कलमाड़ी की दाढ़ी में…

लगभग छह फीट लंबे और 66 साल के सुरेश  कलमाड़ी का फलसफा है कि आदमी की जिंदगी में छोटी-मोटी चीजों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. वे कहते हैं, ‘छोटे आयोजनों के लिए मेरे पास न वक्त है और न ही उनमें मेरी दिलचस्पी, सिर्फ विशाल और विराट चीजें ही मेरा ध्यान खींचती हैं.’

आयोजन में अनियमितताओं के पीछे कलमाड़ी और उनके ‘वफादारों’ की एक पूरी टीम हैलेकिन आज एक विराट आयोजन ही उनके गले की फांस बन गया है. 16 साल से भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) का यह निर्विवाद बादशाह राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में अब तक हुए 28,000 करोड़ रुपए के खर्च के तरीकों को लेकर विवादों के घेरे में है.

हालांकि कलमाड़ी को नहीं लगता कि कोई  उनका कुछ बिगाड़ सकता है. सूत्रों के अनुसार अपने करीबियों के साथ हाल ही में हुई एक बैठक में उनका कहना था, ‘चिंता की कोई बात नहीं है. हम जनता को सब-कुछ समझा देंगे.’ कलमाड़ी का मानना है कि एक बार खेलों का आयोजन सफलतापूर्वक हो गया तो सारी देरियां, अक्षमताएं और वित्तीय गड़बड़झाले भुला दिए जाएंगे.

कहते हैं कि 80 के दशक में राजीव गांधी और अरुण सिंह से नजदीकियों के चलते कलमाड़ी के करिअर को तेज रफ्तार मिली. इसके बाद तो उन्होंने खेल प्रशासन के क्षेत्र में अपना साम्राज्य खड़ा कर डाला. विवाद के बाद भी वे कहीं से विचलित नहीं दिखते. कुछ दिनों पहले जेडी(यू) नेता शरद यादव ने उन्हें मोटी चमड़ी तक कह डाला था. इससे लगता है कि आज भी उनके संरक्षकों की कमी नहीं. हाल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा भी था कि जब तक उन्हें मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी का भरोसा हासिल है, वे इस्तीफा नहीं देंगे.

पुणे के रहने वाले कलमाड़ी यहां से सांसद भी हैं. फर्ग्यूसन कॉलेज से स्नातक करने के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी, खड़कवासला में उन्होंने एयरफोर्स पायलट की ट्रेनिंग ली और 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में लड़ाक विमान भी उड़ाए. 1977 तक वे युवा कांग्रेस में पहुंच चुके थे. पांच साल बाद ही वे शरद पवार की मदद से राज्यसभा पहुंच गए. तीन बार लोकसभा चुनाव जीत चुके कलमाड़ी ने पुणे को कभी नजरअंदाज नहीं किया. उन्हीं की वजह से हर साल पुणे फेस्टिवल और महंगे अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में से एक पुणे मैराथन करवाया जाता है.

कलमाड़ी की अकूत निजी संपत्ति का राज है ‘साई मोटर्स’ : देश में मारुति की सबसे बड़ी डीलरशिप चेन. उनके पास पुणे में बजाज के कई टू-व्हीलर शो-रूम और पेट्रोल-पंप भी हैं. पुणे के रिहायशी इलाके में डॉ केतकर रोड पर बने भव्य बंगले में रहने वाले कलमाड़ी शहर के सबसे महंगे कमर्शियल कॉम्पलेक्स के मालिक भी हैं. समृद्धि के इतने संकेतों के बावजूद, 2009 के लोकसभा चुनाव में संपत्ति के नाम पर कलमाड़ी ने महज 10 करोड़ रु दिखाए थे.

केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने 29 जुलाई को जब राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में हुई धांधलियों का खुलासा किया था तो ऐसा नहीं लग रहा था कि आंच कलमाड़ी तक पहुंचेगी. लेकिन देखते ही देखते यह चिंगारी आग बन गई.  नतीजा यह हुआ कि खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कलमाड़ी के पर कतरने पड़े. 14 अगस्त को प्रधानमंत्री ने ओलंपिक समिति (ओसी) से आयोजन की जिम्मेदारी शहरी विकास मंत्री एस जयपाल रेड्डी की अध्यक्षता में बने एक मंत्रियों के समूह को दे दी. इतना ही नहीं, सचिवों की एक समिति को इस समूह से संबद्ध कर दिया गया और इस समिति को खेलों से जुड़ी तैयारियों की निगरानी और उसके मुताबिक फैसले लेने की छूट दी गई. प्रधानमंत्री को खेलों के आयोजन में लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों पर यह बयान भी देना पड़ा कि यदि कोई दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ सरकार कड़ी कार्रवाई करेगी. ताजा हालात में कलमाड़ी के पास कोई अधिकार नहीं है. अब खेल शुरू होने तक उन्हें हर दिन सचिवों की समिति को रोजाना के कामों की रिपोर्ट देनी होगी.

सालों से खेल प्रशासन से जुड़े कलमाड़ी और विवादों का नाता काफी पुराना है. भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान परगट सिंह ने उन्हें हाल ही में ‘खेल माफिया’ बताया था. हालांकि ऐसे ढेरों आरोपों के बावजूद कलमाड़ी को आईओए के अध्यक्ष पद से आज तक कोई हिला नहीं पाया. इसकी एक बहुत बड़ी वजह भारत में बने वे 35 खेल संघ हैं जिन्हें कलमाड़ी ने मान्यता दी है. आईओए के अध्यक्ष पद के चुनावों के दौरान ये संघ उनके साथ पूरी वफादारी निभाते हैं. सबसे ताज्जुब की बात यह है कि ये खेल संघ जिन खेलों के विकास के लिए बने हैं उनका नाम आपने शायद ही कभी सुना होगा. अट्या-पट्या (कर्नाटक में खेला जाने वाला एक खेल), बॉबस्लेड, बाईथालॉन, टग ऑफ वॉर, क्रोकेट, म्यूय थाई, रोल बॉल, सिपैक टाक्रॉ, टेनीकॉयट, ट्रेंपोलिन, थांग टा और साइकिल पोलो जैसे ये खेल ओलंपिक का हिस्सा भले न हों मगर कलमाड़ी ने इन्हें प्रोत्साहित करने वाली फेडरेशनों को मान्यता दे रखी है. हर फेडरेशन के पास तीन वोट भी होते हैं जिनका वे चुनाव में इस्तेमाल करती हैं. भारत में आने वाले दिनों में फॉर्मूला-1 ग्रांप्री रेस भी आयोजित किए जाने की योजना है, कलमाड़ी इससे भी जुड़े हैं. जेपीएसके नाम की एक फर्म ने भारत में फॉर्मूला-1 ग्रांप्री आयोजित करने के लिए इंग्लैंड की आयोजनकर्ता कंपनी के साथ 1,600 करोड़ रुपए का करार किया है. इस कंपनी में उनके बेटे सुमीर की हिस्सेदारी है.

राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में हो रही देरी की एक वजह कलमाड़ी यह भी बताते हैं कि वे 2008 में युवा ओलंपिक खेलों में व्यस्त थे. लेकिन इन्होंने ही इन खेलों को भारत में आयोजित करवाने पर जोर दिया था

विवादों से कलमाड़ी का राजनीतिक करिअर भी अछूता नहीं रहा है. 1998 के चुनावों में कांग्रेस ने पुणे से उन्हें टिकट नहीं दिया तो उन्होंने भाजपा-शिवसेना के समर्थन से चुनाव लड़ा. इन चुनावों में उन्हें शिवसेना का समर्थन मिलना काफी आश्चर्यजनक था क्योंकि बाल ठाकरे उन्हें खुलेआम रंगबदलू कहा करते थे. 2009 में भी जब भाजपा कलमाड़ी की उम्मीदवारी पर विचार कर रही थी तो ठाकरे ने ऐतराज जताते हुए  साफ कहा था कि पुणे की सीट भाजपा को दी गई है, यदि उस पर भाजपा उम्मीदवार की जगह कलमाड़ी चुनाव लड़ेंगे तो शिवसेना अपना उम्मीदवार उतारेगी.

