दोनों मुल्क शुरुआत करें, निभ जाए तो अच्छा…

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किसी भी तरह हिंदुस्तान और पाकिस्तान के जोड़ने का सिलसिला शुरू करना होगा. मैं यह मानकर नहीं चलता कि जब हिंदुस्तान-पाकिस्तान का बंटवारा एक बार हो चुका है तो वह हमेशा के लिए हुआ है. किसी भी भले आदमी को यह बात माननी नहीं चाहिए. हिंदुस्तान और पाकिस्तान की सरकारों का आज यह धंधा हो गया कि एक-दूसरे की सरकारों को खराब कहें और दोनों ही सरकारें अपने-अपने मुल्क में दूसरे मुल्क के प्रति घृणा का प्रचार करती रहें. दोनों सरकारों के हाथ में इस वक्त बहुत खतरनाक हथियार हैं, लेकिन जनता अगर चाहे तो मामला बदल सकता है.

हिंदुस्तान-पाकिस्तान का मामला, अगर सरकारों की तरफ देखें तो सचमुच बहुत बिगड़ा हुआ है, इसमें कोई शक नहीं. लेकिन ऐसी सूरत में भी मैं हिंदुस्तान-पाकिस्तान के महासंघ की बात कहना चाहता हूं. एक देश तो नहीं, लेकिन दोनों कम से कम कुछ मामलों में शुरुआत करें, एक होने की. वह निभ जाए तो अच्छा और नहीं निभे तो और कोई रास्ता देखा जाएगा. सब बातों में न सही, लेकिन नागरिकता के मामले में और अगर हो सके तो थोड़ा-बहुत विदेश-नीति के मामले में, थोड़ा-बहुत पलटन के मामले में एक महासंघ की बातचीत शुरू हो.

यह विचार सरकारों के पैमाने पर आज शायद अहमियत नहीं रखता, मतलब हिंदुस्तान की सरकार और पाकिस्तान की सरकार से कोई मतलब नहीं, क्योंकि वे सरकारें तो गंदी हैं. इसलिए हिंदुस्तान और पाकिस्तान की जनता को चाहिए कि अब इस ढंग से वह सोचना शुरू करे.

अगर हिंदुस्तान-पाकिस्तान का महासंघ बनता है तो जब तक मुसलमानों को या पाकिस्तानियों को तसल्ली नहीं हो जाती, तब तक के लिए संविधान में कलम रख दी जाए कि इस महासंघ का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री, दो में से एक पाकिस्तानी रहेगा. इस पर लोग कह सकते हैं कि तुम अंदर-अंदर रगड़ क्यों पैदा करना चाहते हो? जिस चीज को पुराने जमाने में कांग्रेस और मुस्लिम लीग वाले नहीं कर पाए, कभी-कभी कोशिश करते थे, रगड़ पैदा होती थी. अब तुम फिर से रगड़ पैदा करना चाहते हो. इसका मैं सीधा-सा जवाब दूंगा कि 15 बरस हमने यह बाहर वाली रगड़ करके देख लिया, अब फिर अंदर की रगड़ कैसी भी हो, इससे कम से कम ज्यादा अच्छी ही होगी. यह बाहर वाली हिंदुस्तान-पाकिस्तान की रगड़ है, उसको हम निभा नहीं सकते.

हो सकता है कि लोग कश्मीर वाला सवाल उठाएं कि अब तक तो तुमने आसान-आसान बातें कर लीं, लेकिन जो मामला झगड़े का है, इस पर तो कुछ कहो. तो कश्मीर का सवाल अलग से हल करने की जब बात चलती है तो मैं कुछ भी लेने-देने को तैयार नहीं हूं. मेरा बस चले तो मैं कश्मीर का मामला बिना इस महासंघ के हल नहीं करूंगा. मैं साफ कहना चाहता हूं कि अगर हिंदुस्तान-पाकिस्तान का महासंघ बनता है तो चाहे कश्मीर हिंदुस्तान के साथ रहे, चाहे कश्मीर पाकिस्तान के साथ रहे, चाहे कश्मीर एक अलग इकाई बनकर इस हिंदुस्तान-पाकिस्तान महासंघ में आए. पर महासंघ बने कि जिससे हम सब लोग फिर एक ही खानदान के अंदर बने रहें. इस महासंघ के तरीके पर बुनियादी तौर पर हिंदुस्तान-पाकिस्तान की जनता सोचना शुरू करे.

हिंदुस्तान और पाकिस्तान तो एक ही धरती के अभी-अभी दो टुकड़े हुए हैं. अगर दोनों देशों के लोग थोड़ी भी विद्या-बुद्धि से काम करते चले गए तो दस-पांच बरस में फिर से एक होकर रहेंगे. मैं इस सपने को देखता हूं कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान फिर से किसी न किसी इकाई में बंधे.

(लेखक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व समाजवादी नेता थे)