2008 की अपेक्षा 2013 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस की सीट और मतों का प्रतिशत बढ़ा ही है. लेकिन इसके बावजूद पार्टी सरकार क्यों नहीं बना पाई?
कांग्रेस की हार का कारण भाजपा का चुनाव प्रबंधन है. चुनाव प्रबंधन से मेरा आशय भ्रष्ट तरीका अपनाकर मतदाताओं को प्रभावित करने से है. भाजपा ने सत्ता का दुरुपयोग किया और सरकार बनाने में कामयाब हो गई. सरकारी एंबुलेंसों में धन और शराब को भरकर मतदाताओं तक पहुंचाया गया. गरीब जनता को डराया गया कि भाजपा को वोट नहीं दिया तो तुम्हारा राशनकार्ड निरस्त कर देंगे. कई तरह के दबाव मतदाताओं पर डाले गए. लोग परिवर्तन तो चाह रहे थे. आपने देखा ही होगा कि चुनाव परिणाम आने के बाद जनता में उत्साह की लहर दिखाई नहीं दी. बस्तर में तो जनता ने भाजपा को सबक भी सिखाया. आप देखेंगे कि मतदाता विधानसभा चुनाव की अपनी गलती लोकसभा चुनाव में जरूर सुधारेंगे.
लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई पर क्या कहेंगे? अजीत जोगी ने एक साल तक के लिए खुद को राजनीतिक गतिविधियों से दूर कर लिया है.
देखिए, जब तक हम भाजपा से लड़ते रहेंगे, यानी बड़ी लडाई लड़ते रहेंगे तो छोटी-छोटी लड़ाइयों के लिए वक्त ही नहीं मिलेगा. पार्टी के भीतर की खींचतान खुद-ब-खुद समाप्त हो जाएगी. इसके लिए जरूरी है कि सब व्यस्त रहें. जहां तक जोगी जी के राजनीतिक संन्यास की बात है तो ऐसा कुछ नहीं है. वे कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में शामिल हुए थे. पार्टी की हर बैठक में भाग ले रहे हैं. वे अभी भी दिल्ली में सक्रिय हैं.
यहां चर्चा चल रही है कि कांग्रेस फिर से पुराने और हारे चेहरों को लोकसभा चुनाव में उतारने वाली है?
हमारी कोशिश है कि हम ज्यादा से ज्यादा नए चेहरों को मैदान में उतारें. लोकसभा चुनाव का टिकट देकर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर भी विचार चल रहा है. लेकिन कहीं-कहीं कुछ अनुभवी चेहरों को दोहराने की जरूरत महसूस की जा रही है. ऐसे में हम संतुलन बनाकर उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारेंगे ताकि अधिकतम सीटें जीती जा सकें.
इसका मतलब कि लोकसभा चुनाव में भी राहुल गांधी के ‘फार्मूले’ की अनदेखी की जाएगी?
ऐसा नहीं है. उम्मीदवारों पर आखिरी फैसला की राहुल जी को ही लेना है. हम उनके निर्णय में बाधक नहीं बन सकते. लेकिन हमारी कोशिश यही होगी कि जिताऊ उम्मीदवारों की सूची बनाकर दिल्ली भेजी जाए. किसी के साथ नाइंसाफी भी ना हो और पार्टी अधिक से अधिक सीटें जीतने की स्थिति में रहे.
छत्तीसगढ़ कांग्रेस परिवारवाद का गढ़ बनी हुई दिख रही है. श्यामाचरण शुक्ल परिवार, मोतीलाल वोरा परिवार, जोगी परिवार, सत्यनारायण शर्मा परिवार ऐसे उदाहरण हैं जहां कांग्रेस की राजनीति पिता-पुत्र के इर्द-गिर्द ही घूम रही है. क्या जमीनी नेताओं को कोई मौका नहीं मिलेगा?
सबको कांग्रेस का परिवारवाद दिखाई दे रहा है, भाजपा का नहीं. जबकि हम तो भाजपा के परिवारवाद से त्रस्त हैं. असल में भाजपा में परिवारवाद का चलन ज्यादा दिखाई दे रहा है. छत्तीसगढ़ में ही भाजपा में परिवारवाद के दर्जनों उदाहरण हैं. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला हों या लखीराम अग्रवाल के बेटे अमर अग्रवाल.
बस्तर में बलिराम कश्यप का परिवार देख लीजिए. उनका एक बेटा कैबिनेट मंत्री है, दूसरा बेटा सांसद है. वैसे राजनेताओं के परिवारों में उनके पुत्र-पुत्रियों का राजनीति में आना स्वाभाविक है. जो योग्य हैं उन्हें आना भी चाहिए.
पार्टी के अन्य नेताओं से, खासकर अजीत जोगी से क्या अपेक्षा रखते हैं?
इस वक्त सबका एकमात्र लक्ष्य राहुल जी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अधिक से अधिक सीट जीतना है. मैं तो सबसे यही निवेदन करना चाहता हूं कि सभी नेता पूरी ताकत के साथ पार्टी की बेहतरी के लिए जुट जाएं. चाहे वे युवा नेता हों, महिला या अन्य वरिष्ठ नेता हों. सभी को अपना अहं छोड़कर पूरी क्षमता के साथ मिशन 2014 को सफल बनाना चाहिए.
लोकसभा चुनाव के मुद्दे क्या होंगे?
