कई भाषाओं के मर्मज्ञ राहुल सांकृत्यायन, प्रख्यात शिक्षाविद अलामा शिब्ली नोमानी, प्रसिद्ध साहित्यकार अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए युद्ध पर ‘हल्दीघाटी’ नाम का महाकाव्य रचनेवाले श्यामनारायण पांडेय, शायर कैफी आजमी और मशहूर अदाकारा शबाना आजमी ये कुछ नाम हैं जिन पर उत्तर प्रदेश के एक अति पिछड़े जिले आजमगढ़ को आज भी नाज है. वहीं सिक्के के दूसरे पहलू पर आतंकवादी अबू सलेम का भी नाम गुदा हुआ है, जिसके चलते कला-साहित्य की इस उर्वर भूमि पर बदनामी के बादल भी छाए हुए हैं.
1993 में मुंबई बम धमाकों के पीछे इस जिले के सरायमीर में जन्मे अबू सलेम का नाम उजागर होने के बाद से आजमगढ़ पर आतंक का गढ़ होने का ऐसा दाग लगा, जिसे अब तक मिटाया नहीं जा सका है. इसके बाद से अक्सर ऐसे पल आए, जिनसे पूर्वांचल के इस जिले को शर्मसार होना पड़ा. आजमगढ़ की शाख बचाने की तरह-तरह की कोशिशें की जाती रही हैं. इन्हीं कोशिशों के बीच एक शख्सियत का नाम उभरकर सामने आया है, जिसका आजमगढ़ और मुंबई दोनों शहरों से गहरा जुड़ाव है. चंद्रपाल सिंह नाम का यह शख्स बॉलीवुड का उभरता हुआ निर्देशक है.
चंद्रपाल गलत कारणों से हो रहीं आजमगढ़ की पहचान को लेकर आहत हैं, इसी वजह से उन्होंने ‘आजमगढ़’ नाम की फिल्म बनाने की घोषणा की है. मुंबई में पासपोर्ट के लिए उन्होंने वर्ष 2007 में आवेदन किया था, जो पिछले आठ साल से नहीं बना है, क्योंकि उन्होंने अपने स्थायी पते में जिले का नाम आजमगढ़ लिखा हुआ है.
चंद्रपाल सिंह का जन्म आजमगढ़ जिले के एक गांव रूप देवारा खास राजा में हुआ. इनके दादा इंद्रासन सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. एक आम पूर्वांचली युवा की तरह चंद्रपाल का फिल्मों के प्रति आकर्षण उन्हें मुंबई खींच लाया और फिर वे यहीं के होकर रह गए, लेकिन अपनी जड़ों से वह आज भी जुड़े हुए हैं. 12वीं पास करने के बाद 1996 में जब वे 18 वर्ष के रहे होंगे तभी मुंबई आ गए थे और लगभग दो दशक से बॉलीवुड ही उनकी कर्मभूमि है. पासपोर्ट न बन पाने के कारणों की पड़ताल के दौरान उन्हें पता चला कि आाजमगढ़ की गलत और भ्रामक पहचान की वजह से ऐसा हुआ.
चंद्रपाल सिंह के अनुसार पासपोर्ट से जुड़े सारे दस्तावेज सही थे लेकिन आजमगढ़ से जुड़े होने के कारण उन्हें पासपोर्ट जारी नहीं किया गया. चंद्रपाल कहते हैं, ‘मानो आजमगढ़ में जन्म लेकर मैंने कोई अपराध किया हो. मैंने देखा है कि यहां के लोगों को हमेशा शक की नजर से देखा जाता है. यह सही है कि यहां के कुछ लोगों का संबंध कई बड़े अपराधों से रहा है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि यहां का हर व्यक्ति अपराधी है. हर जगह अच्छे और बुरे लोग होते हैं. इसी मिट्टी में राहुल सांकृत्यायन, कैफी आजमी सरीखे लोग भी पैदा हुए. लोग अच्छाइयों को भूल जाते हैं, लेकिन बुराइयों को हमेशा याद रखा जाता है. यहां से जुड़े लोगों में से किसी को नौकरी नहीं मिलती है तो किसी को स्कूल में एडमिशन नहीं मिलता.’
