राज्य में नस्ली हिंसा के बीच जमकर पैसा कमा रहे मुस्लिम ड्राइवर
मणिपुर में नस्ली हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। कुकी और मैतेई समुदायों के बीच छिड़ी इस नस्लीय लड़ाई में शान्ति स्थापित करने की सारी कोशिशें बेअसर साबित हुई हैं। ‘तहलका एसआईटी’ ने मणिपुर हिंसा को समझने के लिए मणिपुर के कुछ लोगों से बात की और मणिपुर में फॉल्ट लाइन्स को जोडऩे का एक दिलचस्प रहस्योद्घाटन किया कि कैसे संघर्षरत राज्य में युद्धरत मैतेई और कुकी समुदायों के बीच मुसलमान सुरक्षित हैं और जमकर पैसा भी कमा रहे हैं। तहलका एसआईटी की रिपोर्ट :-
‘मुसलमानों की पहचान करने के तरीक़े हैं। जैसा कि कुकी और मैतेई के बीच जो मुसलमान रहते हैं, उन्हें दोनों समुदाय उनकी उपस्थिति से पहचान लेते हैं। जैसा कि मैतेई लडक़े बचपन से ही अपने कान की बाली पहनते हैं। इसलिए उन्हें उनके कान देखकर पहचाना जा सकता है। वहीं मुसलमान कान में बाली नहीं पहनते, इसलिए उनके कानों में कोई निशान नहीं होता। लोगों की पहचान के लिए उनके आधार कार्ड और पहचान-पत्र भी कभी-कभी काम आते हैं। बहरहाल, मुसलमान अब कुकी और मैतेई दोनों के दोस्त हैं।’ ये बात मणिपुर अखंडता समन्वय समिति (कोकोमी) के सहायक समन्वयक लोंगजाम रतन कुमार ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कही। रतन कुमार मैतेई समुदाय से हैं और इंफाल में रहते हैं।
तहलका से बातचीत में उन्होंने बताया कि मणिपुर के केंद्र में स्थित इंफाल घाटी के चारों ओर एक सीमा बन गयी है। तनाव इतना है कि मैतेई पहाड़ों के ऊपर नहीं जा सकते और कुकी नीचे घाटी में नहीं आ सकते। इस अलिखित नियम का उल्लंघन करने वालों को मारे जाने की संभावना है। हिंसा के चलते मैतेई और कुकी समुदायों के बीच यह भौतिक खाई बन गयी है। रतन कहते हैं कि दोनों समुदायों द्वारा तय इस सीमा को केवल उन लोगों द्वारा पार किया जा सकता है, जो इन दोनों समुदायों के न तो दोस्त हैं और न ही विरोधी हैं। ऐसे में मुस्लिम लोग हिन्दू-बहुल मैतेई और ईसाई-बहुल कुकी मुस्लिम समुदाय के सदस्यों की मदद ले सकते हैं, जो एक अनोखे मध्यवर्ती (बफर) के रूप में उभरे हैं। रतन कहते हैं कि इसलिए मणिपुर में इन दिनों मुसलमान सुरक्षित हैं।
इंफाल, मणिपुर से कल्याण मोर्चा यूथ के सचिव बिक्रमजीत राज कुमार, जो ख़ुद मैतेई हैं; ने ‘तहलका’ को बताया कि इंफाल में नेपाली, बंगाली आदि जैसे कई समुदाय भी रहते हैं; लेकिन राज्य की राजधानी में मुस्लिम एक प्रमुख समुदाय है। इसलिए यहाँ हिंसा के बाद दिल्ली और भारत के अन्य हिस्सों से (भ्रमण के लिए) आने वाले लोग इस समुदाय के लोगों की तलाश करते हैं। क्योंकि मुस्लिम ड्राइवर कुकी बहुल क्षेत्रों की ओर यात्रा करते समय अपने जत्थे (दल) में सुरक्षित महसूस करते हैं। यदि कोई मैतेई कुकी क्षेत्र में जाता है, तो उसे मार दिया जाएगा। लेकिन मुसलमानों को निशाना नहीं बनाया जाता है।
बिक्रमजीत ने कहा कि यह विभाजन अब भारत-पाकिस्तान की सीमा की तरह है। हम मैतेई उनके क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते हैं और वे (कुकी) हमारे क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम अब उनके (कुकी के) क़ब्ज़े वाले क्षेत्र में दूर से ही अपने जले हुए घर देख सकते हैं। लेकिन वहाँ जा नहीं सकते।
रतन कुमार ने कहा कि हाँ, मैं स्वीकार करता हूँ कि मैतेई बहुल इंफाल घाटी में कुछ मैतेइयों ने पुलिस के शस्त्रागार से हथियार और गोला-बारूद लूट लिये। लेकिन उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि उनके पास कोई और विकल्प नहीं था। दरअसल हथियारों से लैस विरोधी समुदाय के लोग मैतेई नागरिकों पर हमला कर रहे थे। सुरक्षा बल भी मजबूर थे; क्योंकि वे उन्हें (हिंसकों को) रोकने में पूरी तरह से विफल रहे। इसलिए मैतेई समुदाय के पास पुलिस स्टेशन से हथियार लूटने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने तर्क दिया कि चूँकि हिंसा अभी भी जारी है। इसलिए मैतेई को सम्बन्धित पुलिस शस्त्रागार में सभी हथियार वापस नहीं करने चाहिए थे। हालाँकि कई लोगों ने हथियार लौटा दिये हैं। रतन कुमार ने यह भी ख़ुलासा किया कि मणिपुर पुलिस के कुछ पुलिस स्टेशनों के कुछ पुलिसकर्मियों से हथियार प्राप्त करने में अपने समुदाय की मदद की थी। लेकिन यह (हथियार देने का काम) पुलिसकर्मियों द्वारा अपने रिश्तेदारों की मदद करने के लिए व्यक्तिगत रूप से किया गया था।
