बीसवीं सदी की शुरुआत में बोर्ड पर खेले जाने वाले लूडोनुमा खेल ‘मोनोपोली’ ने, जिसे भारत में ‘व्यापार’ नाम से जाना गया, बाजार में दस्तक दी थी. इसे भूमि स्वामित्व और सामंतवाद की बुराईयों को उजागर करने के लिए तैयार किया गया था. बाद में पार्कर बंधुओं की ओर से इसमें किए गए बदलावों के बाद ये खेल मुक्त व्यापार, पूंजीवाद और व्यवसायीकरण के चारों ओर ही घूमने लगा. बोर्ड पर घूमते हुए खिलाड़ी संपत्ति की खरीद-फरोख्त करते हैं, घर और होटल बनाते हैं, अपने ‘शहरों’ पर किराया वसूलते हैं और अपनी विरासत बनाने का प्रयास करते हैं. इसके साथ ही विजेता अपने प्रतिद्वंद्वी को दिवालिया करने की कोशिश में भी लगा रहता है.
अंबानी बंधु यानी बड़े भाई मुकेश और छोटे भाई अनिल की कार्यप्रणाली को देखें तो पता चलता है कि उनके दिमाग में भी कुछ ऐसी ही रणनीति चल रही है. वे देश के सबसे बड़े मीडिया समूह का निर्माण करना चाहते हैं. साथ ही अमेरिका, यूरोप, दक्षिण और पूर्वी एशिया, अफ्रीका और पश्चिम एशिया तक भी अपने पंख फैलाना चाहते हैं. अगर ये दोनों बेगाने भाई हाथ मिला लेते हैं- जैसा इन्होंने पिछले कुछ अवसरों पर किया है- तो वे अगले न्यूज कॉर्प, सीबीएस कॉरपोरेशन, टाइम वार्नर, बर्टेल्समैन एजी, वाल्ट डिज्नी, विवेंडी या सोनी की तरह एक बड़ा नाम बनकर उभर सकते हैं.
अगर उनकी योजनाएं सफल होती हैं तो उनके मीडिया साम्राज्य का विस्तार प्रिंट से लेकर ब्रॉडकास्ट और डिजिटल तक सभी क्षेत्रों में हो जाएगा. वे केबल, डायरेक्ट टू होम (डीटीएच), ऑप्टिक-फाइबर नेटवर्क (जमीन और समुद्र के भीतर भी), टेलीकॉम टावर और मल्टीप्लेक्स जैसी वितरण श्रृंखला के भी मालिक होंगे. डिजिटल और टेलीकॉम (2जी, 3जी और ब्रॉडबैंड) समेत वे विभिन्न मंचों पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराएंगे. इनके कंटेंट (विषय वस्तु) में समाचार, मनोरंजन, ई-कॉमर्स, सुरक्षा, वित्तीय सेवाएं, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और प्रशासन आदि शामिल होंगे.
अंबानी बंधु यानी मुकेश और छोटे भाई अनिल की कार्यप्रणाली को देखें तो पता चलता है कि वे देश के सबसे बड़े मीडिया समूह का निर्माण करना चाहते हैं
अगर ऐसा होता है तो न्यूज कॉर्प के मालिक रूपर्ट मर्डोक की तरह, अंबानी बंधु भी सूचना के क्षेत्र में दुनिया के सबसे बड़े निर्माता, अधिग्रहणकर्ता और प्रसारक में से एक हो सकते हैं. गौरतलब है कि मर्डोक ‘वाल स्ट्रीट जर्नल’ और ‘द टाइम्स’ (यूके) समेत 150 प्रिंट पब्लिकेशन, कई केबल और सेटेलाइट चैनलों और पब्लिशिंग हाउस के मालिक हैं. वे डीटीएच वितरण के क्षेत्र में भी हैं साथ ही डिजिटल प्लेटफार्म पर भी मौजूद हैं. वे फिल्म और टीवी सीरियल में भी पैसा लगाते हैं. उनके पास म्यूजिक गैलरी के अधिकार हैं. साथ ही प्रमुख खेल आयोजनों जैसे नेशनल फुटबाल लीग (यूएस) के टेलीविजन प्रसारण अधिकार हैं. इन सब के साथ ही वे सभी महाद्वीपों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं.
