‘हल्के बुखार को हल्के में न लें’

बुखार को कभी भी बिना ठीक सा विशेषण लगाए नहीं बताया जाता. मामूली बुखार, हड्डी तोड़ बुखार, ऐसा तेज बुखार कि जैसा कभी हमें जिंदगी में हुआ ही नहीं, हल्का बुखार, मियादी बुखार आदि कई तरह से मरीज इसके बारे में बताता है. बुखार को लेकर इतनी तरह की गलतफहमियां हैं, बतकहियां हैं और चिकित्सा विज्ञान की सीमाएं हैं कि इस मामूली-सी प्रतीत होती बीमारी के इन पक्षों को जानना जरूरी हो जाता है.

पहली बात तो यह कि कोई भी, कितना भी कम बुखार हो वह कभी भी मामूली नहीं होता. हर बुखार इस बात की घोषणा है कि शरीर में कुछ ऐसा गलत हो रहा है जिससे लड़ने के शरीर के अपने हथियारों के चलने के कारण यह गर्मी पैदा हो रही है. बल्कि हल्के बुखार कई मायनों में ज्यादा खतरनाक हैं. थोड़ा-थोड़ा बुखार हो रहा हो तो कई बार आदमी लंबे समय तक इसकी परवाह ही नहीं करता और बाद में बीमारी बढ़ाकर डॉक्टर के पास पहुंचता है. दूसरा यह कि वे हल्के-हल्के निन्यानवे-सौ वाले, कभी-कभी आने वाले बुखारों की जड़ में बेहद खतरनाक, जानलेवा होने की हद तक खतरनाक कारण भी हो सकते हैं. टीबी, एड्स, कई तरह के कैंसर, आंतों की बीमारियां, यहां-वहां पनपती पस (मवाद) आदि किसी के कारण भी ऐसा हो सकता है. प्रायः यह हल्का बुखार विभिन्न तरह की जांचों में आपके खासे पैसे लगवा सकता है. हो सकता है कि तब भी डॉक्टर किसी ठीक नतीजे पर न पहुंच पाए और आप डॉक्टरों की जमात को ही कहते फिरें कि स्साले यहां-वहां से कट लेने के लिए ऐसा करते रहते हैं. हल्का बुखार गठिया से लेकर साइकोलोसिक फीवर तक कुछ भी हो सकता है. हो सकता है कि मैं किसी पक्ष की जांच न कराऊं और दो माह बाद पता चले कि हड्डी में टीबी थी या आंतों में कैंसर था, जो मैंने तब सोचा या देखा ही नहीं. कुल कहना यह है कि हल्के बुखार को कभी भी हल्के में न लें. हमेशा किसी बहुत अच्छे डॉक्टर से इसकी सलाह लें क्योंकि मामूली बुखारों की डायग्नोसिस के लिए गैरमामूली डॉक्टर ही चाहिए जो इस जटिल चीज को समझता हो.

बुखार को गंभीरता से लें क्योंकि बुखार यदि गंभीर हो गया तो लेने के देने पड़ सकते हैं

इससे भी पूर्व मैं सलाह दूंगा कि बुखार लगे तो थर्मामीटर से नापकर कागज पर रिकार्ड कर लें. डॉक्टर को इससे बड़ी मदद मिलेगी. बहुत से मरीज कहते हैं कि हमारा हड्डी का बुखार है, या अंदरूनी बुखार है जो रहता तो है पर किसी भी थर्मामीटर में नहीं आ पाता. ऐसा कोई बुखार नहीं होता जो थर्मामीटर में रिकॉर्ड नहीं होगा. बुखार जैसा लगने के पचासों और भी कारण हो सकते हैं. उनका इलाज भी कुछ अलग ही होगा. आप बुखार कहते हो, और लापरवाह चिकित्सक बुखार की कोई दवाई आपको दे देता है.  तो पहले यह तय कर लें कि बुखार है भी या नहीं? नापें. जब लगे तब नापें. मैं यह सलाह नहीं दे रहा कि जेब में थर्मामीटर लेकर घूमें और जब-तब मुंह में रखते फिरें. पर रिकॉर्ड जरूर करें. बुखार रिकॉर्ड न हो तो डॉक्टर को यही कहें कि मुझे बुखार सा लगता है पर होता नहीं. इस तरह की स्थिति एनीमिया, थकान, तनाव से लेकर अन्य बहुत सी गंभीर बीमारियों से भी हो सकती है.

