शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का साई बाबा की आराधना से विरोध क्यों है?
धर्म नियम और परंपराओं से संचालित होता है. हर धर्म में कुछ परंपराएं होती हैं, कुछ वर्जनाएं होती हैं, कुछ प्रतिबंध होते हैं और कुछ चीजों को करने की इजाजत होती है. बीते कुछ समय के दौरान हमने देखा है कि साई को हमारे मंदिरों में हर मान्यता को झुठला कर स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है. साई हमारे देवताओं के समकक्ष नहीं रखे जा सकते. हमारे आराध्यों को नीचा दिखाने की कोशिश चल रही है. वैदिक मंत्रों को प्रदूषित किया जा रहा है. यह भ्रम पैदा किया जा रहा है कि साईं भी हमारे अवतार हैं. हमारा विरोध इसी झूठ से है.
जब लोग स्वयं साई की पूजा कर रहे हैं तो आप उन्हें रोक कैसे सकते हैं? हमारे देश का संविधान सबको अपनी श्रद्धा के मुताबिक पूजा-पाठ की छूट देता है.
जो धर्म की रक्षा करता है उसके प्रति श्रद्धा होती है. ऐसे व्यक्ति की पूजा करना भी न्यायोचित है. लेकिन साई ने कभी भी धर्म की रक्षा नहीं की है. आपत्ति यह है कि हमारे मंदिरों में साई की प्रतिमा लगाकर उन्हें ओम साईराम कहा जा रहा है. ऐसे-ऐसे चित्र प्रसारित किए जा रहे हैं जिनमें साई को विराट स्वरूप धारण किए हुए दिखाया गया है.
विराट स्वरूप सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण ने धारण किया था. इसी तरह क्षीर सागर में भगवान विष्णु की माता लक्ष्मी के साथ विराजमान होने की तस्वीरें हैं. हमने देखा कि भगवान विष्णु की जगह साई को क्षीर सागर में लेटे हुए दिखाया जा रहा है. यह हमें स्वीकार्य नहीं है. जो लोग साई की पूजा करना चाहते हैं वे शौक से करें. पर हमारी पद्धतियों से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए.
कहा जा रहा है कि साई की बढ़ती लोकप्रियता से घबरा कर शंकराचार्य साई का विरोध कर रहे हैं.
जो लोग ऐसी बातें कर रहे हैं उन्हें गुरुदेव की बात ठीक से समझ नहीं आई है. हमारे भीतर किसी तरह की कोई असुरक्षा नहीं है. अगर साई की पूजा लोग स्वेच्छा से करेंगे तो हम उन्हें रोकने नहीं जाएंगे. लेकिन हमारी वैदिक पद्धितियों की आड़ लेकर उन्हें स्थापित करने की कोशिश होगी तो हम जरूर विरोध करेंगे.
धर्म इतनी हल्की-फुल्की चीज तो होता नहीं कि किसी एक व्यक्ति से उसे खतरा पैदा हो जाए. सनातन धर्म का इतिहास इतना पुराना है, पांच हजार साल का इसका लिखित दस्तावेज मौजूद है. इसे एक साई की पूजा से परहेज क्यों होनी चाहिए?
यह बात सत्य है कि हमारा धर्म बहुत गहरा और मजबूत है, लेकिन आप इसे इस तरह से समझिए कि गामा पहलवान की नाक पर भी यदि मक्खी बैठेगी तो वह उसे हटाएगा जरूर. यह मानकर कि यह तो एक छोटी सी मक्खी है, वह उसे अपनी नाक पर बैठने की छूट नहीं देगा. हमारे यहां भगवान उसे माना जाता है जो आसुरी शक्तियों का विनाश करता है. आप बताइए कि साई ने किस आसुरी शक्ति का विनाश किया है. इसलिए उन्हें भगवान नहीं माना जा सकता. एक शब्द है मंदिर. मंदिर का एक विधान होता है. यहां एक मूर्ति लगाई जाती है. इसके पश्चात उसमें वैदिक मंत्रोच्चार के जरिए प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. ध्यान रखिए कि शव के ऊपर कोई प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो सकती है. यह हमारी मान्य पद्धति के बिल्कुल खिलाफ है. शिरडी में साई की मजार के ऊपर उनके लोगों ने मंदिर बना रखा है. एक मजार के ऊपर प्रतिदिन वैदिक मंत्रोच्चार करके हमारी मान्य परंपराओं का अपमान हो रहा है.