आप जो देख रहे हैं, यह आज का संघर्षरत मणिपुर है; जहाँ मैतेई और कुकी के बीच जातीय संघर्ष में अब तक कम-से-कम 160 लोग मारे जा चुके हैं। म्यांमार की सीमा पर स्थित भारत के इस उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर में हुई हिंसा में हज़ारों लोग घायल हुए हैं और 60,000 से अधिक विस्थापित हुए हैं। राज्य के 16 में से 10 ज़िलों में कुकी के नेतृत्व में आदिवासी एकजुटता मार्च के बाद 03 मई को राज्य की राजधानी इंफाल के दक्षिण में स्थित चुराचांदपुर में हिंसा भडक़ उठी थी। मैतेइयों द्वारा आयोजित जवाबी विरोध-प्रदर्शन और नाकेबंदी के बाद पूरे मणिपुर में हिंसक झड़पें शुरू हुईं। कुछ महिलाएँ भी भीड़ का हिस्सा थीं। हिंसा के बाद 12,000 से अधिक लोग पड़ोसी राज्य मिजोरम भाग गये हैं।
संसद का मानसून सत्र शुरू होने से ठीक एक दिन पहले मणिपुर से एक 26 सेकेंड का वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में दो महिलाओं को नग्न करके भीड़ द्वारा हमला करते और परेड करते हुए देखा गया था। इस वीडियो ने पूरे देश में आक्रोश पैदा कर दिया। इस मामले में दर्ज प्राथमिकी के अनुसार, 04 मई को एक परिवार की दो महिलाओं में से एक के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था, जबकि 800-1,000 पुरुषों की भीड़ ने उसके भाई और पिता की हत्या कर दी थी। गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने इस घटना को लेकर केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा मणिपुर के इस वायरल वीडियो मामले की जाँच कराने की बात कही थी। 20 जुलाई को मानसून सत्र शुरू होने के बाद विपक्ष ने संसद में इस सत्र सभा को हिलाकर रख दिया। विपक्ष ने मोदी सरकार को घेरते हुए मणिपुर हिंसा पर प्रधानमंत्री को बोलने के लिए मजबूर किया और लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव दायर किया है। इससे पहले विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इनक्लूसिव अलायंस (ढ्ढ.हृ.ष्ठ.ढ्ढ.्र.) के 21 सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने भी मणिपुर का दौरा किया। पूरे सत्र मणिपुर मुद्दे पर संसद में गतिरोध बना रहा।
मणिपुर में क़रीब तीन महीने तक चली जातीय हिंसा के बाद विभाजन पहले से कहीं अधिक तेज़ हो गया है; क्योंकि दोनों समुदायों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ अविश्वास, क्रोध और यहाँ तक कि नफ़रत भी व्यक्त की है। नफ़रत और अविश्वास के इस माहौल में ‘तहलका’ ने विशेष रूप से एक ऐसे मुद्दे को छुआ, जिसे अब तक किसी अन्य मीडिया संगठन ने नहीं उठाया है। यह है- मणिपुर में मुसलमानों की माँग का मुद्दा। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने मणिपुर में सभी क्षेत्रों के कई लोगों से बात की। उन सभी का एक ही कहना था- ‘मणिपुर में मुसलमान होना, मतलब सुरक्षित है।’
मैतेई और कुकी समुदायों के बीच विभाजन इतना है कि राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह भी अभी तक कुकी क्षेत्रों में उन लोगों से मिलने नहीं गये हैं। ऐसा कहा जाता है कि मैतेई होने के नाते ख़ुद बीरेन सिंह के वहाँ जाने से उन्हें जोखिम है। दूसरी ओर मणिपुर के राज्यपाल अनुसुइया उइके वहाँ की नहीं हैं। हालाँकि उन्होंने मैतेई और कुकी, दोनों के क्षेत्रों में स्थित राहत शिविरों का दौरा किया है। लेकिन घाटी और पहाड़ों में प्रवेश से पहले जाँच बिन्दुओं और जातीय विभाजन को ध्यान में रखते हुए उनके साथ चल रहे क़ाफ़िले में शामिल वाहनों के चालकों को भी बदल दिया गया था।
