निर्भया कांड के दोषी ‘नाबालिग’ की रिहाई के बाद आक्रोशित हुई जनता के दबाव में आकर आखिरकार लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी किशोर न्याय अधिनियम (बाल देखभाल और संरक्षण), 2015 पास कर दिया गया. मंगलवार को पूरे दिन राज्यसभा में इस संवेदनशील मुद्दे पर बहस हुई. अधिनियम पास हो जाने से अब जघन्य अपराध करने वाले 16-18 आयुवर्ग के बच्चों पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाए जाने का रास्ता साफ हो जाएगा. हालांकि उन्हें सजा 21 साल की उम्र के बाद ही दी जा सकेगी. यह मौजूदा किशोर न्याय अधिनियम, 2000 की जगह लेगा. इस साल मई में यह अधिनियम लोकसभा में पारित हो चुका है.
अधिनियम के कुछ प्रमुख प्रावधान:
1. इसके तहत ऐसे नाबालिग जिनकी उम्र 16 साल या उससे ज्यादा है और उसकी संलिप्तता किसी गंभीर अपराध में पाई जाती है तो उन्हें बालिग मानकर मुकदमा चलाया जाएगा और उसी हिसाब सजा का प्रावधान भी होगा. इसके अलावा जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को नाबालिगों को नियमित अदालत ले जाने या सुधार केंद्र भेजने का फैसला लेने का अधिकार मिलेगा. मौजूदा किशोर न्याय अधिनियम के तहत सिर्फ तीन साल की सजा का प्रावधान है.
2. अधिनियम में हर जिले में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड और बाल कल्याण समिति का गठन करने का प्रावधान किया गया है.
3. बिल पारित होने के बाद 16 या उससे अधिक उम्र के नाबालिगों के जघन्य अपराधों में शामिल होने की स्थिति में उनके खिलाफ बालिग के हिसाब से मुकदमा चलाने का निर्णय जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड लेगा.
4. हर जिले की बाल कल्याण समिति ऐसे नाबालिगों की संस्थागत देखभाल करेगी. हर समिति में एक अध्यक्ष और चार सदस्य होंगे, जो बच्चों से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ होंगे.
5. अधिनियम के तहत बच्चों के गोद लेने की प्रक्रिया को भी विधिसम्मत बनाया गया है. साथ ही गोद लेने वाले अभिभावकों की योग्यता भी तय की गई है. सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स एजेंसी (सीएआरए) गोद लेने की प्रक्रिया से जुड़े नियम बनाएगी, जिसे हर जिले में लागू करवाने की जिम्मेदारी बाल कल्याण समिति की होगी.