यह घटना 1985 की है. तब मेरी तैनाती उत्तराखंड में चमोली जिले के अगस्त्यमुनि विकास खंड में थी. क्षेत्र में एक विभागीय बैठक के बाद मैं शाम के लगभग छह बजे रुद्रप्रयाग पहुंचा. इस कस्बे से अगस्त्यमुनि लगभग 20 किमी दूर है. शाम हो चुकी थी इसलिए बस मिलने का तो प्रश्न ही नहीं था, लेकिन उस दिन आमतौर पर चलने वाली कोई एंबेसडर कार भी नहीं दिख रही थी. पहाड़ों में सर्दियों में सात बजे लगभग अंधेरा हो जाता है इसलिए थोड़े इंतजार के बाद मैंने सोचा कि रात यहीं गुजारी जाए.
तभी सामने से मेरे एक पूर्व विभागीय मित्र बंशीलाल आते दिख गए, उनका घर भी अगस्त्यमुनि से कुछ पहले एक गांव में था. मैंने उन्हें कोई गाड़ी न होने की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि एक ड्राइवर उनका परिचित है जो हम दोनों को छोड़ देगा. बंशीलाल ने एक दुकान से फोन करके उसे बुलाया. वह आ गया और हम कार में बैठकर चल दिए. थोड़ी ही दूर जाकर ड्राइवर ने तेल भरवाने के लिए एक पेट्रोल पंप पर कार लगा दी. वहीं हमने देखा कि पंप से कुछ दूर एक इंस्पेक्टर सहित चार-पांच पुलिस वाले वाहनों की चेकिंग कर रहे थे. हमारे ड्राइवर ने तेल भरवाकर गाड़ी आगे बढ़ाई तो सामने खड़े पुलिसवाले ने हाथ देकर उसे रोक दिया और कहा कि वह गाड़ी के कागज इंस्पेक्टर से चेक करवाए.
लभगग 20 मिनट बाद ड्राइवर बड़बड़ाता हुआ लौटा. उसके हाव-भाव से लग रहा था कि वह परेशान है. हम पांच मील आगे आ गए थे लेकिन वह अपने आप से बड़बड़ाए जा रहा था, अचानक उसने जेब से एक कागज निकाला तथा उसे पीछे बंशीलाल की तरफ बढ़ाते हुए बोला, ‘देखो तो साहब इन लोगों ने मुझे किस बात पर टांगा है.’
वह चालान पेपर था जिसमें लिखा था कि उसकी गाड़ी में ओवरलोडिंग (सात सवारी) है जबकि हम केवल दो व्यक्ति ही थे. ‘फिर पुलिसवालों ने कैसे चालान कर दिया,’ हम दोनों एकसाथ बोले, ‘अरे भाई तुमने बताया नहीं कि गाड़ी में सात सवारी कहां हैं? सिर्फ दो जन बैठे हैं?’
ड्राइवर ने पुलिसवालों को एक भद्दी गाली दी और बोला, ‘साहब अगर इनकी मुट्ठी गर्म करो तो सब ठीक है नहीं तो सब गलत है’
ड्राइवर ने पुलिस वाले को एक भद्दी गाली दी और बोला, ‘अरे साहब अगर इनकी मुट्ठी गर्म कर दो तो सब ठीक है, नहीं तो सब गलत है.’ बंशीलाल बोले, ‘गाड़ी मोड़ो और वापस चलो.’ ड्राइवर ने कहा, ‘कुछ नहीं होगा सर, उल्टे आपको बेइज्जत होना पड़ेगा.’ बंशीलाल मानने को तैयार नहीं थे. बोले, ‘होने दो, वापस लौटो.’
मैं भी इन सब लफड़ों में नहीं पड़ना चाहता था, इसलिए मैंने भी कहा, ‘वहां जाकर कुछ नहीं होगा, उल्टा हमको भी कुछ सुनना पड़ेगा.’ लेकिन बंशीलाल नहीं माने. नतीजतन थोड़ी ही देर में हम वापस रुद्रप्रयाग में थे. बंशीलाल चालान पेपर हाथ में लेकर सीधे इंस्पेक्टर के पास गए और जाते ही बिना किसी प्रस्तावना के बोले, ‘अभी कुछ देर पहले यह चालान आपने किया है, किस वजह से? ओवरलोडिंग के कारण जबकि गाड़ी में केवल दो व्यक्ति थे, आपने ऐसा क्यों किया?’
इसंपेक्टर पुलिसिया अंदाज में बोला, ‘अरे तू है कौन जो इस ड्राइवर का वकील बनकर मुझे सिखा रहा है. हमें क्या करना है और क्या नहीं यह अब तुझसे पूछना पड़ेगा.’ बंशीलाल ने जवाब दिया, ‘मैं केवल एक पैसेंजर हूं. इस गाड़ी में केवल हम दो लोग बैठे थे.’ इंस्पेक्टर फिर गुर्राया, ‘अच्छा तुम केवल दो पैसेंजर थे.’ इसके बाद वह एक पुलिसवाले से बोला, ‘इनको ले चल थाने, गाड़ी होगी सीज और इन तीनों को वहीं बैठा, इनको नेतागिरी का शौक लगा है.’
मुझे काटो तो खून नहीं, ड्राइवर अलग परेशान. लेकिन बंशीलाल अविचल थे. वे बोले, ‘पहले तो तमीज से बात करो, फिर चलो जहां चलना है, लेकिन थाने जाने से पहले मैं आपके एसपी से जरूर बात करना चाहूंगा.’ यह कहने के साथ ही वे पेट्रोल पम्प कार्यालय के अंदर गए और वहां रखा फोन घुमाने लगे.
इंस्पेक्टर पल भर में ही जमीन पर आ गया. वह मुझसे बोला, ‘इन भाई साहब को समझाइए. इतना गुस्सा ठीक नहीं.’ फिर ड्राइवर से बोला, ‘ला इधर कागज.’ ड्राइवर ने वह चालान इंस्पेक्टर को पकड़ाया और इंस्पेक्टर ने उसके कई टुकड़े कर हवा में उछालते हुए ड्राइवर की तरफ देखते हुए कहा, ‘ले खुश! जा तू भी मजे कर.’
मैं पेट्रोल पम्प कार्यालय में गया तो देखा बार-बार नंबर डायल कर रहे बंशीलाल लाइन व्यस्त होने के कारण बुरी तरह झुंझला रहेे हैं. मैं लगभग धकियाते हुए उन्हें बाहर लाया. उनके चेहरे पर गुस्से, झुंझलाहट और प्रतिरोध के वही भाव पूर्ववत तैर रहे थे.
रात लगभग 10 बजे मैं अपने कमरे पर पहुंचा. लेकिन एक नई सीख के साथ कि अन्याय चाहे खुद के साथ हुआ हो या किसी और के साथ, उसका प्रतिरोध अत्यंत दृढ़ता के साथ किया जाना चाहिए.
–लेखक सेवानिवृत्त जिला समाज कल्याण अधिकारी हैं और देहरादून में रहते हैं.