मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) की परीक्षाओं में हुए व्यापक भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस जहां राज्य की भाजपा सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है, वहीं उसके ही एक पूर्व नेता संजीव सक्सेना पर कदाचार के इतने आरोप लगे हैं कि कांग्रेस अपने ही मुद्दे पर कमजोर पड़ गई.
संजीव सक्सेना से भले ही कांग्रेस ने पीछा छुड़ा लिया है लेकिन उनसे जुड़े विवादों का जिन्न पार्टी की छीछालेदर करने के लिए बार-बार बोतल से बाहर आ जाता है. व्यापमं घोटाले में फंसने के बाद हवालात में दिन गुजार रहे संजीव सक्सेना अपनी करतूतों के कारण बार-बार चर्चा में आ ही जाते हैं. व्यापमं घोटाले में उनकी भूमिका पर चर्चा करने से पहले उनसे जुड़े ताजा विवाद पर एक नजर डालते हैं.
भोपाल का मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मैनिट) मध्य प्रदेश के अलावा उससे लगे छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों के लिए जाना पहचाना नाम है. मैनिट और पूर्व कांग्रेस नेता संजीव सक्सेना का नाम एक बार फिर चर्चा में है. दरअसल मैनिट से संजीव के परिवार को बर्खास्तकर फिर दूसरे ही दिन बहाल कर दिया. जी हां, सक्सेना ने अपनी ऊंची रसूख के चलते मैनिट जैसे संस्थान में अपने आधे परिवार को ही नियुक्त करवा दिया था. संजीव सक्सेना की बहन अर्चना सक्सेना (असिस्टेंट लाइब्रेरियन), पत्नी अरुणा सक्सेना (ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट ऑफिसर) और बहन अंशु गुप्ता (असिस्टेंट प्रोफेसर) अलग-अलग पदों पर मैनिट में नौकरी कर रही थीं. इनके अलावा अभय शर्मा (असिस्टेंट प्रोफेसर) और कविता देहलवार (असिस्टेंट प्रोफेसर) को भी नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था. सभी पांच लोगों की नियुक्ति काफी समय से विवादों में रही है और दो बार जांच में नियुक्ति के लिए योग्य नहीं पाए जाने के बाद मैनिट के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) ने इनकी नियुक्ति रद्द करने का आदेश जारी किया था. लेकिन इस फैसले को पलटते हुए डायरेक्टर डॉ. अप्पू कुट्टन ने इस फैकल्टी को फिर से बहाल कर दिया. इससे ही सक्सेना परिवार की रसूख का अंदाजा हो जाता है. संजीव सक्सेना व्यापमं घोटाले के कारण भले ही जेल में बंद हैं लेकिन उनके जलवे अब भी बरकरार हैं. इस मामले में मैनिट के डायरेक्टर डॉ. अप्पू कुट्टन का कहना है कि सीबीआई ने नियुक्ति को क्लिनचिट दी है. जबकि मैनिट के बीओजी की बैठक में सीबीआई की रिपोर्ट को नहीं रखा गया था. इसलिए बर्खास्तगी का गलत फैसला ले लिया गया था. बाकी मुझे इस बारे में और कुछ नहीं कहना.