कंटेंट के बादशाह
नेटवर्क 18 और ईटीवी समूह का अधिग्रहण करने के बाद मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) अंग्रेजी, हिंदी, तेलुगू, उर्दू, बंगाली और गुजराती जैसी विभिन्न भाषाओं में कई चैनलों द्वारा रोज-ब-रोज प्रसारित होने वाले ढेर सारे कंटेंट तक पहुंच बना ही चुका है. ये कंटेंट प्राथमिक रूप से समाचार (मुख्यधारा और व्यापार) और मनोरंजन (फिल्म, संगीत, धारावाहिक और खेल) का मेल हैं. 2011 में आरआईएल ने स्कूली शिक्षा और डिजिटल लर्निंग पर केंद्रित डिजिटल प्लेटफार्म ‘एक्स्ट्रामार्क्स एजुकेशन’ को भी अधिग्रहित किया था.
अनिल ने ‘टीवी टुडे’ और ‘ब्लूमबर्ग टीवी’ के शेयर खरीदने के साथ ‘बीबीसी’ और ‘रेडियो नीदरलैंड्स’ जैसे अंतरराष्ट्रीय समाचार चैनलों से करार भी किया है
आरआईएल ने बार-बार सार्वजानिक रूप से कहा है कि उसका उद्देश्य ‘शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सुरक्षा, वित्तीय सेवा, मनोरंजन और सरकार-नागरिक इंटरफेस जैसे प्रमुख क्षेत्रों’ में अपनी मौजूदगी दर्ज कराना है. इरादा ये है कि उपभोक्ता आसानी से, डिजिटली उपलब्ध ‘नए कंटेंट’ तक पहुंचे, जिससे देश में एक नए डिजिटल युग की शुरुआत हो सके. मुकेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘डिजिटल इंडिया’ में अपना योगदान देकर, उसे विस्तार देना चाहते हैं.
छोटे भाई अनिल ने भी कंटेंट पर पकड़ कायम करने में खासी तरक्की की है. शुरुआत उन्होंने ‘टीवी टुडे’ और ‘ब्लूमबर्ग टीवी’ जैसे समाचार चैनलों के कम पर पर्याप्त शेयर खरीदने से की थी. मगर बाद में उन्होंने ‘बीबीसी’ और ‘रेडियो नीदरलैंड्स’ जैसे अंतरराष्ट्रीय समाचार सामग्री निर्माताओं से करार किया. उनका ‘आर वर्ल्ड’ नियमित रूप से दिनभर अंतरराष्ट्रीय खबरें देता है. हालांकि पिछले कुछ वर्षों से अनिल ने अपना ध्यान संगीत, फिल्म, खेल और मनोरंजन से जुड़ी दूसरी सामग्रियों की ओर केंद्रित किया है.
यूनिवर्सल म्यूजिक के साथ किए गए एक करार के अनुसार अनिल की कंपनी से जुड़े उपभोक्ता तीन लाख गानों में से अपनी पसंद चुन सकते हैं. उन्होंने कुछ प्रमुख फिल्म प्रोडक्शन हाउस, जिनके मालिक स्टीवन स्पीलबर्ग, जूलिया रॉबर्ट्स, ब्रैड पिट, निकोलस केज, जिम कैरी और टॉम हैंक्स जैसे फिल्मी सितारें हैं, के साथ भी एग्रीमेंट किए हैं. 2008 में अनिल ने स्पीलबर्ग के प्रोडक्शन हॉउस ‘ड्रीम वर्क्स’ के साथ 1.5 बिलियन डॉलर (तकरीबन 96 अरब 3 करोड़ 75 लाख रुपये) का व्यावसायिक गठबंधन किया था, जिसके तहत आने वाले पांच सालों में 30-35 फिल्में बनाने का लक्ष्य रखा गया लेकिन कुछ ही फिल्में बनाई जा सकीं.
इसके साथ ही ‘वार्नर होम वीडियो’ और ‘पैरामाउंट पिक्चर्स’ जैसी दुनिया की बड़ी कंपनियों से किए गए करार भी अनिल की फिल्म और म्यूजिक कंपनियों के कारोबार में इजाफा करेंगे. वार्नर के साथ हुए करार के तहत वे भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश में उनकी वीसीडी, सीडी और ब्लू-रे उत्पादों की बिक्री और वितरण कर सकते हैं. इस समूह के एक वरिष्ठ प्रबंधक के अनुसार, ‘यह विशेष लाइसेंस… न केवल इन दोनों पक्षों के लिए बल्कि फिल्म प्रेमियों के लिए भी फायदेमंद होगा.’ इन सबके साथ अनिल फिल्म रेस्टोरेशन (संग्रहण) के भी एक प्रोजेक्ट से जुड़े हुए हैं.
