मैं उस दिन भीगता-भागता स्कूल पहुंचा था. सो सारा दिन गीले-सीले कपड़े में ही पढ़ाना पड़ा. मार्च की इस बेमौसम बरसात ने फसल का ही नहीं स्कूल की पढ़ाई का भी नुकसान कर दिया है. बच्चे भी पढ़ने की बजाए छुट्टी की घंटी का इंतजार ज्यादा करते नजर आ रहे थे. बरसात थम तो गई थी लेकिन अपने पीछे कीचड़ का सैलाब छोड़ गई. इस सैलाब में लोग जहां-तहां फंसे हुए थे. छुट्टी की घंटी बज चुकी थी लेकिन किसी की हिम्मत स्कूल से बाहर जाने की नहीं हो रही थी. बच्चे तो छुट्टी की खुशी में कीचड़ के सैलाब को पारकर घर जा चुके थे लेकिन हम भद्र अध्यापकों को समझ में यह नहीं आ रहा था कि कैसे इस सैलाब को पार करें?
हमारे हेडमास्टर साहब भी कुछ परेशान से नजर आ रहे थे. उनकी परेशानी की वजह खास नहीं थी. मामला इतना था कि उनसे मिलने उनके कोई अध्यापक मित्र आनेवाले थे और इस बेमौसम बरसात के कारण वह बीच रास्ते मे कहीं फंस गए थे. उनको परेशान देख मैंने उनसे पूछ लिया कहां फंस गए हैं आपके दोस्त कहें तो मैं उन्हें ले आता हूं. मेरे पास मोटरसाइकिल है. मेरी इस पेशकश पर उन्होंने फौरन हामी भर दी. मैंने पूछा कि कहां से लाना है तो उन्होंने बताया कि वो लोनी गोल चक्कर और मोहन नगर के बीच कहीं फंसे हुए हैं. मैं तुम्हें उनका फोन नंबर दे देता हूं, उनसे बात कर लो और उन्हें यहां ले आओ. अब मैं फंसा हुआ महसूस कर रहा था. सो उनके मित्र महोदय से बातकर उन्हें लेने चल पड़ा. कीचड़ के सैलाब से बचते-बचाते अभी कुछ दूर ही गया था कि मेरी नजर पेड़ के नीचे, लिफ्ट मांगते एक बुजुर्ग पर पड़ी. इन्हें देख मुझे याद आया कि ये अक्सर यहीं खड़े होकर लिफ्ट मांगते दिखाई देते हैं. मैंने पहले भी इन्हें एक-दो बार लिफ्ट दी थी. मुझे लगा कि मौसम और रास्ते खराब हैं, सो ऐसे में ये बाबा कैसे जाएंगे. मैंने उनके आगे गाड़ी रोक दी और बोला आओ बाबा मेरे पीछे बैठ जाओ, मैं आपको छोड़ देता हूं. बाबा ने भी शायद मुझे पहचान लिया और वह मेरे पीछे बैठ गए. आज उन्हें लोनी गोल चक्कर तक जाना था. खैर, बाबा ने बैठते ही बातचीत शुरू कर दी.
बाबा- बेटा, लगता है तूने पहले भी मुझे गाड़ी में बिठाया है.
मैंने जवाब दिया-हां बाबा.
इस पर बाबा ने जवाब दिया बेटा बाभन हूं, मांगना तो धर्म में भी लिखा है.
मैंने कहा बाबा किस जमाने की बात करते हो अब पुरानी बातों मेंे क्या रखा है?
बाबा ताड़ गए और उन्होंने बात बदल दी. उन्होंने पूछा बेटा घर में कौन-कौन है, कुछ जमीन जायदाद है कि नहीं? रंग तो बड़ा गोरा है तेरा, कौन जात हो?
बाबा ने एक साथ बहुत सारे सवाल दाग दिए थे. अब मुझे समझ नहीं आया कि इन सवालों के पीछे उनका मंतव्य क्या है? खैर मैंने उनसे कहा बाबा मेरे घर में मां-पिता, पत्नी-बच्चे, भाई हैं. और थोड़ी साझे की जमीन भी है.
बाबा को संतोष नहीं हुआ और उन्होंने फिर पूछा कि भाई जात कौन-सी है?
मैंने जवाब दिया बाबा मैं जातपात मैं भरोसा नहीं करता. बाबा साहब आंबेडकर की विचारधारा को मानता हूं.
मेरा इतना कहना था कि बाबा थोड़ा भन्नाते हुए बोले क्या चमार हो ?
मैंने थोड़ा सख्ती से कहा हां बाबा मैं चमार हूं. यह सुनते ही बाबा का हिलना ढुलना शुरू हो गया. वह राम-राम रटने लगे. मैंने मैं पूछा बाबा क्या बैठने में कोई तकलीफ हो रही है? उन्हाेंने फौरन जवाब दिया हां, भईया हमको उतार दो. सीट में कुछ चुभ रहा है. मैंने पूछा, ‘क्या चुभ रहा है ?’ उन्होंने कहा बस यहीं उतार दे हमें, आगे नहीं जाना है. मैंने कहा अभी तो गोल चक्कर दूर है तो उनका जवाब आया बस यहीं उतार दो हमें यही जाना है. तुम हमें गलत दिशा में ले जा रहे हो. मुझे समझ नहीं आया कि एकाएक उन्हें क्या परेशानी हो गई है. खैर मैंने गाड़ी रोकी और उन्हें उतार दिया. उतारते हुए मैंने पूछा क्या बाबा मेरे चमार होने से दिक्कत हो गई. वह बोले भई जब सब जान गए हो तो पूछते क्यों हो?
इस घटना की टीस मेरे मन में बहुत गहरे उतर चुकी थी. मैंने यहां तक सोचा लिया था कि अब सवर्ण पर भरोसा नहीं करूंगा. लेकिन एकाएक मुझे बाबा साहब अांबेडकर की कही बात याद आ गई कि हमारी लड़ाई ब्राह्मणवाद से है , सवर्णों या सिर्फ ब्राह्मणों से नहीं.
लेखक पेशे से अध्यापक हैं और उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में रहते हैं