रोमांटिक दिखने के बावजूद नील नितिन मुकेश की रोमांटिक ब्वॉय वाली आम भूमिकाएं करने में दिलचस्पी नहीं. उनके फिल्मी सफर को अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ मगर इस थोड़े-से समय में ही अलग-सी भूमिकाओं के बूते उन्होंने अपने कई प्रशंसक बना लिए हैं, बता रही हैं टिया तेजपाल
नील के चतुर फैसले साफ इशारा करते हैं कि भविष्य के लिए उन्होंने क्या सोचा है. वे दावा करते हैं कि ‘मेथड एक्टिंग’ की कोशिश करने वाले वे भारत के अकेले अभिनेता हैंमशहूर गायक नितिन मुकेश के यहां जब बेटे का जन्म हुआ तो स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर उसे देखने गईं. बच्चे को देखते ही उनके मुंह से निकला, ‘अरे यह तो किसी अंग्रेज बच्चे जैसा दिखता है.’ नितिन अंतरिक्षयात्री नील आर्मस्ट्रांग के बहुत बड़े प्रशंसक थे. यह सुनते ही उन्होंने बेटे का नाम रख दिया, नील. 27 साल बाद आज नील नितिन मुकेश मनोरंजन के क्षेत्र में अपने परिवार की विरासत को बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं. मगर उनका रास्ता गायन की बजाय अभिनय का है. पिछले ही दिनों उनकी नई फिल्म जेल रिलीज हुई है. जाने-माने फिल्मकार मधुर भंडारकर की यह फिल्म पिछले कुछ महीनों से लगातार सुर्खियों में रही है. रिलीज के बाद अच्छी समीक्षाओं ने फिल्म को और भी ज्यादा चर्चा में ला दिया है. भंडारकर के ऑफिस में पत्रकारों का जमावड़ा लगा हुआ है. एक सवाल उनसे बार-बार पूछा जाता है कि उन्होंने विषय के रूप में जेल क्यों चुना? और उनके जवाब का सार अक्सर यही होता है कि उन्हें इसमें एक मजबूत कहानी नजर आई. यही वजह है कि उन्होंने इस फिल्म की मुख्य भूमिका नील नितिन मुकेश को देने का फैसला किया. दरअसल अच्छी कहानियों के लिए जुनून ही 27 साल के इस अभिनेता को उन नए और चाकलेटी चेहरों से अलग करता है जिनकी इन दिनों मुंबई फिल्म उद्योग में भरमार है. ग्लैमर की बजाय नील कहानी के पीछे भागते हैं.
मुंबई में पेड़ों के झुरमुट से घिरे एक बंगले में पले-बढ़े नील की जिंदगी में शुरू से ही सिनेमा का दखल रहा. चार साल की उम्र में उन्होंने ऋषि कपूर और हेमामालिनी द्वारा अभिनीत फिल्म विजय में काम किया. अपने परिवार की विरासत के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं, ‘मुझे गर्व है कि मैं मुकेश के नाम और उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहा हूं. मैं अपनी फिल्मों में गाऊंगा भी. मगर अभिनय मेरे दिल के ज्यादा करीब है. दरअसल देखा जाए तो हमारे परिवार की विरासत मनोरंजन है सिर्फ गायन नहीं.’ अपनी मां के बारे में बात करते हुए नील की मुस्कान और भी गहरी हो जाती है. वे खुलकर उनके धीरज, सादगी और संतुलित व्यवहार की तारीफ करते हैं. स्कूल के बारे में बताते हुए नील कहते हैं कि उन्हें लड़कियों से लगाव जल्दी हो जाता था. वे कहते हैं, ‘मुझे पसंद था कि कोई मेरा दिल तोड़े.’ हालांकि कॉलेज जाने पर यह शगल बिल्कुल उल्टा हो गया. अपनी प्रभावी शख्सियत के चलते उनके लिए निश्चित रूप से यह मुश्किल काम नहीं था.
