50 हज़ारी की राह पर सोना

सोने की कीमतों में थोड़े उतार-चढ़ाव के बावजूद भी तेज़ी का रुख बना हुआ है। मुम्बई के बाज़ार में 4 मार्च को सोने की कीमत लगभग 1,000 रुपये बढ़कर 43,130 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुँच गयी। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा 3 मार्च को ब्याज दर में 0.5 फीसदी की कटौती किये जाने की घोषणा के तुरन्त बाद सोने की कीमत में तेज़ी देखने को मिली है। उल्लेखनीय है कि अमेरिकी फेडरल ने आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी लाने के लिए ब्याज दर में कटौती किया है।

सम्भावना है, पर आसान नहीं

मौज़ूदा परिवेश में सोने की कीमत 50,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर पहुँचने की सम्भावना बढ़ गयी है। हालाँकि, यह इतना आसान नहीं है; लेकिन कोरोना वायरस का कहर जल्द नहीं रुकने की स्थिति में ऐसा मुमकिन हो सकता है। सोने को 50,000 रुपये के स्तर तक पहुँचने के लिए इसकी कीमत में महज़ 16 फीसदी तेज़ी की ज़रूरत है। वर्ष 2020 में सोने की कीमत में 10 फीसदी का इजाफा पहले ही हो चुका है, जबकि वर्ष 2019 से तुलना करने पर सोने की कीमत में 30 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है। सोने की कीमत 50,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर पहुँचने का अर्थ है कि दो वर्षों की अवधि में सोने में 60 फीसदी से ज़्यादा का प्रतिफल मिलना।

कीमतों में बढ़ोतरी के कारण

भारत में सोने का कम उत्पादन होता है और वह सोने की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में हुई सोने की कीमत में आयी तेज़ी और सरकार द्वारा सोने के आयात पर शुल्क को 10 फीसदी से बढ़ाकर 12.5 फीसदी करने के कारण बीते महीनों से सोने की कीमत में उछाल की स्थिति बनी हुई है।

वैश्विक स्तर पर सुस्ती एवं अनिश्वितता का माहौल

वैश्विक स्तर पर अर्थ-व्यवस्था की हालात भारतीय अर्थ-व्यवस्था से भी ज़्यादा बुरी है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार देशों के केंद्र्रीय बैंकों को आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए विशेष प्रयास करने चाहिए। इस साल वैश्विक अर्थ-व्यवस्था में महज़ 2.4 फीसदी की दर से वृद्धि हुई है, जो 2009 के बाद सबसे कम है। ओईसीडी का कहना है कि 2021 में वैश्विक अर्थ-व्यवस्था में 3.3 फीसदी की दर से वृद्धि हो सकती है। सुस्ती का माहौल वैश्विक स्तर पर बना हुआ है। विश्व बैंक पहले ही कोरोना की वजह से वैश्विक वृद्धि दर में 1 फीसदी गिरावट की आशंका जता चुका है। इसकी वजह से दुनिया की दो बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं चीन और अमेरिका के कारोबार में सुस्ती गहरा रही है। कोरोना वायरस से भी अनेक देशों की अर्थ-व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, जिसमें भारत भी शामिल है। इधर, ब्रेक्जिट को लेकर भी अनिश्चितता बनी हुई है। कुछ देशों के बीच चल रहा कारोबारी जंग के कारण डॉलर को दूसरी करेसियों के मुकाबले मज़बूत रखने की कोशिश की जा रही है। फिलहाल, रुपया डॉलर की तुलना में कमतर हो रहा है, जिससे सोने की कीमत में तेज़ी आने की सम्भावना बनी हुई है।

फेडरल रिजर्व के रुख से तय होती है कीमत

सोने की कीमत में उतार-चढ़ाव पर अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीति का भी प्रभाव पड़ता है। फेडरल रिजर्व ने जुलाई महीने में ब्याज दर में 0.25 फीसदी की कटौती की है, जिसके कारण डॉलर में मज़बूती आयी है और रुपये की कीमत में कमी। अब फिर से उसने ब्याज दर में 0.50 फीसदी की कटौती की है। फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में कटौती करने की वजह से वैश्विक वित्तीय निवेशक सोने में निवेश को मुफीद मान रहे हैं।

किसानों की बढ़ी मुश्किल

वर्ष 2019 में कृषि जिंसों की सुस्त कीमत रहने से किसानों की आय कम हुई है। अधिकांश किसानों को अपनी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं मिल पा रहा है, जिससे उनकी आय कम हुई है। महाराष्ट्र के करीब आधे गाँवों में सूखे और अन्य राज्यों में बाढ़ से खरीफ फसलों को नुकसान हुआ है। ऐसे में किसानों के लिए सोने की खरीदारी टेढ़ी खीर साबित होगी।

