…जमाना है पीछे

जिस उम्र में बच्चों की अपनी अलग दुनिया होती है, जहां वे अपने ही सपनों के साथ जीते हैं, अपनी मासूम चाहतों के लिए जिद करते हैं, मांग पूरी न होने पर रूठते हैं, जिस उम्र में उन्हें क्लास टीचर द्वारा दिए गए होमवर्क को पूरा करने की चिंता सताती है, उस उम्र में कोई बच्ची केवल अपनी ही नहीं, हम सबकी दुनिया के बारे में न केवल गंभीरतापूर्वक सोचती है. और सिर्फ सोचती ही नहीं, उसको बचाने-संवारने के लिए ठोस प्रयास भी करती है. लखनऊ की युगरत्ना श्रीवास्तव ने 2009 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ, देश के तत्कालीन विदेश मंत्री एसएम कृष्णा, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून सहित विश्व के तमाम दिग्गज नेताओं को संबोधित किया था. वे दुनिया के 30 करोड़ बच्चों का प्रतिनिधित्व कर रही थीं और तब उनकी उम्र महज 13 साल थी. इस लिहाज से वे संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करने वाली विश्व की सबसे कम उम्र की वक्ता हैं. बोलते वक्त क्या वह नर्वस थीं, पूछने पर युगरत्ना बताती हैं कि हां, थोड़ी बहुत. वहां बोलने से पहले एक गिलास ठंडा पानी पिया था, बर्फ डालकर. वे कहती हैं, ‘जब आप को लगता है कि आप जो कर रहे हैं वह सही है तो घबराहट अपने आप दूर हो जाती है.’ 

‘मैं तो चाहती हूं कि शादी में सात की जगह नौ फेरे हों अकंल!’, इसका कारण पूछने पर युगरत्ना कहती हैं, ‘सात फेरे तो पहले के मुताबिक मगर बाद के दो फेरों  में एक कन्या भ्रूण हत्या न करने का वादा, और अपने जन्मदिन या शादी की वर्षगांठ के अवसर पर एक पेड़ लगाने का वादा.’ 16 साल की युगरत्ना जब 12 की थीं तो वे यूएनईपी (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम) से जुड़ गई थीं. 2008 से लेकर 2010 तक उन्होंने यूएनईपी के जूनियर बोर्ड में एशिया पैसिफिक प्रतिनिधि के तौर पर काम किया. यह उपलब्धि हासिल करने वाली वे पहली भारतीय थीं. 2009 में उन्होंने यूएनईपी की छात्र प्रतिनिधि बनकर नैरोबी में एक स्लोगन लांच किया. यह था ‘डिपॉजिट ग्रीन गोल्ड टू इनरिच ऑक्सी बैंक्स’ यानी हरा सोना जमा करो ताकि ऑक्सीजन बैंक समृद्ध हो.

पर्यावरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के चलते युगरत्ना को करीब-करीब हर साल विदेश यात्रा पर जाना पड़ा है. वे नॉर्वे, नैरोबी, उत्तरी कोरिया, अमेरिका, इंडोनेशिया, जापान सहित लगभग आठ देशों में पौधारोपण के साथ जलवायु परिवर्तन पर भाषण दे चुकी हैं. इतनी यात्रा, व्यस्तता के कारण पढ़ाई पर असर नहीं पड़ता, यह पूछने पर युगरत्ना आंखें बड़ी कर कहती हैं, ‘नहीं, मैं शुरू से ही पढ़ने में टॉप रही हूं. हाईस्कूल में भी मैंने अपने स्कूल में टॉप किया है.’ युगरत्ना ने साइंस और इंग्लिश ओलम्पियाड में उच्च श्रेणी प्राप्त की है. अपनी कामयाबी का श्रेय वे अपने मम्मी-पापा को देती हैं. खास तौर से अपनी मां को. 