कुकी और मैतेई समुदायों के बीच (बँटे हुए क्षेत्रों) की सीमा एक सरल रेखा नहीं है। यह कई किलोमीटर का बफर एरिया है। मौज़ूदा समय में मैतेई-बहुल क्षेत्र और कुकी-बहुल क्षेत्र के बीच इस सीमा रेखा पर बनी सडक़ों पर कुछ जाँच केंद्र (चेक प्वाइंट) हैं। पहले चेक प्वाइंट पर मैतेई समुदाय के लोग हैं और सबसे आख़िर में कुकी समुदाय के लोग हैं। बीच-बीच में सेना और पुलिस के चेक प्वाइंट भी हैं। इन चेक प्वाइंट पर कहीं बोरियों का ढेर लगाये जाने से, कहीं कंटीले तारों से और कहीं बड़े पाइपों के रखे जाने से दोनों समुदायों के लोगों को अवरोध पैदा हो रहा है। इन चेक प्वाइंट पर तैनात लोग हथियारों से लैस हैं। यहाँ (गुज़रने वाले) हर वाहन की तलाशी ली जाती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसमें कोई हथियार तो नहीं है। वाहन चालक का पहचान पत्र माँगकर उसके जाति-धर्म की जानकारी जुटायी जाती है, ताकि यह तय किया जा सके कि उसे सीमा पार करने का अधिकार है या नहीं। यदि ड्राइवर मुस्लिम है, तो उसे सीमा पार करने की अनुमति है।
यह सच्चाई जानने के लिए ‘तहलका’ रिपोर्टर ने इंफाल में विभिन्न लोगों से बात की। इसी कड़ी में हमने सबसे पहले कोकोमी के सहायक समन्वयक रतन कुमार से बात की, जिन्होंने हमें बताया कि मणिपुर में मुसलमानों की बड़ी माँग है। इंफाल के मैतेई समुदाय से लेकर कुकी बहुल मणिपुर की पहाड़ी इलाक़ों की यात्रा करने वाले लोग मुस्लिम ड्राइवरों की तलाश करते हैं, ताकि वे अपने गंतव्य तक सुरक्षित पहुँच सकें। रतन कुमार ने बताया कि उन्होंने कहा कि कुछ मुसलमान किराये में काफ़ी वृद्धि करके इस अवसर का लाभ भी उठा रहे हैं।
रिपोर्टर : मैंने सुना है कि मुसलमानों को कुकी क्षेत्रों का दौरा करने में किसी भी बाधा का सामना नहीं करना पड़ रहा है?
रतन : हाँ; कुकी मुसलमानों को निशाना नहीं बना रहे हैं। वे मैतेई नागरिकों को निशाना बना रहे हैं। डर के माहौल की वजह से वे कुकी के प्रभुत्व वाले इलाक़ों में नहीं जाते।
रिपोर्टर : मैंने सुना है कि सभी पत्रकार मुस्लिम ड्राइवरों के साथ कुकी इलाक़ों में घूम रहे हैं?
रतन : हाँ।
रिपोर्टर : केवल मुस्लिम ड्राइवर ही कुकी क्षेत्रों में जा सकते हैं?
रतन : हाँ, …नगा जा सकते हैं, मुसलमान जा सकते हैं; मैतेई को छोडक़र अन्य सभी समुदाय जा सकते हैं।
रिपोर्टर : सभी मुस्लिम ड्राइवरों ने किराया भी बढ़ा दिया है?
रतन : (हाँ, …वे इससे उत्पन्न अवसर का अधिकतम लाभ उठा रहे हैं। यह संघर्ष की स्थिति है।
रतन ने ‘तहलका’ को बताया कि मणिपुर में मुस्लिम ड्राइवरों की बहुत माँग है। क्योंकि वे ही हैं, जो कुकी और मैतेई दोनों के क्षेत्रों में यात्रा कर सकते हैं। नुक़सान के डर के बिना कुकी बहुल क्षेत्र में जा सकते हैं। इसी स्थिति का फ़ायदा उठाते हुए मुस्लिम ड्राइवरों ने अपना किराया बढ़ा दिया है।
रिपोर्टर : कुकी मुसलमानों की पहचान कैसे करते हैं?
रतन : कुछ तरीक़े हैं। कुकी इतने लम्बे समय से उनके साथ रह रहे हैं, इसलिए वे शारीरिक बनावट से आसानी से जान सकते हैं। चाहे कोई व्यक्ति मुसलमान हो या न हो।
रिपोर्टर : मैं उन मुस्लिम ड्राइवरों के बारे में पूछ रहा हूँ, जो कुकी क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। वे (कुकी) कैसे पहचानते हैं कि वे (ड्राइवर) मैतेई हैं या मुसलमान?
रतन : हाँ; शारीरिक बनावट से और कान के निशान से। मैतेई के कान के निशान होते हैं। मैतेई के लडक़े बचपन से ही ईयररिंग (बाली) पहनना शुरू कर देते हैं। इसलिए, वे कान का निशान (कान में बाली) रखते हैं, जबकि मुसलमानों के कान में कुछ नहीं होता है। इसके अलावा आधार कार्ड, पहचान पत्र आदि हैं।
रिपोर्टर : इसलिए जातीय विभाजन में मुसलमान शामिल नहीं हैं।
रतन : नहीं, …वे दोस्त हैं।
बातचीत के दौरान रतन ने अफ़सोस जताया कि अपने नशीली दवाओं के व्यापार के लिए भी आज मणिपुर को जाना जाता है। कुकी कथित तौर पर बड़े क्षेत्र में अफ़ीम पोस्त उगाते हैं और बड़ी मात्रा में अफ़ीम का उत्पादन भी करते हैं। रतन के अनुसार, कुकी, मुस्लिम, मैतेई और नागा सभी नशीली दवाओं के व्यापार में शामिल हैं।
रिपोर्टर : मणिपुर में नशीली दवाओं के ख़तरे के बारे में आपका क्या कहना है?
