हिमाचल में चुनावी हलचल तेज़

यह पहली बार है, जब किसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क़रीब दो सप्ताह के अंतराल में हिमाचल प्रदेश के दो दौरे किये हैं। पहला 31 मई को और फिर दूसरा 16 जून को। उनके राज्य में ये दौरे एक तरह से भाजपा के चुनाव अभियान का श्रीगणेश ही हैं। प्रदेश में विधानसभा चुनाव इसी साल के आख़िर में होना है। पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार धूमल ने दावा किया है कि भाजपा पिछले 35 साल के दौरान पार्टी की सरकार को कभी नहीं दोहराने के सिद्धांत को तोड़ते हुए जीत हासिल करेगी। कुल मिलाकर मोदी के दौरों से प्रदेश में राजनीति गरमा गयी है। अनिल मनोचा की रिपोर्ट :-

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 31 मई को हिमाचल प्रदेश में भव्य स्वागत किया गया। वह केंद्र में भाजपा सरकार की आठवीं वर्षगाँठ मनाने के लिए शिमला में आयोजित पार्टी के एक रोड शो में आये थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुरानी बातें याद करते हुए राज्य में, विशेष रूप से शिमला में बिताये समय को याद किया। यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि मोदी नब्बे के दशक में कुछ साल हिमाचल के भाजपा प्रभारी रहे थे। क़रीब एक पखवाड़े में हिमाचल के अपने 16 जून के दूसरे दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धर्मशाला में एक रोड शो का नेतृत्व किया। इसके ज़रिये पार्टी ने चुनावी रूप से महत्त्वपूर्ण कांगड़ा क्षेत्र में चुनाव अभियान की शुरुआत की। मोदी, मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के साथ एक किलोमीटर लम्बे रोड शो को कवर करते हुए भाजपा कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों की बड़ी उपस्थिति के बीच फूलों से लदी खुली जीप में रहे।

भाजपा, जिसका लक्ष्य पहाड़ी राज्य में मिशन रिपीट का है; कांगड़ा पर ध्यान केंद्रित कर रही है। क्योंकि यह 68 सदस्यीय राज्य विधानसभा में लगभग एक-चौथाई विधायकों को भेजती है। कांगड़ा में अधिकतम सीटें जीतने वाली पार्टी आमतौर पर राज्य में सरकार बनाती है।

जीत का भरोसा

हमीरपुर में ‘तहलका’ से बातचीत में धूमल ने कहा कि वह पिछले 45 साल से पार्टी के अनुशासित कार्यकर्ता हैं और एक सैनिक के रूप में पार्टी के इशारे पर सब कुछ करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जनता प्यार करती है और देवभूमि में भाजपा फिर से सरकार बनाएगी। मोदी का दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी भी पड़ोसी राज्य पंजाब में अपनी चुनावी सफलता से उत्साहित होकर हिमाचल में पैर जमाने की कोशिश कर रही है। दिलचस्प बात है कि पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में इस पहाड़ी राज्य के तीन दौरे किये हैं। उधर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद प्रतिभा सिंह भी लगातार दौरे कर रही हैं, ताकि भाजपा को सत्ता से बाहर करके सरकार बनायी जा सके। वैसे परम्परागत रूप से हिमाचल में केवल दो ध्रुवीय मुक़ाबले हाल के दशकों में देखे गये हैं।

हालाँकि पिछली बार हिमाचल प्रदेश में लोकतांत्रिक मोर्चा था, जिसे 4-5 फ़ीसदी वोट मिले थे। उससे पहले पंडित सुख राम की पार्टी थी, जिसे क़रीब छ: फ़ीसदी वोट मिले थे। जब बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने हिमाचल में प्रवेश करने की कोशिश की, तो पार्टी प्रमुख मायावती ने एक भाषण में मतदाताओं से अपनी पार्टी को एक मौक़ा देने की अपील की। लोगों ने चुनावों में उन्हें पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया और बसपा केवल एक सीट जीत सकी। बाद में वह राज्य की राजनीति से दूर हो गयी। राज्य में पहली बार सन् 1998 में गठबंधन सरकार देखी गयी थी, जब दिवंगत सुख राम की तरफ़ से शुरू की गयी हिमाचल विकास कांग्रेस ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था।

हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का दावा है कि राज्य ने अधिकांश सामाजिक विकास संकेतकों पर अच्छा प्रदर्शन किया है। क़रीब 83 फ़ीसदी साक्षरता दर के साथ यह देश के सबसे अधिक साक्षर राज्यों में से एक है। इसने प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में सुधार करने में भी काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया है। हिमाचल में शत्-प्रतिशत विद्युतीकरण और एक अच्छा सड़क नेटवर्क है। हालाँकि इस साल के अन्त में चुनाव में जाने पर भाजपा के लिए बहुत कुछ दाँव पर लगा है, क्योंकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर हिमाचल से ही हैं। पिछले 35 साल में हिमाचल के मतदाताओं ने कभी भी सरकार नहीं दोहरायी है। प्रतिभा सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने के बाद से कांग्रेस पूरी ताक़त से तैयारी कर है। उन्होंने कहा- ‘वीरभद्र सिंह से किसी की तुलना नहीं की जा सकती और उनके जैसा नेतृत्व और शासन कोई नहीं दे पाएगा। हम उनके पदचिह्नों पर चलेंगे। प्रदेश की राजनीति में आप जैसी पार्टियों के लिए कोई जगह नहीं है। हमारा मुक़ाबला सिर्फ़ भाजपा के साथ है।’

कांग्रेस एक पारदर्शिता अधिनियम का वादा कर रही है, जिसके तहत जनप्रतिनिधि और सरकारी कर्मचारी हर साल सम्पत्ति का $खुलासा करेंगे। इसमें यह भी कहा गया है कि यह एक ज़िम्मेदारी अधिनियम लाएगी, जिसमें अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों को सेवाओं की गुणवत्ता के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा। सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना का पुनरुद्धार भी कांग्रेस के एजेंडे में है। प्रतिभा सिंह ने शिमला में अपने आवास होली लॉज में ‘तहलका’ को बताया कि कांग्रेस पार्टी के घोषणा-पत्र में इसे शामिल करने के लिए कुछ पूर्व मुख्य सचिवों के साथ चर्चा की है। उन्होंने अग्निपथ योजना, जिसके ख़िलाफ़ ख़ूब विरोध-प्रदर्शन चले; पर कटाक्ष किया और इसे बड़ी ग़लती बताया।

उन्होंने जलापूर्ति योजना पर सार्वजनिक धन के कथित दुरुपयोग की भी आलोचना की। उनका आरोप कि पानी नहीं है। पानी की आपूर्ति करने वाली करोड़ों की पाइपलाइन बेकार पड़ी है। प्रतिभा ने कहा कि यह ठीक है कि वह एक राज परिवार से ताल्लुक़ रखती हैं; लेकिन आम लोगों की समस्याओं को समझती हैं। वह कांग्रेस के टिकट के दावेदारों से मिल रही हैं, ताकि उनकी बात सुनी जा सके और कांग्रेस के भीतर किसी भी तरह के अंदरूनी कलह को रोका जा सके। उन्होंने कहा कि जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री को कुछ बड़ी घोषणाएँ करनी चाहिए थीं। उन्होंने भाजपा पर सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी का ईडी के बहाने उत्पीडऩ करने का आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र की ताक़त पर वह प्रतिशोध की राजनीति कर रही है।

सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस हमीरपुर, कांगड़ा और मंडी की जनसभाओं में केजरीवाल के निशाने पर रहीं। वह अपनी रैलियों और बातचीत में राजनीतिक भ्रष्टाचार, स्कूलों में शिक्षकों की कमी, ख़राब स्वास्थ्य सुविधाओं, बेरोज़गारी और बढ़ती महँगाई के मुद्दों को प्रमुखता से उठाते हैं। उनका कहना है कि हिमाचल की जनता ने कांग्रेस को 30 साल और भाजपा को 20 साल तक वोट दिये, अब उन्हें मौक़ा दे। ग़ौरतलब है कि बड़ी आबादी न होने के बावजूद देश में पाँचवें पायदान पर हिमाचल में बेरोज़गारी दर बहुत ज़्यादा है। हिमाचल की राजनीति पर नज़र रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आम आदमी पार्टी के लिए प्रभाव जमाना इतना आसान नहीं होगा। आम आदमी पार्टी के लिए हिमाचल का रास्ता बाधाओं से भरा है, क्योंकि राज्य के केंद्र में हमेशा से दो दल कांग्रेस और भाजपा ही रहे हैं।

अतीत में भी कई राजनीतिक दलों ने प्रदेश में पैर जमाने की कोशिश की; लेकिन सफल नहीं हुए। क्योंकि लोगों ने हमेशा कांग्रेस और भाजपा पर ही भरोसा किया है। पंजाब और हिमाचल की सामाजिक और राजनीतिक वास्तविकताएँ भी काफ़ी अलग हैं। लिहाज़ा आम आदमी पार्टी को यहाँ आसानी से सत्ता हासिल नहीं होगी।