कमी चिंता का विषय है. हालांकि एक्सेल विटसेल और केविन डी ब्रुइन तथा अदनान जानुजाज जैसी प्रतिभाओं से सजा टीम का मिडफील्ड इसकी भरपाई करने में सक्षम है.