'आत्मकथा लिखने के लिए किसी विभूति के कमेंट सुनने का साहस चाहिए'

आपकी पसंदीदा लेखन शैली क्या है?

उपन्यास. उपन्यासों में मुझे मैला आंचल, नटरंग, स्पार्टाकस, संस्कार, ओल्ड मैन एंड द सी, पद्मा नदीर मांझी और मछुआरे बहुत पसंद हैं. मछुआरे की शैली आकर्षित करती है.

अभी क्या पढ़ रही हैं?

अभी तो वह पढ़ रहे हैं जो विभूतिनारायण राय ने लिखा है. वैसे मैं इधर एक उपन्यास लिख रही हूं इसलिए बहुत पढ़ नहीं पा रही. लेकिन हाल में ’पतन’ और ’एक स्त्री के जीवन के 24 घंटे’ पढ़े.

वे रचनाएं या लेखक जो आपको बेहद पसंद हों.

सबसे अधिक पसंद हैं रेणु. उनकी कहानियां भी मैं बहुत रुचि से पढ़ती हूं. सीधी-सादी ग्रामीण परिवेश की बातें बांध लेती हैं. मशीनी परिवेश मुझे बांध नहीं पाता. साहित्य में रचनात्मकता जब मशीनी हो जाती है तो बांध नहीं पाती. आप मशीन की भी कहानी लिखें तो उसमें मानवीय संवेदना होनी चाहिए. नए लेखकों को मुझसे शिकायत है कि मैं उन्हें नहीं पढ़ती, लेकिन उनकी रचनाएं मुझे बांध नहीं पातीं. हां, नए लेखकों में अल्पना मिश्र को रुचि से पढ़ लेती हूं.

कोई जरूरी रचना जिसपर नजर नहीं गई हो?

प्रेमचंद का गोदान बहुत मशहूर हुआ, लेकिन रंगभूमि उससे अच्छा उपन्यास है. उसके पात्र अधिक प्रगतिशील हैं. हमें इसमें पात्रों को भी शामिल करना चाहिए जैसे मैला आंचल के जिन पात्रों पर कम ध्यान दिया गया, उनमें लक्ष्मी दासिन और कमली जैसी नारी पात्र हैं. लक्ष्मी दासिन को तो बिल्कुल स्वतंत्रता नहीं मिलती, जबकि उसने पूरे मठ की व्यवस्था बदल कर रख दी. इसी तरह कमली ने जाति व्यवस्था को बदल कर रख दिया. लेकिन इन पात्रों को नजरअंदाज किया गया. ये साहित्य की नाइंसाफियां हैं. चित्रलेखा की चित्रलेखा और त्यागपत्र की मृणाल को भी नजरअंदाज किया गया. भगवती चरण वर्मा लगातार कहते हैं चित्रलेखा वेश्या नहीं है लेकिन वे साथ ही प्रमाणित करते जाते हैं कि वह वेश्या थी. मृणाल ने भी खूब विद्रोह किया, लेकिन लेखक ने उसे बता दिया कि तुम विद्रोह करोगी तो कोठरी में सड़ कर मरोगी.

दलित लेखकों की आत्मकथाएं अधिक आई हैं, लेकिन महिला लेखकों की उतनी नहीं. क्या वजह है?

आत्मकथा लिखने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए और किसी विभूतिनारायण के कमेंट सुनने का साहस चाहिए. हमारे समाज में तो लड़कियों को सच बोलने से डराया जाता है, बचपन से ही. परिवार के बारे में सच, रिश्तों के बारे में सच. आत्मकथा वही लिख सकता है जो सच बोलने से न डरे. जैसे जब मेरी आत्मकथाएं आईं तो लोगों ने कहा कि राजेंद्र यादव से आपके संबंधों के बारे में इनमें कुछ भी नहीं है. लेकिन जब कोई संबंध था ही नहीं तो लोगों के जबरदस्ती रखवाने से थोड़े होगा. यह हमारी जिंदगी है- न आप इसमें जबरदस्ती संबंध रखवा सकते हैं न तुड़वा सकते हैं.

पढ़ने की परंपरा कायम रहे, इसके लिए क्या किया जाना चाहिए?

सबसे जरूरी चीज है कि पढ़ने की ललक बनी रहे. यही खत्म हो जाएगा तो आप अपनी रचनाएं कहीं भी प्रकाशित कर लीजिए कौन पढ़ेगा? जब आप सहज भाव से लिखते हैं और उसमें से लोगों की जिंदगी झांकती है- वे अपनी जीवन की उसमें कल्पना कर पाते हैं और आपका लेखन उन्हें कदम दर कदम बांधता चला जाता है तो लोग उसे पढ़ते हैं. पाठक तो रचना से ही बनते हैं, लेखक से नहीं. इसलिए लेखन को जिंदगी से और जुड़ना होगा.

रेयाज उल हक