रतन : हाँ, …दवाएँ यहाँ आसानी से उपलब्ध हैं। आजकल और भी आसानी से उपलब्ध है, क्योंकि अफ़ीम पोस्ता कुकी बहुल क्षेत्रों में उगाया जाता है और यह बड़े क्षेत्र में उगाया जाता है। अफ़ीम का उत्पादन भी बड़ी मात्रा में किया जाता है। हेरोइन अफ़ीम से निर्मित होती है। …इसलिए ड्रग्स आसानी से उपलब्ध हैं और हमारे राज्य में मुख्य ड्रग तस्कर कुकी समुदाय से हैं। इसके बाद मुस्लिम हैं, फिर मैतेई और नागा हैं।
रिपोर्टर : कौन-सा समुदाय दूसरों की तुलना में नशीली दवाओं की तस्करी में अधिक शामिल है?
रतन : नंबर-1 पर कुकी समुदाय है और नंबर-2 पर मुस्लिम समुदाय है। इसके बाद मैतेई और नागा आते हैं। लेकिन जहाँ तक इस अवैध व्यापार में लगे लोगों की संख्या का सम्बन्ध है, इसमें कुकी कहीं अधिक शामिल हैं।
अब रतन ने एक अंदाज़ा ज़ाहिर करते हुए बताया कि राज्य के विभिन्न समुदाय मणिपुर में नशीली दवाओं के कारोबार में किस हद तक शामिल हैं। रतन के आकलन के अनुसार, कुकी नंबर एक पर हैं। इसके बाद दूसरे नंबर पर मुस्लिम हैं, मैतेई और नागा क्रमश: तीसरे और चौथे नंबर पर हैं।
इसके अलावा रतन ने ‘तहलका’ के सामने यह भी स्वीकार किया कि मणिपुर पुलिस के कुछ मैतेई पुलिसकर्मियों ने पुलिस थानों से हथियार लूटने में अपने समुदाय के लोगों की मदद की थी।
रिपोर्टर : मैंने ख़बर सुनी है कि मणिपुर राज्य की पुलिस ने पुलिस स्टेशन से हथियार प्राप्त करने में मैतेइयों की मदद की थी?
रतन : यह कुछ हद तक सही हो सकता है। क्योंकि राज्य पुलिस बल में कुछ मैतेई कर्मचारियों ने अपने रिश्तेदारों की मदद की होगी। लेकिन वे मणिपुर राज्य सरकार के सेवक हैं और पुलिस बल में शामिल होने के समय उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि वे निष्पक्ष रहकर कर्तव्यनिष्ठ होकर अपना काम करेंगे। इसलिए वे इस संघर्ष के समय में क़ायदे-क़ानूनों से बँधे हैं। हालाँकि कुछ तत्त्व व्यक्तिगत क्षमता में रिश्तेदारों की मदद करने की कोशिश कर सकते हैं; लेकिन इसे एक प्रमुख कारक के रूप में नहीं गिना जाना चाहिए।
रतन ने कहा कि मैतेई समुदाय के कुछ मणिपुर पुलिसकर्मियों ने हिंसा भडक़ने के दौरान पुलिस थानों से हथियार लूटने में कुछ मैतेई लोगों की मदद की थी। लेकिन इस प्रकार के उदाहरण बहुत कम और दूर-दूर थे। इसलिए इस संघर्ष के समय में इन घटनाओं को एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में नहीं गिने जा सकता।
रिपोर्टर : मैतेई लोगों ने पुलिस स्टेशन से हथियार क्यों लूटे?
रतन : सभी कुकी आतंकवादी समूह नागरिकों और मैतेई समूहों को निशाना बना रहे थे और 3 मई को हिंसा स्थल पर इन मैतेई लोगों के पास हथियार और गोला-बारूद नहीं थे। क्योंकि वे नागरिक हैं। दूसरी ओर कुकी लोगों ने नियमों को तोड़ दिया और मैतेई तथा उनके गाँवों पर हमला करने के लिए अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया। इसलिए मैतेई को किसी भी तरह से हथियार पकडऩे के लिए मजबूर किया गया था। उन्होंने सोचा कि सबसे आसान तरीक़ा पास के पुलिस स्टेशनों से हथियार और गोला-बारूद छीनना है।
रिपोर्टर : आप कुकी से बचाने के लिए सुरक्षाकर्मियों पर भरोसा क्यों नहीं करते?
रतन : ये अर्धसैनिक बल इन कुकी को नियंत्रित करने के लिए तैयार नहीं हैं। हम उनसे पूछते हैं कि आप इन सशस्त्र कुकी समूहों को नियंत्रित क्यों नहीं कर रहे हैं? आप चुप क्यों हैं? ये कुकी लोग घरों को जलाते हैं। कुकी लोग सुरक्षाकर्मियों पर हमला नहीं कर रहे हैं। वे सिर्फ़ नागरिकों पर हमला कर रहे हैं; केवल मैतेई पर…।
रिपोर्टर : तो आप कह रहे हैं कि ये अर्धसैनिक बल कुकी के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं कर रहे हैं; क्योंकि वे एसओओ (सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन) के अधीन हैं?
