इस महीने की शुरुआत में एक दोस्त की सगाई में जाने का मौका हाथ लग गया. वो दोस्त भी मेरी तरह काफी साल से घर से दूर रहकर नौकरी करता है. मेरे घर जाने का मामला पहले से ही तय था. ऐसे में सगाई के बहाने पुराने दोस्तों से मुलाकात का मौका मैं छोड़ना नहीं चाहता था. एक पंथ दो काज निपटाने वाला ये मौका बहुत दिन बाद मेरे हाथ लग गया था और ट्रेन पर लदकर घर की ओर कूच कर गया था. हालांकि घर पहुंचने पर जब उस दोस्त को बधाई देने उसके घर पहुंचा तो सगाई और शादी के बारे में उसने जो कहानी बताई वह किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं थी.
दरअसल, सगाई होने के कुछ दिन पहले लड़कीवालों ने उसके परिवारवालों को बताया कि लड़की का कोई ऑपरेशन हुआ है और वे सगाई की तारीख आगे खिसकाना चाहते हैं तो लड़केवालों ने कह दिया कि ठीक है कोई बात नहीं. अपनी सुविधा के हिसाब से देख लो. इसके अलावा ‘डिमांड’ को लेकर भी लड़कीवालों की कुछ आपत्तियां थीं जिसे दोनों परिवारों ने मिलकर सुलझा लिया था. सगाई के पहले की प्रक्रिया जैसे- लड़कीवालों का लड़के के घर आना, फिर लड़का जहां नौकरी करता है वहां जाकर लड़की के पिता का उससे मिलना, इसके बाद लड़की को लड़के के परिवार और रिश्तेदारों द्वारा देखना, ‘ग्रुप डिस्कशन’ और ‘रैपिड फायर क्वेश्चन राउंड’, ‘लेन-देन’ वगैरह-वगैरह पूरी कर ली गई थी. दोस्त ने बताया कि लड़की के ऑपरेशन और सगाई रद्द करने तक की तो बात समझ में आ गई थी. सभी लोग तैयार थे कि सगाई की तारीख फिर से तय कर दी जाएगी.
जब दोस्त को सगाई की बधाई देने उसके घर पहुंचा तो उसने जो कुछ भी बताया वह किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं थी
ऑपरेशन की बात सामने आने के बाद मेरे दोस्त को झटका तब लगा जब लड़की की बुआ के लड़के का फोन उसके पास आया कि जहां वह नौकरी करता है और जहां किराये का मकान लेकर रहता है, वह देखना चाहता है. ये बात मेरे दोस्त को खटक गई कि सगाई की तारीख रद्द करने के बाद अब लड़के की जांच-पड़ताल करने का क्या मतलब. ये तो पहले चेक करना चाहिए था उसके बाद सगाई तय करनी चाहिए थी. इस फोन के बाद मेरे दोस्त के बैकग्राउंड चेक करने के मसले ने कुछ ऐसा तूल पकड़ा कि दोनों परिवारों का रिश्ता जुड़ने से पहले ही टूट गया. मेरे दोस्त के हिसाब से ये पूरा मामला इसलिए बिगड़ा कि सगाई होने से पहले जितनी भी बातें हुईं उसमें उसके पिता और लड़की के पिता के बीच बातचीत न के बराबर हुई. लड़के के पिता को नहीं पता था कि लड़की के पिता क्या चाहते हैं और यही हाल लड़की के पिता का था. बातचीत न होने की वजह से दोनों परिवारों के बीच जुड़ने वाले रिश्ते को संदेह के कोहरे ने घेर लिया. इस रिश्ते पर बर्फ जम गई जो पिघली तो रिश्तों में नरमी नहीं बल्कि तल्खी लेकर आई.
दोनों ओर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला और इसकी आंच मेरे दोस्त तक उस दिन पहुंची जिस दिन लड़की की बुआ का लड़का उसके पास आया. मेरे दोस्त ने अपना किराये का कमरा दिखाने से मना कर दिया था. तब उस पर ऐसे-ऐसे आरोप लगे कि उसकी हालत खस्ता हो गई. ऐसा इसलिए कि लड़की के बुआ के लड़के ने मेरे दोस्त से कहा, ‘भाई! हम लड़कीवाले हैं और सगाई तय होने के बाद भी हम कभी भी ये चेक कर सकते हैं कि लड़का कहां और किसके साथ रह रहा है. ऐसा इसलिए कि ‘क्राइम पेट्रोल सतर्क’ सीरियल में भी दिखाता रहता है कि लड़का घर से दूर नौकरी करता है वहां ‘किसी और’ के साथ रहता है और फिर घरवालों की मर्जी से शादी भी कर लेता है और फिर जुर्म दस्तक देता है.’ दोस्त पर इसके अलावा और भी तमाम आरोप लगे जिसके बाद उसे कहना पड़ा, ‘बात जब यहां तक आ पहुंची है तो एक बार और सोच लो उसके बाद आगे बढ़ो. इतने संदेह की स्थिति में मामले को आगे बढ़ाना ठीक नहीं है.’
इस मामले में कौन सही है और कौन गलत, कहां, किससे, क्या गलती हुई, ये कहा नहीं जा सकता है. लेकिन मुझे लगता है कि ये पूरा मामला बात करके सुलझाया जा सकता था. इस मामले से एक बात और समझ में आई कि घर से दूर शहरों में रह रहे लड़कों को शक की निगाह से देखा जा रहा है. खासकर तब जब वे थोड़ी देर से शादी को तैयार होते हैं. ये बड़ी ही अजीब और हास्यास्पद-सी स्थिति थी. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि दोस्त से क्या कहूं. खैर, विदा लेते हुए मैंने सिर्फ इतना ही कहा, ‘जो होना था, सो हो गया लेकिन अब आगे के लिए सावधान रहना और सतर्क रहना.’
(लेखक पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं )