कभी एशिया का सबसे लंबा पुल कहलाने वाला महात्मा गांधी सेतु आज जर्जर हालत में है. इसकी बदहाली बिहार के 13 जिलों के लाखों लोगों को भी बेहाल कर रही है. लेकिन इस मुद्दे पर न राज्य गंभीर दिखता है और न ही केंद्र. इर्शादुल हक की रिपोर्ट
1982 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पटना और हाजीपुर को जोड़ने वाला 5.57 किलोमीटर लंबा महात्मा गांधी सेतु राष्ट्र को सौंपा था तो बिहार के बच्चे सामान्य ज्ञान की किताबों से यह याद करते हुए खुद को गौरवान्वित महसूस करते थे कि एशिया का सबसे बड़ा पुल उनके ही प्रदेश में है. इन 29 वर्षों में दुनिया काफी बदल चुकी है. एक ओर जहां चीन में 36 किलोमीटर लंबा समुद्री पुल (हैंगजोउ खाड़ी से शंघाई के बीच) बन चुका है वहीं खुद भारत में भी 11.6 किलोमीटर लंबा (हैदराबाद शहर से हैदराबाद हवाई अड्डे को जोड़ने वाला) पीवी एक्सप्रेस वे बन चुका है.
लेकिन महात्मा गांधी सेतु के लिए असल संकट यह नहीं कि उसका पहला स्थान छिन गया है, बल्कि यह तो बेमौत मरते जाने की अपनी ही पीड़ा से परेशान है. राजधानी पटना को उत्तर बिहार से जोड़ने वाले इस पुल की खस्ताहाली का असर 13 जिलों के लाखों लोगों पर पड़ रहा है.
एक तरफ भयावह जाम, दूसरी ओर क्षमता से अधिक बोझ के कारण इस पुल के भविष्य पर भी खतरा मंडरा रहा है
महात्मा गांधी सेतु देश के उन कुछेक पुलों में से एक है जो सिंगल ज्वाइंट कैंटिलिवर प्रिस्ट्रेस तकनीक से बना है. इसमें हिंज बेयरिंग और बॉक्स ग्रिडर का इस्तेमाल किया गया है. इसके हिंज बियरिंग वाहनों के आवगमन के दौरान कंपन करते हैं. इससे पुल का ऊपरी हिस्सा भी साधारण परिस्थितियों में डेढ़ से दो इंच तक कंपन करता है जो इस तकनीक से बने पुलों की विशेषता में शुमार है. विशेषज्ञों का कहना है कि इससे पुल या इसके पायों में दरार की गुंजाइश नहीं होती. लेकिन निर्माण के मात्र 20 साल बाद 2002 में न सिर्फ यह पुल क्षतिग्रस्त हो गया बल्कि इसके सुपर स्ट्रक्चर में भी दरार की शिकायतें आ चुकी हैं. जबकि इस पुल की अनुमानित आयु 100 वर्ष थी. भारत में इस तकनीक से गोवा की मांडोवी नदी पर बना एक अन्य पुल भी है जो अपने निर्माण के मात्र 16 वर्षों में क्षतिग्रस्त हो गया. इसी तकनीक से गोआ में ही जुआरी और बोरिम नदियों पर बने पुल भी क्षतिग्रस्त हो चुके हैं और इन पुलों पर बड़े वाहनों के आवगमन पर रोक लगाई जा चुकी है. हालांकि 1980 के दशक में सिंगल ज्वाइंट कैंटिलिवर प्रिस्ट्रेस तकनीक सबसे आधुनिक समझी जाती थीे, लेकिन इस तकनीक की विफलता ने विशेषज्ञों को भी चौंका दिया है. इस संबंध में देवनारायण प्रसाद कहते हैं, ‘इस पुल का प्रिस्ट्रेस खत्म हो गया है, जिसके कारण इसके 44 हिंज बियरिंग टूट गए हैं. उसका परिणाम यह है कि पुल के पश्चिमी ट्रैक के कुछ हिस्से धंस गए हैं.’ वे अपनी बात जारी रखते हैं, ‘हम यह कोशिश कर रहे हैं कि इसे फिर से उपयोग के लायक बनाया जा सके. इसके लिए हमने इसके छतिग्रस्त 44 में से 37 हिंज बियरिंग बदल दिए हैं.’ यह पूछने पर कि 11 साल बाद भी मरम्मत का काम पूरा क्यों नहीं हो सका है, वे कहते हैं, ‘इस पुल पर ट्रैफिक का दबाव इतना है कि एक तरफ इसकी मरम्मत होती है तो दूसरी तरफ दूसरे हिंज बियरिंग टूट जाते हैं.’
वैसे तो बिहार की जीवनरेखा माना जाने वाला यह महासेतु पिछले एक दशक से क्षतिग्रस्त है पर अब इसकी दुर्दशा इतनी बढ़ चुकी है कि तमाम कोशिशों के बावजूद इस पुल पर आए दिन हजारों गाड़ियां चींटी की तरह रेंगने को विवश हैं. चार लेन वाले इस पुल में दो ट्रैक हैं और इसके पश्चिमी ट्रैक का कुछ ह