रतन : 3 मई को जब संघर्ष शुरू हुआ, तो कुछ मैतेई लोग इधर-उधर भागने लगे। कुछ मैतेई लोगों ने असम राइफल्स के कुछ शिविरों में शरण ली थी।
रतन ने स्वीकार किया कि कुछ मैतेई लोगों ने अपना बचाव करने के लिए पुलिस स्टेशन से हथियार लूट लिये। क्योंकि वे निहत्थे थे और कुकी उन पर आधुनिक हथियारों से हमला कर रहे थे; और अर्धसैनिक बल उन्हें नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त नहीं थे। इसलिए मैतेई के पास पुलिस स्टेशनों से हथियार छीनने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था।
रिपोर्टर : मैतेई लोगों ने पुलिस स्टेशनों को हथियार लौटाये हैं या नहीं?
रतन : लूटे गये कई हथियार वापस कर दिये गये हैं। लेकिन कुछ वापस नहीं किये गये हैं। इसके अलावा सभी हथियारों को वापस करने का अधिकार नहीं है। क्योंकि लड़ाई अभी भी चल रही है; और सुरक्षा बल कुकी बलों को रोकने के लिए प्रर्याप्त नहीं हैं। मेरे विचार से सभी हथियारों को वापस करने का यह सही समय नहीं है।
अब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने मणिपुर के इंफाल के एक संगठन के कार्यकर्ता बिक्रमजीत राज कुमार से बात की। बिक्रमजीत ने भी यही बात दोहरायी कि कुकी इलाक़ों में मुस्लिम ड्राइवरों के साथ यात्रा करना एक सुरक्षित विकल्प है। यदि कोई मैतेई वहाँ जाता है, तो वे (कुकी) उसे मार डालेंगे। बिक्रमजीत के अनुसार, मणिपुर को भारत-पाकिस्तान सीमा के समान मैतेई और कुकी के बीच विभाजित किया गया है। उन्होंने कहा- ‘हम वहाँ अपने जले हुए घरों को देख सकते हैं; लेकिन हम वहाँ नहीं जा सकते।’
बिक्रमजीत : जहाँ कुकी आबादी इलाक़ा है ना, वहाँ जाने को आपको मुस्लिम ड्राइवर चाहिए।
रिपोर्टर : ऐसा क्यों?
बिक्रमजीत : हम मैतेई जा नहीं सकते खुलेआम। …मार देंगे हमको। …टेरिटरी बना कर हिली एरिया (पहाड़ी क्षेत्र) को अकोपाई कर लिया (क़ब्ज़ा लिया) है, वो लोग। …पूरा अलग कर लिया ज्योग्राफिकली (भौगोलिक दृष्टि से) अलग हो चुके हैं हम।
रिपोर्टर : अच्छा!
बिक्रमजीत : इनके बंदा को पूरे हिली एरिया (पहाड़ी क्षेत्र) पर बुला लिया है। हमारे एरिया को पुश करके, घर जला के…। इंफाल एरिया पर पुश कर लिया है। जैसे जम्मू-कश्मीर में होता है ना! …बीएसएफ के बंदे हैं। वैसे खींच के तार बँधा हुआ है। हम उनके पास नहीं जा सकते।
रिपोर्टर : बॉर्डर बन गया इंडिया-पाकिस्तान का वहाँ?
बिक्रमजीत : बॉर्डर बन गया। हमारा घर दिख रहा है, पर हम जा नहीं सकते। घर जला दिया ना…!
अब बिक्रमजीत ने ‘तहलका’ से कहा कि मुसलमान इसके लिए मोटी रक़म वसूल रहे हैं। मैतेई बहुल क्षेत्र से यात्रियों को कुकी क्षेत्र में ले जाना। वे हैं इंफाल से चुराचांदपुर के कुकी बहुल इलाक़े की यात्रा के लिए लगभग 7-8 हज़ार रुपये का शुल्क लिया जाता है। उन्होंने यह भी ख़ुलासा किया कि मुसलमानों ने कुकी और मैतेई दोनों समुदायों के लोगों से एक-दूसरे के क्षेत्रों से उनकी कारों को बचाने के एवज़ में अत्यधिक राशि भी वसूल की।
रिपोर्टर : बहुत कॉस्टली है भाई! चुराचांदपुर का बता रहा था
7-8 हज़ार?
बिक्रमजीत : लेकिन वो जान जोखिम में लेकर जा रहा है।
रिपोर्टर : एक विजिट 7-8 हज़ार? …उसमें तो पूरी विजिट हो जाती है टैक्सी में?
बिक्रमजीत : वो तो नॉर्मल टाइम में होगी। ये लोग तो प्रॉफिट कमा रहे हैं। …. मुस्लिम क्या करते हैं जो मैतेई की गाड़ी वगैरह रह गयी है ना चुराचांदपुरा में, … ये लोग बाहर लेकर आते हैं। …10-20 हज़ार लेते हैं। … जो सामान रह गया, वो भी लेकर आते हैं, पैसा कमा रहे हैं।
रिपोर्टर : मतलब?
