देश भर में लगातार मिल रहे समर्थन के बीच आंदोलनकारी किसानों ने बुधवार को सिंघु बार्डर में एक बैठक की है। इसमें उन्होंने भविष्य की रणनीति की चर्चा की जिसे लेकर वे 4 बजे प्रेस कांफ्रेंस करके सकी जानकारी देंगे। मंगलवार को किसानों के साथ सरकार के तीन मंत्रियों ने बात करके समिति का सुझाव दिया लेकिन किसानों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया और अपनी मूल मांगें माने जाने तक आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया। इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आज फिर किसानों का समर्थन करते हुए तीन कृषि कानून ख़त्म करने की मोदी सरकार से मांग की है।
लाखों किसान सिंघु और चिल्ला बार्डर पर शांति से आंदोलन में डटे हुए हैं। पिछले दो दिन में किसानों के आंदोलन को विदेशों से भी समर्थन मिलने की ख़बरें सामने आने लगी हैं, जबकि भारत में भी उनका समर्थन लगातार बढ़ता जा रहा है जिससे केंद्र सरकार दबाव में हैं। सिंघु बार्डर पर किसानों का प्रदर्शन सातवें दिन में प्रवेश कर चुका है। कल केंद्र सरकार के मंत्रियों से बातचीत फ्लॉप रहने के बाद आज किसानों ने सिंघू बॉर्डर पर एक बैठक की जिसमें 32 किसान संगठनों ने हिस्सा लिया। अब किसान नेता शाम चार बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपने अगले फैसले के प्रति जानकारी देंगे।
यूपी से भी बड़ी संख्या में किसान अब दिल्ली की तरफ कुछ कर चुके हैं। हजारों यहाँ पहुँच चुके हैं और चिल्ला बार्डर पर जमा हैं। किसान संसद और जंतर मंतर जाने की मांग कर रहे हैं। दिल्ली पुलिस ने अवरोध लगा कर किसानों का रास्ता रोक दिया है। भारतीय किसान यूनियन (भानु) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर भानु प्रताप सिंह ने मोदी सरकार से किसान आयोग के गठन की मांग की है और कहा कि नौकरशाहों और नेताओं को इससे दूर रखा जाए।
इस बीच आज दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह के आवास पर एक बैठक हुई है। इसमें कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेलमंत्री पीयूष गोयल मौजूद रहे जो पिछले कल किसानों के साथ बैठक में उपस्थित थे। समझा जाता है दोनों ने बैठक में बातचीत की जानकारी शाह को दी है। किसानों के साथ 3 दिसंबर को भी एक बैठक प्रस्तावित है और यह अभी तय नहीं है कि किसान इसे लेकर क्या फैसला करते हैं।
हरियाणा में फोगाट खाप किसानों को समर्थन देने के लिए आज दिल्ली कूच करेगी। हरियाणा में एक निर्दलीय विधायक ने पिछले कल खट्टर सरकार से किसानों के मसले पर समर्थन वापस ले लिया था। किसानों ने साफ़ कहा कहा है कि सरकार को कानूनों पर चर्चा करने के लिए समिति बनाने की जरूरत नहीं क्योंकि किसान तीन कानूनों को ही वापस लेने की मांग कर रहे हैं।