कैबिनेट ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम में संशोधनों को मंजूरी प्रदान कर दी जहां 16 से 18 साल आयु वर्ग के किशोर अपराधियों पर भारतीय दंड संहिता के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है, अगर वे जघन्य अपराधों के आरोपी हैं. इस विधेयक को सरकार इसी सत्र में संसद में लाने की तैयारी में है. सरकार ने यह फैसला देश में बढ़ते बाल अपराध को मद्देनजर रखते हुए किया है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2002 में देश-भर में 484 नाबालिग, महिलाओं के खिलाफ अपराध में शामिल थे, वहीं 2011 में यह संख्या बढ़कर 1149 हो गई.
वर्तमान कानून में गंभीर अपराध करने वाले नाबालिग को किशोर न्याय बोर्ड के तहत महज तीन साल के लिए बाल सुधार गृह भेज दिया जाता है. निर्भया दुष्कर्म मामले के बाद यह बहस छिड़ी कि गंभीर अपराध करनेवाले नाबालिग को सिर्फ तीन साल में कैसे रिहा किया जा सकता है. निर्भया मामले में सबसे ज्यादा हैवानियत करनेवाला आरोपी भी नाबालिग है. इस विधेयक के पास होते ही नाबालिग अपराधियों पर वयस्क की तरह ही सामान्य अदालत में भारतीय दंड संहिता के तहत मुकदमा चलाया जा सकेगा. सरकार के इस फैसले का महिला संगठनों ने स्वागत किया है वहीं बाल अधिकार के लिए काम करनेवाली संस्थानों ने इसका विरोध किया है.
गुरुवार को केंद्र सरकार ने बाल न्याय अधिनियम संशोधन विधेयक को लोकसभा में पास करा लिया. महिला व बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने लोकसभा में विधेयक पेश करते हुए कहा, ‘इस कानून में न्याय और बाल अधिकार में तालमेल बैठाने की पूरी कोशिश की गई है. विपक्ष की आपत्ति के बाद केंद्र ने इस विधेयक के अनुच्छेद 7 को हटा दिया है.’ अब किशोरों से हुए अपराधों की प्रकृति (जघन्यता) के आधार पर उन्हें कठोर सजा दी जा सकेगी.