क्या शाह पर लगे आरोपों से मोदी अछूते रह सकते हैं?

भारतीय राजनीति में गुजरात के जूनियर गृहमंत्री अमित शाह की गिरफ्तारी का अपना ही महत्व है. केवल इसलिए नहीं कि आजाद भारत के इतिहास में शायद वे पहले ऐसे मंत्री होंगे जिसे हत्या, वसूली, सबूतों को नष्ट करने और साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. बल्कि इसलिए भी कि वे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे खासुलखास लोगों में से हैं – उनके पास गुजरात सरकार के 10 मंत्रालयों की जिम्मेदारी है और जिस गृहमंत्रालय के वे राज्यमंत्री हैं उसके मुखिया खुद मोदी हैं. इसलिए बतौर गृहमंत्री उनपर जो इलजाम आज लग रहे हैं उनका ज़रा भी कीचड़ मोदी पर न पड़े ऐसा होना
असंभव ही है.

इस मामले से जुड़े तमाम आदेश सीधे गृह मंत्रालय से आए थे इसलिए इनके प्रति मोदी की जवाबदेही से कैसे इनकार किया जा सकता है? भाजपा सीबीआई को कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन और कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इंटिमिडेशन कह कर अमित शाह की गिरफ्तारी का जबर्दस्त विरोध कर रही है. जिस तरह की भूमिका क्वात्रोकी, मायावती और मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद आदि के मामले में सीबीआई की रही है उसे देखते हुए यह बात बिल्कुल गलत भी नहीं लगती. लेकिन सच यही है कि शाह की तमाम अपराधों में संलिप्तता के सबूतों वाला पलड़ा उनके निर्दोष होने की दलीलों वाले पलड़े से कहीं ज्यादा भारी है.
‘इसमें कोई शक नहीं कि शाह की गिरफ्तारी एक बड़ी चुनौती है लेकिन हम इससे कानूनी तौर पर निपटेंगे. आप इसे सबूत कैसे ठहरा सकते हैं’ एक वरिष्ठ भाजपा नेता कहते हैं, ‘स्टिंग ऑपरेशनों की भी अदालत में कोई अहमियत होती है?’

इन सवालों का जवाब देने के लिए संक्षेप में अब तक की कहानी जान लेते हैः 26 नवंबर, 2005 को वसूली करने वाले सोहराबुद्दीन को गुजरात पुलिस द्वारा मार गिराया गया. सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी के साथ बलात्कार किया गया और उसे बेहोशी की हालत में कुछ दिन रखने के बाद आग के हवाले कर दिया गया. सोहराबुद्दीन को लश्कर-ए-तैयबा का आतंकवादी बताया गया जो मोदी की हत्या के मिशन पर था और ‘एनकाउंटर’ को एक बहुत बड़ी उपलब्धि के बतौर पेश किया गया. इसके एक साल बाद 2006 के दिसंबर महीने में इसके एकमात्र चश्मदीद गवाह और सोहराबुद्दीन के साथी तुलसी प्रजापति को भी मार दिया गया.

एक और ऐसे ही पुलिस अधिकारी सीआईडी के महानिदेशक रजनीश राय हैं जिन्होंने हत्या के आरोपित पुलिस अधिकारी डीजी वंजारा, राजकुमार पांड्यान और दिनेश एमएन को गिरफ्तार किया था. जब उन्होंने इन आरोपितों का नार्को एनालिसिस करने की कोशिश की तो उन्हें किनारे कर दिया गया. वे अभी अध्ययन अवकाश पर हैं इसके बाद इन कुकृत्यों को ढकने का दौर शुरू हुआ. मामले को गृहमंत्रालय यानी शाह और मोदी के सीधे नियंत्रण में काम करने वाली सीआईडी को सौंप दिया गया. सीआईडी की जांच से निराश होकर सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिसने जनवरी, 2010 में ‘बड़ी साजिश की संभावना’ का पर्दाफाश करने के निर्देश के साथ मामले को सीबीआई के सुपुर्द कर दिया.

और उसके बाद से ही मामले में हर रोज़ कुछ नया आना शुरू हो गया. 29 अप्रैल को सीबीआई ने गुजरात की अपराध शाखा के उपायुक्त अजय चूडास्मा को गिरफ्तार कर लिया जिसके खिलाफ अवैध धनवसूली और प्रताड़ित करने के 197 मामले दर्ज हैं. चूडास्मा की गिरफ्तारी से सन्नाटे में आई सीआईडी ने आनन-फानन में कई अन्य पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया जिससे सीबीआई उन्हें गिरफ्तार न कर सके. लेकिन इससे सच्चाई को सामने आने से रोका नहीं जा सका.