अब तो आप लोगों के बीच में ही दो फाड़ होता दिख रहा है. एक मशहूर साध्वी उमा भारती का कहना है कि वे भी साई की भक्त हैं.
हमें भी इस बात का आश्चर्य है. हम लोग उमा भारती को राम मंदिर आंदोलन के बाद से जानते हैं. वे और साध्वी ऋतंभरा राम मंदिर आंदोलन का चेहरा थीं. ये जरूरी नहीं है कि सिर्फ राम मंदिर आंदोलन से जुड़कर कोई हमारी परंपरा का हिस्सा हो जाए. जब वे कहती हंै कि वे साई की भक्त हैं तो वे स्वयं ही हमारी परंपरा से अलग हो जाती हैं. उमा भारती के कहने से क्या फर्क पड़ता है? उन्होंने संन्यास की दीक्षा जिन गुरु से ली है वे स्वयं हमारे साथ खड़े हैं. उमा भारती के गुरु ने स्वयं स्वामी जी को फोन करके इस बात के लिए धन्यवाद दिया है कि उन्होंने एक सही मुद्दा उठाया है. वे खुद भी साई की पूजा से परेशानी महसूस कर रहे थे.
आप कह रहे हैं कि पूजा पद्धति में साई प्रदूषण फैला रहे हैं इसलिए यह विरोध है. यहां पर सिर्फ चार शंकराचार्यों का प्रावधान था, आज गली-गली में शंकराचार्य पैदा हो गए हैं आप लोगों ने वहां फैले प्रदूषण को दूर करने का आजतक कोई प्रयास नहीं किया.
हमारे गुरुदेव ने हमेशा यही कहा कि है कि यह सुनियोजित षडयंत्र है सनातन धर्म को अपमानित करने का और उसे नीचा दिखाने का. यह षडयंत्र कई मोर्चों पर चल रहा है. आज जो तमाम शंकराचार्य खड़े हो गए हैं वे उसी षडयंत्र का हिस्सा हैं जिसके तहत साई जैसों को अवतार बनाने की कोशिशें हो रही हैं. साई को भगवान बनाकर राम-कृष्ण की महिमा घटाई जा रही है इसी तरह अनेकों शंकराचार्य खड़ा करके गुरुओं की प्रतिष्ठा और महत्ता गिराने का षड्यंत्र हो रहा है.
आज के आराध्य
द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का एक बयान इन दिनों विवाद का विषय बना हुआ है. यह बयान उन्नीसवीं सदी में हुए संत साई बाबा की बढ़ती लोकप्रियता के खिलाफ आया है. इन दिनों साई आराधना की जबर्दस्त लहर है. आलम यह है कि हिंदू धर्म के दूसरे परंपरागत देवी-देवता लोकप्रियता के पायदान पर साई से पीछे छूटते दिख रहे हैं. अपने परंपरागत आराध्यों के प्रति घटती श्रद्धा से पैदा हुआ भय भी स्वरूपानंद सरस्वती के बयान के पीछे की एक वजह हो सकता है. साई की भक्ति का एक पहलू यह भी है कि भक्त उनके पास श्रद्धा के वशीभूत होकर कम और कुछ पाने की उम्मीद लिए ज्यादा जा रहे हैं. साई की तर्ज पर ही आराध्यों की एक नई कतार खड़ी हो चुकी है. इनमें शनिदेव और भैरवनाथ के नाम प्रमुख हैं. इन सबकी आराधना का एक मिला-जुला पक्ष है. ये ऐसे आराध्य हैं जो या तो हमारे दिलों में घुसकर हमें डराते हैं या इनसे हमें अपनी हर मनोकामना पूरी होने की उम्मीद रहती है. ऐसे ही आराध्यों पर कुछ समय पूर्व की गई तहलका की यह कथा अपने संशोधित और संवर्धित स्वरूप में आगे के पन्नों में है. Read More>>