केंद्रीय सेंसर बोर्ड की अध्यक्षा लीला सैमसन ने बोर्ड के कामों में हस्तक्षेप, दबाव और भ्रष्टाचार जैसी वजहें बताते हुए इस्तीफा दे दिया है. उनका इस्तीफा डेरा सच्चा सौदा के विवादित गुरु गुरमीत राम रहीम की फिल्म ‘मैसेंजर ऑफ गॉड’ को फिल्म सर्टिफिकेशन एपिलेट ट्रिब्यूनल (एफसीएटी) की ओर से मंजूरी दिए जाने के ठीक बाद आया है. हालांकि दूसरी ओर सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है.
उन्होंने कहा, ‘हमें लिखित में कुछ भी नहीं मिला. सेंसर बोर्ड का मजाक उड़ाया गया है. मेरे इस्तीफे का फैसला दृढ़ है.’ आम तौर पर फिल्मों के रिलीज की मंजूरी और उसकी सर्टिफिकेशन का काम केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) करती है. ‘मैसेंजर ऑफ़ गॉड’ का मामला सेंसर बोर्ड की सामान्य प्रक्रिया को किनारे करते हुए सर्वसम्मति से सीधे एफसीएटी के पास भेजा गया था, जिसे एफसीएटी ने लीला सैमसन की राय के बगैर ही मंजूरी दे दी.
गौरतलब है कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से फंड जारी ने होने की वजह से बीते नौ महीनों में सेंसर बोर्ड की एक भी बैठक नहीं हुई है. सैमसन के मुताबिक, ‘वर्तमान बोर्ड के सभी सदस्यों और अध्यक्ष का कार्यकाल कब का खत्म हो चुका है.’ खुद सैमसन का तीन साल का कार्यकाल अप्रैल 2014 में ही समाप्त हो चुका है. सरकार की ओर से नई बहालियों पर रोक के फैसले के कारण मंत्रालय अभी तक नए बोर्ड के बारे में अभी तक कोई फैसला नहीं कर पाया है.
सैमसन ने आरोप लगाया है कि ‘मंत्रालय अतिरिक्त प्रभार वाले सीईओ के सहारे महीनों से बोर्ड के कामकाज में हस्तक्षेप कर रहा था. साथ ही पैनल के भ्रष्ट सदस्यों और अधिकारियों की वजह से बोर्ड की गरिमा को ठेस पहुंच रही थी.”
दूसरी ओर डेरा सच्चा सौदा के प्रवक्ता के अनुसार फिल्म पर रोक लगाने की कोई वजह नहीं है. फिल्म नशाखोरी के खिलाफ है. गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को राम रहीम के फिल्म को लेकर सचेत रहने का आदेश दिया है. डेरा अनुयायी और सिख समुदाय इस फिल्म को लेकर आमने-सामने हैं. मंत्रालय के निर्देश के मुताबिक सिख समुदाय के कुछ समूहों और अन्य लोगों के विरोध की वजह से सांप्रदायिक घटनाएं हो सकती हैं और कानून-व्यवस्था में बाधा की स्थिति पैदा हो सकती है.
पुराना है विवादों से बोर्ड का नाता
दरअसल यह पहला मौका नहीं है जब सेंसर बोर्ड की कार्यप्रणाली विवादों के घेरे में आई है. इससे पहले अगस्त 2014 में सेंसर बोर्ड के सीईओ राकेश कुमार को सीबीआई ने घूस लेते हुए गिरफ्तार किया था. सीबीआई के अनुसार कुमार ने फिल्मों की रिलीज और विभिन्न सर्टिफिकेशन के लिए दरें तय कर दी थीं. कुमार ने फिल्म को तीन दिन में पास करने के लिए 1.5 लाख रुपये और छोटे बजट की फिल्मों व डॉक्युमेंट्री को पास करने के लिए 15,000 रुपये का रेट तय कर रखा था.
साल 2004 से मार्च 2011 तक बोर्ड के अध्यक्षा के पद पर रही शर्मिला टैगोर के दौर में भी पक्षपात व नियमों के उल्लंघन के आरोप कई बार सामने आए थे. अनुराग कश्यप ने अमिताभ बच्चन पर आरोप लगाए थे कि अपने बेटे की फिल्म ‘खेलेंगे हम जी जान से’ की राह आसान करने के लिए उन्होंने उसी विषय पर बनी फिल्म ‘चिटगांग’ की रिलीज टलवाने की कोशिश की थी. उनका कहना था कि बच्चन ने बोर्ड पर दबाव बनाकर उसकी रिलीज रुकवा दी थी.
इसके अलावा फिल्म ‘टर्निंग 30’ के प्रमाणन को लेकर भी टैगोर और इसके निर्माता प्रकाश झा के बीच विवाद हो गया था.
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एक और सदस्य का इस्तीफा
सेंसर बोर्ड की एक और सदस्य इरा भास्कर ने अपना इस्तीफा दे दिया है. भास्कर ने कहा, ‘लीला को काम नहीं करने दिया जा रहा था. मेरे बाद और भी लोग इस्तीफा दे सकते हैं. हम लीला की वजह से बोर्ड में रुके हुए थे. अब जब अध्यक्षा ने ही पद छोड़ दिया है, तो बाकी बोर्ड सदस्यों के रहने का कोई मतलब नहीं है.’ उन्होंने लीला सैमसन के आरोप का साथ देते हुए कहा कि पिछले कुछ महीनों से बोर्ड के अंदर नकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे थे.
सरकार ने आरोपों को किया ख़ारिज
इस बीच सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने लीला सैमसन द्वारा लगाए सभी आरोपों को खारिज किया है. उल्टा उन्होंने सैमसन पर बोर्ड के दफ्तर में अनुपस्थित रहने की बात भी कही है. भ्रष्टाचार के आरोपों पर राठौर ने कहा, ‘कुछ महीने पहले सीबीआई ने जिस व्यक्ति को घूस मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया था, उसके नाम की सिफारिश खुद लीला सैमसन ने की थी.’