बिक्रमजीत : जैसे कि आप मैतेई हो और दंगे की वजह से आपका कोई सामान वहाँ पर रह गया; … तो जो मुस्लिम लोग हैं, वो ट्रांसपोर्ट का काम करते हैं, …जैसे वो इंफाल में लेकर आते हैं, तो बहुत मोटा चार्ज करते हैं… 10-20 हज़ार। …जैसे कि आपकी कोई बड़ी गाड़ी है, थार हो, महिंद्रा हो, तो वो मुस्लिम लोग को ही कॉन्टेक्ट करते हैं। …मुस्लिम लोग जब लेकर आते हैं, तो मोटे पैसे लेते हैं, 10-20 हज़ार…50 हज़ार।
रिपोर्टर : अच्छा, आप यह कह रहे हैं कि कुकी के एरिया में मैतेई का कोई सामान रह गया, तो मुस्लिम ड्राइवर से कॉन्टेक्ट करते हैं लाने के लिए?
बिक्रमजीत : कई बार अपोजिट पार्टी में करते हुए, दोनों साइड में करते हुए बहुत बार पकड़ा है। ….अभी रुक गया है। …शुरू में बहुत मोटा कमायी किया है। …जो नेपाली हो गया, बंगाली हो गया और मुस्लिम कम्युनिटी…, बहुत कमायी हुआ है इनका। बहुत मोटा कमायी हुआ शुरू-शुरू में। …दोनों साइड में पकड़ा गया। … कुकी का सामान ले जाते हुए भी और मैतेई का भी।
रिपोर्टर : आप ये कह रहे हो, मैतेई ‘कुकी के एरिया’ से अपना सामान ले आना और कुकी ‘मैतेई के’…?
बिक्रमजीत : हाँ, और ये काम मुस्लिम कम्युनिटी ने किया।
रिपोर्टर : कितना चार्ज किया उसका?
बिक्रमजीत : पैसे का फिक्स नहीं है, …कोई 50 के, कोई 20 के, तो कोई 10 के लेता है। (के मतलब हज़ार)
रिपोर्टर : ड्राइवर कम्युनिटी सिर्फ़ मुस्लिम ही है या और भी है?
बिक्रमजीत : मुस्लिम ज़्यादा है इंफाल में, तो यह काम वही उठाता है। …नेपाली, बंगाली भी है। …पर वो कम्युनिटी इतना स्ट्रांग नहीं है।
अब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने कुकी बहुल क्षेत्र की कई बार यात्रा कर चुके मणिपुर के इंफाल के 44 वर्षीय मुस्लिम ड्राइवर ज़िया-उर-रहमान से बात करके भरोसेमंद जानकारी ली। उसने कहा कि केवल मुस्लिम, नेपाली और बंगाली ड्राइवर ही कुकी और मैतेई क्षेत्रों की यात्रा कर सकते हैं। कोई भी अतिक्रमण दोनों समुदायों के लिए परेशानी ला सकता है। ज़िया ने कहा कि जब कोई (ड्राइवर) कुकी के क्षेत्र में प्रवेश करता है, तो वे (कुकी) उसके आधार कार्ड की जाँच करते हैं कि वह मुस्लिम हैं या नहीं।
रिपोर्टर : आप कुकी के इलाक़े में जाते हो, आपको तो कुछ नहीं किया ये कुकी?
ज़िया : हमको कुछ नहीं करता है।
रिपोर्टर : क्योंकि आप एक मुस्लिम हो?
ज़िया : हाँ, मैं मुस्लिम हूँ।
रिपोर्टर : आपका क्या आधार चेक करता है, या ड्राइविंग लाइसेंस? उसको कैसे पता चलता है, आप मुस्लिम हो?
ज़िया : आधार चेक करता है…।
रिपोर्टर : ये कुकी के लोग आपका आधार चेक करता है?
ज़िया : हाँ।
रिपोर्टर : आप पैसा ज़्यादा माँग रहे हो। आप कह रहे हो ना इंफाल से चुराचांदपुर ले जाऊँगा, 7-8 हज़ार रुपये लूँगा?
ज़िया : ज़्यादा हो या कम, पहले आप आ जाओ, फिर देखेंगे।
जिया ने ‘तहलका’ से एक बार फिर कहा कि मैतेई और कुकी समुदायों के बीच विभाजन इतना व्यापक हो गया है कि कोई मैतेई कुकी क्षेत्र में नहीं जा सकता है और कोई भी कुकी मैतेई क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकता है। लेकिन मुस्लिम, नेपाली और बंगाली समुदाय के लोगों को प्रतिबंध से छूट दी गयी है। उनके अनुसार, स्थिति इतनी गंभीर है कि मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह, मैतेई समुदाय से होने के नाते, अब तक कुकी बहुल क्षेत्र का दौरा नहीं किया है। ज़िया ने कहा कि वह इंफाल से चुराचांदपुर की एक यात्रा के लिए 7-8 हज़ार रुपये लेते हैं।
रिपोर्टर : अच्छा, ये बताओ कुकी के इलाक़े में कोई मैतेई नहीं जा सकता?
ज़िया : कोई भी नहीं जा सकेगा, ऑफिसर भी नहीं।
रिपोर्टर : कौन नहीं जा सकेगा?
ज़िया : स्टेट का सीएम है तो भी नहीं जा सकेगा…, इस सियुएशन में।
रिपोर्टर : आपको कुछ नहीं कहते हैं?
ज़िया : नहीं।
रिपोर्टर : सिर्फ़ मुस्लिम ड्राइवर जा सकता है?
