विरोध की कहानियां

 

पंकज चौधरी

कवि भवानी प्रसाद मिश्र की एक कविता की पंक्तियां कुछ इस प्रकार हैं, ‘जैसा मैं बोलता हूं वैसा तू लिख, और उससे भी बढ़कर वैसा तू दिख’ इस कविता को संदीप मील ने अपनी कहानियों में पूरी तरह चरितार्थ कर दिखाया है. युवा कहानीकार संदीप के पहले कहानी संग्रह ‘दूजी मीरा’ कहानी संग्रह की कहानियों को पढ़कर लगता है कि वे एक चलता-फिरता, जीता-जागता कथाकार हैं.

संदीप मील राजस्थान के हैं इसलिए उनकी अधिकांश कहानियों के प्लाॅट भी वहीं से बनते हैं.  ‘दूजी मीरा’  कहानी संग्रह की कहानियों में जब जाटों के सामंती ठाठ-बाट, सोच-विचार, रहन-सहन, वेश-भूषा का वर्णन आता है तब कहानी का कंट्रास्ट और तनाव देखते ही बनता है. जाट समाज के भीतर आ रहे बदलावों को भी उनकी कहानियों में रेखांकित किया गया है. इस इलाके के जाटों की लड़कियां भी पढ़ने के लिए जयपुर या दिल्ली जैसे आधुनिक शहरों में भेजी जाने लगी हैं पर उनकी शादियां अभी भी मां-बाप या समाज की मर्जी से ही होती हैं. उनकी एक कहानी की नायिका की भी शादी मां-बाप की मर्जी से तय कर दी जाती है. नायिका अपने मां-बाप के फैसले का अंतिम दम तक विरोध करती है और जब बात बनते नहीं िदखती है तो मजबूर होकर वह घर से भाग खड़ी होती है. नायिका का अन्य प्रसंगों में भी विद्रोही तेवर देखने को मिलता है. कथाकार संदीप ने अपनी इस नायिका को भक्तिकालीन कवयित्री मीरा से जोड़कर देखा है और इसी से प्रेरित होकर अपने संग्रह काे ‘दूजी मीरा’ नाम दिया है.

जाटों को लक्ष्य करते हुए संदीप की दूसरी कहानी है- ‘एक प्रजाति हुआ करती थी जाट.’ इस कहानी के जरिए संदीप यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि खापों के मुखिया चौधरी जब बेलगाम हो जाते हैं तो किस तरह से वे खुदा और दिमाग को भी फांसी पर चढ़ा देने का फरमान जारी करते हैं. यह एक प्रतीकात्मक कहानी है जो चौधरियों की बर्बरता और तालिबानी मानसिकता का पर्दाफाश करती है. इस कहानी को पढ़ते हुए भारतेन्दु के प्रसिद्ध नाटक ‘अंधेर नगरी’ की याद हो आती है, जिसमें राजा के पास बकरियों की मौत के जिस किसी भी संदिग्ध गुनहगार को पकड़कर लाया जाता है, राजा सब को फांसी पर चढ़ा देने का हुक्म तामील करता है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में खापों के फरमानों को जिस तरह से आंख मूंदकर अमल में लाया जाता है उससे तो अंधेर नगरी होने की बात समझ में आती है. पूरी कहानी संवाद शैली में है और एक ज्वलंत नाटक का आभास देती है. ‘झूठी कहानी’, ‘खोट’, ‘जुस्तजू’, ‘लुका पहलवान’, ‘नुक्ता’, ‘टांगों पर ब्रेक’, ‘वहम’ और ‘थू’ भी घूमा-फिराकर जाट समाज की ही कहानियां हैं.

पुस्तक : दूजी मीरा

मूल्य : 129 रुपये

कहानीकार : संदीप मील

प्रकाशक : ज्योतिपर्व, गाजियाबाद