हालांकि अब तक अनिल के कुछ प्रयास ज्यादा सफल नहीं हुए, पर वे अब भी कंप्यूटर गेमिंग (जपाक डॉट कॉम, जंप गेम और इंडिया गेम्स का गठजोड़), सोशल नेटवर्क्स (अपने उपभोक्ताओं को फेसबुक, ट्विटर और लिंक्ड-इन के उपयोग की सुविधा देना) टीवी पर इंटरनेट, माइक्रोसॉफ्ट विंडो और क्लाउड कंप्यूटिंग के रूप में अप्रत्यक्ष सामग्री को लेकर बहुत ज्यादा उत्साही हैं. आने वाले समय में वे इन सभी सुविधाओं को डीटीएच, डिजिटल और मोबाइल क्षेत्र में भी लाना चाहते हैं.
बराबर के वितरक
टेलीविजन वितरण में अनिल अपने बड़े भाई से पहले ही शुरुआत कर चुके है. वे डीटीएच के सबसे बड़े कारोबारियों में से एक हैं. हाल ही में उन्होंने पुरानी कंपनी रिलायंस के साथ जुड़े चोटी के चार केबल मल्टी-सिस्टम-ऑपरेटर में से प्रमुख ‘डीजी केबल’ का भी अपनी डीटीएच कंपनी में विलय किया है. अब समूह की सभी टेलीविजन वितरण सेवाएं चाहे वो डीटीएच हो, केबल हो या इंटरनेट प्रोटोकॉल टीवी, इस नई व्यापारिक इकाई के साथ ही काम करेंगी. दो साल पहले ऐसी खबरें आई थीं कि अनिल अपने डीटीएच व्यवसाय को चेन्नई के सन ग्रुप को बेच सकते हैं, लेकिन ये सौदा हुआ नहीं. उनके पास देश-भर में सैकड़ों सिनेमाघर हैं, हालांकि उन्होंने मल्टीप्लेक्स कारोबार को बेच दिया है. देश-भर में उनकी कंपनी के लगभग 50 एफएम स्टेशन चलते हैं, एक रेडियो स्टेशन सिंगापुर में भी है जिसे 2008 में शुरू किया गया था.
इस दौड़ में बड़े भाई मुकेश भी पीछे नहीं हैं. हाल ही में उन्होंने पूरे देश में कारोबार करने के लिए एक केबल एमएसओ (मल्टीपल सिस्टम ऑपरेटर) लाइसेंस के लिए आवेदन किया है. विशेषज्ञों की मानें तो मुकेश की रिलायंस जिओ इंफोकॉम (आरजेआई) को मिलाकर कुल 150 आवेदकों को डिजिटल केबल वितरण की इजाजत मिल सकती है. ऐसी अफवाहें भी सुनी गईं है कि आरजेआई देश के सबसे बड़े चार या पांच केबल एमएसओ में से एक के 26 प्रतिशत शेयर की हिस्सेदारी चाहती है. वैसे भारत में समीर मनचंदा की सबसे बड़ी केबल डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी ‘डेन नेटवर्क्स’ में उनकी एक प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी है.
करार-दर-करार
मीडिया की सत्ता पाने के इस खेल में, दोनों भाइयों के लिए डिजिटल मोबाइल कंवर्जेंस सबसे फायदेमंद सौदा होगा. मुकेश के पास पूरे देश में 4जी (ब्रॉडबैंड) सेवा मुहैया कराने का लाइसेंस है. वो देश के 5000 शहरों और कस्बों यानी 90 प्रतिशत शहरी भारत और लगभग 2.15 लाख गांवों में 4जी सेवा देने के लिए 70,000 करोड़ रुपये का विशाल निवेश करने की योजना बना रहे हैं. एक तरह से देखा जाए तो यह मोदी के ‘डिजिटल इंडिया’ का निजीकृत स्वरूप होगा. 4जी और केबल के साथ, आरजेआई वायरलेस, वायरलाइन और केबल के जरिये कंटेंट का वितरण कर सकती है.
जिन बड़ी वैश्विक परियोजनाओं में मुकेश ने निवेश किया है उनमें से एक ‘बे ऑफ बंगाल गेटवे’ (बीबीजी) परियोजना है. समुद्र के अंदर स्थापित 8000 किलोमीटर लंबी यह केबल व्यवस्था परियोजना मलेशिया और सिंगापुर को भारत (मुंबई और चेन्नई) और श्रीलंका के रास्ते पश्चिमी एशिया से जोड़ेगी. आरआईएल की एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, ‘बीबीजी निर्माण की योजना न सिर्फ दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य पूर्व के बीच संपर्क बनाएगी, बल्कि भारत, मिडिल ईस्ट और सुदूर पूर्व एशिया में बने हुए और नए बन रहे इंटर-कनेक्शन के जरिए यूरोप, अफ्रीका और सुदूर पूर्व एशिया को जोड़ेगी.’
अगर उनकी 4जी और ब्रॉडबैंड रणनीति चल पड़ती है तो वायरलाइन (ऑप्टिक फाइबर, पानी के भीतर व जमीनी केबल व्यवस्था) और वायरलेस (टेलीकॉम टावर) के रूप में आधारभूत संरचनाएं बनाना बहुत श्रमसाध्य काम होगा, इसलिए आरजेआई ने बीबीजी के अलावा टेलीकॉम कंपनी भारती एयरटेल के साथ भी एक समझौता किया है. ‘इंडीफिजीबल राइट टू यूज’ (तोड़ा न जा सकने वाला करार) समझौते के तहत भारती, आरजेआई को समुद्र के भीतर स्थापित अपनी आई2आई सबमरीन केबल पर डाटा क्षमता उपलब्ध कराएगा. गौरतलब है कि भारती एयरटेल की ये केबल भारत और सिंगापुर को जोड़ती है, जिसके लैंडिंग बिंदु भारत में चेन्नई और सिंगापुर में टुअस में हैं.
न्यूज कॉर्प के मालिक रूपर्ट मर्डोक की तरह, अंबानी बंधु भी सूचना के क्षेत्र में दुनिया के सबसे बड़े निर्माता, अधिग्रहणकर्ता और प्रसारक में से एक हो सकते हैं
घरेलू स्तर पर, मुकेश अपने छोटे भाई से ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क के उपयोग के लिए अनुबंध कर चुके हैं. अप्रैल 2013 में मुकेश ने अपनी 4जी सेवाओं को शुरू करने के लिए अनिल के 1.2 लाख किलोमीटर लंबे इंटरसिटी ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क के इस्तेमाल करने के लिए 1200 करोड़ रुपये का भुगतान किया था. एक साल बाद, आरजेआई ने 5 लाख किलोमीटर लंबे इंटरसिटी फाइबर नेटवर्क के इस्तेमाल के लिए इसी तरह के एक अन्य समझौते पर दस्तखत किए. इसी तरह वायरलेस सेवाओं के प्रयोग के लिए, अनिल की कंपनी के जमीनी और छत पर लगे टेलीकॉम टावरों का इस्तेमाल करने के लिए मुकेश अपने छोटे भाई को 1200 करोड़ रुपये देने पर राजी हुए. इसी तरह के कई समझौते उन्होंने कुछ अन्य घरेलू कंपनियों के साथ भी किए, जिनके पास बड़ी संख्या में टेलीकॉम टावर हैं.
जैसा कि पहले बताया गया कि अनिल ऑप्टिक फाइबर और टेलीकॉम टावरों के नेटवर्क के मालिक हैं. 2जी और 3जी मोबाइल सेवाओं में सफल प्रवेश के बाद उन्होंने अपने बड़े भाई की तरह 4जी और ब्रॉडबैंड सेवाओं पर अपनी नजरें गड़ाई हुई हैं. इसके अतिरिक्त वे फ्लैग (फाइबर-ऑप्टिक केबल अराउंड द ग्लोब) के रूप में काम करने वाले समुद्र के भीतर केबल लिंक के भी मालिक हैं. साथ ही वे चीन से भारत होते हुए पूर्वी एशिया को जोड़ने वाले जमीनी केबल कनेक्शन के निर्माण संबंधी समझौते पर भी हस्ताक्षर कर चुके हैं. उनका एक नया प्रोजेक्ट ‘मेट्रो ईथरनेट’ है, जो सिनेमाघरों में डिजिटल फिल्म को दिखाने की सुविधा उपलब्ध कराता है.
रणनीतिक साझेदारी
एक हालिया रिपोर्ट की मानें तो मुकेश ने सन समूह को खरीदने की कोशिश की है, सन समूह का ताना-बाना प्रिंट, प्रसारण, डिजिटल और रेडियो से लेकर केबल और डीटीएच वितरण तक फैला हुआ है. हालांकि आरआईएल और सन दोनों ही इस बात का खंडन कर चुके हैं- पर आरआईएल के एक प्रबंधक ने अनौपचारिक रूप से ‘तहलका’ को बताया कि सन के साथ कोई बात नहीं हुई है- हालांकि दोनों रणनीतिक साझेदारी कर सकते हैं. यह साझेदारी शेयर खरीदने से संबंधित भी हो सकती है जहां आरआईएल सन के कुछ शेयर खरीद सकती है या फिर सामग्री तथा वितरण में हिस्सेदारी ले सकती है.
