पश्चिमी अफ्रीकी देशों में इबोला वायरस के भयंकर संक्रमण के चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वैश्विक आपात स्थिति का ऐलान कर दिया है. इस मुद्दे पर डब्ल्यूएचओ की आपात समिति की बैठक के बाद जारी बयान में कहा गया है कि इबोला को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैलने से रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है. गौरतलब है कि गिनी, लाइबेरिया, नाइजीरिया और सिएरा लियोन में इस वायरस के संक्रमण से 932 लोगों की मौत हो गई है.लाइबेरिया में तो इसके चलते आपातकाल का ऐलान भी हो चुका है. वहां से लोगों द्वारा इबोला से ग्रस्त अपने परिजनों को सड़कों पर छोड़ देने की खबरें भी आ रही हैं. उधर, सऊदी अरब ने घोषणा की है कि वह पश्चिम अफ़्रीका के तीन देशों- लाइबेरिया, गिनी और सिएरा लियोन के लोगों को हज के लिए वीज़ा नहीं देगा जहां इबोला की समस्या बहुत गंभीर है.
क्या है इबोला
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इबोला एक तरह की वायरल बीमारी है. इसके मरीजों में अचानक बुख़ार, कमजोरी, मांसपेशियों में दर्द और गले में ख़राश जैसे लक्षण होते हैं. हालांकि ये बीमारी की शुरुआत भर होते हैं. बीमारी के अगले चरण में मरीज को उल्टी, डायरिया और कुछ मामलों में अंदरूनी और बाहरी रक्तस्राव होता है. इंसानों में यह वायरस संक्रमित जानवरों जैसे चिंपैंजी, चमगादड़ और हिरण आदि के साथ संपर्क के जरिये आता है. इंसानों में इसका संक्रमण संक्रमित खून या किसी द्रव या फिर अंगों के माध्यम से होता है. इबोला के शिकार व्यक्ति का अंतिम संस्कार भी खतरे से खाली नहीं होता और संक्रमित व्यक्ति का शव छूने वाला भी इसकी चपेट में आ सकता है. पर्याप्त सतर्कता न बरतने पर डॉक्टरों के भी इससे संक्रमित होने का भारी ख़तरा रहता है. संक्रमण के अपने चरम पर पहुंचने में दो दिन से लेकर तीन सप्ताह तक का वक़्त लग सकता है. इबोला संक्रमण की पहचान और इलाज, दोनों अभी तक मुश्किल बने हुए हैं.
डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी दिशा निर्देशों के मुताबिक इससे पीड़ित रोगियों के साथ सीधे संपर्क से बचना चाहिए. इसका इलाज करने वालों को दस्ताने और मास्क पहनने चाहिए और समय-समय पर हाथ धोते रहना चाहिए.