हम यूपीए 1 और 2 की उपलब्धियों को जनता के बीच ले जाएंगे. रमन सरकार के भ्रष्टाचार को भी सामने लाया जाएगा. इसकी शुरुआत हम कर चुके हैं. हमने राज्यपाल शेखर दत्त से मिलकर कुछ मंत्रियों और अफसरों के भ्रष्ट आचरण की शिकायत की है. यदि भाजपा अपने सांसद उम्मीदवारों को दोहराती है तो प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में सांसदों का आचरण भी एक मुद्दा होगा. कुछ सांसद निष्क्रिय रहे हैं तो कुछ के नक्सलियों के साथ संबंध उजागर हुए हैं. कुछ पर भ्रष्टाचार के भी आरोप हैं.
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की स्थिति सुधारने के लिए किस रणनीति पर काम कर रहे हैं?
कांग्रेस हमेशा से जनता के मुद्दों पर आंदोलित होती है. आजादी के पहले भी और आजादी के बाद भी. छत्तीसगढ़ में भी हम जनता के मुद्दों पर आंदोलन जारी रखेंगे. किसानों को धान का बोनस देने का मुद्दा हो या उद्योगों को जमीनों की बंदरबांट का. चाहे महिलाओं की सुरक्षा से लेकर कानून व्यवस्था का मुद्दा हो. हम सड़क से सदन की लड़ाई जारी रखेंगे. यही हमारी एकमात्र रणनीति है कि हमें जनता की आवाज बनना है. कांग्रेस की परंपरा को जिंदा रखना है. कुछ समय के लिए जरूर कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ा है लेकिन जल्द ही जनता ही हमें राज्य की सत्ता सौंपेगी.
लेकिन मुख्यमंत्री रमन सिंह तो पूरी 11 लोकसभा सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं?
वे ऐसा अपनी साख बचाने के लिए कर रहे हैं. मुख्यमंत्री रमन सिंह केवल माहौल बना रहे हैं क्योंकि उन्हें पता चल चुका है कि अब उन पर राष्ट्रीय नेतृत्व को भरोसा नहीं है. बस्तर में मिली करारी हार ने उन्हें डरा दिया है. कवर्धा, जो कि मुख्यमंत्री का गृहजिला है, वहां भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है. ऐसे में वे और उनकी पार्टी घबरा गई है. इसलिए वे बार-बार बोल रहे हैं कि उनकी पार्टी पूरी की पूरी 11 सीटें जीतेगी. आप खुद ही देखिए कि बस्तर की हार के बाद भाजपा का मनोबल गिर गया है. वे केवल अपना और पार्टी का आत्मविश्वास बढ़ा रहे हैं. उनके दावों में मुझे तो कोई दम नजर नहीं आ रहा. मुख्यमंत्री जी बस्तर को लेकर नित नई घोषणाएं कर रहे हैं. देखते हैं कि उनकी घोषणाएं कितना असर दिखाती हैं.
वीसी शुक्ल रहे नहीं, आप बेशक इसे नकार रहे हैं लेकिन जोगी के एक साल के राजनीतिक वनवास की बात सामने आ रही है. चरणदास महंत से आपका तालमेल ठीक नजर आ रहा है. तो ऐसे में यह माना जा सकता है कि अभी के हालात में पार्टी के भीतर से आपको कोई चुनौती देने वाला नहीं है?
देखिए, वैसे भी हमारे लिए अपनी ही पार्टी या नेता चुनौती नहीं रहे हैं. हमारे लिए असल चुनौती भाजपा को जड़ समेत उखाड़ फेंकना है. हर संगठन में नेताओं के अपने-अपने अहं होते हैं. वरिष्ठता के आधार पर सबका मान-सम्मान भी करना ही होता है. लेकिन इसे इस तरह देखा जाना चाहिए कि सबको साथ लेकर कैसे चला जाए या उनके अनुभवों का लाभ पार्टी के लिए कैसे उठाया जाए. नेताओें और कार्यकताओं के आपसी मनमुटाव भी पार्टी फोरम में दूर कर लिए जाते हैं. गुटबाजी के नाम पर बेवजह बातों को तूल देना ठीक नहीं है.
आपको आक्रामक नेता के तौर पर पहचाना जाता है. इसका कांग्रेस को कितना लाभ मिलेगा?
लोगों का मानना है कि मैं आक्रामक हूं, लेकिन मैं खुद को कांग्रेस की नीतियों और रीतियों के हिसाब से चलने वाला सिपाही मानकर चल रहा हूं. अब यदि किसी को उसमें आक्रामकता दिखाई दे रही है तो यह दूसरी बात है. मैं तो राज्य में काबिज भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहा हूं. हम हर मोर्चे पर भाजपा से दो-दो हाथ करने को तैयार हैं. मंत्रियों के भ्रष्टाचार को उजागर भी कर रहे हैं. हमारी पार्टी में हर नेता आक्रामक है.
स्वर्गीय नंदकुमार पटेल के अध्यक्ष बनने के पहले तक कांग्रेस मुद्दा विहीन, ऊर्जा विहीन और निर्जीव-सी दिखाई देती थी. इसके पीछे क्या कारण जिम्मेदार थे?
किन परिस्थितियों ने कांग्रेस को निष्प्राण कर रखा था, उस पर बात करना तो मुश्किल है लेकिन यह सच है कि नंदकुमार पटेल जी ने कांग्रेस में जान फूंक दी थी. वे आम लोगों से जुड़े हुए व्यक्ति थे. मुद्दों को पूरी ताकत से उठाते थे. पटेल जी ने लोगों और कार्यकर्ताओं में पार्टी के प्रति विश्वास पैदा किया था. दुर्भाग्य से वे जीरम घाटी नक्सल हमले में शहीद हो गए. लेकिन हम उनके द्वारा शुरू किए गए आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हम युवाओं, महिलाओं, बेरोजगारों, बुजुर्गों और किसानों, सभी के मुद्दों पर लड़ाई जारी रखेंगे.