ज़िया : हाँ, मुस्लिम जा सकता है, बाहर का नेपाली, दूसरा कम्युनिटी जा सकता है। …सिर्फ़ मैतेई को मना है।
रिपोर्टर : आपके साथ कोई परेशानी नहीं?
ज़िया : मैं मीडिया वालों को लेकर जा रहा हूँ, मीडिया वाले को कौन रोकेगा..!
रिपोर्टर : आप कुकी के इलाक़े में कितनी बार जा चुके हैं, जबसे झगड़ा शुरू हुआ है?
ज़िया : थर्ड (3) मई को जो हुआ था बवाल, तो अगले दिन 4 मई से। … आजतक जा रहा हूँ। कोई दि$क्क़त नहीं हुई। …और वैसे भी मीडिया वालों को कौन रोकता है, वॉर जोन (युद्ध क्षेत्र) में भी…!
रिपोर्टर : आपका चार्जेज क्या होगा वहाँ तक जाने का?
ज़िया : चार्जेज अलग-अलग है, चुराचांदपुर के लिए 7-8 थाउजेंड्स (हज़ार) लेता है…।
रिपोर्टर : 7-8 थाउजेंड एक दिन का?
ज़िया : हाँ।
जिया के बाद ‘तहलका’ रिपोर्टर ने मैतेई समुदाय के निंगथौजम अजीत कुमार से बात की, जो कोकोमी का सदस्य भी है। अजीत कुमार ने ‘तहलका’ को यह भी बताया कि जातीय हिंसा भडक़ने के बाद से केवल मुसलमानों को कुकी क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति है।
रिपोर्टर : अच्छा यह बताओ, कुकी के इलाक़े में मैतेई जा सकते हैं अभी?
अजीत : नहीं, अभी कोई भी नहीं जा रहा है।
रिपोर्टर : तो ये पत्रकार, जर्नलिस्ट्स कैसे जा रहे हैं टैक्सी लेकर?
अजीत : टैक्सी लेकर मुस्लिम लोग जाते हैं। मुस्लिम बंदा जा रहा है। वो लोग टैक्सी लेकर जाता है। उनको रोक-टोक नहीं है। …बाक़ी कम्युनिटी जैसे नागा हो गया, नेपाली हो गया, और मुस्लिम्स…, उनको जाने देता है। वैसे चेकिंग होता है, …मगर जाने देता है।
रिपोर्टर : अच्छा, मुस्लिम को कुकी कुछ नहीं कहते?
अजीत : हाँ, कुछ नहीं; … मगर वहाँ एक मुस्लिम लडक़ी के पीठ में गोली लगा है। उसका ऑपरेशन भी हुआ है। … चुराचांदपुर और बिशनपुर के बीच में एक बस्ती रहता है मुस्लिम का, उस तरफ़ बहुत फायरिंग चल रहा था रात में, बहुत बम वग़ैरह,…सब कुकी लोग ने मैतेई का बस्ती जला के खदेड़ दिया है।
रिपोर्टर : अच्छा यह बताइए, सिर्फ़ मुस्लिम ड्राइवर अलाउड हैं कुकी के इलाक़े में?
अजीत : हाँ।
अब, अजीत ने ‘तहलका’ को बताया कि कैसे राज्य में इस अशान्त समय के दौरान मुसलमान अपने परिवहन व्यवसाय के माध्यम से हालात का फ़ायदा उठा रहे हैं।
अजीत : हाँ, पैसा भी बहुत कमा रहे हैं वो लोग।
रिपोर्टर : वो कैसे?
अजीत : आने-जाने में बहुत पैसा लेता है ना!
रिपोर्टर : कितना ले रहा है?
अजीत : अराउंड (लगभग) रुपये 10,000 ले रहा है।
रिपोर्टर : कहाँ जाने के?
अजीत : इंफाल से चुराचांदपुर जाने का, …आने-जाने का।
रिपोर्टर : और कितना किलोमीटर है, …इंफाल से चुराचांदपुर?
अजीत : अराउंड, 80 किलोमीटर के आसपास होगा।
रिपोर्टर : और आपके हिसाब से कितना होना चाहिए नॉर्मल?
अजीत : वैसे पैसेंजर (यात्री) लोग जाता है, तो इतना होता नहीं है। रुपये 5,000 के आसपास होता है।
रिपोर्टर : रुपये 500, आने-जाने का?
अजीत : आने का, जाने का रुपये 1,000 तो लेता है। …अभी 5,000 – 10,000 के बीच लेता है।
रिपोर्टर : वायलेंस से पहले कितना लेता था?
अजीत : पहले तो रुपये 1,000 लेता था, …ओनली 1,000।
रिपोर्टर : रुपये 1,000, …इंफाल से चुराचांदपुर आने-जाने का वायलेंस से पहले?
अजीत : हाँ।
रिपोर्टर : अब इतना महँगा… रुपये 10,000?
अजीत : अभी तो सिचुएशन ऐसा है ना! तो रिस्क लेकर वो लोग जा रहा है, इसलिए।
रिपोर्टर : अच्छा, कुकी को पता कैसे लगता है कि ये मुस्लिम हैं?
अजीत : नाम पूछकर, आइडेंटिटी कार्ड वग़ैरह देखकर, आधार कार्ड हो; … वो आइडेंटिटी करता है।
रिपोर्टर : तो ये कुकी लाइसेंस चेक करते हैं?