सोने की खरीद के लिए प्रोत्साहन

सोने की माँग में कमी आने के बाद हाज़िर बाज़ार में प्रति 10 ग्राम सोने पर 550 रुपये की छूट दी जा रही है। हाज़िर बाज़ार की कीमत की तुलना में काफी कम कीमत पर बेचे जाने वाले तस्करी के सोने की वजह से भी हाज़िर बाज़ार में छूट दी जा रही है। कारोबारी आधिकारिक घरेलू कीमतों पर प्रति औंस लगभग 40 डॉलर तक की छूट दे रहे हैं। यह छूट अगस्त, 2016 के बाद से सर्वाधिक है। बहुत सारे कारोबारी ग्राहकों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार और कम मेकिंग चार्ज की भी पेशकश कर रहे हैं।

निवेश में बेहतर रिटर्न की गारंटी

मौके का फायदा उठाने के लिए कुछ कारोबारी और उपभोक्ता सोना बेच रहे हैं, जिससे बाज़ार में सोने की आपूर्ति बढ़ रही है। हालाँकि, बहुत सारे निवेशक मंदी के माहौल में सोने में निवेश को सुरक्षित मान रहे हैं; क्योंकि मौज़ूदा समय में शेयर, रियल एस्टेट और म्युचुअल फंड आदि में सुस्ती का माहौल बना हुआ है। इधर, चालू वित्त वर्ष में सोना 20 से 25 फीसदी रिटर्न के साथ सबसे अधिक रिटर्न देने वाली निवेश परिसम्पत्ति के रूप में उभरा है। निकट भविष्य में शेयर बाज़ार में भी सोने की तुलना में बेहतर रिटर्न मिलने का कोई संकेत नहीं है।

आयात में गिरावट

भारत के स्वर्ण आयात में पिछले वर्ष के मुकाबले 55 फीसदी की गिरावट आयी है और यह तीन वर्ष के निचले स्तर पर पहुँच गया है। भारत ने जुलाई में 39.66 टन सोने का आयात किया है, जो एक वर्ष पहले की समान अवधि के 88.16 टन के मुकाबले आधे से कम है। राशि में यह आयात 42 फीसदी घटकर 1.71 अरब डॉलर रहा।

भारत में माँग ज़्यादा

दूसरे देशों की अपेक्षा भारत में सोने की माँग अभी भी ज़्यादा है। जून तिमाही में देश में सोने की माँग 23 फीसदी बढ़ी है, जबकि वैश्विक स्तर पर इसकी माँग में केवल 8 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है।

वैश्विक स्तर पर बढ़ चुकी है सोने की माँग

दुनिया भर के केंद्र्रीय बैंकों की खरीद तथा स्वर्ण आधारित ईटीएफ में निवेश बढऩे से जून तिमाही में सोने की वैश्विक माँग 8 फीसदी बढ़कर 1,123 टन पर पहुँच गयी। विश्व स्वर्ण परिषद् की जून तिमाही की गोल्ड डिमांड ट्रेंड्स रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल की समान तिमाही में सोने की वैश्विक माँग 1,038.80 टन रही थी। इस दौरान केंद्र्रीय बैंकों की माँग 46.9 फीसदी बढ़कर 224.40 टन पर पहुँच गयी, जो पिछले साल की सामान्य अवधि में 152.8 टन थी। इस दौरान पोलैंड सोने का सबसे बड़ा खरीदार रहा। उसने आलोच्य तिमाही के दौरान 100 टन सोने की खरीददारी की, जबकि मामले में रूस दूसरे स्थान पर रहा।

निष्कर्ष

सोने की कम खरीददारी करने से सोने की वैश्विक कीमतों में लगाम लग सकती है, लेकिन निवेशक सोने में निवेश को निवेश का सबसे बेहतर विकल्प मान रहे हैं। वर्तमान में सोने की बढ़ती कीमत के लिए आयात शुल्क में बढ़ोतरी, सोने एवं मेकिंग दोनों पर जीएसटी का आरोपण, फेडरल रिजर्व द्वारा अपनायी जा रही नीति, घरेलू बाज़ार में सुस्ती, नीतिगत समस्याएँ आदि ज़िम्मेदार हैं, लेकिन हाल-फिलहाल में सोने की कीमत को बढ़ाने वाले कारकों के प्रभाव के कम होने या खत्म होने की सम्भावना कम है। इसलिए कयास लगाये जा रहे हैं कि आने वाले महीनों में भी सोने की कीमत में तेज़ी का रुख बना रहेगा।