और नापने में भी याद रखें कि आदमी के नार्मल टेंपरेचर में भी बहुत-से नार्मल उतार-चढ़ाव हो सकते हैं. हिंदी के एक बड़े कहानीकार की बिटिया का टायफायड तो ठीक हो गया परंतु रोज शाम होते-होते 99.8 डिग्री चढ़ जाता था. कहने वालों ने कहा कि टायफायड बिगड़ गया है. मैंने सलाह दी कि यह नार्मल वेरिएशन है. समझदार थे. मान गए. तो सामान्यतः शाम को हमारा तापमान 99.9 तक भी हो जाए तो इसे बुखार न मानें. डॉक्टर को तय करने दें.

तेज बुखार हो तो डॉक्टर कहते हैं कि मरीज की कोल्ड स्पोन्जिंग कीजिए. कहते हैं पर बताते नहीं कि कैसे कीजिए? प्रायः वे नर्स को कह देते हैं और नर्स आपसे कह देती है कि ठंडे पानी की पट्टियां रखिए. बस कहां रखिए, कैसे रखिए – यह बताने का समय किसी के भी पास नहीं. आप दिन भर लगे रहते हैं और बुखार नहीं उतरता. कारण यह कि कोल्ड स्पोंजिंग के कुछ सामान्य सिद्घांत हैं. एक तो यह कि इसे बर्फ के पानी से न करें. बर्फीला ठंडा पानी चमड़ी की खून की नलियों को उल्टा सिकोड़ ही देता है जिससे शरीर और ठंडे कपड़े के बीच तापमान का आदान-प्रदान नहीं हो पाता और बुखार उतनी तेजी से नहीं उतर पाता. नल में आ रहे सामान्य ताप वाले पानी या घड़े में भरे पानी को लें. दूसरी बड़ी बात यह करें कि गीले कपड़े को बढ़िया निचोड़कर और गले पर, कांखों में, पेट पर तथा जांघ के संधि स्थल (हिप ज्वायंट के पास) रखते जाएं और हर बीस-पच्चीस सेकंड में बदलकर नया गीला कपड़ा लगाएं. गर्दन, कांख, जंघा तथा पेट से खून की बहुत बड़ी नलियां एकदम चमड़ी के पास से गुजर रही होती हैं. इनमें बुखार से तपता हुआ गर्म खून बह रहा है जिसे ठंडक मिलेगी तो बुखार फटाफट कम होगा. शेष शरीर पर रखी पट्टियां इतनी जल्दी न बदलें क्योंकि हाथ-पांव की चमड़ी की पतली रक्त नलियों में खून ठंडा होने में समय लेगा. हां, माथे तथा सिर पर बर्फ की थैली (आइस कैप) रखना चाहिए क्योंकि खोपड़ी की हड्डियों का तापमान इतनी आसानी से कम न होगा.

और एक आखिरी बात. स्वयं इलाज न लें. बुखार एक ऐसी बीमारी है जिसका सबसे ज्यादा सेल्फ ट्रीटमेंट होता है. याद रखें कि हर ठंड के साथ कंपकंपी देने वाला बुखार मलेरिया नहीं होता. न ही वही एंटीबायटिक इस बार भी काम करेगी जो कभी पिछले बुखार में आपको दी गई थी. बुखार होने पर डॉक्टर की बताई दवाएं ही लें.