अजीत : मेरे ख़याल से चेक करता होगा। … कुछ बंदे लोग बोला था- चेक किया है; उसके बाद हमें पूछा नहीं है।
अजीत के अनुसार, पहले इंफाल की सडक़ों पर ड्रग्स आसानी से उपलब्ध थे। लेकिन हिंसा फैलने के बाद से मादक पदार्थों की तस्करी बन्द हो गयी है। नतीजतन ड्रग्स अब सडक़ों पर आना मुश्किल है। उसने उल्लेख किया कि इंफाल में ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ पहले ड्रग्स आसानी से उपलब्ध थी।
रिपोर्टर : अभी ड्रग्स मिल रहा है क्या इंफाल की सडक़ों पर?
अजीत : वो तो पता नहीं, पहले इसलिए अवेलेबल (उपलब्ध) था, बहुत मिलता था। …अभी तो कुछ रुका है, वायलेंस कि वजह से, ट्रांसपोर्टेशन नहीं आ रहा है।
रिपोर्टर : ट्रांसपोर्टेशन नहीं हो रहा है?
अजीत : हाँ, स्मगलिंग नहीं हो रहा है इंफाल से।
रिपोर्टर : वायलेंस (हिंसा) से पहले ड्रग्स कैसे मिल रही थी इंफाल में?
अजीत : जगह-जगह पर बस्ती होता है ड्रग का। उधर से जाकर लेता है। …ऐसे ही स्मगलिंग होता है, बहुत बड़े-बड़े कंसाइनमेंट (माल) होता है, तो इंफाल होकर ही जाता है। … हाईवे से जाता है तो इंफाल होकर ही जाता है। …अभी तो सब बन्द है; तो कोई भी नहीं जा रहा है।
रिपोर्टर : मतलब, सडक़ पर लडक़े मिल जाते थे, …सडक़ पर बेचते हुए?
अजीत : नहीं, कुछ बस्ती है; कुछ एरिया है उधर मिलता है।
रिपोर्टर : वो कौन सी बस्ती, एरिया है इंफाल में?
अजीत : नॉर्थ इंफाल में।
रिपोर्टर : आप कहाँ रहते हो? नॉर्थ, ईस्ट, साउथ ऑर वेस्ट? (उत्तर, पूर्व, दक्षिण और पश्चिम?)
अजीत : मैं ईस्ट में हूँ। यहाँ भी वॉयलेंस हुआ है पेरीफिरी (परिधि) में।
रिपोर्टर : और वेस्ट इंफाल में?
अजीत : हाँ, वहाँ भी हुआ है बहुत वायलेंस।
अजीत ने यह भी ख़ुलासा किया कि इंफाल में इंटरनेट पर प्रतिबंध के बाद उसने कनेक्टिविटी संकट के लिए अस्थायी समाधान खोज लिया है। उसने कहा कि वह उन एजेंसियों से इंटरनेट तक पहुँच प्राप्त कर रहा था, जहाँ नेट उपलब्ध है; उन्हें (कम्पनियों को) 100 रुपये प्रति घंटे की दर से पैसे का भुगतान करके उचित अनुमति के साथ।
रिपोर्टर : आपका नेट चल रहा है?
अजीत : नहीं, अभी वो सुबह 10:00 बजे से चलेगा, …हा-हा (…हँसते हुए)।
रिपोर्टर : कितनी देर के लिए चलेगा?
अजीत : मैं इंस्टीट्यूशन से वहाँ जाकर मार्क करता हूँ, पब्लिक के लिए नहीं है। … जो गवर्नमेंट इंस्टीट्यूशंस हैं, वहाँ जाकर लेता है। वो एक आवर (घंटे) का रुपये 100 लेता है।
रिपोर्टर : कौन लेता है?
अजीत : इंस्टीट्यूशन से &&&&, और मणिपुर में एक &&&& सेंटर होता है।
रिपोर्टर : कौन सा?
अजीत : ऑल इंडिया का लर्निंग इंस्टीट्यूशन होता है। …कम्प्यूटर का वहाँ इस्तेमाल करता है।
रिपोर्टर : अच्छा, और गवर्नमेंट ऑर्गेनाइजेशन भी पैसा लेती है आपको नेट सर्विस देने की?
अजीत : वो लोग काअपना एडमिनिस्ट्रेशन (प्रशासन) अलग होता है ना! &&&& है।
रिपोर्टर : आप कहाँ से नेट लेते हो?
अजीत : मैं &&&& से लेता हूँ। … रुपये 100 पर आवर (प्रति घंटा। …ये अराउंड तीन किलोमीटर है मेरे घर से। ‘तहलका’ की इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट के बाद यदि आप मणिपुर के दंगा प्रभावित क्षेत्र, विशेष रूप से मैतेई और कुकी बहुल क्षेत्रों की यात्रा करने पर विचार कर रहे हैं, तो आपके साथ एक मुस्लिम ड्राइवर होना ज़रूरी है। हाल में भडक़ी हिंसा के बाद मणिपुर में मुस्लिम ड्राइवरों की बहुत माँग है। ‘तहलका’ रिपोर्टर से बातचीत करने वाले सभी लोग अपने दावे में इस मुद्दे पर लगभग एकमत थे। इससे साफ़ है कि मणिपुर में मुस्लिम होना, मतलब सुरक्षित हैं।