अब हम जानने की कोशिश करते हैं कि शाह और मोदी के खिलाफ किस तरह के सबूत हैं. सबसे पहले तो कई ऐसे पुलिस अधिकारी ही हैं जो या तो इस मामले में अपनी ईमानदारी के लिए परेशान किए जाते रहे हैं या फिर जो अपराध में शामिल होने के बाद अब बचने का कोई रास्ता न देख सरकारी गवाह बनने की फिराक में हैं. पुलिस महानिरीक्षक गीता जौहरी इन्हीं में से एक हैं. दो बार इस केस को अपने हाथों में लेने वाली जौहरी इस बात का उदाहरण हैं कि सही तरह से काम करने वालों को किस-किस तरह की जटिलताओं से दो-चार होना पड़ सकता है. जौहरी को मजबूर होकर शाह के कॉल रिकॉर्डों के साथ छेड़छाड़ करने में पूर्व सीआईडी प्रमुख ओपी माथुर का साथ देना पड़ा. उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय को एक गुप्त पत्र लिखकर ‘राजनीतिक दबाव’ की शिकायत भी की थी. बाद में जौहरी को ‘जांच को निष्पक्ष तरीके न करने के लिए’ उच्चतम न्यायालय की फटकार भी सुननी पड़ी. अब सीबीआई उन्हे अपना गवाह बनाने की तैयारी कर रही है. इसमें कोई शक ही नहीं कि जौहरी के पास बताने के लिए बहुत-कुछ है. उदाहरण के लिए जब वे और अपने साथी अधिकारी वीएल सोलंकी के साथ सीआईडी के उपमहानिदेशक जीसी रैगर के पास दिसंबर 2006 में प्रजापति से पूछताछ की अनुमति मांगने गईं तो उन्हें तब तक टाला जाता
रहा जब तक कुछ दिनों बाद प्रजापति की हत्या नहीं हो गई.

एक और ऐसे ही पुलिस अधिकारी सीआईडी के महानिदेशक रजनीश राय हैं जिन्होंने हत्या के आरोपित पुलिस अधिकारी डीजी वंजारा, राजकुमार पांड्यान और दिनेश एमएन को गिरफ्तार किया था. जब उन्होंने इन आरोपितों का नार्को एनालिसिस करने की कोशिश की तो उन्हें किनारे कर दिया गया. वे अभी अध्ययन अवकाश पर हैं.

सीबीआई के पास एक सीआईडी नोट है जो अधिकारियों के रास्ते में डाली गई गैरज़रूरी अड़चनों के बारे में बताने के साथ-साथ यह भी बताता है कि कैसे जांच की प्रगति के बारे में आरोपितों को बता दिया जाता था जिससे उन्हें गवाहों को प्रभावित करने का मौका मिल जाए. नोट में यह भी लिखा है कि कैसे राय द्वारा की गई गिरफ्तारियों से प्रदेश का राजनीतिक नेतृत्व नाराज था जिसकी वजह से सरकार ने 27 मार्च, 2007 को एक आदेश के जरिए रैगर को इस मामले का प्रभारी बना दिया. इस नोट में सीबीआई से इस बात पर ध्यान देने के लिए भी कहा गया है कि जौहरी के आईएफएस पति अनिल जौहरी के खिलाफ भ्रष्टाचार जैसे संगीन मामले में चल रही विभागीय जांच को अक्टूबर में हल्का क्यों कर दिया गया. शायद यही वह वजह रही कि बहुत ही जोश के साथ अपना काम शुरू करने वाली गीता जौहरी को बाद में अपनी जांच को लेकर न्यायालय तक की फटकार सुननी पड़ी.

महत्वपूर्ण बात यह है कि रैगर अब खुद ही अभियोजन पक्ष के गवाह बनने जा रहे हैं. अब वे खुद भी सीबीआई को अपनी और गीता जौहरी की शाह से उस मुलाकात के बारे में बताएंगे (तहलका ने जनवरी में सबसे पहले इससे संबंधित खबर छापी थी) जिसमें शाह ने उनसे जांच पर असर डालने वाली बातें कही थीं.