जेल की रिलीज के मौके पर उनकी तैयारी किसी निर्देशक का सपना है और किसी पत्रकार का दुस्वप्न. काले रंग की कमीज पहने नील जानते हैं कि इस मौके पर इकट्ठा मीडिया से उन्हें क्या बात करनी है. वे आते हैं, बैठते हैं और फिर मुस्कराते हैं. इससे पहले कि कोई कुछ पूछे वे बताना शुरू कर देते हैं कि जेल में ठूंस दिए गए बेगुनाह पराग दीक्षित का किरदार किस तरह उनके अब तक के करिअर का सबसे चुनौतीपूर्ण किरदार रहा है. फिर नील उन निर्देशकों के लिए अपने आदर की बात करते हैं जिनके साथ उन्होंने काम किया है. इनमें लगभग सभी राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हैं. अलग किरदारों को जीवंत करने की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाने के लिए वे कबीर खान, मधुर भंडारकर, श्रीराम राघवन और रे आचार्य की तारीफ करते हैं. अचानक एक तेज घुरघुराहट की आवाज उनकी वाणी पर विराम लगा देती है. नील हैरत से चारों तरफ देखते हैं और पाते हैं कि बीमार चल रहे उनके बिजनेस मैनेजर सोफे पर बैठे-बैठे अचानक सो गए हैं. एक लड़के की तरफ देखकर वे चिल्लाते हैं, ‘चाय पिलाओ, दवाई खिलाओ.’ लड़का हड़बड़ाया-सा जाता है और चाय के साथ वापस आता है. इसके बाद नील फिर अपने कारोबार में लग जाते हैं.
जब हम जोर देकर उनसे पूछते हैं कि क्या नील में कोई खराबी भी है तो खान हंसते हुए शिकायती लहजे में कहते हैं, ‘वे अपने बालों और मेकअप पर कुछ ज्यादा ही वक्त खर्च करते हैं.’
मगर सिनेमा में आने के उनके फैसले की वजह सिर्फ कारोबारी नहीं है. जैसा कि नील कहते हैं, ‘हर अभिनेता को अपनी कला पर ध्यान देना चाहिए, बजाय इसके कि पैसा आ रहा है या नहीं उसे यह सोचना चाहिए कि क्या उसने उस फिल्म के लिए अपना फर्ज ठीक से पूरा किया है.’ वे मानते हैं कि अभिनेता का काम है वह किरदार बन जाना जो उसे सौंपा गया है. नील कहते हैं, ‘तभी मैं एक बार में एक ही फिल्म करता हूं. मैं एक साथ तीन किरदार नहीं निभा सकता. इसका मतलब होगा कि मैं किसी पर भी ध्यान केंद्रित नहीं कर रहा.’ यानी वे हरमुमकिन कोशिश करते हैं कि भूमिका में पूरी तरह से डूब जाएं और जब कोई प्रशंसक उन्हें जॉनी, पराग या उमर कहकर पुकारता है तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है. नील ने लीक से अलग चलने की हिम्मत करके एक अलग पहचान बना ली है. जब उनसे पूछा जाता है कि जेल जैसी और फिल्में क्यों नहीं बन रही तो थोड़ा सोचने के बाद जवाब आता है, ‘मुझे लगता है कि बतौर समाज हम हकीकत को स्वीकारने से डरते हैं. हम असल दुनिया से बचने की कोशिश करते हैं. मगर मैं जानता हूं कि मुझे किस तरह का सिनेमा करना है.’ जेल में नील के साथी अभिनेता मनोज बाजपेयी, जो खुद भी लीक से अलग भूमिकाएं करने के लिए जाने जाते हैं, उनकी प्राथमिकताओं को लेकर आश्वस्त हैं. वे कहते हैं, ‘यह लड़का अपनी खासियत जानता है. उसे एक आम स्टार बनने का सपना नहीं पालना चाहिए. अगर वह ऐसा करे तो उसकी प्रतिभा के कई कद्रदान होंगे. वह अलग तरह की फिल्मों का स्टार होगा.’
नील के चतुर फैसले साफ इशारा करते हैं कि भविष्य के लिए उन्होंने क्या सोचा है. वे दावा करते हैं कि ‘मेथड एक्टिंग’ की कोशिश करने वाले वे भारत के अकेले अभिनेता हैं. जेल में अपनी भूमिका के लिए वे 50 दिन तक फिल्म के सेट पर ही रहे और इस दौरान उन्होंने दोस्तों और परिवारवालों से फोन पर भी बात नहीं की. साथ ही वे तभी प्रतिक्रिया देते थे जब कोई उन्हें उनके किरदार के नाम से यानी पराग दीक्षित कहकर बुलाए. फिल्म के विवादित न्यूड सीन के बारे में वे कहते हैं कि किरदार को जो यातना झेलनी पड़ती है उसकी गहराई दिखाने के लिए वह दृश्य जरूरी था.
