हार का भय, जीत का प्रयास 

भारतीय जनता पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव राम मंदिर के उद्घाटन, महिला आरक्षण एवं सनातन धर्म को लेकर जीतना चाहती है। मगर इतने पर भी भारतीय जनता पार्टी को भय है कि वो कहीं चुनाव हार न जाए। इसका कारण बीते दिनों हुए घोसी विधानसभा के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी की करारी हार है। चर्चा छिड़ गयी है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का उत्तर प्रदेश में प्रभाव कम हो गया है।

मगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत की ओर से लखनऊ में अकस्मात बुलायी गयी समन्वय बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की विशेष उपस्थिति कुछ और ही संकेत कर रही है। चर्चा है कि योगी आदित्यनाथ अब और अधिक शक्तिशाली होंगे। मगर इसके लिए उन्हें लोकसभा, विधानसभा एवं पंचायती राज तक उत्तर प्रदेश की हर स्तर की सत्ता को बचाकर रखना होगा। 

लोगों की धारणा

भारतीय जनता पार्टी के योगी समर्थक कार्यकर्ता उमेश गंगवार कहते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का प्रभाव कम नहीं हुआ है। एक सीट उपचुनाव में किसी के जीतने से सत्ता का निर्णय नहीं हो जाता। आगामी लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड बहुमत से जीत होगी एवं केंद्र में दोबारा भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनेगी।

मगर समाजवादी समर्थक योगेंद्र सिंह कहते हैं कि मुख्यमंत्री योगी के कार्यों से जनता सन्तुष्ट नहीं है। उन्हें बुलडोजर चलवाने के अतिरिक्त कुछ नहीं आता। उनके कार्यकाल में विकास शून्य रहा है। जिधर देखो सारी सडक़ें टूटी पड़ी हैं; मगर वाहनों के चालान तीव्रता से हो रहे हैं। हर वस्तु महँगी होती जा रही है। बिजली से लेकर यात्रा किराया तक बेहिसाब बढ़ाया हुआ है। रोडवेज बसों का किराया मुख्यमंत्री के साढ़े छ: साल के कार्यकाल में दोगुने के आसपास पहुँच चुका है। लोगों के पास काम नहीं है। पाँच किलो राशन देकर उसका प्रचार इतना किया जा रहा है कि राशन से अधिक व्यय विज्ञापनों पर हो रहा है। कोई ऐसा समाचार पत्र नहीं है, जिसमें हर दिन योगी सरकार का विज्ञापन न दिखता हो।

वहीं निष्पक्ष बात करने वाले विनोद कुमार कहते हैं कि हमने राज्य में तीन पार्टियों की सरकारें देखी हैं- मायावती की, अखिलेश की एवं आदित्यनाथ की। अगर सही एवं निष्पक्ष समीक्षा की जाए, तो सभी के शासनकाल में कुछ अच्छा एवं कुछ बुरा हुआ है। मायावती के शासन में क़ानून व्यवस्था दुरुस्त थी। जीटी रोड को चौड़ा करने का कार्य आरम्भ हुआ। सडक़ों की व्यवस्था ठीक हुई।

लोगों को नौकरियाँ मिलने लगीं। मगर वहीं नौकरियों में पक्षपात किया गया। एक स$फाईकर्मियों के पदों पर अवश्य जातियों के लोगों को भर्ती करने का खुला निमंत्रण रहा। वहीं मायावती ने अपनी एवं हाथी की मूर्तियाँ लगवायीं। घोटाले भी हुए। अखिलेश के शासन में जीटी रोड का शेष कार्य में शीघ्रता लायी गयी। सडक़ों का अधूरा कार्य पूरा हुआ। पुल बने। असिंचित क्षेत्रों में सिंचाई व्यवस्था करने का कार्य हुआ। मगर वहीं क़ानून व्यवस्था बिगडऩे लगी। भर्तियों में घपला हुआ। (कथित रूप से) भ्रष्टाचार बढ़ा।

अब योगी के शासन में बड़े-बड़े दबंगों पर कार्रवाई हुई। हिन्दुत्व को बल मिला। राम मन्दिर बन रहा है। ज्ञानवापी, मथुरा में मस्जिद जैसे मुद्दे उठे। कई जनपदों एवं जगहों के नाम बदले गये। मगर अपराध बढ़े, भारतीय जनता पार्टी पक्ष के अपराधी खुलेआम अपराध करने लगे। न के बराबर भर्तियाँ हुईं। सरकारी कर्मचारी दु:खी हो रहे हैं। युवा दु:खी हो रहे हैं। बेटियों की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। केवल बयानों में योगी शोहदों के धमका देते हैं; मगर अपराध नहीं रुक रहे। महँगाई बहुत बढ़ी है। सरकार की कमियाँ बताने एवं सरकार के विरुद्ध बोलने वालों को सज़ा मिलती है। पुलिसकर्मी मनमानी कर रहे हैं। सडक़ें गड्ढायुक्त हो चुकी हैं। आत्महत्या के मामले बढ़े हैं। किसानों तक के चालान कटने लगे हैं।

क्या योगी पर है संघ की कृपा?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के लखनऊ में समन्वय बैठक करने से उत्तर प्रदेश की राजनीति अचानक गरमा गयी है। लखनऊ में हुई बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं भारतीय जनता पार्टी के बीच क्या मंत्रणा हुई, इसे लेकर तरह तरह के कयास ही लग रहे हैं।

समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, राष्ट्रीय लोक दल, बहुजन समाज पार्टी एवं अन्य पार्टियों के कान खड़े हो गये हैं। सभी पार्टियों के नेता ये जानना चाह रहे हैं कि इस बैठक में क्या मंत्रणा हुई? मगर असल बात किसी को नहीं पता चल पा रही है। अपुष्ट सूत्रों की मानें, तो यही कहा जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर कमर कसी गयी है। मगर कुछ सूत्र यह भी कह रहे हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख योगी आदित्यनाथ को भविष्य में कुछ बड़ा देने वाले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं उनके निकटतम लोगों की इस अहम बैठक से दूरी से तो कुछ ऐसा ही लगता है।

भागवत की बैठक में मोदी नहीं!

लोगों को आशंका है कि कहीं योगी आदित्यनाथ को अगले प्रधानमंत्री के तौर पर तो नहीं देखा जाने लगा है? हालाँकि ऐसी कोई चर्चा अभी कहीं नहीं है। मगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समर्थक कई वर्षों से चुपके-चुपके इस प्रकार की चर्चा अवश्य करते दिख जाते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद केंद्र का शासन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों में ही जाएगा। मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक भी उत्तर प्रदेश में कम नहीं हैं, जो स्पष्ट कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के लिए ही उपयुक्त हैं, केंद्र की सत्ता सँभालने की योग्यता केवल और केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में ही है।

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के इन दो गुटों में अंदर-ही-अंदर टूट पड़ी हुई है। इस टूट को अब और बल मिल गया है। इसका कारण यह है कि इधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक प्रमुख मोहन भागवत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं उनके कुछ विश्वसनीय लोगों के साथ बैठक की; मगर  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बैठक में नहीं दिखे। वह भागवत की लखनऊ में उपस्थिति के समय ही वाराणसी पहुँच गये।

कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत की बैठक में क्या कुछ हो रहा है? इसका पता लगाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के दाहिना हाथ माने जाने वाले देश के गृह मंत्री अमित शाह की इस बैठक पर पैनी दृष्टि रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस अहम बैठक से दूरी अवश्य बनाए रखी, मगर बैठक की गतिविधियों के भेद न लें, ऐसा नहीं हो सकता। सम्भवत: इसीलिए वह वाराणसी पहुँचे हों। कुछ लोग कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री को अभी किसी से कोई डर नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने वाराणसी में क्रिकेट स्टेडियम के आधारशिला रखी। महिलाओं की सभा को संबोधित किया; उनसे संवाद किया। महिला आरक्षण विधेयक पास होने की बधाई दी। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में जनसभा को संबोधित किया। अटल आवासीय विद्यालयों का उद्घाटन किया। अपनी उपलब्धियाँ गिनायीं और चलते बने।

वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम तीन घंटे का था, मगर उसे कार्यक्रमों की सूची को देखते हुए पूर्व में ही बढ़ाकर छ: घंटे का कर दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी पहुँचने से एक दिन पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वाराणसी में बने लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डे के विस्तारीकरण के लिए 550 करोड़ रुपये के बजट को स्वीकृति दी। 

अनसुलझे प्रश्न

लखनऊ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत की उपस्थिति के बीच वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहुँचना एवं अपने कार्यक्रमों को निपटाकर लौट आना, एक अनसुलझी गुत्थी बन गये हैं। प्रश्न उठ रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत से क्यों नहीं मिले? इसे लेकर लोग तरह तरह की बातें कर रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समर्थक इसे अपने इस प्रिय नेता के लिए सुनहरे भविष्य की आहट के रूप में देख रहे हैं एवं मन-ही-मन प्रसन्न हो रहे हैं।

राजनीति में रुचि रखने वाले लोग अभी इस तरह की चर्चाओं को विश्वासपूर्ण दृष्टि से नहीं देख रहे हैं। उनका मानना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध अभी नहीं दिख रहे हैं। अभी हर हाल में वह 2024 में तीसरी बार भी केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाने की सोच को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। अगर भारतीय जनता पार्टी 2024 में सत्ता में आयी, तो भी कम-से-कम 2029 में योगी आदित्यनाथ केंद्र के लिए चुने जा सकते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यह बात अच्छी तरह जानते हैं एवं उनकी तैयारियाँ भी उसी तरह की हैं। ये लोग ऐसा भी कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में मनमुटाव रहता है, जिसके चलते उनके समर्थक भी बँटे हुए दिखते हैं। योगी आदित्यनाथ अगर आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, तो यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत की कृपा से हैं।

जो भी हो, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख की ओर से लखनऊ में बुलायी गयी समन्वय बैठक बेहद अहम मानी जा रही है। विपक्षी पार्टियाँ इसे लेकर सकते में हैं। उधेड़बुन यह है कि आगामी चुनाव में ज़मीनी स्तर पर भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता मिलकर कार्य कर सकते हैं। उनकी संख्या बढ़ायी जानी भी तय है। इस बार महिलाओं को भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जोड़ा जाएगा। इसे ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश के सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को कमर कस लेनी चाहिए।