वह आगे बताते हैं, ‘अपने लोगों से जुड़ी इन समस्याओं को देखते हुए मैंने इस मुद्दे को लेकर शोध शुरू कर दिया. आखिर क्यों आजमगढ़ की छवि खराब है. ऐसे कौन से पहलू हैं, जिन्होंने एक पूरे शहर को बदनाम करके रख दिया है. मुझे लगा कि यह मुद्दा बेहद संवेदनशील होने के साथ-साथ बहुत नाटकीय भी है, जिसके आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक पहलू निकलकर सामने आते हैं. यहां के युवा वर्ग में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, जोश में होश खो देना हो या फिर बुजुर्गों का अपनी मिट्टी से लगाव हो, ये सब मुझे इतना महत्वपूर्ण लगा कि आजमगढ़ को लेकर मैंने एक फिल्म बनाने का फैसला किया.’
मुंबई धमाकों में अबू सलेम का नाम आने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर आजमगढ़ की छवि आतंकियों के गढ़ के रूप में स्थापित हो गई है. क्या एक फिल्म उस स्टीरियोटाइप को तोड़ पाएगी?
मुंबई में उन्होंने काम के साथ ब्रॉडकास्टिंग, कैमरा तकनीक और हैंडलिंग के बारे सीखा. फिर सिनेमैटोग्राफी की जानकारी ली और अपना व्यवसाय शुरू किया. कुछ समय तक उन्होंने कैमरामैन का भी काम किया. अब उनके पास 200 फिल्म शूटिंग कैमरे हैं, जिनकी मदद से वह विभिन्न स्टूडियो और चैनलों को सेवा मुहैया कराते हैं. चंद्रपाल बताते हैं, ‘शौक तो था फिल्म लाइन में काम करने का. यह नहीं मालूम था कि कैमरे के आगे काम करूंगा या पीछे लेकिन जहां चाह हो वहां राह निकल ही आती है.’
चंद्रपाल सिंह इससे पहले दो फिल्में लॉन्च कर चुके हैं- ‘लकीर का फकीर’ और ‘भूरी’. चंद्रपाल ने ‘लकीर का फकीर’ फिल्म से मॉडल एजाज खान को बड़े परदे पर लॉन्च किया था. उनकी दूसरी फिल्म ‘भूरी’ में रघुवीर यादव, मार्शा पौर, शक्ति कपूर, आदित्य पंचोली, कुनिका सदानंद जैसे कलाकार प्रमुख भूमिका में हैं. फिल्म ग्रामीण भारत पर आधारित है, जिसमें 23 साल की एक युवती की शादी 55 साल के अधेड़ व्यक्ति से कर दी जाती है. वह बेहद खूबसूरत है. अपनी खूबसूरती के कारण उसे तमाम कटु अनुभवों से गुजरना पड़ता है. फिल्म पुरुष प्रधान समाज में एक महिला के उत्पीड़न को बयां करती है. जसबीर भाटी के निर्देशन में बनी यह फिल्म इसी साल रिलीज होनेवाली है.
आजमगढ़ की बात करें तो पाकिस्तानी सिनेमा के पुरोधा सैयद शौकत हुसैन रिजवी भी यहीं से हैं. यहीं से उन्होंने कोलकाता होते हुए लाहौर का सफर तय किया था. फिल्म ‘खानदान’ से उन्होंने 1932 में बॉलीवुड के खतरनाक खलनायकों में से एक प्राण को लॉन्च किया था. इतना ही नहीं ‘क्लोजअप अंतराक्षरी’, ‘सारेगामापा’ जैसे हिट टेलीविजन म्यूजिकल शो बनानेवाले गजेंद्र सिंह भी यहीं से आते हैं. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राम नरेश यादव और वरिष्ठ राजनीतिज्ञ अमर सिंह भी इसी मिट्टी की देन हैं. इस जिले के इतिहास का यह उजला पक्ष अब धुंधला हो चला है.