संजीव सक्सेना की पहुंच का अंदाजा इस बात से लगाया जाता रहा है कि नौकरी से निकाले जाने के बाद भी उनके परिजनों की बहाली कर दी गई
संजीव सक्सेना की पत्नी अरुणा सक्सेना की नियुक्ति ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट ऑफिसर, बहन अर्चना सक्सेना की असिस्टेंट लाइब्रेरियन और अरुणा सक्सेना की बहन अंशु गुप्ता की असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर नियुक्ति 2005 में हुई थी. इनके अलावा अभय शर्मा और कविता देहलवार की असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर भी नियुक्ति हुई थी. इन सभी की नियुक्ति अवैध ठहराई गई थीं. इन नियुक्तियों में गड़बड़ी की शिकायत मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) पहुंची थी. एमएचआरडी के निर्देश पर सबसे पहले रिटायर्ड आईएएस एमएन बुच को इसकी जांच सौंपी गई. बुच की रिपोर्ट के बाद एमएचआरडी ने मैनिट के चेयरमैन को मामले की विस्तार से जांच करने के निर्देश दिए तो एसएम शुक्ला की अध्यक्षता में इसकी जांच शुरू हुई जो बाद में सीबीआई को सौंप दी गई. करीब पांच सालों तक यह मामला चलता रहा. 2010 में मैनिट के बोर्ड ऑफ गवर्नर ने एसएच लोधा और आरके त्रिपाठी को मामले की न्यायिक जांच करने की जिम्मेदारी दी. जांच में सामने आया कि 2005 में की गईं ये नियुक्तियां नियमों के मुताबिक सही नहीं थी और न ही नियुक्तियों के दौरान ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) के नियमों का पालन किया गया. इस समिति ने 2005 में हुई सभी नियुक्तियों को रद्द करने की सिफारिश की थी. पिछले साल मैनिट ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस एमए सिद्दीकी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति की जांच फिर से करवाई. समिति की रिपोर्ट के आधार पर इन पांच लोगों की नियुक्ति रद्द कर दी गई.
संजीव सक्सेना का मैनिट में काफी प्रभाव माना जाता है. वह मैनिट से पढ़े हैं. इसके बाद किसी न किसी रूप में संस्थान में उनकी सक्रियता बरकरार रही. जब मैनिट की इमारत बन रही थी, तब इसके निर्माण का ठेका भी उनके पास ही था. उस वक्त सक्सेना ठेकेदारी पर भवन निर्माण का कार्य भी करते थे. संजीव सक्सेना का एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज भी है. पिछले साल मैनिट के छात्रों ने ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट ऑफिसर अरुणा सक्सेना (संजीव की पत्नी) पर आरोप लगाया था कि वे मैनिट में कैंपस सेलेक्शन के लिए आनेवाली कंपनी को उनके पति के कॉलेज भेज देती हैं. इसके बाद उनके साथ एक और ऑफिसर अटैच किया गया था.
डॉ. संजीव सक्सेना मूलतः भिंड के रहने वाले हैं. उनका एक भाई अभिषेक सक्सेना पार्षद रहे हैं और अभी वर्तमान में भोपाल के एक वार्ड से उनकी भाभी कांग्रेस पार्षद हैं. ये कन्नड़ फिल्मों की अभिनेत्री भी रह चुकी हैं. खुद सक्सेना 2013 में भोपाल पश्चिम विधानसभा सीट से पूर्व गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं. उनके चुनाव प्रचार के लिए राजीव शुक्ला और रवीना टंडन जैसी हस्तियां भोपाल पहुंची थीं. सक्सेना का राजनीति में प्रवेश भी कम नाटकीय नहीं है. कुछ वर्ष पूर्व भोपाल में एक नाबालिग बच्ची की लाश मिलने के बाद सक्सेना ने कई आंदोलन और प्रदर्शन किए थे. अपने धनबल के जरिए इन आंदोलनों में भीड़ भी जुटाई थी. बस इससे प्रभावित होकर कांग्रेस ने संजीव सक्सेना को अपनी पार्टी का अहम कार्यकर्ता बना दिया था. उस वक्त मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुरेश पचौरी थे. उनकी सिफारिश पर ही सक्सेना को विधानसभा का टिकट दिया गया था. सक्सेना 2005 में भी मेडिकल की प्रीपीजी परीक्षा का पर्चा लीक करने का आरोपी भी रहे हैं. व्यापमं घोटाले की जांच कर रही एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) ने सक्सेना के खिलाफ दुग्ध संघ जूनियर सप्लाई ऑफिसर भर्ती परीक्षा 2012 और आरक्षक भर्ती परीक्षा 2012 में फर्जीवाड़े के मामले में चार अलग-अलग केस दर्ज कर रखें हैं. तीन मामलों में जमानत मिल चुकी है लेकिन एक मामले में अदालत ने जमानत नहीं दी है और वे जेल में हैं.
