मैथ्रीपाला सिरिसेना ने श्रीलंका के सातवें राष्ट्रपति चुनाव को ऐतिहासिक बना दिया. आठ जनवरी को हुए चुनावों में वह सब कुछ हुआ जिसकी किसी ने आशा नहीं की थी. महिंदा राजपक्षे अपनी जीत को लेकर इतने आस्वस्त थे की उन्होंने समय से दो साल पहले ही चुनाव कराने का जुआ खेला था. अगर उनकी जीत होती तो राजपक्षे तीसरी बार कुर्सी पर काबिज़ होने वाले पहले श्रीलंकाई राष्ट्रपति बन जाते. चुनावी नतीजों के बाद राजपक्षे पद पर रहते हुए चुनाव हार वाले पहले श्रीलंकाई राष्ट्रपति बन गए हैं. मैथ्रीपाला सिरिसेना ने जबर्दस्त रणनीतिक चतुराई दिखाते हुए सभी विपक्षी दलों को एक पाले में खड़ा कर राजपक्षे की हार की पटकथा लिखी है. राजपक्षे और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की उम्मीदों के विपरीत सिरिसेना को 51.3 फीसदी वोट मिले. श्रीलंका के चुनाव आयोग के मुताबिक सिरिसेना ने लगभग 4.5 लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज की.
श्रीलंका के इन आम चुनावों की खास बात यह रही कि पहली बार यहां 70 फीसदी से ज्यादा लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. सिरिसेना को उम्मीदों के उलट तमिल बाहुल उत्तरी व पूर्वी जिलों में भी बड़ी जीत हासिल हुई है. वही कोलोंबो व मध्य श्रीलंकाई जिलों में भी उनका प्रदर्शन बेहतर रहा.
कौन है मैथ्रीपाला सिरिसेना
तमा कयासों को दरकिनार कर सत्ता पर काबिज़ होने वाले सिरिसेना, राजपक्षे की पिछली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे. वे सत्तारूढ़ श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) के जनरल सेक्रेटरी भी थे.जब अक्टूबर में राजपक्षे ने समय से पहले चुनाव करने की घोषणा की तो मैथ्रीपाला सिरिसेना विद्रोह का बिगुल बजाते हुए राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर दी. सिरिसेना 1967 से ही राजनीति में सक्रिय हैं और उन्होंने ने अपनी राजनीतिक जिंदगी की शुरुआत एसएलएफपी के साथ मात्र 17 साल की उम्र में की थी. सिरिसेना 1994 के बाद से लगातार सरकार में रहते हुए मंत्रालयों की जिम्मेदारी का निर्वाह किया है. इसमें रक्षा जैसा अहम ओहदा भी शामिल है.
ग्रामीण इलाकों में सिरिसेना की लोकप्रियता व उसका समर्थन कर रही यूनाइटेड नेशनल पार्टी की शहरी इलाकों में पकड़ ने राजपक्षे के खिलाफ निर्णायक बढ़त दिलाने में अहम भूमिका निभाई. राजपक्षे के पिछले कार्यकाल में लगे भ्रष्टाचार के आरोप ने उनके खिलाफ माहौल बनाने का काम किया. राजपक्षे ने अधिकतम दो बार राष्ट्रपति बनने की सीमा को संवैधानिक संसोधन करके हटा दिया था. इससे भी राजनैतिक हलकों में नाराजगी थी. श्रीलंका में लंबे समय तक चले गृहयुद्ध के दौरान तमिल विद्रोहियों व अलगाववादियों के लिए सिरिसेना एक सॉफ्ट टारगेट माने जाते थे.
राजपक्षे का लोकप्रियता से हर तक का सफर
एंटी इंकम्बैंसी का खतरा मंडराने के बावजूद महिंद्रा राजपक्षे चुनाव के लिए आत्मविश्वास से भरे थे. एलटीटीई को कुचलने और 29 साल से चल रहे आतंरिक युद्ध पर अंकुश लगाने के बाद 2010 में भी महिंद्रा राजपक्षे ने निर्धारित समय से पहले चुनाव कराए थे. कमज़ोर विपक्ष और युद्ध के बाद बढ़ी राजपक्षे की लोकप्रियता तब ने उनके लिया जीत का रास्ता आसान कर दिया था.
2010 के बाद दूसरी पारी खेल रहे राजपक्षे पर मानवाधिकारों का हनन, तानाशाही तौर तरीके से सरकार चलने और परिवार व करीबियों को सत्ता में शामिल करने के आरोप थे. इससे उनकी लोकप्रियता गिर गई थी.
कई छोटी पार्टियों के समर्थन के साथ चुनाव में उतरे राजपक्षे ने अपने मैनिफेस्टो को ‘वर्ल्ड विनिंग पाथ’ नाम दिया था. इसमें साल भर के अंदर नए संविधान से लेकर आंतरिक युद्ध अपराधों की निष्पक्ष जांच जैसे मसले शामिल थे. इन सब के बावजूद महिंद्रा राजपक्षे तीसरी बार जनता का विश्वास जीतने में असफल रहे. ट्वीट के जरिये उन्होंने अपनी हार कबूलते हुए उन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता हस्तांतरण का भरोसा भी दिया.
सिरिसेना की जीत और भारत
भारत के साथ संबंधों पर इस नतीजे के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं. राजपक्षे के कार्यकाल में चीन के साथ श्रीलंका की नजदीकियां बेहद बढ़ गई हैं. चीनी राष्ट्रपति ने सितम्बर 2014 के दौरे के दौरान श्रीलंका के साथ 24 समझौतों पर दस्तखत किए थे. इनमे इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में निवेश शामिल था. सिरिसेना ने इनमें से कुछ समझौतों पर सवाल भी उठाए थे.
आतंरिक युद्ध के दौरान श्रीलंकाई तमिलों के मानवाधिकार का हनन भारतीय तमिल राजनीति में महत्वपूर्ण मुद्दा है. इसकी वजह से भारत सरकार को कई बार फजीहत का सामना भी करना पड़ता है. इसका एक उदाहरण तो प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह पर महिंद्रा राजपक्षे को आमंत्रित करने की खबरों के बाद ही देखने को मिल गया था. अब जब राजपक्षे की सत्ता से विदाई हो गई है तो यह मुद्दा भी रुकी हुई द्विपक्षीय बातचीत को दोबारा से शुरू करवा सकता है. चीन और राजपक्षे की बढ़ती करीबी भारत के हिंद महासागर में बड़ी चिंता थी जिसपर अब विराम लगने के असार हैं. श्रीलंका के नए राष्ट्रपति सिरिसेना चीन के बढ़ते प्रभाव और आधुनिक साम्राज्यवाद की और इशारा करते हुए उसे बेअसर करने की बात कर चुके हैं. भारत के मित्र माने जाने वाले कई लोग इस नई सरकार का हिस्सा हो सकते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन करके मैथ्रीपाला सिरिसेना को जीत की बधाई दी और शांति व प्रगति के लिए भारत के निरंतर सहयोग का भरोसा दिलाया है.