सोशल मीडिया कंपनियों पर नकेल कसने की तैयारी

व्हाट्सप्प, मेटा, ट्विटर के साथ-साथ साभी सोशल मीडिया कंपनियों पर नकेल कसने के लिए ‘पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल’ पर बनी संयुक्त संसदीय समिति ने सोशल मीडिया के लिए रेगुलेटर बनाने की सिफारिश की है। संयुक्त संसदीय समिति ने आज यानी गुरुवार को संसद में अपनी रिपोर्ट सौंपी है। संयुक्त संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, सोशल मीडिया कंपनियों के लिए भारत में अपने ऑफिस खोलना जरूरी है नहीं तो उन्हें ऑपरेट करने की अनुमति ना दी जाये।

रिपोर्ट में सोशल मीडिया के लिए रेगुलेटर बनाने की सिफारिश के साथ यह भी कहा गया है कि कंपनियां उपभोक्ताओं का अकाउंट अनिवार्य रूप से वेरीफाई करें। यदि कंपनियां अगर यूजर को वेरिफाई नहीं करती हैं तो कंपनियों को ही पब्लिशर माना जाए और इसके अलावा उनकी जवाबदेही भी तय की जाए।

समिति ने छोटे फर्मों को इससे अलग रखने की बात कही है, इसके लिए, डीपीए को कानून बनाने की बात कही गई है जिसके तहत एक सीमा तय कर डाटा जुटाने से जुड़ीं छोटी कंपनियों को अपवाद के तौर पर सूचीबद्ध किया जा सके, ताकि एमएसएमई के तहत आने वाली फर्मों के विकास में बाधा न आए।

‘डाटा प्रोटेक्शन बिल’ को पहली बार 2019 में संसद में लाया गया था और उस समय इसे सांसदों की मांग के मुताबिक संयुक्त संसदीय समिति के पास जांच के लिए भेजा गया था। यह विधेयक एक ऐतिहासिक कानून है, जिसका उद्देश्य यह विनियमित करना है कि विभिन्न कंपनियां और संगठन भारत के अंदर व्यक्तियों के डेटा का इस्तेमाल कैसे करते है।

संसद की संयुक्त समिति ने ‘पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल’ में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को पब्लिशर्स के रूप में मानने के साथ-साथ उससे जुड़े डाटा की निगरानी और जांच के अधिकार को भी विधेयक के दायरे लाने की सिफारिश की थी। दो साल के विचार-विमर्श के बाद इस विधेयक में सुधार से जुड़े सुझावों को 22 नवंबर को स्वीकार कर लिया गया था।

समिति के प्रमुख पूर्व मंत्री व भाजपा सांसद पीपी चौधरी ने कहा कि, सरकार और उसकी एजेंसियों के डाटा को लेकर प्रक्रिया आगे बढ़ाने से उसी स्थिति में छूट दी गई है, जब इसका उपयोग लोगों के फायदे के लिए हो। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विषयों पर किसी तरह की अनुमति की जरूरत नहीं होगी।

‘पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल’ के दायरे को बढ़ाने के लिए संसदीय समिति ने अपने सुझावों में गैर-व्यक्तिगत डाटा और इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर द्वारा जुटाए जाने वाले डाटा को भी इसके अधिकार क्षेत्र में शामिल किया था। साथ ही सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी इसमें शामिल करने का सुझाव दिया गया था।

संसद की संयुक्त समिति ने इस विधेयक को लेकर कुल 93 अनुशंसाएं की है। जेसीपी का कहना है कि इस विधेयक में सरकार के कामकाज और लोगों की निजता की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने का पूरा प्रयास किया गया है। समिति के सुझावों में उस प्रावधान को बरकरार रखा गया है, जो सरकार को अपनी जांच एजेंसियों को इस प्रस्तावित कानून के दायरे से मुक्त रखने का अधिकार देता है।

समिति के प्रमुख पीपी चौधरी ने कहा, “सदस्यों और दूसरे संबंधित पक्षों के साथ गहन विचार-विमर्श के बाद यह रिपोर्ट तैयार किया गया है। सहयोग के लिए मैं सभी सदस्यों का आभार प्रकट करता हूँ, इस प्रस्तावित कानून का वैश्विक असर होगा और  डाटा सुरक्षा को लेकर अंतरराष्ट्रीय मानक भी तय होगा”।

समिति के प्रमुख ने कहा की इस कानून से देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ने वाला है | संसदीय समिति ने डाटा जुटाने वाली फर्मों को कुछ समय देने की बात कही है ताकि वो कानून के हिसाब से अपनी नीतियों, बुनियादी ढांचे और प्रोसेस को तैयार कर सकें | समिति ने सुझाव दिया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पब्लिश होने वाले या पोस्ट किए जाने वाले कंटेंट की निगरानी व नियमों के लिए भी एक ऑथोरिटी बनाई जाए।

राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक जयराम रमेश और विवेक तन्खा, लोकसभा में मनीष तिवारी और गौरव गोगोई ; तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ’ब्रायन और लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा और बीजू जनता दल के राज्यसभा सांसद अमर पटनायक ने समिति की कुछ सिफारिशों को लेकर अपनी असहमति जताई थी।

विपक्षी सदस्यों की ओर से मुख्य रूप से इसको लेकर विरोध जताया गया था कि केंद्र सरकार को अपनी एजेंसियों को कानून के दायरे से छूट देने के लिए बेहिसाब ताकत दी जा रही है। उन सांसदों ने यह कहते हुए विरोध किया कि इसमें निजता के अधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उचित उपाय नहीं किए गए है।

असहमति के नोट में यह भी सुझाव दिया गया था कि विधेयक की सबसे महत्वपूर्ण धारा 35 तथा धारा 12 में संशोधन किया जाए। धारा 35 केंद्र सरकार को असीम शक्तियां देती हैं कि वह किसी भी सरकारी एजेंसी को इस प्रस्तावित कानून के दायरे से बाहर रख दे न|कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने समिति के कामकाज को लेकर असहमति का विस्तृत नोट सौंपते हुए दावा किया था कि यह प्रस्तावित अधिनियम, कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाएगा।