35 वर्षीय शमशेर अली पुरानी दिल्ली में रिक्शा चलाते हैं. इनका ताल्लुक उत्तर प्रदेश के जिला लखीमपुर खीरी से है. शमशेर का परिवार खीरी में ही रहता है. परिवार में इनके अलावा तीन बच्चे और बीबी है. शमशेर अपने इसी परिवार का पेट भरने के लिए यहां किराए का रिक्शा चलाते हैं. दरियागंज के पास एक मोड़ पर इनसे मुलाकात हुई थी. शमशेर थोड़े परेशान थे. परेशानी की वजह यह थी कि अगर ठीक-ठाक कमाई नहीं हुई तो शाम को रिक्शे का किराया उन्हें अपनी जेब से देना होगा. हर शाम 60 रुपया रिक्शे का किराया जमा कराना होता है.
शमशेर पांचों वक्त के नमाजी नहीं हैं. वो ऐसा चाहते हैं लेकिन काम की वजह से नहीं कर पाते. वो हर दिन की पहली और आखरी नमाज जामा मस्जिद में नियम से पढ़ते हैं. जब शमशेर से दुनिया के तमाम देशों में इस्लाम के नाम पर फैली हुई हिंसा का जिक्र होता है तब वो थोड़ा सकुचाते हुए कहते हैं, ‘कभी-कभार उर्दू के अखबारों में देख लेता हूं. पेशावर में जो बच्चों को मारा गया उसके बारे में मैंने पढ़ा था. बाकी दुनिया के अलग-अलग मुल्कों में क्या हो रहा है इसकी जानकारी नहीं है.’ वो आगे कहते हैं, ‘बच्चों को मार दिया. आप कह रहे हैं कि कई मुल्कों में औरतों को बंधक बना लिया गया. यह सब इस्लाम में तो नहीं है. अल्लाह ऐसा करने के लिए तो नहीं कहता. जो लोग भी ऐसा कर रहे हैं वो गलत कर रहे हैं. अल्लाह, आखिर में इन सब लोगों से हिसाब लेगा. उसकी अदालत से कोई नहीं बच सकता.’
शमशेर अली को दुनियाभर में हो रही घटनाओं की ज्यादा जानकारी नहीं है. वो तहलका से बातचीत इस शर्त के साथ शुरू करते हैं कि अगर बीच में कोई सवारी आई तो वो निकल जाएंगे. एक-एक पैसे के लिए हर रोज लड़ाई लड़नेवाले शमशेर के लिए अपने परिवार का पेट भरना ही जेहाद से कम नहीं है. वो कहते हैं, ‘मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं हूं लेकिन इतना मालूम है कि अल्लाह प्रेम से रहने के लिए कहता है. मार-काट मचाने के लिए नहीं. ये उनका काम होगा जिनका पेट भरा होगा. अगर उन्हें खाने और परिवार पालने के लिए रिक्शा खींचना पड़े तो वो ऐसा कभी नहीं करेंगे.’