इसके अलावा और भी कई सबूत हैं जो मामले में राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोपों को पुख्ता कर देते हैं. मसलनः

1. राय के लिखित तौर पर यह कहने के बाद कि उन्हें वंजारा और पांड्यान के साथ काम करने वाला कोई भी अधिकारी अपनी मदद के लिए नहीं चाहिए, एनके अमीन को क्यों उनके साथ काम करने के लिए लाया गया.

2. वंजारा को प्रजापति के एनकाउंटर से ठीक पहले डीआईजी बॉर्डर रेंज (इसी इलाके में प्रजापति का एनकाउंटर हुआ था) बना कर क्यों भेज दिया गया?

3. पूर्व सीआईडी प्रमुख ओपी माथुर – जिन्हें सीबीआई गिरफ्तार करने वाली है – को अहमदाबाद का पुलिस आयुक्त क्यों बनाया गया? क्यों उनके खिलाफ चल रही विभागीय जांच को सितंबर में खत्म कर उन्हें फरवरी, 2009 में प्रोन्नति दे दी गई?
जिस क्षण सीबीआई प्रजापति की हत्या के मामले को अपने हाथ में लेती है, वह उन परिस्थितियों पर भी ध्यान देगी जिनकी वजह से उसका एनकाउंटर हुआ और जांच को प्रभावित करने के लिए किस-किस तरीके के प्रयास किए गए. चूंकि इस मामले से जुड़े तमाम आदेश सीधे गृहमंत्रालय से आए थे इसलिए इनके प्रति मोदी की भी जवाबदेही है, इस बात से कैसे इनकार किया जा सकता है? पुलिसवालों की गवाही और और उनसे जुड़ी अन्य बातें तो शाह को फंसाने और राष्ट्रीय स्तर पर मोदी की इज्जत में जबर्दस्त बट्टा लगा सकने लायक चीजों की सिर्फ एक कड़ी है.

4. तहलका (राष्ट्रीय संस्करण) ने हाल ही में शाह और सोहराबुद्दीन तथा प्रजापति की हत्या के मामलों में फंसे पुलिस अधिकारियों के बीच प्रजापति की हत्या के समय के आसपास हुई बातचीत के कॉल रिकॉर्ड और उनका आकलन छापा था. ये कॉलें एक दूसरे केस में पुलिस द्वारा मॉनिटर की जा रही थीं. इस मामले की केस डायरी में साफ-साफ लिखा था कि ये कॉलें जितनी बार की गई थीं वह बड़ा अजीब था और ‘ऑफिशियल डेकोरम’ के मुताबिक भी नहीं था. मगर इस मामले को 2009 में अचानक ही बंद कर दिया गया. मोदी ने इन जानकारियों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?

5. अब भाजपा का कहना है कि कॉल रिकॉर्ड ये नहीं दिखाते कि शाह ने प्रजापति के एनकाउंटर वाले दिन (28 दिसंबर, 2006) और उससे एक दिन आगे-पीछे आरोपित पुलिस अधिकारियों से बात की थी. इसका जवाब है कॉल रिकॉर्ड के साथ ओपी माथुर द्वारा की गई छेड़छाड़. सीबीआई के पास इन रिकॉर्डों की मूल कॉपी है जिसमें ऐसी कई कॉलें हैं.

6. तहलका के पास शाह और गुजरात पुलिस के डीएसपी एनके अमीन के बीच के बहुत ही चौंकाने वाले कॉल रिकॉर्ड भी मौजूद है. सोहराबुद्दीन का ‘एनकाउंटर’ 26 नवंबर, 2005 को हुआ था और अमीन ही वह पुलिस अधिकारी है जिसने कौसर बी को बेहोशी की दवाएं दी थीं. ये कॉल रिकॉर्ड दिखाते हैं कि शाह और अमीन सोहराबुद्दीन की हत्या के आसपास लगातार एक-दूसरे के संपर्क में थे. बड़ी अजीब-सी बात है. राज्य का गृहमंत्री एक अदना-से पुलिस अधिकारी से ऐसी और इतनी क्या बातें कर सकता है? अमीन अब सरकारी गवाह बनने वाला है और यह बात शाह और मोदी दोनों के लिए बेहद परेशानी वाली है. अमीन का हिरासत में ही मौतों का एक अलग ही इतिहास है और वह इशरत जहां के एनकाउंटर में भी शामिल था. सीबीआई को अब पता लगा है कि एनकाउंटर से पहले इशरत को उसी फार्म हाउस में रखा गया था जिसमें कौसर बी के साथ बलात्कार और उसे जलाया गया था. इस फार्म हाउस के मालिक को भी गिरफ्तार कर लिया गया है.

