सैनिकों में उग्रता क्यों?

सेना के जवान ने अपने चार साथी जवानों को ही सुला दिया मौत की नींद!

देश की सबसे बारी सेना छावनी बठिंडा में अप्रैल के पहले पखवाड़े में चार सैनिकों की हत्या से न केवल पंजाब, बल्कि देश भर में हडक़ंप-सा मच गया। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को तुरन्त जानकारी की गयी। केंद्र सरकार में पूरी खलबली मच गयी कि कहीं सेना पर आतंकवादी हमला तो नहीं हो गया। रात के समय हत्याकांड होना और हमलावर के बारे में कोई सुराग़ का न लग पाना कई कारण रहे, जिससे यही लगा कि यह आंतकवादी वारदात है। सम्भव है हमलावर छावनी के अंदर और ज़्यादा नुक़सान कर सकते हैं।

घटना के कुछ ही समय में पुलिस ने छावनी के आसपास के हिस्से को सील कर दिया था, ज़िले की सीमा पर चौकसी बढ़ा दी गयी। चूँकि सेना के मेजर आशुतोष शुक्ल ने घटना की छावनी थाने में प्राथमिकी दर्ज करा दी थी; लेकिन अंदर की जाँच सेना के लोग ही कर रहे थे। पुलिस बाहर के घटनाक्रम को ही देख रही थी। छावनी 45 किलोमीटर के दायरे में है और बीच में बठिंडा-चंडीगढ़ राष्ट्रीय राज मार्ग है। बठिंडा छावनी इसके दोनों हिस्से में है। यह भाग काफ़ी संवदेनशील है। यह देश की सबसे बारी छावनी भी मानी जाती है।

पंजाब के अभी के माहौल को देखते हुए छावनी के हिस्से में और भी ध्यान रखा जा रहा था; लेकिन घटना ने कई सवाल उठा दिये थे। घटना के कुछ ही घंटों में यह काफ़ी कुछ साफ़ हो गया कि यह आतंकवादी घटना नहीं थी, तब कहीं जाकर बठिंडा विशेषकर पंजाब के लोगों ने राहत की साँस ली। लेकिन भारी चाक-चौबंद वाली छावनी के अंदर इतनी बड़ी घटना कैसे हो गयी? कहीं यह सुरक्षा की भारी चूक तो नहीं। अगर यह है, तो किसी भी वारदात को कभी भी अंजाम दिया जा सकता है।

पंजाब चूँकि सीमावर्ती राज्य है, इसलिए यह गम्भीर मामला बनता है। गुरदासपुर में सेना छावनी पर हमला हो चुका है। लिहाज़ा सेना जाँच में हर बिन्दु देख रही थी। घटना को अंजाम देने के बाद हत्यारे बचकर कैसे निकल गये, जबकि 45 किलोमीटर के दायरे में फैली छावनी के चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा के पुख़्ता प्रबंध हैं। छावनी का एक बड़ा हिस्सा जंगल है। सेना की टीम ने पूरा जंगल देख लिया; लेकिन कोई सुराग़ नहीं मिला। 12 अप्रैल की इस घटना से तीन दिन पहले वारदात सथल के पास से एक एक इंसास राइफल और 28 कारतूस चोरी हुए थे। सेना की टीम उसकी जाँच कर ही रही थे; लेकिन कुछ पता नहीं चल रहा था। वारदात में इंसास राइफल और उसके कारतूस का इस्तेमाल हुआ था। सेना की टीम को पहली बार लगा यह आतंकवादी वारदात नहीं, बल्कि कोई अंदर का ही आदमी हो सकता है; लेकिन उसका पता नहीं चल पा रहा था।

उधर बठिंडा ज़िला पुलिस के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गुलनीत सिंह खुराना ने कहा की शुरुआती पुलिस की जाँच में साफ़ हो गया है कि सेना से जुड़े हत्याकांड को किसी ने अंजाम दिया है। चूँकि घटना के लिए एक ही चश्मदीद गनर देसाई मोहन था, सारी जाँच उसके बयान पर ही चल रही थी। उसने कहा था कि दो लोगों में एक के पास राइफल और दूसरे के पास कुल्हाड़ी थी। चारों जवानों की मौत गोली लगने से हुई उनके शरीर पर चोट आदि के निशान नहीं मिले। इससे यह साफ़ हुआ कि कहीं गनर मोहन देसाई झूठ तो नहीं बोल रहा है। आख़िर देसाई ज़्यादा समय तक सेना की जाँच टीम को भ्रम में नहीं रख सका। उसने जो बताया, उस पर आसानी से भरोसा करना मुश्किल हो रहा था। उसका आरोप था कि वह काफ़ी समय से अपने साथ हो रही गंदी हरकतों से तंग आ गया था। वह इस घटना के बारे में किसी को क्या बताता?

