वित्तीय रुप से कमजोर लोगों के खाते पर कभी कोई शुल्क नहीं लगाया जाता है। इस बात की पृष्टि की है भारतीय स्टेट बैंक की पूर्व चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य।
ये उन्होंने एक न्यूज़ एजेंसी को बैंकों द्वारा गरीबों पर बैंक खातों में न्यूतम अधिशेष राशि बनाए रखने में विफलता पर जुर्माना लगाए जाने की ख़बरों का खंडन करते हुए बताया। उन्होंने कहा, ‘‘किसी गरीब व्यक्ति के खाते पर कभी कोई शुल्क नहीं लगाया गया।’’
उन्होंने यह भी बताया कि वित्तीय समावेशन की प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत खोले गए बैंक खातों पर ‘किसी भी चीज का शुल्क नहीं लगाया गया है।’’ इन खातों को न्यूनतम मासिक औसत जमा राशि रखने से भी छूट प्राप्त है।
इस बात के लिए अरुंधति ने भारतीय स्टेट बैंक के ‘बेसिक सेविंग्स बैंक डिपॉजिट’ (बीएसबीडी) खातों का उदाहरण दिया जो विशेष तौर पर समाज के गरीब तबके के लिए होते हैं ताकि उन्हें शुल्कों के बोझ के बिना बचत करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
अरुंधति ने कहा कि जो लोग ‘पूर्ण सक्रिय खाते’ नहीं चाहते हैं वह अपने खाते को बीएसबीडी खाते में तब्दील कर सकते हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी-मुंबई) के प्रोफेसर आशीष दास द्वारा किए गए अध्ययन में दावा किया गया था कि यस बैंक और इंडियन ओवरसीज जैसे कई बैंक ग्राहकों द्वारा अपने खातों में न्यूनतम राशि नहीं रखने पर 100 प्रतिशत से अधिक का सालाना जुर्माना लगा रहे हैं।
इस बारे में रिजर्व बैंक के स्पष्ट दिशानिर्देश हैं कि न्यूनतम शेष नहीं रखने पर ग्राहकों पर उचित जुर्माना ही लगाया जाना चाहिए।
अध्ययन में कहा गया था कि भारतीय स्टेट बैंक 24.96 प्रतिशत का जुर्माना लगा रहा है। विभिन्न बैंकों में न्यूनतम शेष राशि रखने की सीमा 2,500 रुपए से एक लाख रुपए तक है।