7. गिरफ्तार पुलिस अधिकारियों में से एक बालकृष्ण चौबे है जिसने कथित तौर पर कौसर बी के साथ बलात्कार किया था और वंजारा ने उसे आग के हवाले किया था. मगर ऐसा करने के आदेश किसने दिए? अब अमीन के पास एक सहअभियुक्त एनवी चौहान का स्टिंग ऑपरेशन भी है जिसमें वह कह रहा है कि कौसर बी जब उनके कब्जे में थी तो वंजारा के पास बार-बार शाह के फोन आ रहे थे और शाह ने ही उसे मारने के आदेश दिए थे. कानून के जानकारों के मुताबिक भारतीय साक्ष्य कानून में बदलाव के बाद धारा 29(ए) के तहत यह सबूत के रूप में मान्य हो सकता है, विशेषकर तब जब इसकी सत्यता साबित करने वाली मजिस्ट्रेट के सामने दी गई और भी गवाहियां हों.

8.  हालांकि गुजरात के दंगे मोदी के ऊपर एक कभी न मिटने वाला दाग लगा चुके हैं, जैसाकि हाल ही में नीतीश कुमार के साथ उनकी उठापटक में देखने को मिला था, लेकिन बाकी मामलों में अब तक उनपर कभी कोई उंगली नहीं उठी थी. मगर अब ऐसा नहीं है. अब हिंदुत्व के बड़े-बड़े दावे करने वाला उनका एक सबसे करीबी अपने रसूख का फायदा उठाकर तमाम पुलिसवालों और सोहराबुद्दीन और प्रजापति जैसे लोगों से धनवसूली करवा रहा था. जैसा कि अब सबको ही पता है, सोहराबुद्दीन को राजस्थान की नाराज़ मार्बल लॉबी के कहने पर, जिनसे वह अतिरिक्त पैसे की मांग कर रहा था, मार दिया गया.

9.  इसके अलावा मामले को उलझाने वाली गुजरात के दो बिल्डर भाइयों रमन और दशरथ पटेल की शिकायतें भी हैं. इनके ऑफिस पर कथित तौर पर प्रजापति और उसके एक साथी ने सोहराबुद्दीन को फंसाने के लिए गोलियां चलाई थीं. इन लोगों का आरोप है कि शाह ने अजय पटेल, जो अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष हैं, के जरिए उनसे 70 लाख रुपए मांगे थे. इन लोगों ने अजय पटेल के ऊपर एक स्टिंग भी किया है जिसमें शाह को फंसाने वाली बातचीत है. मगर यह कितने काम आ सकेगी यह कहना मुश्किल है.

मोदी को जानने वाला हर व्यक्ति यह जानता है कि गुजरात उनकी महत्वाकांक्षाओं के लिए अब कितना छोटा पड़ने लगा है, कि अब उन्हें एक नए ज्यादा बड़े आसमान की जरूरत है. मगर जैसे-जैसे गुजरात की नई-नई कहानियां सामने आ रही हैं, यह आसमान उनकी पहुंच से दूर होता जा रहा है. एक वरिष्ठ भाजपा नेता के मुताबिक पार्टी शाह और अगर थोड़ा खुलकर कहा जाए तो मोदी का इस मामले में एक हद तक साथ देने को तैयार है. मगर मोदी की महत्वाकांक्षाओं की तस्वीर अब थोड़ी और धुंधली पड़ गई है.

हाल ही में उनकी विश्वस्त मंत्रिमंडलीय सहयोगी माया कोडनानी को गिरफ्तार कर लिया गया और वे कुछ नहीं कर सके और अब शाह और इससे पहले कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी. मोदी की मुसीबत यह है कि वे अगर इससे थोड़ा भी मज़बूती से निपटने के प्रयास करते हैं तो उनके अछूतपन में कुछ और वृद््धि के साथ बड़ा वाला आसमान उनसे और भी दूर होता चला जाएगा

 

राना अय्यूब