आईओए द्वारा जनता की गाढ़ी कमाई उड़ाने का यह पहला मामला नहीं है. एशियन गेम्स, 2014 की मेजबानी के लिए बोली से संबंधित खर्चों के लिए आईओए को दो करोड़ रुपए मिले थे. भारत यह मेजबानी लेने में नाकाम रहा. इसके बाद आईओए के बेतुके और अवास्तविक से लगने वाले खर्चे प्रकाश में आए. 20 दिसंबर, 2006 को एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी विजक्राफ्ट के नाम से बनी एक रसीद तहलका के पास है जो 4.33 लाख की है. इसमें कलमाड़ी के घर पर आयोजित रात्रि-भोज का लेखा-जोखा है. दूसरा भोज आईओए के महासचिव रणधीर सिंह के घर पर आयोजित हुआ जिसका खर्च था 2 लाख रुपए. सवाल यह है कि आखिर किसी के निजी आवास पर हो रहे आयोजन के लिए एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी को ठेका देने का क्या मतलब है? इसके अलावा एशियन गेम्स 2014 की मेजबानी के लिए आखिरी बोली लगाने के लिए और 1.24 करोड़ रुपए खर्च हुए.

पिछली 17 अगस्त को ही रणधीर सिंह ने 2019 में होने वाले एशियन गेम्स के आयोजन के लिए सरकार से अपील की है जबकि खेल मंत्री एमएस गिल ने महीने की शुरुआत में ही साफ कर दिया था कि भारत इस बोली का हिस्सा नहीं बनेगा. ऐसा लगता है कि बोली लगाने का उतना संबंध इसे जीतने या हारने से नहीं है जो ऊपर दिए गए उदाहरण भी बताते हैं. जितनी बार बोली लगाई जाएगी, उसकी आड़ में पैसे के गोलमाल की संभावना भी बढ़ जाएगी. एक बड़ा सवाल यह भी पूछा जाना चाहिए कि सरकार  भारतीय ओलंपिक संघ की सभी आर्थिक जरूरतें पूरी करती है लेकिन यह तय क्यों नहीं करती कि यह संघ किसी न किसी के प्रति जवाबदेह हो.

नियंत्रक एवं लेखा महानिरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट बताती है कि राष्ट्रमंडल खेलों के लिए खरीदे गए 53 एयर कंडीशनरों में से 52 जस के तस रखे हैं. पिछले साल कलमाड़ी ने 6.24 लाख रुपए 1,000 तोहफों पर खर्च किए थे लेकिन इनमें से दिए गए सिर्फ 500. आईओए भवन की उन्होंने चार करोड़ रुपए में मरम्मत करवाई थी. लेकिन बाद में वे कहने लगे कि वहां पर्याप्त जगह नहीं है. इस आधार पर नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) से जगह किराए पर लेने का फैसला किया गया. मई, 2008 में एनडीएमसी को किराए के रुप में 9.2 करोड़ रुपए का अग्रिम भुगतान कर दिया गया जबकि जगह का इस्तेमाल होना शुरू हुआ अक्टूबर में. ऐसे और भी आरोप हैं. कैग की प्रारंभिक रिपोर्ट के मुताबिक कलमाड़ी ने खेलों के अंतर्राष्ट्रीय प्रसारण के लिए बतौर कंसल्टेंट फास्ट ट्रैक सेल्स का चयन सिर्फ इस आधार पर किया था कि उसकी पैरवी राष्ट्रमंडल खेल परिषद के अध्यक्ष माइक फैनेल और सीईओ माइक हूपर ने की थी. कहा जा रहा है कि फास्ट ट्रैक सेल्स की वजह से परियोजना को 24.6 करोड़ रुपए का घाटा होने की आशंका है.

तहलका की पड़ताल बताती है कि आयोजन में अनियमितताओं के पीछे कलमाड़ी और उनके ‘ वफादारों’ की एक पूरी टीम है. कलमाड़ी के इन करीबी लोगों में से ज्यादातर उनके गृहनगर पुणे के हैं. कलमाड़ी के खासमखास लोगों में सीडब्ल्यूजी के ज्वाइंट डायरेक्टर राजकुमार सचेती, असिस्टेंट डायरेक्टर जनरल संगीता वलेंका, ज्वाइंट डायरेक्टर जनरल वीके वर्मा, ज्वाइंट डायरेक्टर जनरल टीएस दरबारी और ट्रेजरर एम जयचंद्रन शामिल हैं. इनमें से दरबारी और जयचंद्रन को क्वींस बैटन रिले से जुड़े एएम फिल्म मामले में फंसने के बाद निलंबित कर दिया गया है. सचेती पहले दिल्ली के एक आम-से इलाके देवनगर में रहने वाले छोटे-मोटे एकाउंटेंट हुआ करते थे.आजकल उनके दिल्ली के पॉश इलाके ग्रीनपार्क में दो घर हैं. सचेती और उनके सहायक आरके कौशिक भी प्रवर्तन निदेशालय की जांच के दायरे में हैं.