‘कुछ लोग हमारे मुल्क में भी जहर का कारोबार कर रहे हैं’
शमीम अहमद 50 साल के होनेवाले हैं. वो अपने परिवार के साथ उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में रहते हैं. वहां इनकी साईकल रिपेयरिंग की दुकान है. अपने छोटे भाई से मिलने के लिए वे दिल्ली आए हुए हैं. पुरानी दिल्ली की एक सड़क पर संयोग से शमीम साहब से मुलाकात होती है. उन्हें उसी रात वापस रामपुर लौटना था. पान खाने और सफेद कुर्ता-पजामा पहनने के शौकीन शमीम अहमद पांच वक्त के नमाजी हैं. बकौल इनके यह हर मुसलमान के लिए जरूरी है. हालांकि वो यह भी कहते हैं कि अल्लाह रहम दिलवाला है. वो कठोर नहीं है. वो नमाज में भी जरुरतमंदों को छूट देता है. जब शमीम अहमद से जानने की कोशिश की गई कि जो लोग रहम दिल अल्लाह के नाम पर लोगों का खून बहा रहे हैं उन्हें वो किस तरह से देखते हैं तो वे इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहते. वो केवल इतना भर कहते हैं कि ये भटके हुए लोग हैं जिन्हें सही रास्ते पर लाए जाने की जरूरत है. असल में ये लोग इस्लाम का मतलब ही नहीं जानते. इन्हें अल्लाह ठीक करेगा. इनसे इनकी तबाही का हिसाब भी अल्लाह ही लेगा. इन्हें सबक भी वही देगा. बातचीत में शमीम अहमद इस बात के लिए अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हैं कि वो हिंदुस्तान में हैं. उनकी नस्लें इस मिलनसार मुल्क में हैं. वो कहते हैं, ‘मैंने दुनिया तो नहीं देखी लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि हिंदुस्तान दुनिया में सबसे अच्छी जगहों में से एक है. यहां मुसलमान और गैर मुसलमान सब एक साथ मजे से रहते हैं. मैं रामपुर में कई हिन्दू शादियों में बतौर मेहमान जाता हूं और उन्हें भी अपनी हर दावत में बुलाता हूं. इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि सबलोग एक साथ बिना किसी शिकायत और लड़ाई-झगड़े के रहें.’ शमीम अहमद को यह इल्म है कि हाल के दिनों में मुजफ्फरनगर और मुजफ्फरपुर जैसी जगहों पर क्या हुआ है. शायद इसी वजह से वो बातचीत के आखिर में जोड़ते हैं, ‘जहर से मौतें होती हैं. फसलें आबाद नहीं होतीं. आजकल कुछ लोग हमारे मुल्क में भी जहर का कारोबार कर रहे हैं.’
‘ये लोग तो अल्लाह से ही बगावत ठाने बैठे हैं’
मोहम्मद हामिद अपने परिवार के साथ दिल्ली के मिंटो रोड इलाके में रहते हैं. नियम से पांचों वक्त की नमाज पढ़ते हैं. जामा मस्जिद के गेट नंबर एक से थोड़ी दूरी पर एक पीपल के पेड़ के नीच रोज अपनी खानदानी दवाईयों की रेहड़ी लगाते हैं. जड़ी-बूटियों से दवा बनाते हैं, इनका दावा है कि इनकी दवाई से हर तरह का दर्द ठीक हो सकता है. हामिद साहब अल्लाह का इस बात के लिए शुक्रिया अदा करते हैं कि उनके पास एक परिवार है. जितना कमाते हैं उससे उनके परिवार का रहना-खाना हो जाता है. हामिद साहब की दिलचस्पी रोजाना की उठापटक और खबरों में भी रहती है. वो पूरी दुनिया में इस्लाम की जानिब से हो रही घटनाओं पर नजर रखते हैं. इस सवाल के जवाब में कि आखिर क्यों कुछ लोग धर्म का नाम लेकर आतंक और खून-खराबे के खेल में लगे हुए हैं, वो कहते हैं, ‘उन्हें इंसान नहीं कहा जा सकता. जालिम हैं, हत्यारे हैं. इन्सान वो हैं जो अल्लाह की बनाई हुई दुनिया को सहेजता है, उसे खूबसूरत बनाता है. प्रेम से रहता है और दूसरों को भी प्रेम से रहना सिखाता है. ये लोग तो अल्लाह से ही बगावत ठाने बैठे हैं. उसकी बनाई दुनिया को ही तबाह कर रहे है. इन्हें मैं मुसलमान तो क्या इंसान भी नहीं मानता.’
वो आगे कहते हैं, ‘इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं ये सारे लोग. इस्लाम बच्चों को मारने के लिए नहीं कहता. इस्लाम किसी को मारने का हुक्म नहीं देता. ये लोग अपने फायदे के लिए, अपनी हुकूमत के लिए, अपनी सत्ता के लिए अल्लाह को बदनाम कर रहे हैं.’ बकौल हामिद साहब एक आम मुसलमान के लिए ईमान और नमाज सबसे ज्यादा जरूरी है. वो हमसे बात करते हुए साफ करते हैं कि बिना ईमान और बिना नमाज के कोई मुसलमान नहीं हो सकता और जो लोग अल्लाह की बनाई इस सुंदर दुनिया को बम-बारूद से नाश करने में लगे हुए हैं, उन्हें मुसलमान मानना ही बंद कर देना चाहिए.