लखनऊ में रहने वाली 16 साल की युगरत्ना श्रीवास्तव जलवायु परिवर्तन पर होने वाले संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन को संबोधित कर चुकी हैं

युगरत्ना की तमाम उपलब्धियों के साथ उन्हें मिले ईनामों की फेहरिस्त बहुत लंबी है. उनके पास विभिन्न संस्थाओं से मिले इतने पुरस्कार हैं कि उन्हें रखने के लिए एक आलमारी कम पड़ गई है. उनकी मां डा.रोशनी श्रीवास्तव बताती हैं कि बहुत सारे तो एक बक्से में बंद रखे हुए हैं.  बेटी के बारे में पूछने पर वे कहती हैं, ‘संतान हो तो युगरत्ना जैसी.’ नन्ही-सी उम्र में उसने उस काम का बीड़ा उठाया है जिसके बारे में हम बड़े तक सपने में भी सोचते नहीं. ‘यदि अभी नहीं तो कब! यदि हम में से कोई नहीं तो कौन!’, युगरत्ना तपाक से कहती हैं. छोटी सी उम्र में पर्यावरण के लिए प्यार कैसे पनप गया! पूछने पर वे बताती हैं, ‘पापा डॉ आलोक कुमार श्रीवास्तव बॉटनी के लेक्चरर हैं, उनको सुनकर-देखकर पेड़-पौधों के प्रति बचपन से लगाव रहा.’ वे आगे कहती हैं, ‘ऐसा नहीं है यंग जेनरेशन बस ईमेल, फेसबुक तक सीमित रह कर रह गई हो, वह नेचर को लेकर बहुत ही अवेयर है. यंग जनरेशन ही कुछ चेंज कर सकती है.’ युगरत्ना कहती हैं कि नेचर की रक्षा के लिए जागरूकता और प्रकृति प्रेमी रवैय्ये के साथ सभी देशों के नेताओं का सपोर्ट बहुत जरूरी है. अब इसमें सभी देशों के नेता कहां से आ गए! ‘क्योंकि पर्यावरण से जुड़ी समस्या राजनीतिक और भौगोलिक सीमा नहीं देखती है सर’ वे तपाक से बोलती हैं. 

ऐसा नहीं है कि युगरत्ना के सरोकार केवल पर्यावरण तक सीमित हैं. वे लड़कियों के लिए भी कुछ करना चाहती हैं. इसकी झलक हम नौ फेरों वाली बात में देख ही चुके हैं. अल्बर्ट आइंस्टीन और बराक ओबामा से प्रभावित, पर्यावरण के लिए कार्यरत एक राष्ट्रीय एनजीओ की गुडविल एंबेसडर है वह. वर्तमान में युगरत्ना ‘प्लांट फॉर द प्लैनेट’ के यूथ ग्लोबल बोर्ड के बिलियन ट्री कैम्पेन की वाइस प्रेसीडेंट हैं. ‘यंग एचीवर’, ‘ग्रीन गर्ल’, ‘अवध सम्मान’, ‘नेशन यूथ आइकान’ और न जाने कितने खिताबों से नवाजी गई युगरत्ना आजकल अपनी बोर्ड की परीक्षा पर ध्यान दे रही है. 

कभी एक अंग्रेजी अखबार ने उनका विवरण एक ऐसी लड़की के तौर पर दिया था जिसने यूएन का वातावरण बदल दिया. इतनी मीडिया हाइप मिलने के बाद उसे कैसा लगता है. यह पूछने पर युगरत्ना बहुत सहज भाव से कहती हैं, ‘अच्छा तो लगता है, मगर मेरे पांव जमीन पर ही रहते हैं क्योंकि हमें जीवन देने वाले पेड़ जमीन पर ही उगते हैं.’ पर्यावरण के प्रति समर्पित इस नन्हीं पहरुआ की आवाज क्या हम सयानों तक कभी पहुंचेगी? फिलहाल वह जुटी हुई है. अपने साथ हमारी भी दुनिया बचाने में. 

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