बरसात की उलझन

ज़मीन पर आवाज़ गूंजी ‘ यार, ये बारिश क्यों होती है? उफ़्फ, बरसात इस शहर के लायक है ही नहीं….’ ये चुभती हुई आवाजें बरसात के कानों तक पहुंचीं. बरसात चौंकते हुए रुकी, थिरकन थामते हुए उसने नीचे देखा. दूर दूर तक गाड़ियां. ट्रैफिक जाम की वजह से हर तरफ लोग चिढ़े हुए थे. उसने तय किया कि ट्रैफिक से बात करके मामला सुलझाया जाए. उसने ट्रैफिक का दरवाज़ा खटखटाया.

‘डेवलपमेंट’ हंसी औऱ बरसात को दरवाजे के बाहर धक्का देते हुए बोली- ‘मेरे नाम पर क्या-क्या नहीं होता…. लेकिन दरअसल मैं वह हूं, जो होकर भी नहीं है….’

ट्रैफिक चौखट पर खड़ा नींद में बेसुध लग रहा था. बरसात चिढ़ कर बोली- ‘ एक बात बताओ,  तुम मेरे आने पर ठहर क्यों जाते हो? तुम्हारी वजह से कोई घर जल्दी नहीं पहुंचता और घर बैठी बीवी मेरे आने की ख़ुशी में पकौड़े नहीं तलती, बल्कि चिंता में खिड़की पर टंगी  रहती है.’ यह सुनकर ट्रैफिक अपनी बांहें फैलाता हुआ अंगडाई लेते हुए बोला- ‘देखो बरसात,  इसमें मेरी कोई गलती नहीं. मैं तो जहां मौका मिलता है, वहीं फ़ैल जाता हूं. सड़कें पतली हैं, हर जगह पानी है, गढ्ढा है तो ऐसे में मैं क्या करूं?’ बरसात ने फिर एक बार बादलों की टोह से नीचे देखा. पतली-पतली सड़कों पर दूर तक पानी भरा हुआ था. कई जगहों पर लोग कपड़ों को संभाले पानी में से गुज़र रहे थे. अब बरसात से रहा नहीं गया. काफी मशक्क़त के बाद उसने सड़क का घर ढूंढ़ निकाला.

बरसात अपनी मायूस आंखों के साथ सड़क के द्वारे जा पहुंची. सड़क आईने के सामने बैठी खुद को देख रही थी. यह देख बरसात को गुस्सा आया और वह अंदर आकर बोली- ‘अच्छा, तुम यहां खुद को निहार रही हो और मैं तुम्हारी वजह से कितना कुछ सह रही हूं. एक वक़्त था जब लोग मेरे आने की दुआएं मांगते थे. मगर तुमने सब बिगाड़ दिया. तुम मेरी छुअन बर्दाश्त नहीं कर पाती. मेरे आते ही तुम उधड़ने लगती हो, घुटने लगती हो.’ सड़क ने खामोशी से आईने की ओर इशारा किया और पूछा- ‘क्या तुम बूढ़े होने का दर्द समझती हो?’ बरसात ने कहा-नहीं. सडक उठ कर आईने के सामने से हट गई और अपना आंचल बरसात के हाथों से खींचा. बरसात ने गौर किया कि सड़क का आंचल जगह-जगह से फटा हुआ है. सड़क ने अपना आंचल फिर से ओढ़ लिया और बोली- ‘बरसात, मैं अब बूढ़ी हो चुकी हूं. कई साल से मुझपर खूब मेकअप किया जा रहा है. देखो, पानी लगने से मेकअप तो उतरता ही है. इसलिए मेरा रंग तुम्हारे आते ही बदल जाता है. लोग मुझसे डरने लगते है. मेरे चेहरे के गड्ढों को देख कर मज़ाक उड़ाते हैं. मुझे गुस्सा आ जाता है तो मैं भी अपने गड्ढों में पानी जमा होने देती हूं. अगर तुम्हें इतनी ही तकलीफ है तो जाकर  ‘ डेवलपमेंट’ से बात करो. उसी की वजह से मेरा ये हश्र हुआ है.’ बरसात जाने का इशारा समझकर बाहर आ गई. उसने सुना था कि ‘ डेवलपमेंट’ ऊंची इमारतों में रहती है.
 बहुत इंतजार करवाकर ‘डेवलपमेंट’ अपने आलीशान घर से बाहर आई. बेहद खूबसूरत चमकदार आंखें, चेहरे पर कशिश.

बरसात ने फिर अपना दुखड़ा रोना शुरू किया. डेवलपमेंट चुपचाप सुनती रही. जब बरसात रोते-रोते चुप हो गई तो ‘डेवलपमेंट’ ने बरसात का हाथ पकड़कर उसे इमारत के अंदर खींच लिया. अंदर पहुंचते ही बरसात खामोश हो गई. उसकी आंखें भौंचक्की-सी हो गईं. उसने देखा कि इमारत अंदर से खोखली है, जो बाहर से दिखता है वह अंदर से कुछ और है. ‘डेवलपमेंट’ हंसी औऱ बरसात को दरवाजे के बाहर धक्का देते हुए बोली- ‘मेरे नाम पर क्या-क्या नहीं होता…. लेकिन दरअसल मैं वह हूं, जो होकर भी नहीं है….’

बरसात डरकर बादलों में जा छिपी. उसने फिर कभी किसी से बात नहीं करने की कसम खा ली.

फौजिया रियाज