' सहज भाषा भी कलात्मक हो सकती है '

आपकी पसंदीदा लेखन शैली क्या है?

मुझे सबसे अधिक संस्मरण और डायरी पसंद हैं. सीमोन द बोउवार की किताब सेकेंड सेक्स, विष्णु प्रभाकर की आवारा मसीहा, धर्मवीर भारती की ठेले पर हिमालय और फिल्मकार एलिया कजां की आत्मकथा बहुत पसंद हैं.

अभी क्या पढ़ रही हैं?

ममता कालिया का उपन्यास दुक्खम सुक्खम. डॉ रवींद्र कुमार पाठक की नई किताब आई है जनसंख्या समस्याः स्त्री पाठ के रास्ते. रवींद्र जी ने अच्छी किताब लिखी है.

वे रचनाएं या लेखक जो आपको बेहद पसंद हों?

पसंद तो समय-समय पर बदलती रहती है. कभी कोई ज्यादा पसंद आता है तो कभी कोई. वैसे राहुल सांकृत्यायन, रांगेय राघव, प्रेमचंद, अज्ञेय, (धर्मवीर) भारती जी, मन्नू (भंडारी) जी, कृष्णा सोबती पसंद हैं. नए लेखकों में खास तौर से नीलाक्षी सिंह पसंद हैं. इनके अलावा चंदन पांडेय, अल्पना पांडेय और (प्रेमरंजन) अनिमेष अच्छा लिख रहे हैं.

कोई जरूरी रचना जिसपर नजर नहीं गई हो?

बहुत-से लेखक बहुत अच्छा लिखकर भी गुमनाम रह जाते हैं. चंद्रकिरण सोनरेक्सा की पिंजरे की मैना, कुसुम त्रिपाठी की किताब जब स्त्रियों ने इतिहास रचा और डॉ रवींद्र की ऊपर बताई किताब  ऐसी ही किताबों में हैं.

कोई रचना जो बिना वजह मशहूर हो गई हो?

मैत्रेयी पुष्पा की आत्मकथा गुड़िया भीतर गुड़िया ऐसी किताबों में है.

पढ़ने की परंपरा कायम रहे, इसके लिए क्या किया जाना चाहिए?

सबसे जरूरी बात तो यह है कि किताबों के दाम कम होने चाहिए. दूसरी बात यह कि लेखक बहुत बौद्धिक न लिखकर आम पाठकों को समझ में आने वाली भाषा में लिखें. सहज भाषा भी कलात्मक हो सकती है. यह धारणा कि हमेशा क्लिष्ट और गूढ़ शब्दावली ही कलात्मक होती है गलत है. सरलता में भी सौंदर्य होता है.

रेयाज उल हक