सतलुज-यमुना सम्पर्क नहर (एसवाईएल) पर सर्वोच्च न्यायालय की तल्ख़ टिप्पणी से पंजाब में राजनीतिक हलचल शुरू हो गयी है। हरियाणा और पंजाब के बीच पानी बँटवारे का यह मामला क़रीब 28 साल से सर्वोच्च न्यायालय में है। कई बार न्यायालय की तल्ख़ टिप्पणियाँ पहले भी आयीं; लेकिन मामला जस-का-तस ही रहा है।
अब तो यह मुद्दा राजनीतिक हो चला है। लिहाज़ा लगता नहीं कि एसवाईएल का काम आसानी से सिरे चढ़ सकेगा। हाल में मामले की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र से पंजाब क्षेत्र में एसवाईएल का सर्वे करने और इसकी रिपोर्ट तीन माह में देने और साथ में दोनों राज्यों में नहर पर सहमति बनाने का सुझाव दिया। एसवाईएल पर पंजाब के रुख़ पर सर्वोच्च न्यायालय ने तल्ख़ टिप्पणी कर बहुत कुछ संकेत दे दिया है। केंद्र को दिसंबर तक सर्वे रिपोर्ट देनी है; लेकिन पंजाब में इसे लेकर आक्रामक रुख़ है।
किसान संगठनों ने केंद्रीय टीम को पंजाब में न घुसने की चेतावनी दे दी है। मुख्यमंत्री भगवंत मान के दो-टूक कह चुके हैं कि पंजाब दूसरे राज्य को एक बूँद भी पानी नहीं देगा; बावजूद इसके राज्य में उनकी आलोचना हो रही है। एसवाईएल पर आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल पानी हरियाणा को न देने के मुद्दे पर एक हैं। भाजपा का रुख़ स्पष्ट नहीं; लेकिन वह भी पंजाब के लोगों की राय के ख़िलाफ़ नहीं जाएगी। हरियाणा में भाजपा की सरकार है। तो क्या पंजाब की भाजपा इकाई इसका विरोध करेगी? केंद्र में उसकी सरकार है।
शिअद अध्यक्ष और राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने कहा कि पंजाब में एसवाईएल का निर्माण किसानों की लाशों से गुज़रकर करना होगा। वह कहते हैं कि चाहे सर्वोच्च न्यायालय का फ़ैसला हो या प्रधानमंत्री इसके लिए फ़ौज भेज दें, हम पंजाब का पानी नहीं जाने देंगे। एसवाईएल के भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी हुई, नहर का काम शुरू हुआ और तेज़ी से भी चला। पंजाब में एसवाईएल 122 किलोमीटर लम्बी है और क़रीब 90 प्रतिशत तक पूरी कर ली गयी। उधर हरियाणा ने अपने हिस्से की 90 किलोमीटर की नहर समय से पूरी कर ली। हरियाणा में एसवाईएल आज बिना सतलुज के पानी के दूसरे विकल्प के तौर पर काम कर रही है, जबकि पंजाब क्षेत्र में यह क्षतिग्रस्त हो चुकी है। सन् 1966 में पंजाब से अलग हो अलग राज्य बनने के बाद से ही वह अधिकारपूर्वक पानी की माँग करता रहा है; लेकिन इसके लिए परियोजना की ज़रूरत थी। क़रीब एक दशक बाद ऐसी परियोजना का प्रस्ताव बना।
इस प्रस्ताव में न केवल सतलुज, बल्कि यमुना के पानी को जोड़ा जाए; जिससे हरियाणा को हिस्से का पानी मिल सके। सन् 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने पंजाब के ज़िला पटियाला के गाँव कपूरी में एसवाईएल का भूमि पूजन किया। दिसंबर, 1983 में पंजाब क्षेत्र में नहर पूरी करने का लक्ष्य रखा गया था। जिस अकाली दल ने परियोजना शुरू करायी, उसी ने सन् 1982 में इसका विरोध शुरू कर दिया। लिहाज़ा निर्माण काम रुक गया। क़रीब तीन साल बाद सन् 1985 में राजीव-लोंगोवाल समझौते के बाद काम शुरू हुआ। किस राज्य को कितना पानी मिलेगा? इस पर सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जज वी. बालकृष्ण इराडी ट्रिब्यूनल गठित हुआ।
इराडी रिपोर्ट में पंजाब में बहती रावी और व्यास के अतिरिक्त पानी को भी जोड़ने की सिफ़ारिश हुई। इसके अनुसार, अब कुल 18.28 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) में से पंजाब को 5 एमएएफ, हरियाणा को 3.83 एमएएफ, राजस्थान को 8.6 एमएएफ, जम्मू-कश्मीर (तब) 0.65 एमएएफ और दिल्ली को 0.2 एमएएफ पानी देना तय हुआ। वर्ष 1988 में पटियाला ज़िले के गाँव चुन्नी कलां में आतंकवादियों ने एसवाईएल के लिए काम कर रहे 35 श्रमिकों की हत्या कर दी। सन् 1990 में एसवाईएल के चीफ इंजीनियर और उनके सहायक की हत्या हो गयी। उसके बाद से पूरे पंजाब में एसवाईएल का विरोध शुरू हो गया और यह स्थिति साल दर साल बढ़ती रही। वर्ष 1995-96 में पहली बार हरियाणा ने अपने हक़ के पानी के लिए सर्वोच्च न्यायालय गया; लेकिन पंजाब ने समीक्षा याचिका लगायी। लम्बी सुनवाई के बाद जनवरी, 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब की समीक्षा याचिका को रद्द करते हुए एक वर्ष में अपने हिस्से की नहर पूरी करने का आदेश दिया; लेकिन इसका पालन नहीं हुआ।
2004 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र से किसी केंद्रीय एजेंसी से काम पूरा करने और पंजाब को ज़मीन हवाले करने को कहा। इसी साल पंजाब सरकार ने पानी समझौते के सभी अनुबंध रद्द कर दिये। सन् 2017 में पंजाब सरकार ने एसवाईएल के लिए अधिग्रहीत भूमि वापस करने की अधिसूचना जारी कर दी, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। इसके बाद जगह-जगह नहर पाटने का काम शुरू हो गया।
“पंजाब को सर्वोच्च न्यायालय की तल्ख़ टिप्पणी के बाद एसवाईएल निर्माण का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। यह नहर हरियाणा के लिए जीवनरेखा है और राज्य का पानी पर अपने हिस्सा का अधिकार भी है।”
मनोहर लाल
मुख्यमंत्री, हरियाणा
“पंजाब के पास अतिरिक्त पानी नहीं है। लिहाज़ा वह एक बूँद पानी दूसरे राज्यों को देने की स्थिति में नहीं है। पहले केंद्रीय ट्रिब्यूनल गठित करके पंजाब में पानी की स्थिति का पता लगाया जाए।”
भगवंत मान
मुख्यमंत्री, पंजाब