तीन फरवरी को सियाचिन में आए हिमस्खलन की चपेट में आकर एक जेसीओ समेत 10 जवान लापता हो गए थे. इसके अगले दिन सेना ने सभी जवानों की मौत होने की पुष्टि की थी. ये सभी जवान 19, मद्रास रेजिमेंट के थे. हालांकि आठ फरवरी को बर्फ में फंसे हनुमनथप्पा को बचाया गया. माइनस 45 डिग्री तापमान में एक एयर पैकेट की मदद से वह खुद को बचाने में सफल हुए थे. प्रधानमंत्री ने उनके निधन पर शोक जताया है. कर्नाटक के 33 वर्षीय हनुमनथप्पा 2002 में मद्रास रेजिमेंट में शामिल हुए थे. अपने 13 साल के करिअर में उन्होंने जम्मू-कश्मीर के अलावा पूर्वोत्तर में अपनी सेवाएं दीं. इस बीच वह एनडीएफबी और उल्फा के खिलाफ लड़े और आतंकवाद विरोधी अभियानों में भी शामिल हुए. पिछले साल अगस्त में उनकी तैनाती सियाचिन में हुई थी. दिसंबर में उन्हें उत्तरी ग्लेशियर सेक्टर में 19,600 फुट पर स्थित एक सैन्य चौकी पर तैनात किया था. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार दुनिया के इस सबसे दुर्गम स्थल में 1984 से अब तक 879 जवान शहीद हो चुके हैं. इनमें से अधिकांश जवानों की मौत युद्ध में नहीं बल्कि हिमस्खलन, बर्फीले तूफान और ऑक्सीजन की कमी से हुई है. कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद है. विवाद भारतीय सेना की ओर 1984 में चलाए गए ‘ऑपरेशन मेघदूत’ के बाद शुरू हुआ, जिसमें भारतीय सेना का सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा हो गया था. तब से दोनों देशों की सेना यहां तैनात हैं. 2003 से यहां युद्ध विराम है.