आख़िर उसे यह क़दम उठाने पर मजबूर होना पड़ा। यह तो पूरी जाँच के बाद साफ़ होगा कि देसाई कितना सच बोल रहा है। अगर उसकी बात सच है, तो मामला बेहद गम्भीर है। देसाई की निशानदेही पर इंसास राइफल और कुछ कारतूस सेना जाँच टीम ने बरामद कर लिये हैं, उसने गुनाह भी कुबूल कर लिया है। हत्याकांड की गुत्थी काफ़ी हद तक सुलझ गयी है; लेकिन सेना अर्ध सैनिक बलों में फिर एसा न हो इसके लिए गम्भीरता से विचार करना होगा। आरोपी देसाई के बयान पर अभी तो भरोसा किया जा सकता है; लेकिन कारण कुछ और भी हो सकते हैं। मरने वाले सैनिकों की उम्र 24 से 25 साल थी। सभी क़रीब तीन साल पहले सेना में भर्ती हुए थे। जिन सैनिकों का देश के लिए बहुत कुछ करना था, उन्हें बेमौत मरना पड़ा।

जब जब देश में सेना अर्धसनिक बलों पर हमले हुए उन्हें आतंकवादी घटनाएँ ही माना गया। बठिंडा की वारदात को भी शुरू में यही माना और समझा गया; लेकिन पुलिस जाँच में बिलकुल साफ़ हो गया था कि यह आतंकवादी घटना नहीं, बल्कि छावनी के अंदर से ही किसी ने वारदात अंजाम दी है। उधर सिख फॉर जस्टिस की ओर से घटना की ज़िम्मेदारी लेते हुए कहा गया कि यह उसका काम है। जब तक पंजाब को सिखों का राज्य नहीं बना दिया जाता, ऐसी घटनाएँ होती रहेंगी। यह संगठन देश विरोधी काम करता रहा है, इसलिए सेना और पुलिस की जाँच में इसे रखा गया। देश विरोधी संगठन सिख फॉर जस्टिस ने झूठी वाहवाही के लिए ज़िम्मेदारी ले ली, जबकि उसका इससे कोई सरोकार ही नहीं था।

सेना की जाँच से पहले पुलिस ने साफ़ कर दिया कि घटना में छावनी से बाहर का कोई व्यक्ति नहीं हो सकता। जिस किसी ने वारदात को अंजाम दिया है, वह अभी अंदर ही है। 12 अप्रैल की इस वारदात से कुछ समय पहले और बाद में न कोई छावनी के अंदर आया और न ही मुख्य दरवाज़े से बाहर गया है। सीसीटीवी फुटेज से यह सब साफ़ हो गया था। वारदात का एक मात्र चश्मदीद देसाई मोहन ही था, जो मरने वालों का साथी था। उसने बताया था कि उसने दो लोगों को देखा, जिन्होंने मुँह को ढक रखा था, और वे सफ़ेद कुर्ता-पायजामा पहने हुए थे। यहीं से जाँच की गुत्थी, जो उलझी वो सेना और पुलिस के लिए पहेली बनी रही। हत्याकांड की जाँच सेना कर रही है। बठिंडा में 80 मीडियम रेजिमेंट के सागर, कमलेश, योगेश कुमार और संतोष कुमार की मौत के लिए तो देसाई मोहन ज़िम्मेदार है; लेकिन उच्च अधिकारी इससे अनजान रहे।

जाँच में पता लगाया जाना चाहिए कि क्या देसाई ने ऊपर के अधिकारी या किसी को इस बारे में कुछ बताया था। कुछ तो बात रही होगी, वरना चार लोगों को वह इस क़दर कभी नहीं मारता। वह उनके साथ ही ड्यूटी करता था। सेना और अर्ध सैनिक बलों में अपने ही साथियों पर गोलीबारी की बहुत-सी घटनाएँ हो चुकी हैं। हथियारबंद ये लोग मरने या मारने का जज़्बा लिये होते हैं। कोई बात होने पर सीधे गोलीबारी करना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं होती।

कुछ साल पहले जम्मू-कश्मीर में एक घटना में जवान ने अपने पाँच साथियों को रात में सोते हुए गोलियों से मार दिया था। बाद में जवान ने ख़ुद को भी गोली मार ली थी। राष्ट्रीय राइफल पैरा मिलिट्री फोर्स की यह घटना बठिंडा छावनी की वारदात से काफ़ी मिलती-जुलती है। यहाँ भी रात को सोते हुए जवानों को मार दिया गया था। अन्तर यह कि यहाँ हत्याकांड को अंजाम देने वाला ख़ुद को बचाने में लगा रहा। बठिंडा की इस घटना से रक्षा मंत्रालय को गम्भीरता से लेना होगा, वर्ना इस तरह की घटनाएँ होती रहेंगी। यह हो सकता है कि उसके कारण अलग-अलग हों।

मामले और भी हैं

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में जानकारी दी कि वर्ष 2018 से 2022 तक अर्ध सैनिक बलों के 29 जवानों को उनके ही साथ ड्यूटी करने वालों ने मार डाला। उन्होंने जानकारी दी कि वर्ष 2014 से 2021 तक थल सेना में 18 घटनाएँ हुई, जबकि वायु सेना मई में दो वारदात हुईं। रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने जानकारी दी कि इस तरह की घटनाएँ किसी भी सरकार के लिए गम्भीर मामले होते हैं। उनकी सरकार इनमें कमी लाने के लिए कई ठोस प्रयास कर रही है। काफ़ी घटनाओं के पीछे निजी, घरेलू, पारिवारिक, काम का दवाब, डिप्रेशन प्रमुख कारणों में से है। सरकार ने मनोरोग सहायकों के साथ-साथ सैनिकों के कपड़ों और खाने में सुधार, तनाव कम करने, छुट्टी में कुछ ढील देने, अपने उच्च अधिकारियों तक आसानी से पहुँच के साथ ही शिकायत निवारण केंद्र बनाने को लेकर काफ़ी काम किया है।