अाजमगढ़ का होने के नाते राजनीतिज्ञ अमर सिंह बतौर प्रमोटर चंद्रपाल सिंह की इस फिल्म से जुड़े हैं. चंद्रपाल अब तक दो फिल्में बना चुके हैं
चंद्रपाल सिंह बताते हैं, ‘यहां के युवा आज विभिन्न क्षेत्रों में अच्छा काम कर रहे हैं. आजमगढ़ फिल्म से जुड़े अधिकांश युवा भी मेरे गृहनगर आजमगढ़ से हैं और वे बहुत ही प्रतिभावान हैं. ये युवा भी इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर फिल्म बनाने का विचार रखते थे.’ इसके अलावा कुछ साथियों की मदद से चंद्रपाल लखनऊ में एक संस्थान भी चलाते हैं, जहां फिल्म लाइन में काम करनेवाले तमाम युवाओं को इसके तकनीकी पहलुओं की जानकारी दी जाती है. एआरएस मीडिया एंड टेक्नोलॉजी नाम के इस संस्थान में कई तरह के पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं. ‘आजमगढ़’ फिल्म को यही संस्थान प्रोड्यूस कर रहा है.
चंद्रपाल का दावा है कि उन्होंने हजारों युवाओं को बॉलीवुड में काम करने का मौका दिलाया है. उनके अनुसार आजमगढ़, गोरखपुर, देवरिया, बलिया, बड़हलगंज जिलों के तमाम युवा ट्रेन में भरकर रोजाना मुंबई पहुंचते हैं. इनमें से तमाम हीरो बनने का ख्वाब सहेजे रहते हैं, लेकिन उन्हें ये नहीं पता होता है कि कैसे क्या करना है. एआरएस मीडिया एंड टेक्नोलॉजी संस्थान उनके ख्वाब को हकीकत में बदलने में मदद करता है.
फिल्म में रोल के लिए मनोज बाजपेयी, रघुवीर यादव, मुकेश तिवारी से चंद्रपाल की बातचीत चल रही है. वे बताते हैं कि संवेदनशील विषय होने के कारण कलाकार थोड़ा हिचक रहे हैं, लेकिन उनकी कोशिश जारी है. फिल्म की शूटिंग आजमगढ़ और गोरखपुर जिलों में ही करने की उनकी योजना है. यहां सुरक्षा की आशंका को लेकर भी कलाकारों में फिल्म से जुड़ने के प्रति हिचक है. फिल्म उन्हीं आतंकी और आपराधिक घटनाओं को अपने अंदर समेटेगी, जिसकी वजह से आजमगढ़ बदनाम हो चला है. फिल्म के बारे में इससे ज्यादा बताना चंद्रपाल ने मुनासिब नहीं समझा. गर्मी के बाद फिल्म फ्लोर पर जाएगी.
प्रमोटर के रूप में वरिष्ठ राजनेता अमर सिंह इस फिल्म से जुड़ चुके हैं. अमर खुद आजमगढ़ के हैं. चंद्रपाल की ‘भूरी’ के प्रीमियर के समय अमर सिंह मुंबई पहुंचे थे. उसी दौरान चंद्रपाल ने उनसे अपनी नई फिल्म के बारे में बातचीत की थी और जिसके बाद उन्होंने फिल्म से जुड़ने की इच्छा जाहिर की थी. फिल्म के ऑडिशन बीते 25 फरवरी से शुरू हो गए हैं. चंद्रपाल सिंह इस फिल्म को बनाने में जुट गए हैं, ताकि आजमगढ़ के उजले पहलू से लोग वाकिफ हों और जिले के दूसरे लोगों को उनकी तरह देश में कहीं भी किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़ा. फिल्म में चंद्रपाल यहां की वह छवि पेश करेंगे, जो धूमिल हो चुकी है.