एक वेबसाइट (www.newslaundry.com) में प्रकाशित एक हालिया लेख में यह दावा किया गया है कि आरआईएल संभवतः एक अन्य बड़े प्रसारक समूह एनडीटीवी के साथ भी एक डील साइन कर चुकी है, ये बिलकुल वैसी ही डील है जैसी आरआईएल ने नेटवर्क 18 समूह को आधिकारिक रूप से टेकओवर करने से पहले उनके साथ की थी. आरआईएल की एक पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी ने शिनानो रिटेल (जो कि आरआईएल समूह का ही हिस्सा है) को 403.85 करोड़ रुपये दिए, जहां से ये पैसा विश्वप्रधान कॉमर्शियल नाम की एक और कंपनी तक पहुंचा. जब यह सौदा हुआ तब शिनानो रिटेल और विश्वप्रधान कॉमर्शियल का पता एक ही था. इसी वर्ष एनडीटीवी समूह की मुख्य संस्थापक कंपनी राधिका रॉय प्रणय रॉय प्राइवेट लिमिटेड को ठीक इतनी ही धनराशि 403.85 करोड़ रुपये अनसिक्योर्ड लोन (बिना किसी सिक्योरिटी के ऋण) के रूप में प्राप्त हुई थी. हालांकि कंपनी की बैलेंसशीट में इसके स्रोत का कोई उल्लेख नहीं था लेकिन आयकर विभाग का दावा है कि यह पैसा उसे विश्वप्रधान कॉमर्शियल से मिला. ये घटनाक्रम बिलकुल वैसा ही था जैसा आरआईएल ने नेटवर्क 18 के मामले में किया था. उस मामले में ऋण की राशि को बाद में इक्विटी और औपचारिक मालिकाना हक में बदल दिया गया.
एकाधिकार काे लेकर बेकरार
केबल टीवी, डिजिटल और टेलीकॉम और ऐसे ही कई कंटेंट और प्रचार-प्रसार के अन्य माध्यमों के स्वामित्व की जिस कोशिश में अंबानी बंधु लगे हुए हैं, वैसी स्थिति दुनिया में कहीं भी मौजूद नहीं है. ज्यादातर विकसित देशों में
क्रॉस मीडिया ओनरशिप पर प्रतिबंध है, यहां तक की मीडिया के बड़े खिलाड़ी भी इस तरह की संपूर्ण और विशाल उपस्थिति दर्ज करने की उम्मीद नहीं कर सकते. हालांकि मुकेश और अनिल को ये एहसास है कि भविष्य में
उन्हें तेज कदम बढ़ाने होंगे.
पिछले कुछ वर्षों में, भारत में आलोचकों और नियामकों ने क्रॉस मीडिया ओनरशिप को प्रतिबंधित करने के लिए काफी शोर मचाया गया है, जिससे मीडिया में एकाधिकारों और अल्पाधिकारों को रोका जा सके. उनमें से कुछ का तर्क ये भी है कि ऐसा हो ही चुका है. हाल ही में टेलीकॉम नियामक इस मुद्दे पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कर चुके हैं. हालांकि सरकार ने इन्हें खारिज कर दिया है, पर उन पर बढ़ता दबाव शायद मीडिया नीतियों में बदलाव ला सकता है.
वर्तमान में ऐसे कई व्यवसायी हैं जिनके पास मुकेश और अनिल के बराबर ही मीडिया संगठन हैं या उतने ही संसाधन हैं. लेकिन अंबानी बंधुओं समेत ये सब इस बात को जानते हैं कि इससे पहले कि क्रॉस-मीडिया ओनरशिप पर प्रतिबंध लगे, उन्हें अपने मीडिया साम्राज्य को एक मुकाम तक पहुंचा देना होगा. इस तरह के हालात में सरकार के लिए पूर्वव्यापी प्रतिबंध लगाना मुश्किल होगा और वो भविष्य के लिए ही सोचेगी. मीडिया के इस बोर्ड गेम में जो भी, जितनी जल्दी मोनोपोली (एकाधिकार) कायम कर लेगा, वही असली विजेता होगा.