नटराज के नए भक्त

पैरों में घुंघरू बांधना किसी अभिजात्य शहरी पुरुष के लिए पहचान पाने का आम स्वीकार्य जरिया नहीं कहा जा सकता. फिर भी देश में युवाओं का एक छोटा-सा समूह इस मान्यता को धता बताते हुए अपने सपने पूरे करने में लगा है. इनके लिए पैरों में बंधे घुंघरू एक तरह से ज्यादा निरपेक्ष होने  और एक पुरानी परंपरा को फिर से जिंदा करने का जरिया है.

‘प्रायोजक नृत्य के लिए सुंदर लड़कियां चाहते हैं. लड़कों पर पार्टनर के साथ प्रदर्शन करने का दबाव डाला जाता है’प्रख्यात नृत्यांगना मल्लिका साराभाई के बेटे 25 वर्षीय रेवंत भी युवाओं के इसी समूह का हिस्सा हैं. दर्पण अकादमी (इसकी स्थापना मल्लिका की मां मृणालिनी ने की थी) में जन्मे रेवंत ने जब नृत्य सीखने का फैसला किया था तो उनके परिवार में किसी ने इस पर हैरानी नहीं जताई. हां, उनके स्कूल के दोस्तों को जरूर पहले-पहल यह कुछ अजीब बात लगी, लेकिन बाद में यह उनकी ‘ऑलराउंडर’ छवि में एक और आयाम जोड़ने वाली खूबी बन गई. भरतनाट्यम और कुचीपुड़ी में पारंगत रेवंत कहते हैं, ‘मैं जानता हूं कि मेरे नाम की वजह से मुझे गंभीरता से लिया जाता है. हमारे यहां कई प्रतिभावान डांसर हैं लेकिन उनके पास किसी समूह में बैकग्राउंड डांसर बनने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. खुद को साबित करने के लिए मुझे अभी और मेहनत करनी होगी लेकिन कम से कम मुझे भरोसा तो है कि मैं डांस से अपनी जिंदगी चला सकता हूं.’

ज्यादा अरसा नहीं हुआ जब भारतीय शास्त्रीय नृत्य परिदृश्य में पुरुष नर्तकों की प्रधानता थी. फिर धीरे-धीरे यह चलन बिलकुल पलट गया. लड़कों में शास्त्रीय नृत्य के प्रति घटते रुझान पर लेखक और नृत्य समालोचक आशीष खोकर मानते हैं कि उन्हें कोई प्रोत्साहित नहीं कर रहा है. वे कहते हैं, ‘प्रायोजक नृत्य के लिए सुंदर लड़कियां चाहते हैं. लड़कों पर पार्टनर के साथ प्रदर्शन करने का दबाव डाला जाता है.’ शास्त्रीय नृत्य में पुरुषों की घटती हिस्सेदारी के बीच एक तथ्य यह भी है कि भारत में श्यामक डावर और एशले लोबो की आधुनिक पश्चिमी नृत्यशैली औसत अभिजात्य तबके के बीच सहजता से स्वीकार की जाती है जबकि कथक और भरतनाट्यम के नर्तकों को यह तबका प्रतीकात्मक रूप से हेय दृष्टि से देखता है. इसी तरह के पूर्वाग्रह का सामना कथक के प्रख्यात नर्तक और गुरू बिरजू महाराज भी कर चुके हैं.  वे बताते हैं, ‘ मेरा एक लड़का डांस रियलिटी शो में भाग लेने गया था, वहां सरोज खान ने उससे कहा कि उसका कथक तो बहुत बढ़िया है लेकिन आगे बढ़ना है तो साल्सा, ब्रेक डांस, बॉलीवुड का डांस सीखना होगा… ‘ गुस्से में वे कहते हैं, ‘ उनकी हिम्मत कैसे हुई कि बंदरों की उछल-कूद की तुलना नृत्य से करें? ‘

पैरों को सीधा रखने वाली मुद्राओं वाला कथक इस मायने में दूसरे शास्त्रीय नृत्यों से काफी अलग है. छोटी लड़कियों के बीच बेहद लोकप्रिय इस नृत्य विधा में ज्यादातर गुरु होते हैं. कथक नृत्यांगना शोभना नारायण कहती हैं, ‘ पुराने जमाने में सामाजिक बाधाओं के कारण महिलाओं का घर से बाहर निकलना मुश्किल था, उन्होंने नृत्य सीखने के लिए लड़ाई लड़ी जबकि आज पुरुष शर्म की वजह से छिपे हुए हैं.’ वे आगे कहती हैं, ‘नृत्य महिला या पुरुष की पहचान से आगे की चीज है. जब महाराज (बिरजू) मंच पर एक महिला के चरित्र में होते हैं तब वे आप या मुझसे ज्यादा महिला होते हैं. लेकिन उस क्षण के बाद वे पुरुष के रूप में साक्षात शिव के समान हो जाते हैं.’ 

चौंतीस साल के  नीलोमोनी बोरा एक कथक नर्तक हैं. असमिया मूल के इस नर्तक ने लखनऊ में 11 साल तक कथक की शिक्षा ली है. उनके गुरु मुन्ना शुक्ला अब तक कई लड़कों को कथक सिखा चुके हैं. बोरा फिलहाल दिल्ली में नृत्य सिखाते हैं. वे खुद उन लोगों में से हैं जिन्हें नृत्य सीखने पर परिवार का विरोध झेलने के साथ-साथ ताने सुनने पड़े थे. परिवार के सदस्य उन्हें चेताते हुए कहते थे कि कोई भी महिला एक ‘नचनिया’ से शादी नहीं करेगी. कथक के आकर्षण ने बोरा को परिवार में ज्यादा दिन रहने नहीं दिया. वे घर से भाग गए. ‘ फिर  मैंने अपने गुरु को ढूंढ़ लिया.’ बोरा बताते हैं.

40 साल के डॉ शेषाद्री अयंगर भी उन्हीं लोगों में शामिल हैं जो अपने जुनून के लिए शर्म जैसी हर बाधा तोड़कर आगे निकल आए. डॉ अयंगर ने भरतनाट्यम सीखने के लिए होम्योपैथी की प्रैक्टिस छोड़ दी थी. वे कहते हैं, ‘ नटराज नृत्य करते हैं, शिव तांडव करते हैं, कृष्ण छह सिर वाले नाग के ऊपर नाचते हैं, ब्रह्मा के बारे में भी कहा जाता है कि वे नाचते थे तो फिर हमारे यहां किसी पुरुष के घुंघरू बांधने में क्या गलत है? ‘ भरतनाट्यम की नृत्यांगना यामिनी कृष्णमूर्ति इस बात से सहमत नहीं हैं. यामिनी कहती हैं, ‘ भरत मुनि के एक हजार पुत्र थे लेकिन वे उनकी नृत्य प्रतिभा से संतुष्ट नहीं थे. इसलिए उन्होंने अप्सराओं की रचना की जिसका आधार ही नृत्य था. हालांकि राक्षस, वीर और देवों का महत्व भी समान है.’ इसमें कोई शक नहीं कि शास्त्रीय नृत्य गिनती के युवा ही सीख रहे हैं लेकिन ये लोग अपने जुनून को एक मंजिल तक ले जाने के लिए कमर कसे हुए हैं.