पुलिस जांच में सक्सेना के पास अकूत संपत्ति पाई गई है. सक्सेना ने भोपाल के अलावा दिल्ली और केरल में भी संपत्ति में निवेश कर रखा है. भोपाल में उनके पास श्यामला हिल्स और कोटरा जैसे पॉश इलाकों में भूखंड हैं. अमरावदखुर्द और कुशलपुरा में 100 एकड़ जमीन है. भोपाल के ही संजय कॉम्प्लेक्स, सात नंबर स्टॉप, शिवाजीनगर में दुकानें हैं. चूनाभट्टी और शाहपुरा में बंगलें भी हैं. सक्सेना राधा रमण कॉलेज के नाम से भोपाल व मध्य प्रदेश के दूसरे शहरों में शिक्षण संस्थान भी संचालित करते हैं. संजीव सक्सेना कांग्रेस नेता आरिफ मसूद के करीबी भी माने जाते हैं.
संजीव सक्सेना के संबंध भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं से भी रहे हैं. इसका खुलासा व्यापमं घोटाले के उजागर होने के बाद हुआ
संजीव सक्सेना की पहुंच का अंदाजा इस बात से लगाया जाता रहा है कि मैनिट के 11 साल पहले के नियुक्ति मामले में एक बार नौकरी से निकाले जाने के बाद भी सक्सेना के परिजनों की बहाली कर दी गई थी. मैनिट प्रबंधन ने बहाली के बाद तर्क दिया था कि सीबीआई की रिपोर्ट के आधार पर बहाली की गई है, जबकि हाईकोर्ट के दो रिटायर्ड जजों की कमेटियों की रिपोर्ट नजरअंदाज कर दी गई. यूपीए सरकार में जब सीबीआई इस मामले की जांच कर रही थी, तो उसे इन नियुक्तियों में कोई गड़बड़ी नहीं मिली थी.
वर्ष 2005 में मैनिट में 60 नियुक्तियां हुई थीं. शुरुआती जांच में इन सभी पर सवाल उठाए गए थे, लेकिन आखिर में उनके परिवार से जुड़ी पांच नियुक्तियां ही संदिग्ध मानी गई थीं. 2005 में ही रिटायर्ड आईएएस अधिकारी एमएन बुच ने मामले की जांच की थी और दोबारा जांच की अनुशंसा की. वर्ष 2008 में एसएम शुक्ला की कमेटी ने सीबीआई को रेफर करने की अनुशंसा की थी. लेकिन सीबीआई ने जांच के बाद मामले में सभी को क्लीनचिट दे दी. 2010 में जस्टिस लोढा और आरके त्रिपाठी कमेटी ने पूरी भर्ती प्रक्रिया को ही नियम विरुद्ध माना. वर्ष 2014 में जस्टिस एमए सिद्दीकी की कमेटी ने पांचों नियुक्तियों को गलत मानते हुए निरस्त करने की सिफारिश की.
संजीव सक्सेना के संबंध भाजपा के बड़े नेताओं से भी रहे हैं. इसका खुलासा व्यापमं घोटाले के उजागर होने के बाद हुआ. पुलिस आरक्षक-उपनिरीक्षक परीक्षा भर्ती घोटाले के दो अलग-अलग मामलों में कांग्रेस नेता संजीव सक्सेना और खदान व्यवसायी सुधीर शर्मा की संलिप्तता पाई गई थी. संजीव सक्सेना पर आरोप है कि उन्होंने भाजपा नेता सुधीर शर्मा के जरिए व्यापमं के अधिकारियों से सांठ-गांठकर फर्जी तरीके से परीक्षा में चयन कराया है. खुद एसटीएफ ने अदालत में पेश प्रतिवेदन में यह बात कबूली है. संजीव सक्सेना की ओर से पेश अग्रिम जमानत अर्जी के विरोध में एसटीएफ ने यह प्रतिवेदन अदालत में पेश किया था. विशेष सत्र न्यायाधीश संजीव कालगांवकर की अदालत में पेश प्रतिवेदन में एसटीएफ ने बताया कि पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा में संजीव सक्सेना ने दुर्गेश सिंह, बृजेश साहू और भरत सिंह ठाकुर के चयन के लिए व्यापमं के अधिकारियों को 3 लाख रुपये दिए थे. उपनिरीक्षक भर्ती घोटाले में भी सक्सेना ने सुधीर शर्मा के जरिए व्यापमं के अधिकारियों को पैसे देकर फर्जी तरीके से चयन कराया है.
