आपके उपन्यास और फिल्म पीके की समानता के बारे में आपको पहले-पहल कब जानकारी हुई?
मैंने फिल्म पीके एक जनवरी 2015 को देखी. फिल्म देखकर मैं एकदम अवाक ही रह गया. मुझे फिल्म के दौरान ही इस बात का अहसास होने लगा कि यह तो हूबहू मेरे उपन्यास ‘फरिश्ता’ पर आधारित है. बात केवल फिल्म के प्लॉट की नहीं है, बल्कि कई जगह तो मेरे उपन्यास के संवाद तक मामूली फेरबदल के साथ इस्तेमाल कर लिए गए हैं. इस बात ने मुझे एकदम से बेचैन कर दिया. अगर ऐसा एक-दो जगह हुआ होता तो मैं मान लेता कि यह संयोग है, लेकिन पूरी फिल्म में ऐसी समानताओं का एक सिलसिला है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती.
आपने यह उपन्यास कब लिखा था?
इस उपन्यास को लिखने का विचार मेरे मन में पहली बार वर्ष 2006 में आया था. मैंने 2007 में इसे लिखना शुरू किया था और 2009 में जाकर यह उपन्यास पूरा हुआ. हालांकि इसका प्रकाशन वर्ष 2013 में जाकर हुआ. इसके प्रथम संस्करण की 800 प्रतियां छपी थीं.
क्या किसी और ने भी आपको बताया इस समानता के बारे में?
जी नहीं. मुझे किसी ने कुछ नहीं बताया. चूंकि यह फिल्म काफी चर्चा में थी, इसलिए मैं इसे देखने गया था. पहले वक्त नहीं निकाल पाया इसीलिए फिल्म रिलीज होने के काफी दिन बाद मैंने इसे देखा.
आपने इतनी देर से शिकायत क्यों की?
इसकी वजह भी यही है कि मैं पहले फिल्म देख ही नहीं पाया, न ही ऐसा कोई संयोग बना कि कोई मुझे इस समानता के बारे में बता पाता.
क्या अदालत की शरण में जाने से पहले आपने निर्माता-निर्देशक से किसी तरह का संपर्क किया?
नहीं, कोई सीधा संपर्क तो नहीं हुआ, लेकिन मैंने चार जनवरी को फिल्म राइटर्स एसोसिएशन मुंबई के पास ईमेल से अपनी शिकायत दर्ज करवा दी थी. अगले ही दिन यानी 5 जनवरी को मेरे पास उनका जवाब भी आ गया, जिसमें उन्होंने मेरे दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि चूंकि मैं संस्था का सदस्य नहीं हूं, इसलिए इस मामले में कुछ नहीं किया जा सकता.
क्या अदालती नोटिस जारी होने के बाद किसी ने आपसे कोई संपर्क किया.
जी नहीं. अभी तक तो किसी ने कोई संपर्क नहीं किया है. वैसे मैं आपको बता दूं कि यह एक लेखक की रचना के बेजा इस्तेमाल का मामला है, इसलिए मैं इस लड़ाई में किसी भी सूरत में पीछे हटनेवाला नहीं हूं.
आपकी मांग क्या है?
मेरी मांग है कि मुझे इस फिल्म में मेरे उपन्यास के इस्तेमाल के लिए पूरा श्रेय दिया जाए और साथ ही एक करोड़ रुपये की राशि बतौर हर्जाना मुझे दिलाई जाए.
फिलहाल क्या स्थिति है?
अदालत ने मेरी याचिका को स्वीकार कर लिया है और नोटिस जारी करते हुए आरोपी पक्ष को 16 अप्रैल तक अपना पक्ष रखने की तारीख तय की है. उस दिन फिल्म के निर्देशक राजकुमार हिरानी, निर्माता विधु विनोद चोपड़ा और पटकथा लेखक अभिजात जोशी को संपूर्ण दस्तावेज के साथ अदालत में हाजिर रहने का निर्देश दिया गया है.
अगर अदालत के बाहर समझौते की कोई पेशकश होती है तो आपकी क्या शर्तें होंगी?
मामला अदालत में है. मैं अपनी बात पर कायम हूं. मैं कोई भी बात हवा में नहीं कर रहा हूं, सारे आरोप तथ्यों पर आधारित हैं. बॉलीवुड की सबसे हिट और कमाई करनेवाली फिल्म पूरी तरह से मेरे उपन्यास पर आधारित है. मैं फिल्म निर्माता से इस मुद्दे पर बहस करने को भी तैयार हूं.
फिल्म की जबर्दस्त कमाई और लोकप्रियता के लालचवश भी तो आप ऐसा कर सकते हैंै.
ऐसा कुछ नहीं है. मामला कोर्ट में है. कोई रचनाकार ऐसा करके लोकप्रिय नहीं हो सकता है. उसे अपनी रचना की ताकत पर ही भरोसा करना होता है. जहां तक मेरी बात है, तो मेरे पाठकों के बीच मेरी पर्याप्त स्वीकार्यता है. कम से कम इस काम के लिए तो मुझे किसी फिल्मकार के साथ विवाद की जरूरत नहीं है.