क्या है मामला?
लगभग सात वर्षों के संघर्ष के बाद नेपाल में बीते 20 सितंबर को संविधान लागू हुआ. संविधान लागू होने के बाद नेपाल हिंदू राष्ट्र से एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की श्रेणी में आ गया है. संविधान में नेपाल को सात प्रांतों में बांटा गया है पर इनके नाम और सीमाओं का अभी निर्धारण नहीं हुआ है. राजशाही से चल रहे नेपाल के नए संविधान का मूल सिद्धांत संघवाद होगा यानी सत्ता को विकेंद्रित किया जाएगा. केंद्र में संघीय सरकार होगी जबकि राज्यों में राज्य की, साथ ही जिले और ग्राम स्तर पर भी शासन व्यवस्था बनाई जाएगी. 601 सदस्यों वाली संविधान सभा में 507 लोगों ने संविधान के पक्ष में वोट दिया जबकि मधेसी और अन्य जनजातियों के 69 प्रतिनिधियों में इसका बहिष्कार किया.
क्याें है विवाद?
नेपाल के मधेसी, थारू और कुछ और गुट इस संविधान के विरोध में है. लगभग महीने भर तक हुए इस विरोध के चलते हुई हिंसा में तकरीबन 40 लोगों की जान गई है. मधेसी भारत से जुड़े तराई इलाके में रहने वाले भारतीय मूल के लोग हैं, जो नेपाल में नए संविधान में देश में बने सात प्रांतों के गठन का विरोध कर रहे हैं. उनका ये भी कहना है कि संविधान में मधेसियों और कुछ अन्य जनजातियों और वर्गों को उचित स्थान और अधिकार नहीं दिए गए हैं. कुछ गुटों का विरोध नेपाल को हिंदू राष्ट्र न बनाने से भी है.
क्या कहना है भारत का?
यूं तो भारत नेपाल के संविधान पर अपनी खुशी जाहिर कर चुका है पर मीडिया में आ रही खबरों की मानें तो भारत मधेसियों की संविधान में हुई अवहेलना से नाखुश है और विदेश मंत्रालय द्वारा मधेसियों के पक्ष में किए गए कुछ संशोधनों की एक सूची भारतीय राजदूत के जरिये काठमांडू भिजवाई गई है. हालांकि विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरुप ने ऐसी किसी सूची को भेजने की खबर का खंडन किया है. दूसरी और नेपाली संविधान में भारत के भेजे गए संशोधनों पर भारत में नेपाल के राजदूत दीप कुमार उपाध्याय का कहना है, ‘नेपाली संविधान दक्षिण एशिया का सबसे प्रगतिशील संविधान है और दोनों देशों के लिए संविधान में संशोधन को लेकर चर्चा करने के लिए ये सही समय नहीं है. यदि भारत के आग्रह पहले पता होते तो कुछ किया जा सकता था.’