‘लड़कियों के साथ बदतमीजी करने वाला आज बिहार का प्रतिष्ठित नेता है’

RRRRRRबात तब की है जब पटना साइंस कॉलेज से इंटरमीडिएट पास कर ताजा-ताजा निकला था और पास ही स्थित बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (आज का एनआईटी) पटना में एडमिशन लिया था. दोनों संस्थानों के बीच फासला महज चंद कदमों का ही था मगर वातावरण में जमीन-आसमान का फर्क था. ‘भावुक पढ़ाकू लड़कों’ से हम रातोंरात ‘भावी इंजीनियर’ में तब्दील हो चुके थे. अब हमारे पास करने के लिए सब कुछ था सिवाय पढ़ाई के. वहां प्रवेश लेते ही सीनियर छात्रों द्वारा जातिवाद की कुनैनी घुट्टी पिलाई जाती थी. खाने-पीने से लेकर रहना-सहना, हॉस्टल में रूममेट चुनने से लेकर दोस्ती करना, सब कुछ जातिवाद से संचालित होता था. किसी न किसी ग्रुप से जुड़कर रहना हर छात्र की मजबूरी थी. मजे की बात यह थी कि आपकी रैगिंग करने का अधिकार भी आपके ही ‘ग्रुप’ के सीनियर्स के पास था, किसी और की क्या मजाल जो आपको छू भी सके.

एकतरफा इश्क करने से तो कोई किसी को कभी रोक नहीं सका, मगर उस जमाने में  गर्लफ्रेंड भी बड़ा सोच-समझकर बनानी पड़ती थी. अपनी सीमाओं से बाहर की गई अनाधिकार चेष्टा प्रायः मारपीट पर खत्म होती थीं और दिल की कई दास्तानें दिल में ही दफन हो जाती थीं. चाहे-अनचाहे हमें भी फर्स्ट ईयर में एक जातिवादी ग्रुप से जुड़कर रहना पड़ा था. हमारा ग्रुप लीडर जबरदस्त महत्वाकांक्षी था. नेता बनने के सभी गुण उसमें कूट-कूट कर भरे हुए थे, मगर लड़कियों के सामने दाल नहीं गलती थी उसकी. लड़कों ने तो अपने लीडर को सिर-आंखों पर बैठा रखा था, पर लड़कियों की नजरों में उसे उपेक्षा ही दिखती. ज्यादा उपेक्षा प्रायः लोगों को सैडिस्ट (जिसे दूसरे को पीड़ा पहुंचा कर खुशी मिले) बना देती है. शायद यही हमारे लीडर के साथ भी हुआ.

एक रोज लीडर महाशय अपने दो खास गुर्गों के साथ क्लास शुरू होने से थोड़ा पहले ही क्लास में पहुंच गए और लड़कियों की बेंच पर चुपके से खुजली वाले पाउडर का छिड़काव कर दिया. हममें से अधिकांश ग्रुपवालों को यह बात पसंद नहीं आई लेकिन कायरता ने हमारी जुबान पर ताला जड़ रखा था. बेचारी लड़कियों की जो दशा हुई, उसका यहां जिक्र करना उन पर फिर से प्रताड़ना करने जैसा होगा. हालांकि सत्रह-अठारह वर्ष के हमारे बहुत सारे साथियों का उस दिन नेताओं के दोमुंहे चरित्र से साबका पड़ा. ओढ़ी हुई सहानुभूति, मदद का घिनौना प्रयास और जीत की खुशी से लीडर का चेहरा दमक रहा था, साथ-साथ वह अज्ञात अपराधियों को डांटने का दिखावा भी कर रहा था.

एक रोज लीडर महाशय ने लड़कियों की बेंच पर खुजली वाला पाउडर छिड़क दिया और हमारी कायरता के चलते हम चुप रहे

तब तक शायद हमारी क्लास के ही किसी बंदे ने खबर फैला दी और फाइनल ईयर के एक दबंग सीनियर वहां आ गए. असलियत उन्हें मालूम थी, सो उन्होंने दोषियों को खूब खरी-खोटी सुनाई और चेतावनी दी कि ऐसी घटना दोबारा नहीं होनी चाहिए. लीडर को खून का घूंट पीकर माफी मांगनी पड़ी. इसे बदकिस्मती ही कहिए वे सीनियर महोदय जातिवादी नजरिये के हिसाब से प्रतिद्वंद्वी ग्रुप के थे. फिर क्या था! हमारे समूह के लीडर में जोश आ गया कि इस बेइज्जती का ऐसा बदला लेना है कि पूरा कॉलेज याद रखे. दबंग सीनियर की पिटाई का प्रोग्राम बन गया. किसी गुप्त क्रांतिकारी मिशन की तरह योजना बनी. खास-खास लोगों को उनकी भूमिका समझा दी गई. आखिर वह दिन आ गया जब सीनियर महोदय इलेक्ट्रिकल लैब में अकेले पाए गए. हमारे लीडर ने पहले तो उनका कॉलर पकड़ा, फिर जी-भरकर गालियां दीं. उस समय हमारे लीडर के हाथ में पिस्तौल भी थी. तब तक खासमखास गुर्गों ने अपने हाथ साफ करने शुरू कर दिए. हम दस-बारह थे, पिटनेवाला अकेला. किसी ने बेल्ट चलाई, किसी ने लोहे की चेन से मारा, एक ने तो वहां पड़ी ट्यूबलाइट की रॉड उनके सर पर फोड़ डाली. देखते ही देखते वे लहूलुहान हो गए.

मैंने ऐसा दृश्य सिर्फ फिल्मों में देखा था. उनकी पिटाई देख मेरी हिम्मत जवाब देने लगी. चक्कर खा कर गिर न जाऊं, सोचकर धीरे-धीरे मैं उस घेरे से बाहर निकलने लगा. मगर तब तक मेरे लीडर की निगाह मुझ पर पड़ गई. आंखें लाल कर वह चिल्लाया, ‘यह कायरता दिखाने का समय नहीं है राकेश! पीटो इसे.’ मेरे चेहरे की दुविधा पढ़ने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई. वह फिर गुर्राया, ‘या तो तुम इसकी पिटाई करो या हम लोग तुम्हें पीटेंगे.’

मरता क्या न करता! मैंने एक बार छह फुट के उस घायल सीनियर को देखा, एक बार अपनी पिद्दी सी काया को. फिर एक निर्मम घूंसा मैंने भी उस निरीह के पेट में जमा ही दिया. मेरे उस घूंसे से उस भले-मानुष को कितनी चोट पहुंची, वह तो मुझे नहीं पता, मगर उस घूंसे की चोट अपनी अंतरात्मा पर मैं आज भी महसूस करता हूं. कॉलेज छोड़ने के बाद फिर कभी उन सीनियर से मुलाकात नहीं हुई और माफी मांगने का सपना अधूरा ही रह गया. और हां! ये बता देना भी मैं अपना पुनीत कर्तव्य समझता हूं कि काॅलेज के हमारे लीडर महाशय आज बिहार के प्रतिष्ठित नेताओं में से एक हैं और भूतपूर्व मंत्री भी रह चुके हैं.

( लेखक कोल इंडिया लिमिटेड में मुख्य प्रबंधक हैं)