जब सक्सेना का व्यापमं घोटाले में नाम आया तो वे फरार हो गए लेकिन जब कोर्ट ने उनकी संपत्ति राजसात करने की चेतावनी दी तो उन्होंने भोपाल जिला न्यायालय के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) पंकज सिंह माहेश्वरी की अदालत में 12 मई 2014 को आत्मसमर्पण कर दिया. इससे पहले सक्सेना ने मीडिया से चर्चा के दौरान कहा था कि उन्होंने तत्कालीन गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता के खिलाफ चुनाव लड़ा था, इसलिए उनके खिलाफ साजिश कर उन्हें आरोपी बनाया गया है. छह महीने तक फरार रहने के सवाल पर उनका कहना था कि वे फरार नहीं हुए थे, बल्कि गिरफ्तारी से बचने के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट गए थे. संजीव सक्सेना ने मीडिया के सामने खुद स्वीकार भी किया था कि उनके भाजपा नेता और खनिज कारोबारी सुधीर शर्मा और व्यापमं के चीफ सिस्टम एनालिस्ट नितिन महिंद्रा से अच्छे संबंध हैं. शर्मा और महिंद्रा भी इस फर्जीवाड़े में आरोपी हैं.
सुधीर सक्सेना का कांग्रेस के ही बड़े-बड़े नेताओं से करीबी संबंध रहा है. पूर्व केंद्रीय मंत्री सुधीर पचौरी ने उसे विधानसभा चुनाव का टिकट दिलाया था. मध्यप्रदेश के प्रभारी बनकर पहुंचे वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोहन प्रकाश से भी सक्सेना ने नजदीकियां बढ़ा ली थी.
भाजपा नेता हितेश बाजपेयी बताते हैं, ‘देखिए मैं इस विषय पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता. जहां तक व्यापमं घोटाले और इसमें संजीव सक्सेना या किसी अन्य की संलिप्तता की बात है तो इतना जरूर कह सकता हूं कि यह प्रशासनिक चूक का मामला है. कानून अपना काम कर ही रहा है. इसे राजनीति से जोड़कर देखा जाना ठीक नहीं है. हालांकि यह अलग बात है कि इसमें राजनीतिक लोगों की लिप्तता ही पाई गई है. इसलिए इस मामले में टिप्पणी करना ठीक नहीं है.’ वहीं कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता केके मिश्रा कहते हैं, ‘सक्सेना का कांग्रेस से कोई रिश्ता नहीं. हम उन्हें निष्कासित कर चुके हैं इसलिए उन पर बात करने का कोई औचित्य नहीं है. व्यापमं घोटाले में नाम आने के बाद हमने सक्सेना को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. मैनिट में उनकी भूमिका को लेकर बहुत सारी बातें होती रही हैं लेकिन जब वह कांग्रेस में हैं ही नहीं, तो बात करने का कोई मतलब नहीं है.’
फिलवक्त संजीव सक्सेना को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एएम खानविलकर व जस्टिस आलोक आराधे की युगलपीठ ने सक्सेना की दुग्ध संघ जूनियर सप्लाई ऑफिसर की भर्ती मामले में 25 लाख रुपये के मुचलके पर जमानत तो दे दी है लेकिन संविदा शिक्षक मामले में जमानत नहीं मिलने के कारण वे जेल में हैं.
गिरफ्तारी के बाद एसटीएफ की ओर से संजीव सक्सेना के खिलाफ संविदा शिक्षक भर्ती मामले का चौथा प्रकरण दर्ज किया गया था. बहरहाल, भले ही व्यापमं घोटाले में नाम आने के बाद कांग्रेस ने दोहरे मापदंड से बचने के लिए संजीव सक्सेना को पार्टी से बर्खास्त कर दिया हो लेकिन भाजपा उनका नाम ले-लेकर कांग्रेस की लानत मलानत करने से नहीं चूक रही.