कलमाड़ी और उनकी टीम के काम करने का एक निश्चित तरीका था. पहले एक विदेशी फर्म ढूंढ़ो, फिर नियमों को इस तरह तोड़-मरोड़ दो कि कोई भी घरेलू कंपनी मुकाबले में खड़ी न रह पाए. मसलन हर टेंडर में एक शर्त जरूर होती थी कि फर्म को किसी खेल आयोजन के साथ संबंधित काम करने का अनुभव हो. इसी आधार पर जेनरेटर बनाने वाली एक घरेलू कंपनी को अयोग्य ठहरा दिया जाता था क्योंकि उसने कभी किसी खेल आयोजन के लिए जेनरेटर सप्लाई नहीं किए होते थे. बाद में जेनरेटर लगाने का ठेका विदेशी कंपनी को दे दिया गया. इसी तरह फर्नीचर, ट्रेडमिल, टॉयलेट पेपर और सेनिटरी नैपकिन जैसी चीजों के लिए भी विदेशी फर्मों को बुलाया गया. कलमाड़ी ने एक बहुराष्ट्रीय कंपनी पिको और उसके भारतीय साझीदार दीपाली डिजाइंस एंड एक्जिबिट को जेनरेटर की आपूर्ति के लिए चुना है. इनके मार्फत मिलने वाले जेनरेटरों की कीमत भारत में बनने वाले जेनरेटरों से दस गुना ज्यादा है. दिलचस्प बात यह है कि हरेक विदेशी फर्म ने अपने-अपने ठेके भारतीय कंपनियों में बांट दिए हैं. सूत्र बताते हैं कि आखिर में आयोजन के लिए सभी वस्तुएं भारत से ही बाहर भेजी जाएंगी, फिर वहां से विदेशी कंपनियां उसे अपना माल बताकर दिल्ली भेज देंगी.

इस बीच सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह रही कि जब सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने फरवरी में स्टेडियमों में प्रसारण के लिए जरूरी उपकरण लगाने की निविदाएं जारी कीं (इनकी लागत 50 करोड़ रुपए थी) तो कलमाड़ी के कार्यालय से इस ठेके के लिए दीपाली टेंट हाउस की जोरदार पैरवी की गई. गौर करने वाली बात यह है कि दीपाली टेंट हाउस के मालिक, भाजपा नेता सुधांशु मित्तल के भतीजे हैं. कलमाड़ी के दबाव के बाद मंत्रालय ने दीपाली को बाकी दो कंपनियों के साथ शॉर्टलिस्ट कर लिया. हालांकि बाद में इन तीनों कंपनियों में से किसी को भी यह ठेका नहीं मिल पाया, पर कलमाड़ी ने तब भी इस कंपनी पर मेहरबान होते हुए उसे आईओए से 230 करोड़ रुपए का एक सौदा दिलवा ही दिया.

आयोजन से जुड़ा एक और घपला इसके प्रायोजकों की व्यवस्था करने वाली ऑस्ट्रेलिया की कंपनी स्मैम से जुड़ा है. 2008 में जब युवा ओलंपिक पुणे में हुए थे, तब इस कंपनी को प्रायोजकों से मिलने वाली कुल अनुमानित राशि तीन करोड़ डॉलर का 15 फीसदी हिस्सा दिया गया था. उस आयोजन के दौरान स्मैम ने सिर्फ एक प्रायोजक-कोकाकोला ढूंढ़ा था, फिर भी उसे सार्वजनिक कंपनियां जैसे बीएसएनएल और सेल से मिले पैसे में भी हिस्सेदारी दी गई थी. स्मैम को इस बार सीडब्ल्यूजी आयोजन के दौरान घरेलू कंपनियों के माध्यम से तकरीबन 23 फीसदी कमीशन मिलने की उम्मीद थी, लेकिन यह मसला सुर्खियों में आने के बाद कलमाड़ी ने कंपनी के साथ करार खत्म कर दिया.

राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में मुख्य साझीदार बनी भारतीय रेलवे और दूसरी सरकारी संस्थाएं  भी अब नाक-भौं सिकोड़ रही हैं. इस आयोजन की बोली जीतने के बाद जो आंकड़े इन साझीदारों को दिखाए गए थे वे अब काफी ऊपर जा चुके हैं. बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बारे में भी कपोल कल्पनाएं की गई थीं कि खेलों के आयोजन में वे बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगी, पर ऐसा होता हुआ नहीं दिख रहा. नतीजतन सरकारी संस्थाओं को बतौर प्रायोजक बजट से ज्यादा पैसा लगाना पड़ रहा है. इन्हीं सरकारी पैसों से राष्ट्रमंडल खेलों की साख थोड़ी-बहुत बची हुई है.

तथ्य बताते हैं कि किस तरह बड़े-बड़े दावों के बावजूद कलमाड़ी ने आयोजन को लेकर लापरवाही भरा रवैया अपनाया. राष्ट्रमंडल खेलों के लिए नई दिल्ली का चयन 2003 में ही हो गया था लेकिन कैग की रिपोर्ट बताती है कि आयोजन की रूपरेखा अगस्त, 2007 में बन पाई. मार्च, 2008 में जाकर प्रोजेक्ट और रिस्क मैनेजमेंट विशेषज्ञों की नियुक्ति की गई. नवंबर, 2008 में आयोजन की रूपरेखा को अंतिम रूप दिया गया. कुल मिलाकर पांच साल बर्बाद किए गए. जुलाई, 2009 तक आईओए इस बात पर विचार कर रही थी कि नेहरू स्टेडियम जैसे मुख्य खेल स्थलों को कैसे संवारा जाए. इसी लेट-लतीफी का नतीजा है कि इस समय तैयारी को लेकर आपाधापी का माहौल है.

राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में हो रही देरी की एक वजह कलमाड़ी यह भी बताते हैं कि वे 2008 में युवा ओलंपिक खेलों में व्यस्त थे. लेकिन इन्होंने ही इन खेलों को भारत में आयोजित करवाने पर जोर दिया था. ये जानते हुए कि इनकी कोई खास अहमियत नहीं है और राष्ट्रमंडल के 108 साल के इतिहास में ये बस तीन बार ही हुए हैं. दरअसल, पुणे में आयोजित ये खेल कलमाड़ी की चुनावी रणनीति का हिस्सा थे. इनमें पुणे को सजाने-संवारने में कुल 1,118 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. तहलका ने पुणे के उस बलेवड़ी स्टेडियम का दौरा किया जहां यह आयोजन हुआ था. यह फिलहाल 114 कांग्रेस कार्यकर्ताओं का घर बन चुका है. पुणे प्रशासन ने 500 करोड़ रुपए में बलेवड़ी स्टेडियम का निर्माण कराया था. कलमाड़ी ने इसकी मरम्मत के लिए ही 318 करोड़ रुपए खर्च करवा दिए. इसका ठेका उनके एक करीबी अजय शिर्के को मिला था. स्टेडियम के नजदीक एक होस्टल भी बनाया जा रहा था, लेकिन आयोजन तक यह तैयार नहीं हो पाया. अब यह चार-सितारा होटल बन चुका है जबकि ग्रीन बेल्ट में होने कारण इसका व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं हो सकता था. इसे विठल कामथ (जिनकी होटलों की श्रृंखला है) को 1.57 करोड़ रुपए की लीज पर दे दिया गया है जबकि इसका बाजार मूल्य 1,000 करोड़ रुपए है.

कलमाड़ी ने अपने लिए जो जगह चुनी है वह खेल का मैदान है. यहां जब किसी की जीत होती है तो इसका मतलब है किसी की हार. गलतियां करने वाले को मैदान से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है. फिलहाल प्रधानमंत्री, कलमाड़ी को रेडकार्ड दिखा चुके हैं यानी उन्हें चेतावनी मिल चुकी है कि वे इस ‘खेल’ के नियमों का ध्यान रखें वरना सीडब्ल्यूजी का आयोजन उनके खेल साम्राज्य की अंतिम घटना हो सकती है.

(पुणे से पुष्प शर्मा और नई दिल्ली से बृजेश पांडे और वैभव वत्स के योगदान के साथ)