फिल्म न्यूयॉर्क में नील को निर्देशित कर चुके कबीर खान उनकी काफी तारीफ करते हैं. जब हम जोर देकर उनसे पूछते हैं कि क्या नील में कोई खराबी भी है तो खान हंसते हुए शिकायती लहजे में कहते हैं, ‘वे अपने बालों और मेकअप पर कुछ ज्यादा ही वक्त खर्च करते हैं.’ बाजपेयी से असहमति जताते हुए वे कहते हैं, ‘अब जबकि ड्रामा में नील अपनी प्रतिभा सिद्ध कर चुके हैं तो उन्हें दूसरी शैलियों में भी हाथ आजमाना चाहिए.’
बॉलीवुड में नील ने अपनी शुरूआत सही मायनों में श्रीराम राघवन की फिल्म जॉनी गद्दार से की जिसमें उन्होंने एक निर्मम हत्यारे का किरदार निभाया था. इसके बाद आई फिल्म आ देखें जरा में उनकी भूमिका एक ऐसे व्यक्ति की थी जिसके हाथ भविष्य दिखाने वाला एक कैमरा लग जाता है. फिर न्यूयॉर्क में वे एक जासूस बने. और अब जेल में एक बेगुनाह कैदी की भूमिका. नील ने अपने लिए जानबूझकर एक अलग राह चुनी है जिसमें उनकी अलग-सी खूबसूरती उनके आड़े नहीं आ रही. थोड़ा आगे झुकते हुए वे कहते हैं, ‘देखिए, अच्छा दिखने का फायदा है. मैं हीरो दिखता हूं, मगर हीरो वाले रोल नहीं करना चाहता.’ फिर पीछे की तरफ झुकते हुए वे कहते हैं, ‘यह अच्छा ही है. मुझे एक्टिंग करने दीजिए और लुक्स को मुझे स्टार बनाने दीजिए.’
पर्दे पर नजर आने वाले नील और असल जिंदगी के नील में साफ फर्क महसूस किया जा सकता है. उनकी बढ़िया हिंदी, सहज मुस्कान और गर्मजोशी भरी भाव-भंगिमाएं उन्हें स्क्रीन पर निभाए गए उनके किरदारों से काफी जुदा करती हैं. हालांकि यह गर्मजोशी और सहजता तब गायब हो जाती है जब वे दोटूक लहजे में कहते हैं कि उनसे उनकी गर्लफ्रेंड के बारे में सवाल न किया जाए.
रोमांटिक हीरो की तरह दिखने वाले नील जब अपनी पारी शुरू करना चाहते थे तो उन्हें कई रोमांटिक भूमिकाओं के प्रस्ताव मिले. मगर उन्होंने इन्हें खारिज कर दिया. उनका इरादा अटल था. वे अपनी शुरूआत अलग तरह की फिल्म से करना चाहते थे. जैसा कि नील कहते हैं, ‘लव स्टोरी किसी लव स्टोरी जैसी ही होनी चाहिए. ऐसी नहीं जिसमें लव थोड़ा-सा हो और स्टोरी बिल्कुल नहीं.’ उनकी अगली फिल्म यशराज बैनर के तले है जिसका निर्देशन प्रदीप सरकार कर रहे हैं. इसमें दीपिका पादुकोण भी हैं. नील कहते हैं, ‘अगर स्क्रिप्ट का कोई मतलब है तो मैं इसमें दिलचस्पी दिखाऊंगा. मैं उसी तरह का सिनेमा करूंगा जिसमें मेरा यकीन है.’
मधुर भंडारकर, नील को बेशकीमती रत्न और सही मायनों में निर्देशक का अभिनेता कहते हैं. उन्हें विश्वास है कि मुकेश खानदान का यह वारिस कम-से कम अगले 25 साल तक दर्शकों का मनोरंजन करेगा.
नील का नजरिया देखकर तो यही लगता है.